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विश्व की नजर में भारत की कूटनीतिक विजय

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पाकिस्तान को लेकर चीन की सोच में आए जबरदस्त बदलाव से दुनिया के सभी विश्लेषक आश्चर्यचकित हैं। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी लिस्ट में शामिल करवाने के भारत के प्रयासों पर चीन ही अंतिम वक्त पर अडंगा लगाता रहा है, लेकिन ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के आतंकवाद पर रुख को चीन ने ना केवल भरपूर समर्थन दिया, बल्कि अपने ‘ऑल वेदर फ्रैन्ड’ पाकिस्तान का साथ छोड़ने को भी तैयार हो गया। 73 दिनों तक चले डोकलाम विवाद का जिस तरह से अंत हुआ, उसके बाद चीन के रुख में आतंकवाद पर इस तरह का बदलाव विश्व समुदाय के लिए अप्रत्याशित घटना थी। सभी ने इसे प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक विजय मानी, कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि चीन ने कूटनीति के स्तर पर अब तक की यह सबसे बड़ी भूल कर दी है। आने वाले वक्त में आतंकवाद के मोर्चे पर चीन को विश्व समुदाय के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के अतिरिक्त कोई अन्य रास्ता नहीं बचा है।

आतंकवाद पर भारत की कूटनीतिक विजय
ब्रिटेन के अखबार Daily Mail ने लिखा कि भारत के आतंकवाद के रुख पर चीन का यह सबसे बड़ा समर्थन है और आश्चर्य होता है कि पाकिस्तान के घनिष्ठ मित्र चीन के रुख को भारत ने बदला दिया है। यह भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा श्यामेन के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आतंकवाद पर उठाये गये मुद्दों पर चीन का खुला समर्थन है।

Japan Today ने आतंकवाद के मुद्दे पर चीन में नई दिल्ली की बड़ी कूटनीतिक विजय बताया है। अखबार ने लिखा कि अब तक चीन, पाकिस्तान के समर्थन में हमेशा से खड़ा रहता था, लेकिन ब्रिक्स के पांचों देशों ने पहली बार आतंक के खिलाफ लड़ाई में एक दूसरे का सहयोग करने की प्रतिबद्धता दिखाई ।

अमेरिकी समाचार पत्र The Seattle Times ने लिखा कि आतंकवाद के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीतिक विजय हुई है। अखबार को आश्चर्य है कि यह तब हुआ है जब चीन हमेशा से पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में डालने के भारत के प्रयासों का वीटो करता रहा है।

अफगानिस्तान के Tolo News ने भी आतंकवाद के मुद्दे पर इसे बड़ी सफलता बताया और लिखा कि श्यामेन के ब्रिक्स सम्मेलन में पहली बार लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया। ब्रिक्स देशों ने आतंकवादी घटनाओं की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए चेतावनी दी कि जो लोग इन आतंकवादियों का समर्थन करते हैं, उन्हें ही आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।

विश्व मंच पर जिस तरह से भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-थलग कर दिया है, उससे विश्व समुदाय में खुशी है और पाकिस्तान काफी बौखलाया हुआ है। जिगरी दोस्त चीन के साथ छोड़ देने से पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा है। ब्रिक्स सम्मेलन से उठी आवाज के असर को कम करने के लिए पाकिस्तान बचकाने बयान देने पर आमादा है।

पाकिस्तानी अखबार The Nation ने खिसिआहट में लिखा है कि श्यामेन ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान के कुछ संगठनों को आतंकवादी संगठन करार दिए जाने पर इतनी खुशी क्यों है। 

डोकलाम विवाद के बुरे दिनों से बाहर आने के लिए चीन बेताब
श्यामेन सम्मेलन ऐसे समय मे आयोजित हुआ, जब भारत ने चीन को 73 दिनों तक डोकलाम की पहाड़ी पर सड़क बनाने से रोक दिया और वापस अपनी सीमा के अंदर लौटने के लिए मजबूर कर दिया। डोकलाम की इस घटना ने चीन के एशिया और विश्व में बढ़ते प्रभुत्व को जिस तरह ठेस लगायी थी, उससे विश्व समुदाय को यह आशंका थी कि चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी या नहीं होगी, और अगर होती है तो दोनों नेताओं का कैसा व्यवहार होगा। इस शिखर वार्ता पर सभी की निगाहें थीं।

चीन के अखबार South China Morning Post ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग की शिखर वार्ता से ठीक पहले लिखा कि 73 दिनों तक चले डोकलाम विवाद के बाद होने वाली इस पहली मुलाकात पर सबकी नजर है।

तमाम आशंकाओं और प्रश्नों के साथ शिखर वार्ता शुरु हुई। राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी एक-दूसरे से बड़े ही गर्मजोशी के साथ मिले। शिखर वार्ता के बाद Reuters’ ने लिखा कि भारत ने चीन से कहा है कि भारतीय और चीनी सेनाओं को हर स्थिति में सहयोग को बनाये रखना होगा ताकि डोकलाम जैसे विवाद फिर उत्पन्न न हों। दोनों देश आपसी विश्वास को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के कदमों को उठाने के लिए भी तैयार हैं।

इस शिखर वार्ता पर ब्रिटेन के Daily Mail ने लिखा कि चीन डोकलाम विवाद को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहता है। वह भारत के साथ स्थायी और स्वस्थ संबंध चाहता है। चीन मानता है कि भारत के साथ स्वस्थ संबंध बनाने के लिए शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धातों का पालन करना आवश्यक है।

 

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