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जिंदगी सिर्फ परीक्षा के गलियारे से नहीं निकलती, उसके बाहर भी बहुत बड़ी दुनिया होती है- प्रधानमंत्री मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परीक्षा से पहले छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए उनसे संवाद किया है। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित ‘परीक्षा पे चर्चा- 2.0’ कार्यक्रम में उन्होंने छात्रों से कहा कि वे कुछ पल बच्चों की तरह जीना चाहते हैं। इस कार्यक्रम में छात्रों के अलावा अभिभावक और शिक्षक भी शामिल हुए। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा, ”मैं मां-बाप से कहना चाहता हूं कि वे मां-बाप विफल हैं जो अपने सपनों को बच्चों पर थोपकर पूरा करवाना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि मां-बाप को इसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत हो।”

कसौटी खुद को कसने के लिए होती है, कोसने के लिए नहीं

चर्चा के दौरान छात्रों और अभिभावकों ने पीएम मोदी से सवाल भी पूछे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”परीक्षा का महत्व तो है, इससे इनकार नहीं कर सकते। न ही यह कह सकते हैं कि अरे मत पढ़ो यार, जो होगा देखा जाएगा। लेकिन यह देखना होगा कि यह परीक्षा जिंदगी की परीक्षा है या क्लास की। अगर हम यह देख लेंगे तो हमारा फोकस बढ़ जाएगा। ऐसा कुछ नहीं है कि 10वीं की परीक्षा ही सबकुछ है या कोई दूसरी परीक्षा ही सबकुछ है। परीक्षा के गलियारे से ही जिंदगी नहीं निकलती है, उसके बाहर भी बहुत बड़ी जिंदगी होती है।  

जिंदगी का मतलब है गति और सपने

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”बहुत पहले मैंने एक कविता पढ़ी थी। उसमें एक बात थी। कुछ खिलौनों के टूटने से बचपन नहीं मरा करता है। यानी कुछ एग्जाम में दिक्कत हो जाए तो सब खराब नहीं होता। लेकिन जीवन में कुछ कसौटी होती हैं। यह हमें ऊर्जा से भरती हैं। अगर हम अपने-आप को कसौटी के तराजू पर झोकेंगे नहीं, तो जिंदगी ठहर जाएगी। जबकि जिंदगी का मतलब होता है तेजी, गति, सपने- बिना उनके जिंदगी का क्या मतलब?’

अपेक्षाओं से ज्यादा करने की इच्छा जगती है

पीएम मोदी ने कहा, ”मां बाप को बच्चों को हमेशा उसी रूप में देखना चाहिए, जैसा बचपन में देखते हैं। उसको नीचे गिरता देख, उसे डांटने से कोई परिवर्तन नहीं आएगा। जहां तक अपेक्षाओं का सवाल है, तो वो जरूरी हैं। अपेक्षाओं से हमें भी कुछ ज्यादा करने की इच्छा जगती है। अभिभावकों के लिए मेरा यही आग्रह होगा कि आपके सपने भी होने चाहिए, अपेक्षाएं भी होनी चाहिए। लेकिन प्रेशर से स्थिति बिगड़ जाती है। प्रेशर से रिएक्शन आता है। ऐसा न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।”

बच्चों के रिपोर्ट कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड नहीं बनाएं

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”मां-बाप बच्चों पर इसलिए प्रेशर बनाते हैं, क्योंकि वे कभी-कभी अपने यार-दोस्तों या फैमिली फंक्शन में जाते हैं तो अपने बच्चों का रिपोर्ट कार्ड अपना विजिटिंग कार्ड बनाकर ले जाते हैं। यह समस्या की सबसे बड़ी जड़ है। इसकी वजह से आपकी सफलता या विफलता उनकी सोशल लाइफ पर असर डालती है। जब बच्चा छोटा होता है, तो मां-बाप उसकी गलतियों का जिक्र मेहमानों से काफी अच्छे से करते हैं। क्योंकि उसकी एक्टिविटी को वो नोट करते हैं। लेकिन 7-8 साल की उम्र के बाद हम उसकी एक्टिविटी पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। वो 3-6 महीने का जब था, तब से लेकर जब तक वह वयस्क नहीं हो जाता- तब तक माता-पिता को उसको देखना चाहिए।”

मां कभी नहीं थकती

पीएम मोदी ने कहा, ”क्या आप कभी सोचते हैं कि मां भी कभी थकती होगी। उसका भी मन करता है कि चलो आज सो जाएं। लेकिन जैसे ही बच्चे का स्कूल से घर आने का समय होता है, तो वह दरवाजे पर मुस्कुराते हुए खड़ी रहती है। क्या हम पूछते हैं कि मां को दिनभर काम करने की ऊर्जा कैसे आती है? मां कहती है कि घर का काम करने में कैसी थकावट ! मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा। मैं भी ऐसा ही सोचता हूं। दिनभर काम करने के बाद जब बिस्तर पर जाता हूं, तो दूसरे दिन नया करने की सोचता हूं।”

बच्चों को मां-बाप से कट ऑफ नहीं होना चाहिए

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”भारत जैसे देश में यह डिप्रेशन वाली बात बहुत परेशान करती है। भारत की जो मूलभूत समाज रचना है, उसमें प्रेशर को रिलीज करने की व्यवस्था है। लेकिन दुर्भाग्य से समाज में जो परिवर्तन आए, उनसे चीजें बदल गईं। पहले हमारी ज्वाइंट फैमिली होती थी। इससे बच्चों को अपने-आपको अलग-अलग लोगों के सामने एक्सप्रेस करने का अवसर मिलता था। आज स्थिति है कि हम एक्सप्रेशन नहीं सप्रेशन की तरफ जा रहे हैं।”

पीएम मोदी ने पिछले साल भी छात्रों से किया था संवाद

यह चर्चा ‘परीक्षा पे चर्चा 2.0’ है। पिछले साल भी पीएम मोदी ने छात्रों के साथ संवाद किया था। यह उसी का विस्तार है। इसमें देश-विदेश के दो हजार छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में स्कूली छात्रों के साथ ही कॉलेजों के कुछ छात्रों ने भी हिस्सा लिया। 

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