Home समाचार ईवीएम पर सवाल उठाने से बची रहेगी राजनीतिक दलों की साख !

ईवीएम पर सवाल उठाने से बची रहेगी राजनीतिक दलों की साख !

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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी को लेकर हो रही बहस के बीच चुनाव आयोग ने आरोप लगाने वाले राजनीतिक दलों को चुनौती दी है कि वे इसमें गड़बड़ी साबित करके दिखाएं। चुनाव आयोग ने इसके लिए मई के पहले सप्ताह का वक्त निर्धारित किया है। आयोग ने आरोप लगाने वाले राजनीतिक दलों और तकनीकी विशेषज्ञों को ओपेन चैलेंज करते हुए कहा है कि वो इवीएम में गड़बड़ी के आरोपों को साबित करे। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिस ईवीएम से 2007 में मायावती ने चुनाव जीता। जिस ईवीएम से आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली में रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की। जिस ईवीएम को कांग्रेस ने इंट्रोड्यूस किया और पार्टी ने इसी ईवीएम से एक नहीं कई चुनाव जीते। महज तीन हफ्ते पहले कांग्रेस ने पंजाब में सरकार भी बनाई और बीते विधानसभा चुनाव में मणिपुर और गोवा में अच्छा प्रदर्शन भी किया था। आखिर ऐसे दल ईवीएम की विश्वसनीयता पर आखिर सवाल क्यों उठा रहे हैं? कांग्रेस समेत 13 विपक्षी दलों ने मिलकर बुधवार को ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत राष्ट्रपति तक से कर दी।

बहरहाल ये हार की हताशा से उबरने के लिए राजनीतिक दलों का एक रास्ता हो सकता है। लेकिन पंजाब में कांग्रेस के सीएम अमरिंदर सिंह जब सवाल उठाते हैं कि अगर ईवीएम में गड़बड़ी है तो मेरी जीत का क्या? तब तो अकाली दल सत्ता में होता! अगर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली जब ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं देखते, तो कांग्रेस क्यों बेवजह के ईवीएम पर सवाल उठा रही है? इतना ही नहीं  चुनाव आयोग भी बार-बार ईवीएम में छेड़छाड़ से इनकार कर रहा है। इससे भी आगे बीते दिनों भिंड में ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाले नेता ने भी ईवीएम को कठघरे में खड़ा करने से इनकार किया है। इन सबके बीच क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था को संचालित करने वाले चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना जायज है? क्या ऐसा कर कांग्रेस या अन्य राजनीतिक पार्टियां अपनी साख को और नुकसान नहीं पहुंचा रही है? सवाल ये कि लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहे राजनीतिक दल आखिर जनता के कोप से कब तक बचेंगे? बहरहाल जनता अब इनकी मंशा समझ चुकी है। जिसकी कुछ बानगी आप सोशल मीडिया पर मिल रही प्रतिक्रियाओं से समझ सकते हैं।

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