Home समाचार U-Turn के मास्टर हैं अरविंद केजरीवाल और राम जेठमलानी

U-Turn के मास्टर हैं अरविंद केजरीवाल और राम जेठमलानी

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दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक हलफनामे से रामजेठमलानी गुस्से में है। वो कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल झूठे हैं और वे उनका केस अब नहीं लड़ेंगे। दरअसल डीडीसीए मामले में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान राम जेठमलानी ने उन्हें क्रूक (Crook) यानि ‘धूर्त’ कहा था। रामजेठलानी का कहना है कि ऐसा उन्होंने अरविंद केजरीवाल के कहने पर किया था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपने हलफनामे में साफ किया है कि उन्होंने जेठमलानी को ऐसा कहने के लिए नहीं कहा था। बहरहाल कौन सच्चा है और कौन झूठा ये तो यही दोनों बता सकते हैं। लेकिन जेठमलानी की बातों से स्पष्ट हो जाता है कि केजरीवाल एक सनकी राजनीतिज्ञ ही नहीं, एक निहायत ही गंदी मानसिकता वाले इंसान भी हैं। हालांकि जेठमलानी भी कोई भोले-भोले व्यक्ति नहीं हैं, जो किसी के कहने पर किसी का अपमान कर दें। बहरहाल यहां Crook शब्द पर छिड़े संग्राम से साफ है कि इन दोनों में से ही कोई Crook है। हालांकि इन दोनों के साथ एक शब्द और भी जुड़ा हुआ है वो है U-Turn…

मोदी सपोर्ट से मोदी विरोध का U-Turn 
राम जेठमलानी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही अपनी बात से मुकरने में महारथ रखते हैं। रामजेठलानी पहले बीजेपी और पीएम मोदी के प्रशंसक हुआ करते थे। लेकिन केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC) के पद केवी चौधरी की नियुक्ति से जाने-माने वकील राम जेठमलानी इतने खफा हो गए कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने ‘ब्रेकअप’ का ऐलान ट्विटर पर ही कर डाला। जाहिर तौर पर एक राजनीतिक-प्रशासनिक निर्णय को उन्होंने अपने तरीके से बदलवाने की कोशिश की थी जो नामुमकिन था।

जेठमलानी ने बदल लिया पाला
राम जेठमलानी ने प्रधानमंत्री के नाम पर लिखे अपने पत्र के आखिर में लिखा, ”आज से आपके लिए मेरा कम होता आदर खत्म हो गया”। जाहिर तौर पर जेठमलानी द्वारा व्यक्त किए गए ये बातें बेहद आपत्तिजनक थीं। खैर बात यहीं तक रहती तो ठीक थी, जेठमलानी विपक्षी खेमे से जा मिले। उन्होंने पीएम मोदी और बीजेपी का खुलेआम विरोध करना शुरू कर दिया। जाहिर है जिस बीजेपी के साथ वह बरसों बरस तक रहे उससे एक झटके में U-Turn ले लिया।

पिछले कुछ सालों में अरविंद केजरीवाल अपनी बातों और कर्मों में बदलाव किए हैं, उसे गिरगिट को भी शर्म आने लगे। केजरीवाल के यू टर्न की कहानी की फेहरिस्त जरा लंबी है। इस फेहरिस्त से कोई भी अंदाज लगा सकता है कि केजरीवाल ईमानदार और सच्चे जनता के प्रतिनिधि नहीं है। 

राजनीति में न आने की बात पर मारा यू-टर्न 
अन्ना आंदोलन के दौरान कहा करते थे- राजनीति करने नहीं आया हूं, मुझे संसद नहीं जाना, पीएम-सीएम नहीं बनना, मैं भ्रष्टाचार मिटाने निकला हूं। लेकिन यू टर्न लेते हुए 26 नवंबर 2012 को केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया।

अन्ना की बात मानने पर किया यू-टर्न
अरविन्द केजरीवाल कहा करते थे कि जो अन्ना कहेंगे वही कहूंगा। पर अन्ना ने जब राजनीतिक दल बनाने पर हामी भरने से इनकार कर दिया तो ‘जनता की राय’ के बहाने नयी पार्टी बना डाली। अपने गुरु को अकेला छोड़ दिया। उनकी बातें ही इसका सबूत हैं-

कांग्रेस से समर्थन न लेने पर मारा यू-टर्न
केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि सरकार बनाने के लिए वो कांग्रेस को ना समर्थन देंगे ना कांग्रेस से समर्थन लेंगे। लेकिन सत्ता के लोभ में U टर्न ले लिया। कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में पहली बार सरकार बनायी और मुख्यमंत्री बन बैठे। 31 जनवरी 2015 को एक ट्वीट किया, जो उनके डर को दिखाता है और यह भी बताता है कि सत्ता के लिए वह हर काम करने के लिए तैयार है। इस ट्वीट को उन्होंने दस मिनट अपने एकाउंट से हटा दिया था।

सरकारी सुविधाएं न लेने पर मारा यू-टर्न
केजरीवाल कहा करते थे कि वो सरकारी बंगला, गाड़ी और लालबत्ती नहीं लेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री बनने पर न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने तमाम मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए भी सरकारी एश-ओ-आराम हासिल किए।


जनलोकपाल देने के वादे पर मारा यू-टर्न
सरकार में आने के बाद 15 दिन में जनलोकपाल लाने का वादा किया, पर वो वादा भी अधूरा रहा। बहानेबाजी करते हुए 14 जनवरी 2014 को ज़िम्मेदारी से भाग निकले, सरकार ही छोड़ दी।

शीला दीक्षित के खिलाफ जांच पर मारा यू-टर्न 
शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले उठाने वाले अरविन्द केजरीवाल अब चुप हैं। उन्होंने कहा था कि शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पन्नों का सबूत है और सीएम बना तो वो 2 दिन में जेल जाएंगी। लेकिन मुख्यमंत्री बनने पर लम्बी चुप्पी साध ली, फिर भेज दी केन्द्र को रिपोर्ट।

दिल्ली छोड़कर न जाने पर यू-टर्न
सत्ता को अपनी मर्जी से चलाने की ऐसी सनक सवार थी कि जब उन्होंने देखा कि केन्द्रशासित राज्य दिल्ली में शासन करना आसान नहीं है, तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दिल्ली का काम सौंप कर पंजाब में चुनाव प्रचार करने चल दिए। प्रचार अभियान में खुलासा हुआ कि अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री बनेगें। इससे दिल्ली के लोग नाराज हो गये क्योंकि उनका मुख्यमंत्री किसी दूसरे राज्य का मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहा था जबकि दिल्ली में समस्याओं का अंबार लगा था। 

भ्रष्टाचार से उत्पन्न कालेधन को खत्म करने पर यू-टर्न
केजरीवाल के अन्ना आंदोलन का मूल उद्देश्य देश से भ्रष्टाचार को खत्म करना था। इस भ्रष्टाचार की जड़ में देश का कालाधन था जिसे खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी अभियान शुरू किया। लेकिन केजरीवाल ने इसका जमकर विरोध किया क्योंकि उन्हें पीएम मोदी का विरोध करना था। ममता बनर्जी के साथ मिलकर नोटबंदी के खिलाफ जनसभा की और मोर्चा निकाला, जिसकी हवा निकल गई। केजरीवाल ने ट्विटर पर झूठी बातों का प्रचार किया।

जाति-धर्म से ऊपर उठकर राजनीति करने पर यू-टर्न
केजरीवाल ने भ्रष्टाचार ही नहीं जाति से ऊपर उठकर राजनीति करने की वकालत की थी लेकिन पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने यू टर्न ले लिया। केजरीवाल ने एलान किया है कि पंजाब में उनकी पार्टी जीती तो प्रदेश को पहला डिप्टी दलित सीएम मिलेगा। इसी तरह से वह धर्म की भी राजनीति करने के लिए कोई अवसर नहीं छोड़ते। मोदी का विरोध करने के लिए कभी वह हिन्दू और कभी मुस्लिमों की राग छेड़ देते हैं।

देशभक्ति की भावना पर केजरीवाल का यू-टर्न 
देशभक्ति के तराने गाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक पर भी अपने देश की सरकार के दावे पर उंगली उठाई। पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हुए सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे। जिसको लेकर सोशल मिडिया पर उनकी काफी थू-थू हुई।


भष्टाचारियों का न साथ देने पर मारा यू-टर्न
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार के लिए लगातार उंगली उठाते रहे अरविन्द केजरीवाल बिहार में चुनाव के दौरान यू टर्न लेते दिखे, जब वो सार्वजनिक मंच पर लालू से गले मिले।

गडकरी पर लगाये आरोपों पर मारा यू-टर्न
बीजेपी अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया, पर जब मानहानि के केस का सामना करना पड़ा तो मामला वापस ले लिया। गडकरी मानहानि केस में ही अरविन्द केजरीवाल ने ज़मानत के लिए 10 हज़ार रुपये के बॉन्ड भरने से इनकार कर दिया और 21 मई 2014 को उन्हें जेल जाना पड़ा। फिर अपने रुख से यू टर्न लेते हुए बॉन्ड भरने को राजी हुए। आखिरकार 26 मई 2014 की शाम नरेन्द्र मोदी सरकार के शपथ लेने के दो घंटे बाद रात 8 बजे केजरीवाल जेल से बाहर आ सके।

 धारा 144 लगाने पर केजरीवाल का यू-टर्न
केजरीवाल ने 23 दिसम्बर 2012 को ट्वीट करते हुए धारा 144 को गलत बताया था। आगे भी अपने और साथियों के खिलाफ इस धारा के इस्तेमाल को गलत करार दिया था। लेकिन सत्ता में आने पर उन्होंने खुद अपने ही पूर्व साथियों के खिलाफ इस धारा का तब इस्तेमाल किया जब विधानसभा के बाहर वो प्रदर्शन कर रहे थे।


सतलुज-यमुना लिंक नहर पर केजरीवाल का यू-टर्न
विधानसभा चुनाव के दौरान पंजाब को ललचाई नजर से देख रहे अरविन्द केजरीवाल ने सतलज यमुना लिंक के पानी पर पंजाब का अधिकार तो बता दिया लेकिन जैसे ही हरियाणा सरकार ने मुनक नहर का पानी दिल्ली को देने पर पुनर्विचार की धमकी दी, मुख्यमंत्री केजरीवाल को यू टर्न लेना पड़ा।

‘ठुल्ला’ पर यू-टर्न
मुख्यमंत्री रहते अरविन्द केजरीवाल ने एक टीवी इंटरव्यू में पुलिस के जवानों को ठुल्ला कहा था, बवाल होने पर यू-टर्न लेते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के लिए उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया था। अपने कहे पर उन्होंने माफी भी मांगी

उप राज्यपाल को ड्राफ्ट्स भेजने पर यू-टर्न
केजरीवाल सरकार विधानसभा में पेश करने से पहले बिल ड्राफ्ट्स को उप-राज्यपाल के पास नहीं भेजने पर अड़ी थी। बाद में सरकार को यू- टर्न लेना पड़ा और सारे ड्राफ्ट्स उप-राज्याल के पास भेजे जाने लगे।

समर्थन पर यू-टर्न
केजरीवाल ने बिहार चुनाव में किसी भी दल या नेता का समर्थन करने से इनकार किया, लेकिन बाद में नीतीश कुमार के लिए दिल्ली में रह रहे बिहारियों से वोट करने की अपील की।

पानी पर यू-टर्न
दिल्लीवासियों को 700 लीटर पानी रोज मुफ्त देने का वादा आप नेता अरविन्द केजरीवाल ने किया था। इस वादे के बदले दिल्ली वालों को उन्होंने ऐसा पानी पिलाया कि पहले से भी दुगना-तिगुना बिल देना पड़ रहा है।

पक्की नौकरी पर यू-टर्न
ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों के लिए पक्की नौकरी का वादा भी केजरीवाल ने किया था, पर अब उस वादे से भी U टर्न ले चुके हैं।

 चुनावी वादों पर यू-टर्न
चुनावी वादों को पूरा करने पर भी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यू टर्न लिया। पहले कहा करते थे कि सभी वादों को पूरा करूंगा लेकिन दिल्ली में एक समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि पांच साल में 100 फीसदी नहीं भी हो तो 40-50 फीसदी वादे पूरा करना भी काफी होगा।

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