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सरदार पटेल की कश्मीर नीति को कांग्रेस ने लगाया पलीता !

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कश्मीर का जिक्र होता है तो इसका तात्पर्य सम्पूर्ण कश्मीर होता है, जिसमें कश्मीर घाटी, जम्मू, पाक अधिकृत कश्मीर का भाग, चीन अधिकृत सियाचिन का हिस्सा और लद्दाख भी शामिल है, लेकिन नेहरू की नीतियों ने कश्मीर के टुकड़ों में बांट दिया है। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग हम भले ही कहते हैं, धारा 370 के कारण आज भी कश्मीर भारत में पूर्ण रूप से शामिल नहीं है। विशेष यह कि जब-जब धारा 370 को हटाने की बात की जाती है तो कांग्रेसी और सेकुलर इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं।

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दरअसल कश्मीर समस्या का निपटारा 1947 में ही हो गया होता जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को रौंदते हुए अपनी बढ़त बना ली थी, लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की ढुलमुल नीति और अदूरदर्शिता के कारण कश्मीर का एक बड़ा भू-भाग भारत के हाथ से निकल गया। कांग्रेस की गलतियों के कारण ही कश्मीर आज भी एक मुद्दा बना हुआ है। दरअसल कश्मीर विलय के साथ ही कांग्रेस द्वारा एक के बाद एक अपनाई गई गलत नीतियों के कारण इस समस्या का समधान संभव नहीं हो पा रहा है।

संविधान में अनुच्छेद 370 का किया प्रावधान
देश के प्रथम गृहमंत्री और भारत के एकीकरण के नायक सरदार वल्लभ भाई पटेल दूरदर्शी थे, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी बातें नहीं मानी। परिणामस्वरूप देश में आज भी कई समस्याएं विद्यमान हैं। कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधान इन्हीं में से एक हैं। इसके प्रावधानों को शेख अब्दुला ने तैयार किया था, जिन्हें उस वक्त हरि सिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। सरदार पटेल को अंधेरे में रखकर नेहरूजी ने धारा-370 का मसौदा पहले से ही तैयार करवा लिया था। पं. नेहरू के समर्थन में और शेख अब्दुला के मंत्रिमंडल से विचार-विमर्श के बाद गोपाल स्वामी अय्यंगार ने गुपचुप तरीके से अनुच्छेद 370 की योजना बनवाई, जो भारत के साथ कश्मीर राज्य के संबंध की व्याख्या करता है। जब इस अनुच्छेद को संविधान सभा में रखा गया तब नेहरू जी अमेरिका चले गए थे, लेकिन फार्मूले के मसौदे पर उन्होंने पहले ही स्वीकृति दे दी थी। सरदार पटेल के पत्र बताते हैं कि इस संबंध में उनसे कोई परामर्श नहीं किया गया था।

नेहरू-शेख अब्दुल्ला की करीबी से मुद्दा बना कश्मीर
देश के पहले गृहमंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयास अगर पूरी तरह परवान चढ़ पाते तो आज इतिहास के साथ ही राज्य का भूगोल भी कुछ और ही होता। यदि नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो हैदराबाद की तरह इस मुद्दे को भी आसानी से देशहित में सुलझा लेते। इसको लेकर पटेल ने पुरजोर प्रयास भी किए, लेकिन उनकी अपनी सीमाएं थीं और यही सीमाएं कश्मीर की समस्या को विकट बना गई। कहा जाता है कि पटेल कश्मीर को किसी भी तरह के विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे, लेकिन नेहरू द्वारा कश्मीर का मुद्दा गृह मंत्रालय से लेकर अपने पास रखने के कारण पटेल विवश होकर रह गए। नेहरू की कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला से निकटता की वजह से भी पटेल इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।

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पटेल के विरोध के बावजूद नेहरू ने की युद्ध विराम की घोषणा
कश्मीर में जब 1948 में कबाइलियों ने हमला किया तो आपात बैठक बुलाई गई। लॉर्ड माउंटबेटन ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह, जनरल बुकर, कमांडर-इन-चीफ जनरल रसेल, आर्मी कमांडर और शेख अब्दुल्ला के प्रमुख सहायक रहे बख्‍शी गुलाम मोहम्मद मौजूद थे। राज्य में सैन्य स्थिति तथा सहायता को तुरंत पहुंचाने की संभावना पर ही विचार हो रहा था। जनरल बुकर ने सैनिक सहायता पर इनकार कर दिया। लॉर्ड माउंटबेटन और नेहरू भी निरुत्तर और निरुत्साहित थे, लेकिन, सरदार पटेल ने कहा, ”जनरल हर कीमत पर कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा, देखा जाएगा। संसाधन हैं या नहीं, आपको यह तुरंत करना चाहिए। सरकार आपकी हर प्रकार की सहायता करेगी। यह अवश्य होना और होना ही चाहिए। कैसे और किसी भी प्रकार करो, किंतु इसे करो।” इस प्रकार कश्मीर की रक्षा सरदार पटेल के त्वरित निर्णय, दृढ़ इच्छाशक्ति और विषम-से-विषम परिस्थिति में भी निर्णय के कार्यान्वयन की दृढ़ इच्छा का ही परिणाम थी, लेकिन जब भारत ने वर्तमान कश्मीर से हमलावरों को खदेड़ दिया तो अचानक ही जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी, फलस्वरूप पाक अधिकृत कश्मीर हमारे साथ नहीं है।

यूएन में मुद्दा ले जाने का पटेल के विरोध को किया दरकिनार
सरदार पटेल मानते थे कि कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वह हैदराबाद की तर्ज पर बिना किसी शर्त कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने लगभग रियासत के महाराज हरि सिंह को तैयार भी कर लिया था, लेकिन शेख अब्दुल्ला से महाराजा के मतभेद और नेहरू से शेख की नजदीकियों ने सारा मामला बिगाड़ दिया। खास बात ये है कि कश्मीर में आज भी जो भारत का नियंत्रण है उसके पीछे भी पटेल का ही दिमाग माना जाता है।

1954 में अध्यादेश जारी कर 35A जोड़ा
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया। यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है। दरअसल अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके। यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था। भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है। जाहिर है संविधान के इस अदृश्य हिस्से ने कश्मीर को लाखों लोगों के लिए नर्क बना दिया है, लेकिन यहां की राजनीति इसे खत्म नहीं होने दे रही है।

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1956 में कश्मीर के लिए अलग संविधान बनाया
कश्मीर के लिए अलग संविधान के प्रावधान के विरुद्ध थे सरदार पटेल,लेकिन 15 दिसंबर 1950 को उनके मरणोपरांत जवहारलाल नेहरू ने 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दे दी। मौलाना मसूदी की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन हुआ और उस संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को राज्य के भारत में विलय की पुष्टि की थी। नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। उस संविधान के अस्थाई अनुच्छेद 370 के तहत धारा 3 साफ-साफ कहती है कि जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। यानी जो लोग जम्मू कश्मीर की सवैंधानिक स्थिति को लेकर सवाल खड़ा करते हैं उन्हें उस संविधान का ही ज्ञान नहीं है, लेकिन इस अस्थाई प्रावधान 370 को जब भी हटाने की बात आती है तो कांग्रेसी इसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग होने से रोक देते हैं।

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