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राहुल गांधी का हिन्दुत्व ढोंग – आंकड़ों के जरिये मंदिर यात्रा का विश्लेषण

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भारतीय सामाजिक परंपरा में एक कहावत है कि “अगर सच्चे अर्थ में कोई धार्मिक व्यक्ति राजनीति करे तो समझिए समाज की बेहतरी के लिए कुछ होने वाला है, लेकिन अगर राजनीतिक व्यक्ति धर्म का चोला ओढ़ ले तो यकीन मानिए समाज में कोई बड़ा खतरा मंडरा रहा है।”

ये बातें आज बेहद महत्वपूर्ण हो गई हैं क्योंकि गुजरात चुनाव सिर पर है और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात में मंदिरों के दर्शन पर खासा जोर दे रहे हैं। कई बार तो यह एहसास होता है कि वो चुनाव प्रचार के लिए निकले हैं या तीर्थाटन करने। हमने राहुल गांधी की इस तीर्थ यात्रा का पोस्टमॉर्टम करने की कोशिश की है। गूगल गुरु के पास जाकर आंकड़े खंगालने की कोशिश की है, उनके मंदिर प्रेम के जो आंकड़े मिले हैं, वो बेहद चौंकाने वाले हैं।

डेढ़ महीने में 15 मंदिरों के दर्शन
चुनावी माहौल में पिछले डेढ़ महीने से राहुल गांधी गुजरात के चक्कर काट रहे हैं। इस दौरान 13 नवंबर तक वो 15 मंदिरों के दर्शन कर चुके हैं। जबकि अभी चुनाव में पूरा महीना बचा है। इसमें अक्षरधाम और अंबाजी मंदिर से लेकर गांवों के छोटे-छोटे मंदिर भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या राहुल गांधी शुरू से ही धार्मिक रहे हैं? क्या वो अपनी आस्था के अनुरूप पहले भी मंदिरों के दर्शन करते रहे हैं?

उत्तर प्रदेश में 25 दिनों में 14 मंदिरों के दर्शन
हमने इससे पहले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का भी अध्ययन किया। राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में 25 दिनों की यात्रा के समय 14 मंदिरों के दर्शन किए थे। इसका मतलब यह है कि चुनाव के दौरान राहुल गांधी की आस्था मंदिरों के प्रति बढ़ जाती है। फिर हमारी दिलचस्पी इनके पीछे की जिंदगी को और करीब से झांकने की हुई।

2012 के गुजरात चुनाव में कोई मंदिर दर्शन नहीं
हमने सबसे पहले 2012 के गुजरात चुनाव का विश्लेषण किया। हमने रिसर्च के बाद कहीं भी यह नहीं पाया कि राहुल गांधी ने किसी भी मंदिर के दर्शन किए हों। अपनी चुनावी यात्रा प्रारंभ करनी हो या समापन, सुबह का वक्त हो या शाम की चुनावी यात्रा – कहीं भी और कभी भी राहुल गांधी ने किसी भी मंदिर के दर्शन नहीं किए। इसका मतलब साफ है कि 2017 में डेढ़ महीने के भीतर 15 मंदिरों के चक्कर काटने वाले राहुल गांधी ने 2012 के चुनाव के वक्त किसी भी मंदिर की तरफ झांका भी नहीं। यानी उनके 2012 और 2017 के चुनाव प्रचार में भारी अंतर आया है।

2017 गुजरात चुनाव 2012 गुजरात चुनाव
डेढ़ महीने में 15 मंदिरों के दर्शन पूरे चुनाव प्रचार में किसी मंदिर के दर्शन नहीं

 

पहला चुनाव लड़ने से लेकर 2014 के चुनाव तक सिर्फ 7 मंदिरों के दर्शन
गुजरात में दो विधानसभा चुनावों में मंदिर दर्शन की प्रक्रिया में भारी अंतर के बाद हमने राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर रिसर्च करने की पहल की। राहुल गांधी ने पहला चुनाव अमेठी से 2004 में लड़ा था। इसके बाद से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव तक उन्होंने सिर्फ 7 मंदिरों के दर्शन किए हैं। इसमें भी मार्च, 2014 में उन्होंने विश्वनाथ मंदिर और संकटमोचन मंदिर का दर्शन पहली बार किया था।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी का हिन्दुत्व ढोंग
अगर 2014 के लोकसभा चुनाव के समय को एक लकीर की तरह मान लें तो राहुल के मंदिर दर्शन पर एक भारी विरोधाभास नजर आता है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 11 साल में उन्होंने करीब 7 बार मंदिरों के दर्शन किए और 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ तीन साल में 30 से ज्यादा मंदिरों के दर्शन। इसका मतलब साफ है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राहुल गांधी को धार्मिक रोग लगा है। अब तो वो खुद को कभी आध्यात्मिक व्यक्ति तो कभी शिवभक्त भी घोषित करने लगते हैं।

क्या वाकई चुनावी मौके पर उनकी हिन्दू धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है?
ऐसे में एक सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई राहुल गांधी चुनावी मौके पर हिन्दू धर्म के प्रति बहुत आस्थावान हो जाते हैं। सामान्य तौर पर किसी भी धर्म को मानने वालों की एक प्रवृत्ति होती है कि जब किसी चीज को दिल से चाहते हैं तो ईश्वर के प्रति उनकी आस्था बढ़ जाती है। ऐसे में हमने उनके चुनावी अभियानों का भी जायजा लिया। जो जानकारी हमें मिली हैं, वो कुछ और इशारा करती हैं। मसलन

फरवरी, 2014 में उन्होंने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत बाराबंकी के देवाशरीफ दरगाह पर मत्था टेक कर की।

2009 लोकसभा चुनाव प्रचार की भी शुरुआत देवाशरीफ पर मत्था टेक कर करने की योजना थी, लेकिन अंतिम समय में किन्ही अघोषित कारणों से निर्णय बदल दिया।

राहुल गांधी ही नहीं, उनकी मां सोनिया गांधी ने भी मार्च, 2009 में लोकसभा चुनाव में रायबरेली से नामांकन करने के बाद टाकिया में स्थित अली मियां के दरगाह के दर्शन करने गयीं।

सामान्य तौर पर राहुल गांधी मंदिर के दर्शन करते हैं तो उसी अनुपात में मस्जिद और दरगाह में भी जाते हैं। लेकिन इस बार के गुजरात चुनाव प्रचार में ऐसा करने से परहेज कर रहे हैं।

राहुल गांधी से कुछ तीखे सवाल
गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी की मंदिर यात्रा से किसी को परहेज नहीं होना चाहिए। सबको अपनी आस्था के अनुरूप चलने का अधिकार है। लेकिन जिस प्रकार के सामाजिक जीवन में राहुल गांधी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी पार्टी को चला रहे हैं, ऐसे में आम जनता के प्रति उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जाहिर है राहुल गांधी को कुछ सवालों के जवाब अवश्य देने चाहिए –

1. क्या राहुल गांधी सिर्फ वोट की राजनीति के लिए ही मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं? क्या उनकी हिन्दू धर्म में कोई आस्था नहीं है?

2. राहुल गांधी की वाकई अगर हिन्दू धर्म में आस्था है तो जब उन्होंने अयोध्या में हनुमानगढ़ी के दर्शन किए तो फिर हिन्दुओं की आस्था के सबसे बड़े प्रतीक रामलला के दर्शन क्यों नहीं किए?

3. मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर गये, लेकिन कृष्ण जन्मभूमि नहीं गये। क्यों भगवान कृष्ण की जन्मस्थली के दर्शन नहीं किए?

4. गुजरात चुनाव के दौरान अगर अक्षरधाम मंदिर के प्रति इतनी ही भक्ति उमड़ रही है तो फिर राजधानी दिल्ली में इनके आवास से चंद किलोमीटर दूर बने भव्य अक्षरधाम मंदिर के दर्शन उन्होंने अब तक क्यों नहीं किया?

5. जामा मस्जिद के शाही इमाम जिस प्रकार उनकी पार्टी के लिए वोट देने का फतवा जारी करते रहे हैं, कभी उसका निषेध क्यों नहीं किया? गौरतलब है कि 2014 में सोनिया गांधी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम को बुलाकर उनसे समर्थन मांगा था। शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने समर्थन का ऐलान भी किया था।

6. यूपीए की सत्ता के दौरान 10 सालों तक लगातार आपकी सरकार और मंत्रियों ने हर साल इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, लेकिन कभी किसी भी अवसर पर नवरात्र, दुर्गापूजा, दिवाली या होली मिलन का आयोजन क्यों नहीं किया?

7. आप कभी भी दिल्ली में आयोजित होने वाले रामलीला या फिर रावण दहन (2104 को छोड़कर) कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। आखिर क्यों?

साफ है आंकड़े इसी बात का इशारा कर रहे हैं कि राहुल गांधी ने वोटों की खातिर धार्मिक चोला ओढ़ लिया है। वोटों के नफे-नुकसान के आधार पर उन्होंने गुजरात में चुनाव प्रचार को तीर्थयात्रा में तब्दील कर दिया है। यह देश की राजनीति और सामाजिक परिवेश के लिए खतरनाक है।

-हरीश चन्द्र बर्णवाल

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