कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिका में बर्कले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में युवा छात्रों के साथ संवाद किया। इस दौरान राहुल गांधी ने देशहित को नुकसान पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। विदेशी जमीन से अपने ही देश के बारे में इतना दुष्प्रचार किया जो कोई दुश्मन भी कभी नहीं करता। दरअसल केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के चक्कर में वंशवाद, कश्मीर, भारत-रूस संबंध, नोटबंदी जैसे तमाम विषयों पर वे बोले तो जरूर, लेकिन वह कांग्रेस पार्टी की हताशा और निराशा को ही जाहिर कर गए।
आइये हम सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं कि राहुल ने क्या कहा और वे कैसे कांग्रेस पार्टी की ही पोल खोल गए।
राहुल ने कहा- नोटबंदी का निर्णय मुख्य आर्थिक सलाहकार और संसद को बिना बताए या पूछे लिए गए थे।
राहुल गांधी ने नोटबंदी पर पीएम मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन नोटबंदी पर विपक्ष ने किस तरह की नौटंकी की यह पूरी दुनिया को पता है। देश की जनता ने अपने जनादेश से विपक्ष को संदेश भी दे दिया है कि नोटबंदी पर वह पीएम मोदी के साथ है, लेकिन अब रही बात कि संसद को जानकारी नहीं देने की बात तो प्रधानमंत्री देश के दीर्घकालिक हित को ध्यान में रखते दृढ़ता और साहस दिखाया, भले ही उनकी राजनीतिक आलोचना चाहे जितनी भी हो जाए।
नोटबंदी जैसे कदम के लिए गोपनीयता बेहद जरूरी थी और संसद के साथ इसे साझा करना इसके उद्देश्य को खत्म कर देता। नोटबंदी के कारण ही आज 56 लाख से अधिक नये व्यक्तिगत करदाता सामने आए हैं। बहरहाल क्या राहुल गांधी यह बता सकते हैं कि क्या कांग्रेस पार्टी कभी ऐसे फैसले लेने का साहस दिखा पाई? जाहिर है इसका उत्तर बिल्कुल नहीं है।
राहुल ने कहा कि देश का माहौल खराब है। पत्रकारों पर हिंसा हो रही है। मुसलमान बीफ के लिए सताए जा रहे हैं।
राहुल गांधी ने विदेशी जमीन से अपने ही देश के बारे में ऐसी बातें कह कर उन्होंने भारत की क्या छवि बनाने की कोशिश की है, क्या उन्हें पता है? दरअसल कांग्रेस हमेशा से देश को बदनाम करने की राजनीति करती रही है। हिंदू-मुसलमान की राजनीति करती रही है… इस बार भी यही किया है। इस बार विदेशी जमीन पर राहुल ने न सिर्फ देश के धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचाया है बल्कि भारत की विविधताओं और देश के संविधान का भी मजाक उड़ाने की कोशिश की है।
इसके ठीक उलट पीएम मोदी जब भी बात करते हैं तो वे हिंदू मुसलमान की बात कभी नहीं करते। वे हमेशा देश के सवा सौ करोड़ नागरिकों की बात करते हैं। देश की विविधता पर गौरव करते हैं और भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं। देश के संविधान को सर्वोच्च मानते हैं।
Rahul Gandhi goes to a premier US university and embarrasses the country by fielding planted questions.. #RahulInsultsIndia https://t.co/wqmpzudTpl
— Amit Malviya (@malviyamit) September 12, 2017
राहुल गांधी ने कहा कि भारत अहिंसा पर विश्वास करने वाला देश है। हिंसा की राजनीति से कुछ नहीं मिलने वाला है। मैं हर तरह की हिंसा का विरोधी हूं।
राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस प्रायोजित हिंसा सिख विरोधी हिंसा के लिए एक तरह से क्षमा याचना के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन राहुल गांधी या कांग्रेस यह बताएगी कि 1984 के दंगे के 31 साल बाद उन्हें माफी मांगने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? क्या राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक दंगे के मुख्य आरोपी जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं को बचाने में नहीं लगी रही है? राहुल गांधी यह बताने का साहस रखते हैं कि सिखों के विरुद्ध हुई हिंसा कांग्रेस की शह पर हुई थी? क्या वे इस बात पर क्षमा मांगने की हिम्मत रखते हैं कि उनके पिता राजीव गांधी ने यह कह कर गलती की थी कि- ’जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।’ जाहिर है इसका जवाब भी जोरदार तरीके से नहीं ही है।
कश्मीर में कांग्रेस ने आतंकवाद बंद किया, मोदी ने आतंकियों के लिए दरवाजे खोले। बीजेपी ने सियासी फायदे के लिए कश्मीर का नुकसान किया।
राहुल ने कहा कि 9 साल मैंने मनमोहन सिंह, चिंदबरम, जयराम नरेश के साथ मिलकर कश्मीर पर काम किया, लेकिन राहुल गांधी यह बताना शायद भूल गए कि कश्मीर समस्या किसकी देन है। वे यह भी नहीं बोल पाए कि उनके ही पूर्वज देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों की वजह से आज भी कश्मीर समस्या विद्यमान है। धारा 370 और 35A जैसे प्रावधान भी कांग्रेस की ही देन है। राहुल ने यह बताने का भी साहस नहीं दिखाया कि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसे चार मौके आए जब वह कश्मीर समस्या का समाधान भारत के हक में कर सकते थे, लेकिन नहीं कर पाई। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने यह कहने का नैतिक दायित्व भी नहीं निभाया कि वह जानबूझकर कश्मीर की समस्या वह कभी खत्म होने नहीं देना चाहती है।
इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर नीति में स्पष्टता है। अलगाववादियों से बात नहीं… आतंकवादियों को छोड़ेंगे नहीं और आम कश्मीरी को गले लगाने से कश्मीर समस्या का हल करेंगे।
राहुल गांधी ने लोकसभा में सीटों की संख्या 545 की जगह 546 बता दी। अब तो दुनिया भी उनके सामान्य ज्ञान से परिचित हो गई!
अमेरिका में इंडिया एट 70: रिफ्लेक्शंस ऑन द पाथ फारवर्ड विषय पर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में कांग्रेस उपाध्यक्ष ने अपने ‘सामान्य ज्ञान’ का परिचय दे ही दिया। एक सवाल का जवाब देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष ने लोकसभा में सदस्यों की संख्या 546 बता दी। दरअसल लोकसभा में कुल 545 सदस्य होते हैं लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इसकी संख्या 546 बता दी।
बहरहाल जिस राहुल गांधी को ये तक नहीं पता कि लोकसभा में कितनी सीटें हैं, वो देश चलाने की बात कर रहे हैं। जाहिर है राहुल गांधी अपने ‘ज्ञान’ का इजहार कई बार कर चुके हैं, लेकिन इस बार विदेशी जमीन से किया है तो साफ है कि देश का सिर नीचा ही किया है।
#RahulGandhi says there are 546 (not 545) members in Lok Sabha! How can a legislative House have even number of members? #RGinUS
— Rakesh M Chaturvedi (@ET_Rakesh_RC) September 12, 2017
Too much to expect #RahulGandhi to make it through the evening without at least a minor gaffe. (Lok Sabha strength is 545 members, not 546.)
— Sadanand Dhume (@dhume) September 12, 2017
राहुल ने कहा हमारा पूरा देश परिवारवाद से चलता है, मेरे पीछे मत पड़ो। अखिलेश यादव, स्टालिन और धूमल के बेटे यहां तक अभिषेक बच्चन भी वंशवाद का उदाहरण हैं।
राहुल गांधी ने विदेश में कहा कि हिन्दुस्तान तो ऐसा ही है जहां परिवारवाद से सब कुछ चलता है तो शायद वह भूल गए कि हिन्दुस्तान में कई ऐसे नागरिक हैं जो कई क्षेत्रों में योगदान देते हैं, लेकिन उनकी कोई राजनीतिक विरासत नहीं है। पीएम मोदी भी गरीब परिवार से आते हैं, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी दलित परिवार से आते हैं। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी किसान परिवार से आते हैं और संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचे। इन तीन सर्वोच्च पदों पर इन व्यक्तियों का होना बताता है कि लोकतंत्र में परिवारवाद नहीं बल्कि मैरिट की जगह होती है।
बहरहाल राहुल गांधी यह क्यों नहीं समझना चाहते कि देश अब नाकाम वंशवादियों को झेलने को तैयार नहीं है। गरीब, दलित और वंचित तबके के लोगों में भी प्रतिभा की कमी नहीं है और वे वंशवादी राजनीति को खत्म करने की ठान चुके हैं।
No. Not entire country. We are proud that our President (Kovind) VP (Naidu) and the PM (Modi) dont belong to pol dynasties? https://t.co/qPpSuBnze4
— Shivangi Muttoo (@shivangimuttoo) September 12, 2017
Core difference: While #RGinUS singing “Gandhi-Gandhi” PM Modiji talking about making country world leader agains as visioned by Swami V.
— Shiv Singh (@shivsBHARAT) September 12, 2017
राहुल गांधी ने पहली बार कहा, मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने को तैयार हूं।
राहुल गांधी ने पहली बार अपनी जुबान से यह जाहिर किया कि वे पीएम बनना चाहते हैं, लेकिन राहुल गांधी की ‘अक्षमता’ को जानना हो तो उनकी राजनीतिक ‘सक्षमता’ को समझना जरूरी है। कांग्रेस के युवराज के नेतृत्व में पार्टी का क्या हाल हो गया है यह जगजाहिर है। कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी सत्ता से बेदखल है और कई राज्यों में कांग्रेस का अस्तित्व समाप्त हो गया है। हिमाचल प्रदेश, गुजरात और बिहार में पार्टी टूट के कगार पर खड़ी है, यह राहुल गांधी की राजनीतिक ‘सक्षमता’ के सबूत हैं। दूसरा विकास की तस्वीर देखनी हो तो उनके संसदीय क्षेत्र अमेठी जाकर देखा जा सकता है।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के 83 प्रतिशत लोगों की पसंद बने हुए है। सवा सौ करोड़ लोगों की आशा, आकांक्षा और उम्मीदों के प्रतीक हैं। ऐसे में देश की जनता क्या राहुल गांधी को पीएम के रूप में देखना पसंद करेगी? जवाब बिल्कुल नहीं है।
राहुल ने कहा कि पार्टी 2012 में एक निश्चित दंभ में आ गई थी और पार्टी जनता से दूर हो गई थी। भारत में कोई लंबे समय तक सत्ता में नहीं रह सकता है।
राहुल गांधी की ये स्वीकारोक्ति सही है कि पार्टी कांग्रेस पार्टी अहंकारी है, लेकिन सिर्फ 2012 में ही नहीं, कांग्रेस तो हमेशा ही सत्ता के नशे में चूर रही है। मनरेगा और फूड सिक्यूरिटी बिल जैसी योजनाओं पर राजनीति करने वाली कांग्रेस दंभी ही तो रही है। गरीबों के आगे ‘खैरात’ के टुकड़े फेंक देना और वोट की राजनीति करने की परंपरा भी तो कांग्रेस की अहंकारी राजनीति का नमूना है। अगर ऐसा नहीं है तो कांग्रेस ने कभी भी लोगों को स्वावलंबी बनाने की पहल क्यों नहीं की। सब्सिडी के लिए 9 सिलेंडर दें या 12 इस पर राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना देना देश के मिडिल क्लास को नीचा दिखाना नहीं था? कांग्रेस पार्टी का यही पावर का नशा तो देश को ले डूबा। पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की कमी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा क्या कांग्रेस की अहंकारी राजनीति नहीं है? वे यह भी बताएंगे कि देश में पैंसठ वर्षों तक किस पार्टी की सत्ता रही है?
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री देश को सशक्त और जात-पात, संप्रदायवाद से मुक्त बनाना चाहते हैं। सबका साथ, सबका विकास की नीति और एक भारत, श्रेष्ठ भारत का कंसेप्ट लाकर पीएम मोदी ने इसी दंभ की राजनीति को खत्म करने की पहल की है। गरीब, दलित, पिछड़े तबके को योग्यता के अनुसार स्थान देकर देश की राजनीति में नयी लकीर खींची है।
राहुल ने कहा आज रूस पाकिस्तान को हथियार बेच रहा है, नेपाल, बर्मा, श्रीलंका, मालदीव में चीन का दबदबा बढ़ रहा है।
राहुल गांधी द्वारा विदेशी जमीन से भारत के परंपरागत मित्र देशों के बारे में बात करना कितनी बड़ी मूर्खता है यह शायद ही वे समझ पाएं। दरअसल जिन देशों के राहुल गांधी ने नाम लिए हैं, उन सभी देशों से पीएम मोदी ने गहरे संबंध बनाए हैं। डोकलाम विवाद में रूस ने जिस तरीके से भारत का साथ दिया और ब्रिक्स समिट में भी रूस ने जिस तरह से आतंकवाद के मामले में भारत का समर्थन किया, यह राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी नहीं देख पा रही है क्या? म्यांमार ने किस तरीके से चीन के मुकाबले भारत को तरजीह दी है यह भी शायद राहुल एंड कंपनी को न दिखे। इतना ही नहीं नेपाल, श्रीलंका और मालदीव ने जिस तरीके से भारत का साथ दिया और पाकिस्तान में होने वाले सार्क समिट का बायकाट किया क्या वह कांग्रेस को नहीं दिखता है?
दरअसल कांग्रेस पार्टी ने तो कभी पाकिस्तान के मुसलमानों से भारत के मामले में दखल देने की मांग की है तो कभी डोकलाम विवाद के दौरान चीनी राजदूत से मिलकर देश का सिर नीचा किया है। जाहिर तौर पर विदेशी जमीन से भारत की सफल विदेश नीति की आलोचना करना राहुल के मानसिक दिवालियेपन को दिखाता है।
राहुल गांधी ने कहा कि भारत में जब राजीव गांधी ने कंप्यूटर के बारे में बात की थी, तो भाजपा ने उसका विरोध पुरजोर विरोध किया गया था।
देश 21वीं सदी में आगे बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में भारत का आइटी उद्योग फैल चुका है और देश के आइटी प्रोफेशनल्स की डिमांड दुनिया में सबसे अधिक है, लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष हैं कि देश को 1980 के दशक में ही रखना चाहते हैं। उन्हें यह क्यों नहीं दिख रहा है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में देश अब तेजी से डिजिटल इंडिया बनने जा रहा है। गांव-गांव में ऑप्टिकल फाइबर बिछाए जा रहे हैं। 4G से 5G की ओर बढ़ रहा देश लेस कैश ट्रांजेक्शन में भी काफी आगे है। भारत नये टेक्नोलॉजी को अपनाने में विकासशील देशों में अग्रिम कतार में है, लेकिन राहुल आज भी विदेशी जमीन से भारत को कमतर बताने पर तुले हुए है। जाहिर है राहुल गांधी वक्त के अनुसार नहीं चलते हैं, वे वक्त को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं!
राहुल के कार्यक्रम में फ्री स्पीच कार्यक्रम में सवाल पूछने की आजादी क्यों नहीं?
एक लड़की कार्यक्रम के दौरान खड़ी हो गई और राहुल गांधी से सवाल पूछना चाह रही थी। कार्यक्रम में सवाल-जवाब होने थे सो उस लड़की का यह प्रयास बिल्कुल गलत नहीं था, लेकिन कार्यक्रम के मोडरेटर ने उसे सवाल पूछने से रोक दिया। तब लड़की ने कहा, ‘‘यह कैसी फ्री स्पीच है? अगर आप लोग तय कर रहे हो कि क्या पूछना है?’’ जाहिर तौर पर यह सवाल पूछना जायज था, लेकिन राहुल भला उस लड़की जवाब देने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि वे तो स्क्रिप्टेड बातें बोलने के आदी हैं। विदेशी जमीन पर सवाल भी पहले से तय किए गए थे और राहुल के जवाब भी पहले से स्क्रिप्टेड थे। ऐसे में राहुल कहीं फंस जाते तो!
पप्पू का अंतर्राष्ट्रीय अपमान – नहीं सहेगा हिन्दुस्तान https://t.co/eu4ekFkTFP
— Shiv Singh (@shivsBHARAT) September 12, 2017
बहरहाल कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को देश पर थोपना चाहती है, लेकिन सही मंच नहीं मिल पा रहा है। देश की जनता की नजरों में राहुल का क्या हाल है ये सभी जानते हैं। कांग्रेस पार्टी करे भी तो क्या?… राहुल को री-लॉन्च करने की कोशिश हर बार फेल हो जाती है। एक बार कलावती के माध्यम से लॉन्च करने की कोशिश हुई तो दूसरी बार मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें दागी जन प्रतिनिधि विधेयक के दौरान विधेयक की प्रति प्रेस के सामने फाड़कर लॉन्च करने की कोशिश की गई थी। तीसरी बार उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर तो चौथी बार चुनाव प्रचार का जिम्मा देकर लॉन्च करने की कोशिश की गई। लेकिन हर बार फेल रहे… अब देखने वाली बात ये है कि इस बार विदेशी जमीन से राहुल की री लॉन्चिंग की कोशिश कितनी कामयाब होती है?