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पीएम मोदी की कूटनीतिक जीत, चीन को पाकिस्तान और आतंकी के साथ खड़ा कर दिया

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चीन ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित होने से बचा लिया है। पाकिस्तान पोषित आतंकवादी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के लिए भारत पिछले 10 साल से प्रयास कर रहा है। यह चौंथा प्रयास था, लेकिन चीन ने उस प्रस्ताव को एक बार फिर ब्लॉक कर दिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जिस अधिकार की बदौलत चीन आज इस खेल में लगा हुआ है वह भूल गया है कि उसे यह अधिकार भारत से भीख में मिला हुआ है। जिस प्रकार चीन ने वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक आतंकवादी के खड़ा दिख रहा है, वह नहीं जानता कि उसने क्या खोया है और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या पाया है। यह पीएम मोदी की कूटनीतिक जीत ही है कि आज पाकिस्तान के साथ चीन भी बेनकाब हो गया है। इस कदम से चीन ने खुद को साबित कर दिया है कि वह दुनिया में अब आतंकियों का नया पनाहगाह बन गया है।

पाक की राह पर चीन चलने को बाध्य 
चीन के इस कदम के बाद जहां विश्व बिरादरी चीन से नाराज हैं और भारत के समर्थन में खड़े है, वहीं देश में ही राहुल गांधी सरीखे कुछ नेता हैं जो अपनी क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के कारण चीन के इस कदम पर खुशी मना रहे हैं ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ताना मारा जा सके। वे यह नहीं समझ रहे कि एक दूर्दांत आतंकवादी बच गया बल्कि इससे खुश हो रहे हैं कि पीएम मोदी पर तंज कसने का मौका मिल गया है। राहुल गांधी का कहना है कि पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से डर गए हैं, तभी तो भारत के खिलाफ चीन के इतने बड़े कदम के बाद भी उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकल पाया है। राहुल ने कहा है कि मोदी का चीनी नीति फेल हो गई है। गुजरात में जिनपिंग के साथ झूला झुलना, दिल्ली में गले लगाना और चीन में जाकर घुटने टेकना कुछ भी काम नहीं आया। राहुल गांधी की इस बचकानी याददाश्त से स्पष्ट होता है उन्हें कूटनीति की थोड़ी भी समझ नहीं है। राहुल गांधी को यह नहीं दिखता है कि मोदी ने आज चीन को कहां खड़ा कर दिया है। मोदी ने शी जिनपिंग के चारों ओर बनाए गोले के बीच में लाकर खड़ा कर दिया है। जहां से चीन सिर्फ पतन की ओर जाएगा। मोदी ने अपनी कूटनीतिक चाल से चीन की हालत पाकिस्तान सरीखा बना दिया है। चीन अब दुनिया में आतंकियों का दूसरा पनाहगाह के रूप में जाना जाएगा।

मोदी के कूटनीतिक फांस में फंसा शी जिनपिंग 

हुल गांधी आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ताना कसने के लिए मसूद अजहर के वैश्विक आतंकवादी घोषित नहीं होने से खुश हैं। जिस चीन ने आज उसे बचाया है उसे यह ताकत मिली कहां से? क्या राहुल गांधी इसके बारे में जानते भी हैं? जिस अधिकार से चीन आज मसूद अजहर को बचाने में कामयाब हुआ है वह भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का ही दिया हुआ है। वह नेहरू ही थे जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मिली स्थाई सीट को ठुकरा कर चीन की झोली में डाल दी थी। जो काम नेहरू ने 1953 के आसपास किया था उसका खामियाजा पूरे देश को आज भुगतना पड़ रहा है। मालूम हो कि 1953 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने का प्रस्ताव भारत के पास ही आया था। नेहरू चाहते तो भारत न केवल सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होता बल्कि उसके पास ही वीटो का अधिकार भी होता। लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर चीन को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बना दिया। 1953 में नेहरू की यह गलती आज भारत के लिए नासूर बन गई है।

भारत दलाई लामा का तो चीन मसूद का दे रहा साथ  

आखिर चीन ने यह कदम उठाया क्यों? जब इस प्रश्न पर विचार करेंगे तो समझना बिल्कुल आसान हो जाएगा कि आखिर चीन ने मसूद अजहर के खिलाफ प्रस्तावित प्रस्तावना को ब्लॉक क्यों किया? असल में चीन बौद्ध भिक्षु दलाई लामा को एक आतंकवादी मानता है, और भारत उसे दशकों से शरण दिया हुआ है। चीन दलाई लामा को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। भारत से इसका बदला लेने के लिए ही चीन ने असली दूर्दांत आतंकवादी मसूद अजहर को पनाह दे रहा है। वह जानता है कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन आतंकवादी मसूद अजहर है। भारत ने अपनी चाल में चीन को बुरी तरह उलझा दिया है। भारत जहां बौद्ध भिक्षु दलाई लामा को शरण देकर एक धर्मगुरू की रक्षा कर रहा है, जबकि चीन इसके उलट एक आतंकवादी को पनाह देकर भारत से उसका बदला लेना चाहता है। चीन का यह कदम कूटनीतिक खुदकुशी से कम नहीं।

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