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गौरी लंकेश मामले में गिरफ्तारी ध्रुवीकरण की साजिश तो नहीं! जानिये पांच कारण…

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पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरु में उन्हीं के घर के बाहर कर दी गई। तब इसको लेकर खूब राजनीति हुई और हिंदू संगठनों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिशें हुईं, लेकिन इससे संबंधित कोई सबूत नहीं मिले। बावजूद इसके कांग्रेस के नेता और वामपंथी पत्रकार इस बात पर अड़े रहे कि हत्या हिंदू संगठनों ने ही की है। इसके उलट कर्नाटक पुलिस ने इसके नक्सली एंगल के बारे में संकेत दिए थे। बकौल पुलिस गौरी लंकेश की हत्या उनके ही करीबियों ने की थी। लेकिन कर्नाटक चुनाव से पहले अब इसे एक बार फिर सांप्रदायिक एंगल देने की कुत्सित कोशिशें होने लगी हैं। आइये जानते हैं वे पांच कारण जिससे लग रहा है कि सिद्धा रमैया सरकार चुनावी लाभ लेने के लिए गौरी लंकेश के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है और सच से मुंह मोड़ रही है। 

कारण नंबर-01
के टी नवीन कुमार को RSS का करीबी ठहराने की साजिश !
कर्नाटक पुलिस ने 02 मार्च को के टी नवीन कुमार नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार ये अवैध हथियारों का व्यापारी है और इसका चेहरा पुलिस द्वारा जारी किए गए स्केच से मिलता है। बहरहाल पुलिस की ये बात सत्य हो सकती है। लेकिन अब इसे जो एंगल देने की कोशिश की जा रही है वो सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है। के टी नवीन कुमार के बारे में कहा जा रहा है कि उनके उग्र हिंदू संगठनों से काफी करीबी संबंध हैं और हिंदू देवी-देवताओं के अपमान को लेकर वह गौरी लंकेश से काफी नाराज भी था। आरोप यह भी है कि उसने हत्या में शामिल आरोपियों की टारगेट प्रैक्टिस करवाने में भी मदद की थी। इस आधार पर कि वह हिंदू देवी-देवताओं के अपमान से नाराज था तो वह हत्या कर सकता है, यह कोरा बकवास नहीं तो और क्या है? माना जा रहा है कि इसमें सरकार इसमें RSS का एंगल जोड़ना चाह रही है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है।

कारण नंबर-02
के टी नवीन कुमार नाम पर राजनीतिक समीकरण साधने की तैयारी
घटनाक्रम पर गौर करें तो आपको संशय जरूर होगा कि ये गिरफ्तारी राजनीतिक है। दरअसल 5 सितंबर, 2017 गौरी लंकेश की हत्या के सीसीटीवी फुटेज होने के बावजूद पांच महीने बाद पहली गिरफ्तारी होती है और वह भी कर्नाटक चुनाव के एलान से ठीक पहले। जाहिर है सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं, क्योंकि कर्नाटक पुलिस के द्वारा बार-बार ये संकेत दिए गए थे कि इसमें नक्सली एंगल है। ये भी इशारा किया गया था कि हत्यारे गौरी लंकेश के करीबी भी थे, तो क्या चुनाव के एलान से ठीक पहले ये गिरफ्तारी राजनीतिक समीकरण साधने की एक कवायद है? नक्सली एंगल से जांच क्या ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है?

कारण नंबर-03
हिंदू-मुस्लिम राजनीति के आसरे चुनावी जीतना चाहते हैं सिद्धा रमैया
कर्नाटक में सिद्धा रमैया की सरकार अपना जनाधार खो चुकी है, ऐसे में वह ध्रुवीकरण की राजनीति को अपनी जीत का आधार तैयार कर रही है। इसकी शुरुआत सिद्धा रमैया ने तब कर दी थी, जब उसने जनवरी, 2018 में एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश दिया गया था। जाहिर है इस सर्कुलर के आधार पर सिद्धा रमैया सरकार ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ का कार्ड खेल रही है। यहीं से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति का आधार तैयार किया जा रहा है और इसे आने वाले चुनाव में भुनाने की पूरी तैयारी है। दरअसल सिद्धा रमैया को लगता है कि उनकी जाति के लोग उनके साथ हैं और इसके साथ अगर मुस्लिम वोट एक मुश्त जुड़ जाएं तो उनकी जीत सुनिश्चित है। 

कारण नंबर-04
पुलिस ने नक्सलवादियों की आपसी दुश्मनी को ठहराया था जिम्मेदार
हत्या के बाद शुरुआती जांच में ही यह निकलकर आ गया था कि गौरी लंकेश की अपनों से भी दुश्मनी थी। वामपंथियों और नक्सलियों से गौरी लंकेश के तनाव की खबरें भी आम थीं। दरअसल 2014 में कांग्रेस सरकार ने उन्हें नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए बनाई गई कमेटी का सदस्य बना दिया था। स्पष्ट है कि वह सत्ता के करीब थीं, लेकिन यह भी साफ है कि वो अपनों के ही निशाने पर भी थीं।

मौत से कुछ दिन पहले के ये दो ट्वीट इस बात का इशारा भी करते हैं कि गौरी और उनके वामपंथी (शायद नक्सली) साथियों में कोई विवाद चल रहा था। गौरी लंकेश ने पहले ट्वीट में लिखा, ‘मुझे ऐसा क्यों लगता है कि हममें से कुछ लोग अपने आपसे ही लड़ाई लड़ रहे हैं? हम अपने सबसे बड़े दुश्मन को जानते हैं। क्या हम सब इस पर ध्यान लगा सकते हैं?’


एक अन्य ट्वीट में लंकेश ने लिखा, ‘हम लोग कुछ फर्जी पोस्ट शेयर करने की गलती करते हैं। आइए, एक-दूसरे को चेताएं और एक-दूसरे को एक्सपोज करने की कोशिश न करें।’

बहरहाल गौरी लंकेश से नक्सलियों के संबंध थे, ये तो जगजाहिर है, लेकिन मनमुटाव की खबरें सामने आने के बाद कर्नाटक के गृहमंत्री ने भी इस ओर इशारा किया था कि वे इसकी जांच करवाएंगे।

कारण नंबर-05
सिद्धा रमैया सरकार में गहरी पैठ रखती थीं गौरी लंकेश

गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस तरीके से कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धा रमैया उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंच गए, उससे लोगों के मन में सवाल उठने शुरु हो गए थे। दरअसल कहा जा रहा है कि गौरी लंकेश मुख्यमंत्री सिद्धा रमैया सरकार से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले पर ही जांच कर रही थी। एबीपी न्यूज के संवाददाता विकास भदौरिया ने तब ट्वीट किया था कि वह कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़ी एक खबर पर काम कर रही थीं। उनके अलावा भी कई स्थानीय और दूसरे पत्रकारों ने इस एंगल की तरफ लोगों का ध्यान दिलाया था।

कविता लंकेश ने सीएम सिद्धा रमैया से नहीं की बात !
इस हत्या का दूसरा पहलू यह है कि सीएम सिद्धा रमैया ने यह स्वीकार किया है कि गौरी लंकेश उनसे मिलती रही हैं, लेकिन उन्होंने किसी तरह के डर की बात कभी नहीं की थी। बहरहाल, सीएम के अनुसार गौरी लंकेश चार सितंबर को उनसे मिलने वाली थीं, लेकिन वह मिलने नहीं पहुंचीं। अगले दिन पांच सितंबर को उनकी हत्या हो जाती है और सीएम तत्काल प्रतिक्रिया देते हैं और हत्यारों को पकड़ने की बात करते हुए एसआइटी का गठन भी कर देते हैं।

इन सब के बीच ये खबरें भी आम थी कि हत्या के बाद जब सीएम ने गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश से फोन पर बात करनी चाही तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया। गौरतलब है कि कविता लंकेश और सीएम सिद्धा रमैया के बीच हत्या से कुछ दिनों पहले तक बेहद अच्छे संबंध हुआ करते थे। इतना ही नहीं जिस फिल्म में सिद्धा रमैया एक्टिंग कर रहे हैं, उसकी प्रोड्यूसर भी कविता लंकेश ही हैं। फिर आखिर क्या हुआ है जो कविता लंकेश ने सीएम सिद्धा रमैया से बात नहीं की?

kavita lankesh sister of gauri lankesh के लिए चित्र परिणाम

डी के शिवकुमार का ‘कच्चा चिट्ठा’ खोलने वाली थीं गौरी लंकेश?
गौरी लंकेश का कांग्रेसी नेताओं से कनेक्शन किसी से छिपा नहीं है, लेकिन कांग्रेस के ही कद्दावर नेता डी के शिवकुमार से उनकी तनातनी की खबरें भी सामने आई थीं। दरअसल डी के शिवकुमार वही हैं, जिन्होंने 2017 में गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के विधायकों को अपने आलीशान रिसार्ट में पनाह देकर अहमद पटेल की राज्यसभा में जीत पक्की करने की कांग्रेसी रणनीति पर अमल किया था। शिवकुमार 68 शहरों में अकूत संपत्ति के मालिक हैं। आयकर विभाग आज भी उनकी काली कमाई को खंगालने में लगा है। ऐसी खबरें हैं कि गौरी लंकेश भी डी के शिवकुमार का ‘कच्चा-चिट्ठा’ खोलने के काम में लगी थीं।

नीचे वह जवाब देखा जा सकता है जिसमें गौरी लंकेश ने खुद ही बताया था कि उनकी पत्रिका कांग्रेस विधायक डीके शिवकुमार के खिलाफ एक खबर पर काम कर रही है।

 

साफ है कि सिद्धा रमैया सरकार गौरी लंकेश की हत्या के पीछे हिंदू संगठनों का हाथ ठहराकर इसे सांप्रदायिक एंगल देने के साथ ही कांग्रेसी कनेक्शन को भी छिपाना चाह रही है। ऐसे में इस हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्या सिद्धारमैया सरकार ऐसा करेगी?

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