संसार में कई ऐसे लोग हैं जो दूसरों की कमी को जल्दी देख लेते हैं और अच्छाई की ओर ध्यान नहीं देते, ऐसे लोगों को “Negativity bias mentality disorder” का पीड़ित माना जाता है। भारतीय राजनीति के ‘युवराज’ यानि राहुल गांधी भी इसी के शिकार लगते हैं। यूं कहें कि आज तक वह यह तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि किस बात का विरोध करना है और किसका समर्थन। खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वे ऐसी अदावत पाले बैठे हैं कि उन्हें हर अच्छी बात में भी नकारात्मक चीजें ही दिखाई देती हैं। इस अंधविरोध में कई बार वे देशहित को तो ताक पर रख ही देते हैं, ‘अपनी कांग्रेस’ पार्टी को भी गर्त में डुबो देने पर उतारू नजर आते हैं।
आइये 10 प्वाइंट्स में जानते हैं उनकी ऐसी ही कई विरोधाभासी बातें जो देशहित के लिहाज से कतई अच्छी नहीं हैं।
नंबर 1- सोल्यूशन नहीं केवल प्रॉब्लेम
राहुल गांधी पिछले कुछ समय से लगातार अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए पीएम मोदी पर हमला कर अपने सवालों के जवाब मांग रहे हैं, लेकिन उनके सवालों का मतलब वे भी शायद ही समझते हों, क्योंकि अधिकतर सवाल ऐसे होते हैं जिनपर सरकार जवाब दे चुकी होती है, लेकिन बार-बार वही मुद्दे दोहराते रहते हैं। सरकार को कठघरे में खड़ा तो करते हैं, लेकिन समस्याओं का समाधान लेकर सामने नहीं आते।
हाल में ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी के मन की बात कार्यक्रम पर तंज करते हुए पूछा कि देश के बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने, चीन के साथ जारी डोकलाम विवाद और हरियाणा में हो रही रेप की घटनाओं को रोकने के लिए आप कैसी योजना बना रहे हैं?
Dear @narendramodi, since you’ve requested some ideas for your #MannKiBaat monologue, tell us about how you plan to:
1. Get our youth JOBS
2. Get the Chinese out of DHOKA-LAM
3. Stop the RAPES in Haryana. pic.twitter.com/pwexqxKrTQ— Office of RG (@OfficeOfRG) January 19, 2018
दरअसल राहुल गांधी भी जानते हैं कि मन की बात कार्यक्रम बिल्कुल गैर राजनीतिक है, बावजूद इसके वे इसपर सवाल पूछ रहे हैं। बहरहाल उन्होंने जो सवाल पूछे हैं उसके जवाब भी सबके सामने हैं। नौकरी के मसले पर सरकार लोकसभा और राज्यसभा में स्पष्टीकरण दे चुकी है। 10 करोड़ मुद्रा लोन देकर स्वरोजगार को बढ़ावा देना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। डोकलाम विवाद में कैसे चीन को मुंहकी खानी पड़ी यह भी दुनिया देख चुकी है, लेकिन राहुल गांधी नहीं देख पाए। हरियाणा में बालिकाओं से रेप के मामले में भी केंद्र सरकार एक्शन ले चुकी है, गृह मंत्रालय ने भी रिपोर्ट तलब की है। हालांकि यह राज्य सरकार का मामला है बावजूद इसके पीएम मोदी बालिकाओं की सुरक्षा पर सख्त है। पर सवाल यह है कि सबकुछ जानते हुए भी राहुल के ऐसे बेतुके सवाल को लोग क्या समझे?
नंबर 2- कठिन मुद्दों पर बंगले झांकते राहुल
जीएसटी मूल रूप से कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार की लाई हुई है, लेकिन वह इसे लागू नहीं कर पाई। अब जब मोदी सरकार ने साहसिक निर्णय लिया और उसे लागू कर दिया तो वे इसे गब्बर सिंह टैक्स ठहराने लगे। जबकि जीएसटी के आने से वन नेशन, वन टैक्स लागू हो गया जिससे व्यापारियों को काफी सहूलियत हुई है। सिर्फ चुंगी नाकों पर रुकने वाले ट्रकों के तीस हजार करोड़ रुपये के डीजल बच गए हैं। भ्रष्टाचार पर नकेल के लिए नोटबंदी जैसे बड़े कदम उठाए गए, लेकिन राहुल यहां भी राजनीति की लाइन में खड़े हो गए।
दरअसल जीएसटी और नोटबंदी जैसे निर्णय किसी भी सरकार के लिए बेहद कठिन निर्णय थे जिसे मोदी सरकार ने लागू करने की हिम्मत दिखाई। इन निर्णयों को जनता का समर्थन प्राप्त हुआ है।
नंबर 3- देशहित का विरोध करते हैं राहुल
दुनिया जानती है कि राफेल रक्षा सौदे में मोदी सरकार ने फ्रांस की सरकार से डायरेक्ट डील की जिससे बिचौलिए की भूमिका बची ही नहीं। इस कदम से सरकार ने न केवल देश के खजाने के 12,600 करोड़ रूपये बचा लिए, बल्कि समयांतराल पर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का भी करार कर लिया है, लेकिन राहुल गांधी इसको लेकर भी नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं। जाहिर है इसके खतरे को शायद वे समझ नहीं पा रहे हैं क्योंकि इतने निष्पक्ष सौदे पर सवाल उठने से फ्रांस के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। राहुल ने यही नकारात्मक राजनीति तब भी की थी, जब वे डोकलाम विवाद के बीच चीन के राजदूत से गुपचुप जाकर मिले थे। पहले इनकार किया और बाद में सफाई भी दी। इतना ही नहीं कश्मीर में सेना की कार्रवाई को भी कांग्रेस अपनी नकारात्मक राजनीति में घसीटती रही है।
बहुत लम्बी थी साहेब की बात
सदन में दिन को बता दिया रातअपनी नाकामियों पर डाले पर्दे
अफसोस भाषण से गायब थे देश के मुद्देप्रधानमंत्रीजी चुप्पी कब तोड़ेंगे
राफेल डील पर आखिर कब बोलेंगे?#PradhanMantriJawabDo— Office of RG (@OfficeOfRG) February 7, 2018
नंबर 4- भ्रष्टाचार पर डबल स्टैंडर्ड
पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम पर घोटाले के आरोप हों या फिर लालू प्रसाद यादव को सुनाई गई सजा… इन मामलों में राहुल का दोहरा स्टैंड साफ नजर आता है। इसे राजनीति से प्रेरित बताकर देश के कानून व्यवस्था और संविधान पर सीधे सवाल खड़े कर रहे हैं।
नंबर 5- तीन तलाक पर डबल गेम
लोकसभा के भीतर तीन तलाक बिल के साथ खड़ी रहने वाली कांग्रेस ने तीन जनवरी को राज्यसभा के भीतर बिल पर विरोध जताना शुरू कर दिया। दरअसल कांग्रेस का यह डबल गेम और कुछ नहीं बल्कि सॉफ्ट हिंदुत्व की उसकी फेल हो चुकी राजनीति को अपनी नकारात्मक सोच के साथ नयी ताकत देने की जुगत भर है, लेकिन वह यह नहीं समझ रही है कि मोदी विरोध के नाम पर वह मुस्लिम महिलाओं के साथ कितना बड़ा छल कर रही है।
नंबर 6- हार को भी जीत बताते राहुल
गुजरात चुनाव परिणाम के बाद राहुल गांधी की नकारात्मक राजनीति फिर दिखी। एक तो चुनाव के नतीजे आने के 24 घंटे बाद मीडिया के सामने आए दूसरा यह कि उन्होंने गुजरात में पार्टी के प्रदर्शन को नैतिक जीत बताया। बजाय हार से सबक लेने के वे फिर आत्ममुग्धता के शिकार होकर रह गए।
नंबर 7- अक्षम नेतृत्व, असरहीन राजनीति
2014 में जब राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे, तब देश के 13 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी, जबकि बीजेपी केवल 7 प्रदेशों में। आज बीजेपी+ 19 राज्यों में सत्ता में है वहीं कांग्रेस सिर्फ 4 राज्यों में। नए साल में एक और बड़ा राज्य कर्नाटक उससे छिन सकता है। ऐसे में सवाल है कि राहुल गांधी अपनी अक्षमता को न देखकर प्रधानमंत्री मोदी के विशाल व्यक्तित्व में क्यों खोट निकालने में लगे हैं?
नंबर 8- ‘गालीबाजों’ पर चुप्पी
राहुल गांधी की नकारात्मक राजनीति की एक कहानी यह है कि वे प्रधानमंत्री मोदी को अपशब्द कहने से बचते हैं, लेकिन अपनी पार्टी के कुछ नेताओं को ‘खुल्ला’ छूट दे रखी है। पीएम मोदी का बोटी-बोटी करने का बयान देने वाला इमरान मसूद को अपनी कोर कमिटी में शामिल कर लिया। यही नहीं आनंद शर्मा, रेणुका चौधरी और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं पर भी कोई लगाम नहीं लगायी है। जाहिर है यह राहुल के दोहरे रवैये को जगजाहिर करता है।
नंबर 9- सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल
गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने ट्विटर के जरिये एक के बाद एक 15 सवाल पूछे, लेकिन उनके इन सवालों का जवाब जनता ने अपना जनादेश देकर दे दिया। बावजूद इसके सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस पार्टी द्वारा कई तरह की नकारात्मक खबरें फैलाई जा रही हैं। हजारों करोड़ रुपये सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध नकारात्मक खबरें फैलाने के लिए खर्च कर रही है।
नंबर 10- विदेश में जाकर देश की छवि को धूमिल की
देश की राजनीति में लगातार विफल हो रहे राहुल गांधी ने बौखलाहट में अब विदेशों में देश की छवि को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। बीते जनवरी में राहुल ने बहरीन जाकर कहा, ”त्रासदी ये है कि गरीबी दूर करने, रोजगार बढ़ाने और विश्व स्तर की शिक्षा व्यवस्था बनाने जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचने के बजाय अलगाववाद और नफरत को बढ़ावा दिया जा रहा है।’’ साफ है कि राहुल का यह बयान देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल करने वाला था।
मध्यप्रदेश में किसानों को भड़काना हो या सहारनपुर में जातिवादी राजनीति को हवा देना या फिर गुजरात चुनाव में विकास को पागल करार देने जैसी बातें… ये राहुल की नकारात्मक राजनीति का नया अंदाज है।