Home विशेष सिंगापुर फिनटेक महोत्सव को संबोधित करने वाले पहले प्रमुख होंगे प्रधानमंत्री मोदी

सिंगापुर फिनटेक महोत्सव को संबोधित करने वाले पहले प्रमुख होंगे प्रधानमंत्री मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश का रुतबा लगातार बढ़ रहा है और भारत एक विश्व शक्ति बनकर उभर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 14-15 नवंबर को सिंगापुर यात्रा पर होंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी फिनटेक महोत्सव को संबोधित करने वाले पहले सरकार प्रमुख होंगे। सिंगापुर में 14 नवंबर को होने वाले इस Singapore Financial Technology (Fintech) festival में करीब 30 हजार लोग पहुंचेंगे। ये अपनी तरह का दुनिया का सबसे बड़ा महोत्सव है। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी भारत में वित्तीय समावेशन की कहानी, नोटबंदी, टैक्स कलेक्शन और डिजिटिलाइजेशन जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखेंगे। इसमें पीएम मोदी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान समेत कई देशों के नेताओं से मुलाकात भी करेंगे। प्रधानमंत्री सिंगापुर में क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) की बैठक और आसियान सम्मेलन में हिस्सा लेंगे

प्रधानमंत्री मोदी लीक से हटकर चलने के आदी हैं। हर अंतरराष्ट्रीय मसले को समय की कसौटी पर कसने के बाद अपना रास्ता खुद बनाने के हिमायती हैं। वो न तो किसी दबाव में आते हैं और न कभी भी किसी के पिछलग्गू बनते हैं। वो वही फैसला लेते हैं, वही नीति अपनाते, उसी कूटनीति पर चलते हैं जिसका लक्ष्य होता है- ‘इंडिया फर्स्ट’। आइए देखते हैं कब-कब प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व को पहली बार कराया सशक्त भारत का अहसास-

जापान ने पहली बार किसी विश्व नेता को दिया यह सम्मान
प्रधानमंत्री मोदी पहले विदेशी नेता हैं, जिनके सम्मान में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने प्राइवेट डिनर रखा और उस दौरान उन्हें पारंपरिक चॉपस्टिक से खाना खाना सिखाया। प्रधानमंत्री मोदी की मेहमाननवाजी में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कोई कसर नहीं छोड़ी। शिंजो आबे ने पीएम मोदी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और उन्हें भरोसेमंद दोस्त करार दिया। शिंजो आबे ने रविवार, 28 अक्तूबर, 2018 को प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में अपने आवास पर प्राइवेट डिनर दिया।

फिलिस्तीन जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी फिलिस्तीन जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। इससे पहले कोई भारतीय प्रधानमंत्री वहां नहीं गया। पिछले साल जब वो इजराइल गए थे तो आलोचकों ने ये कहना शुरू कर दिया था कि वो फिलिस्तीन से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि, तब ये भारत द्वारा अपनाई जाने वाली परंपरा के उलट था। इससे पहले कोई भी भारतीय राजनेता एक नहीं, दोनों देशों का दौरा करता था। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए अलग-अलग समय चुना। यही नहीं उनके इजराइल दौरे को लेकर उस दौरान फिलिस्तीन में भी थोड़ी निराशा हुई थी। लेकिन इस साल 10 फरवरी को फिलिस्तीन जाकर और यरुशलम को इजराइल की राजधानी घोषित करने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के खिलाफ वोट डालकर भारत ने फिलिस्तीन की वह नाराजगी भी दूर कर दी।

इजराइल जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री
पिछले साल जुलाई में इजराइल की सफल यात्रा करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने विरोधियों को ही नहीं पूरी दुनिया को चौंका दिया था। फिलिस्तीन के मसले को लेकर विश्व के मुस्लिम देश इजराइल के खिलाफ एक अजीब सी नाराजगी रखते रहे हैं। इसलिए अबतक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजराइल और फिलिस्तीन का दौरा करने से परहेज किया था। लेकिन, मोदी जी ने सिर्फ भारत के हित को देखा और इजराइल से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। भारत से मित्रता के लिए इजराइल कितना उत्साहित था, ये वहां प्रधानमंत्री मोदी के शानदार स्वागत से पता चल गया। जितने दिन प्रधानमंत्री मोदी वहां रहे, पूरा इजराइल मोदीमय बन गया। नेतन्याहू पर प्रधानमंत्री मोदी का जादू ऐसा चला कि उन्होंने अहमदाबाद में उनके अंदाज में ‘जय हिंद, जय भारत और जय इजराइल’ का नारा भी लगाया। इतना ही नहीं यरुशलम के मुद्दे पर भारत द्वारा अपनाए गए रुख को भी इजराइल ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।

पहली बार चीन को भारत का लोहा मनवाने वाले प्रधानमंत्री हैं
सच्चाई ये है कि मोदी सरकार के आने से पहले अपनी ताकत के बदौलत चीन, भारत पर तरह-तरह से दबाव बनाने का प्रयास करता था। इसी गलतफहमी में उसने डोकलाम में भी भारतीय इलाके में दखलअंदाजी का गेमप्लान तैयार किया था। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सेना और अपनी कूटनीति के दम पर चीनी सेना को डोकलाम से उल्टे पैर लौटने को मजबूर कर दिया। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी, लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला पड़ गया और पश्चिमी देशों ने उसे ही संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े हो गए। यही सब वजह है कि अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी ने कहा, कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। हालांकि उन्होंने तात्कालिक तौर पर ये टिप्पणी ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है।

आतंकवाद पर पूरे विश्व को एक जुट करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं
प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के हर मंच पर आतंकवाद के विरोध में मुखर रहे हैं। वो आतंकवाद के मसले पर एक के बाद एक हमले बोलकर विश्व के अधिकतर देशों को ये समझाने में कामयाब रहे हैं कि दुनिया में अच्छा और बुरा आतंकवाद नहीं होता, बल्कि आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद है। ब्रिक्स और आसियान जैसे सम्मेलनों में भी आतंकवाद के मसले पर दुनिया भर के देश भारत के विचार से पूरे तरह सहमत हुए हैं। आज अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, यूरोपियन यूनियन और इजरायल जैसे देश भारत के इस पक्ष के साथ खड़े हैं। अमेरिका हाफिज सईद जैसे पाकिस्तानियों को आतंकी घोषित कर चुका है। कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों पर अमेरिकी रोक और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों पर बैन भारत के बढ़े हुए प्रभुत्व का ही परिणाम है। इस कड़ी में एक हालिया घटनाक्रम बहुत दिलचस्प है जब, मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साथ मंच साझा करने वाले अपने राजनयिक को फिलिस्तीन ने भारत के विरोध के कुछ घंटों के अंदर ही वापस बुला लिया।

पूरे विश्व को पहली बार पाकिस्तान का असली चेहरा दिखाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री हैं
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ चुका है। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। चीन ने भी पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत पर साजिश का आरोप लगया था। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी उसका साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं। आतंकवाद को बढ़ावा देने के चलते ही आज पाकिस्तान का यह हाल है कि भारतीय सेना ने घोषित रूप में दो-दो बार उसके घर में घुसकर आतंकवादी कैंपों को ध्वस्त कर चुकी है और उसमें चूं बोलने तक का साहस भी नहीं बचा है। भारत उसे सार्क देशों की लिस्ट से भी बाहर कर चुका है और बाकी सभी सदस्य देश भारत के साथ डटे हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी भारत ने पाकिस्तानी जेल में बंद पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव के केस की ऐसी पैरवी की, कि उसकी फांसी की सजा पर रोक लग गई।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पहली बार भारत का दबदबा दिखाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री हैं
प्रधानमंत्री मोदी के सक्षम नेतृत्व की बदौलत संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए ब्रिटेन को उनका नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो पिछले साढ़े तीन सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो चुका है।

पहली बार ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’ का सपना सच करने वाले हैं प्रधानमंत्री मोदी
सारी दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने की चिंता जता रही थी, लेकिन भारत की पहल पर ही वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस ने इसके लिए इनोवेशन की तरफ पहली बार कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को दिल्ली से सटे गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर, 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है।

जलवायु परिवर्तन पर पहली बार दुनिया में भारत की बात मनवाने वाले हैं प्रधानमंत्री मोदी
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जहां विश्व के देश अपने वैश्विक हितों को छोड़ अपने हितों को देखते रहे थे, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर सबके हित के लिए पहल की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विश्व में आस जगाई कि वे इस मामले में नेतृत्व कर सकते हैं। पीएम मोदी की इस पहल ने न सिर्फ दुनिया में भारत की साख मजबूत की, बल्कि संसार को पर्यावरण के मामले में एक पॉजिटिव सोच भी दी। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल से दुनिया इसलिए चकित रह गई, क्योंकि भारत एक विकासशील देश है। इसका कारण ये है कि भारत ने ऊर्जा क्षेत्र में एक से बढ़कर एक कई बदलाव किए हैं। ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2016 और 2017 को समाप्त हुए दो वित्तीय वर्षों में कोयला खपत में 2.2 प्रतिशत की ही औसत वृद्धि हुई। जबकि इससे पहले 10 वर्षों में 6 प्रतिशत से अधिक की औसत वृद्धि हुई थी।

अंतरिक्ष में कूटनीतिक उड़ान लगाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने। 5 मई, 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। इस सफल कूटनीतिक उड़ान के बाद पाकिस्तान ने खुद को इस परियोजना से अलग रहने को लेकर यह बहाना बनाने को मजबूर हुआ कि भारत इस परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी ही नहीं था।

योग को पहली बार वैश्विक पहचान दिलाने वाले हैं प्रधानमंत्री मोदी
21 जून, 2015- ये वो तारीख है जो स्वयं ही एक यादगार तिथि बनकर इतिहास का हिस्सा बन गई है। इसी दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आगाज हुआ और पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने लगा। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। दुनिया के 192 देशों के लोगों ने भारत की प्राचीन विरासत को अपनाया तो हर हिंदुस्तानी का मस्तक ऊंचा हो गया। पूरा विश्व जब एक साथ सूर्य नमस्कार और अन्य योगासनों के जरिये ‘स्वस्थ तन और स्वस्थ मन’ के इस अभियान से जुड़ा तो हर एक भारतवासी के लिए ये अद्भुत अहसास का दिन बन गया। प्रधानमंत्री मोदी की इस मुहिम से आज भारत की प्राचीन विरासत की ताकत का अहसास पूरी दुनिया को हो रहा है।

विश्व आर्थिक फोरम सम्मेलन का पहली बार उद्घाटन
पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री को स्विट्जरलैंड के दावोस में होने वाले विश्र्व आर्थिक फोरम सम्मेलन के उद्घाटन करने का अवसर मिला। 23 जनवरी, 2018 को शुरू हुए इस सम्मेलन में 140 देशों के राजनेता और अर्थशास्त्री मौजूद थे। इससे पहले प्रधानमंत्री के रूप में पीवी नरसिम्हा राव और एचडी देवगौड़ा दावोस जरूर गए थे, लेकिन उन्हें इसके उद्घाटन का अवसर नहीं मिला था।

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