Home विचार ‘चोर बोले जोर से’ वाली कहावत को सच साबित कर रहे राहुल...

‘चोर बोले जोर से’ वाली कहावत को सच साबित कर रहे राहुल गांधी

SHARE

राहुल गांधी आजकल जहां भी जाते हैं वह राफेल डील का राग अलापते हैं। फ्रांस सरकार के खंडन के बाद यह मामला तो खत्म हो जाना चाहिए था, लेकिन वे राफेल डील की बात जरूर करते हैं। जिस अंदाज में वे मुद्दा उठा रहे हैं, और जिस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले को धता बताते हुए जोर-जोर से बोलते हैं, इससे साफ है कि दाल में जरूर कुछ काला है। परफॉर्म इंण्डिया ने मामले की पड़ताल की  तो पता लगा कि राहुल गांधी ‘चोर बोले जोर से’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष पर आयकर विभाग ने ‘टैक्स चोरी’ का आरोप लगाते हुए नोटिस जारी किया है। जाहिर है इससे वे बौखलाए हुए हैं और लगातार राफेल डील की बात उछालकर अपनी ‘चोरी’ छिपाने की जद्दोजहद में लगे हैं।

गौरतलब है कि पहली बार ऐसा हुआ है कि नेहरू-गांधी परिवार के किसी व्यक्ति को आयकर नोटिस जारी किया गया है। आयकर विभाग ने खुलासा किया है कि राहुल गांधी ने न सिर्फ आयकर विभाग से यंग इंडिया के अपने निदेशक पद के बारे में झूठ बोला है बल्कि उससे होने वाली आय भी छिपाई है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का मानना है कि इससे कर चोरी का मामला बनता है। आयकर विभाग ने राहुल गांधी के खिलाफ आयकर चोरी के संबंध में 463 पेज का नोटिस जारी किया है।

गौरतलब है कि इनकम टैक्स विभाग ने राहुल गांधी के यंग इंडिया के निदेशक पद और उससे होने वाली 154 करोड़ रुपये की आय को पकड़ लिया है। इसलिए उसने साल 2011-12 के उनके आय के रिएसेसमेंट को लेकर नोटिस जारी किया था।

यह नोटिस जारी होते ही राहुल गांधी की दाल में कुछ काला होने का अंजादा लग गया था क्योंकि इस मामले को खत्म कराने के लिए जब राहुल गांधी का वकील हाईकोर्ट पहुंचा तो उन्होंने मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाने की मांग की थी। हालांकि इसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

आपको बता दें कि राहुल गांधी के वकील ने आयकर विभाग द्वारा जारी रीएसेसमेंट नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को कोई राहत नहीं दी।

दरअसल आयकर विभाग ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने इस दौरान होने वाली अपनी आय ही नहीं छिपाई है बल्कि यंग इंडिया पर संभाले गए निदेशक पद के बारे में भी झूठ बोला है।

बहरहाल आइये हम आपको दिखाते हैं कि किस तरह सोनिया गांधी एंड फैमिली के घोटालों पर-

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में सोनिया गांधी हैं शामिल!
2010 में हेलीकॉप्टर बनाने वाली इटली की कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से वीवीआईपी के लिए 12 हेलिकॉप्टर खरीदने का सौदा हुआ था। 12 हेलीकॉप्टरों के लिए कुल 3600 करोड़ रुपये देना तय हुआ था। लेकिन तभी यह पोल खुल गई कि कंपनी ने भारत में 125 करोड़ रुपये घूस दिए हैं। इटली की अदालत में यह साबित हुआ कुल डील का 10 प्रतिशत हिस्सा रिश्वत में देने की बात तय हुई थी।

घूसखोरी का भंडाफोड़ होने के बाद 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने डील रद्द कर दिया। इसके बाद पूर्व एयरफोर्स चीफ एसपी त्यागी समेत 13 लोगों पर केस दर्ज किया गया। इटली की कोर्ट की कार्रवाई में यह बात सामने आई थी कि भारत के ‘सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार’ ने सौदे में 125 करोड़ रुपये कमीशन लिया।

चूंकि इस मामले का भंडाफोड़ इटली में ही हुआ था, लिहाजा वहां भी इस पर मुकदमा चला। मिलान शहर की अदालत के फैसले के पेज नंबर-193 और 204 पर कुल मिलाकर 4 बार सोनिया गांधी का नाम आया। इसमें उनके नाम की स्पेलिंग Signora Gandhi लिखा गया था। कोर्ट ने कहा कि सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने बिचौलिए जरिए 125 करोड़ रुपये कमीशन लिया। कुल 225 करोड़ रुपए रिश्वत की लेन-देन हुई, जिसमें से 52 प्रतिशत हिस्सा कांग्रेस के नेताओं को दिया गया। 28 प्रतिशत सरकारी अफसरों को और 20 प्रतिशत एयरफोर्स के अफसरों को मिला। इस केस में तब के एयरफोर्स चीफ एसपी त्यागी को भी आरोपी बनाया गया।

इटली की अदालत में फैसला हुआ
2016 में इटली की निचली अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के दो अफसरों को रिश्वत देने का दोषी ठहराया। उन्होंने कोर्ट के आगे कबूला कि भारत को हेलीकॉप्टर की 3,600 करोड़ रुपये की डील के बदले कंपनी ने कांग्रेस पार्टी के टॉप नेताओं को रिश्वत दी।

रिश्वत लेने वालों को सजा नहीं दी जा सकती थी, क्योंकि वो इटली से बाहर रह रहे हैं। हालांकि इस साल जनवरी में इटली की ऊपरी अदालत ने दोनों अधिकारियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उन्हें सजा देने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। हालांकि कोर्ट में यह बात साबित हुई कि रिश्वत की लेन-देन हुई है। इटली की कोर्ट के फैसले को कांग्रेस ने अपनी जीत बताया। लेकिन सीबीआई और ईडी ने साफ कह दिया कि ये मुकदमा भारत में चलेगा और इटली की अदालत के फैसले से इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

सोनिया गांधी के लिए मुश्किल
दरअसल इस केस में 34 भारतीय और विदेशी नागरिकों और कंपनियों को आरोपी बनाया गया है। जेम्स जून से दुबई पुलिस की हिरासत में है और अब भारतीय एजेंसियां उसके प्रत्यर्पण की कोशिश कर रही हैं। दुबई पुलिस ने जेम्स क्रिश्चियन मिशेल को भारत सरकार के टिप ऑफ पर भी हिरासत में लिया था।

इस केस में सबसे खास बात यह है कि इस बिचौलिए ने 1997 से 2013 के बीच भारत के 300 चक्कर लगाए थे। जैसे ही घोटाला खुला वो भारत छोड़कर भाग गया। तब से कानूनी लड़ाई लगातार जारी है और अब ये अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिखाई दे रही है।

हेराल्ड हाउस की 16 सौ करोड़ रुपये की बिल्डिंग पर कब्जा
इस बहुचर्चित कब्जे का मुकदमा कोर्ट में चल रहा है। इसमें सोनिया और राहुल गांधी ने यंग इडियन नाम से एक संस्था बनाकर, एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) पर अपना मालिकाना हक कर लिया। इस घोटाले का ब्योरा कुछ ऐसा है-एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसकी 90 करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था। इसका अर्थ ये हुआ कि पार्टी ने इसे 90 करोड़ का लोन दे दिया। इसके बाद 5 लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी है। बाकी की 24 फीसदी हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास है। इसके बाद टीएजेएल के 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर ‘यंग इंडियन’ को दे दिए गए और इसके बदले यंग इंडियन को कांग्रेस का लोन चुकाना था। 9 करोड़ शेयर के साथ यंग इंडियन को इस कंपनी के 99 फीसदी शेयर हासिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने 90 करोड़ का लोन भी माफ कर दिया। यानि ‘यंग इंडियन’ को मुफ्त में टीएजेएल का स्वामित्व मिल गया। यह सब कुछ दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 16 सौ करोड़ रुपये की बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए किया गया। जबकि हेराल्ड हाउस को केंद्र सरकार ने समाचार पत्र चलाने के लिए जमीन दी थी, इस लिहाज से उसे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ये केस फिलहाल दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में है और सोनिया व राहुल इसमें जमानत पर हैं।

वाड्रा-डीएलएफ घोटाला
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ वर्ष 2012 में  डीएलएफ घोटाले का आरोप लगा, जो अब भी चल रहा है। उनपर शिकोहपुर गांव में कम दाम पर जमीन खरीदकर भारी मुनाफे में रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को बेचने का आरोप लगा। रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से 65 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना मूल उद्देश्य था। यह तथ्य भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई और हिस्सों में भी बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं।

बीकानेर में जमीन घोटाले का मामला
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं।

राजीव गांधी ट्रस्ट ने किया रोखा गांव की जमीन पर कब्जा
उत्तरप्रदेश का अमेठी गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है। यहीं से इंदिरा गांधी, राजीव गांधी लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे थे। इसी अमेठी से राहुल गांधी वर्तमान में सांसद हैं। इसी अमेठी के जायस के रोखा गांव में 1.0360 हेक्टेयर जमीन जिसे जिला प्रशासन ने स्वयं सहायता समूहों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिये दिया था, उसे कागजों में हेराफेरी करके राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम दिया। एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अमेठी जिला प्रशासन को अब दुबारा इस पर कब्जा करने का आदेश मिला। 

Image result for राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट अखिलेश सोनियाइस गैरकानूनी कब्जे की बात सबसे पहले 2014 में उठी थी, लेकिन अखिलेश सिंह की समाजवादी सरकार के साथ चुनावी गठबंधन होने के कारण मुख्यमंत्री अखिलेश ने इस मामले की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 2017 में सरकार बदलने के बाद जब प्रशासन ने राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को इस जमीन पर मालिकाना हक साबित करने के लिए दस्तावेज देने को कहा तो, वे नहीं कर सके और आखिर में 6 अगस्त को यह जमीन तत्काल प्रभाव से खाली करनी पड़ी।

रायबरेली में 10,000 वर्ग मीटर जमीन पर ‘राजीव गांधी ट्रस्ट’ का कब्जा
रायबरेली भी गांधी परिवार का गढ़ है और यहां से सोनिया गांधी सांसद हैं। अपनी सरकार और सत्ता के बल पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट ने रायबरेली में 10,000 वर्ग मीटर जमीन पर जबरन कब्जा कर रखा है, जबकि दस्तावेजों के अनुसार यह जमीन सरकार की है। 1982 में एक जिला कलक्टर के आदेश पर कि इस जमीन को महिलाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग में इस्तेमाल करने की छूट दे दी जाए, इस पत्र का फायदा उठाते हुए ट्रस्ट ने इस पूरी जमीन पर कब्जा कर लिया, जबकि इसके पास इस जमीन का कोई मालिकाना हक नहीं था।

हरियाणा के उल्लावास गांव की जमीन पर ‘राजीव गांधी ट्रस्ट’ का कब्जा
आठ साल पहले जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी तो गुरुग्राम के उल्लावास गांव में राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को 4.8 एकड़ जमीन आंखों का अस्पताल बनाने के लिए मिली। ट्रस्ट की अपनी सरकार होने के कारण यह जमीन 2009 में लीज पर मिली। जब हरियाणा सरकार के पंचायत विभाग ने उल्लावास पंचायत को यह जमीन को देने का आदेश दिया तो गांव वालों ने काफी विरोध किया, लेकिन सरकार ने इस विरोध को अनसुना कर दिया। इस जमीन पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को 7 जनवरी 2012 तक आंखों का अस्पलाल बना लेना था, लेकिन यह अस्पताल अब तक नहीं बना सका है। अब ट्रस्ट के कब्जे में पड़ी इस जमीन को, पंचायत विभाग ने वापस ले रही है।

Image result for नेशनल हेराल्ड हाउस

Leave a Reply