कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक फिर कर्नाटक में मंदिरों में जाने का ढोंग कर रहे हैं। गुजरात की तर्ज पर राहुल गांधी का कर्नाटक के चुनावी दौरे में कई मंदिरों और दूसरे धार्मिक स्थलों में जाने का कार्यक्रम है। बैंगलुरू से करीब 350 किलोमीटर दूर हंपी में प्राचीन वीरुपक्ष मंदिर है, भगवान शिव के इस मंदिर की कर्नाटक में बहुत मान्यता है। गुजरात चुनाव के दौरान जब राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर गए थे, तब कांग्रेसियों ने उन्हें सबसे बड़ा शिव भक्त बताया था, लेकिन शिव के इस प्राचीन मंदिर में राहुल गांधी नहीं जाएंगे। कहा जा रहा है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राहुल गांधी से कहा है कि अगर चुनावी धर्म निभाने वाली ‘टेंपल रन’ के चक्कर में इस मंदिर में चले गए तो, कर्नाटक में सत्ता किसी भी सूरत में नहीं मिलने वाली।
आपको बता दें कि विश्व धरोहर में शामिल इस प्राचीन मंदिर के बारे में अंधविश्वास है कि जो भी सत्ताधारी नेता इस मंदिर में दर्शन करने आता है, उसकी सरकार दोबारा नहीं बनती है। यही वजह है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी कभी इस प्राचीन मंदिर में दर्शन करने नहीं गए, यहां तक कि हंपी महोत्सव का उद्घाटन कर, वहीं से लौट गए। अब खुद को जनेऊधारी हिंदू होने का दावा करने वाले पाखंडी राहुल गांधी कर्नाटक के चार दिनों के दौरे में सॉफ्ट हिंदुत्व दिखाने के लिए कुछ मंदिरों में दर्शन करने जाएंगे लेकिन हंपी के इस प्राचीन और विश्वविख्यात वीरुपक्ष मंदिर में जाने की उनकी हिम्मत नहीं है। साफ है कि मंदिरों में जाने का ढोंग करने वाले राहुल गांधी को कर्नाटक में सत्ता जाने का डर सता रहा है।
सोशल मीडिया पर भी राहुल गांधी इस कदम को लेकर लोग के निशाने पर आ गए हैं। लोगों का कहना है कि अगर राहुल गांधी को अपनी सरकार के कामकाज पर भरोसा है, तो वह किसी अंधविश्वास में क्यों पड़ रहे हैं? सीधी सी बात है मंदिर में जाने या नहीं जाने से किसी सरकार पर तो कोई असर पड़ता नहीं हैं, यह कोरा अंधविश्वास है।
Rahul Gandhi is not visiting the ancient Virupaksha temple at Hampi. K’taka politician fear that whoever visits loses power.
— DP SATISH (@dp_satish) 10 February 2018
न्यू इंडिया के निर्माण में लगे पीएम मोदी अंधविश्वास के खिलाफ
दूसरी तरफ नए भारत के निर्माण में लगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जिन्होंने हमेशा ऐसे अंधविश्वासों को तोड़ने का काम किया है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा के बारे में भी यही आंधविश्वास प्रचिलित है कि अगर यहां कोई मुख्यमंत्री दौरा करता है तो अगली बार उसकी सरकार नहीं बनती है। पूर्व में उत्तर प्रदेश के कई पूर्व मुख्यमंत्री इसी अंधविश्वास के चलते राज्य के सबसे विकसित शहर के दौरे पर नहीं आए। 25 दिसंबर 2017 को नोएडा में बोटेनिकल गार्डन से दिल्ली के कालिका मंदिर तक मेट्रो की मजेंटा लाइन के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत कर इस मिथक को तोड़ा था।
विज्ञान एवं तकनीक के युग में अंधश्रद्धा के लिए जगह नहीं- प्रधानमंत्री मोदी
नोएडा में मेट्रो लाइन के लोकार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने अंधविश्वास को तोड़कर नोएडा पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बधाई भी दी थी। अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा था कि योगी जी उत्तर प्रदेश को गुड गवर्नेंस के जरिए उत्तम तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि उनके कपड़ों को लेकर जो भ्रम फैलाया गया, योगी जी ने अपने आचरण से उन्हें गलत सिद्ध कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो सीएम कुर्सी जाने के भय से कहीं जाने से बचते हैं उन्हें सीएम पद पर रहने का हक नहीं है। क्योंकि मान्यताओं में कैद होकर समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता। इस मौके पर उन्होंने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते अपने कार्यकाल के बारे में भी बताया कि किस तरह से उन्होंने इन मिथकों को तोड़ा और वहां सबसे अधिक कार्यकाल तक सीएम रहने का गौरव प्राप्त किया। प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि “श्रद्धा का अपना स्थान है, लेकिन अंधश्रद्धा की विज्ञान और तकनीक के इस युग में कहीं जगह नहीं है।“
I appreciate the work of the UP Government under CM @myogiadityanath Ji towards developing the state. He has shown inspirational leadership by rejecting superstition, blind faith and visiting Noida. pic.twitter.com/qOWnUVRemS
— Narendra Modi (@narendramodi) 25 December 2017
तो एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिनके मन में श्रद्धा है लेकिन अंधश्रद्धा नहीं है। क्योंकि इन्हें मालूम है कि आज के विज्ञान के युग में अंधविश्वास की कोई जगह नहीं है। वहीं दूसरी तरफ ढोंगी राहुल गांधी है, जो सिर्फ चुनावों में दिखावे के लिए मंदिरों में जाने का नाटक करते हैं, और उस नाटक को पूरा करने में भी उनके पैर कांपते हैं। क्यों कि उन्हें न खुद पर भरोसा और न कांग्रेस सरकार के कामकाज पर। यही वजह है कि वो कर्नाटक के हंपी में वीरुपक्ष मंदिर में जाने की हिम्मत नहीं कर पाए।