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प्रधानमंत्री मोदी के भय से धार्मिक चोला बदलने पर मजबूर हुए विपक्षी दल

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प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी ने देश की सत्ता संभालने के बाद न सिर्फ देश की तकदीर बदल दी बल्कि राजनीति की दिशा भी बदल दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने समाज के हर तबके और हर धर्म के लोगों के लिए समान रूप से नीतियां बनाईं और बगैर किसी भेदभाव के उनकी बेहतरी के लिए काम किया। पहले बीजेपी को माना जाता था कि वो सिर्फ हिंदुओं की बात करती है और मुस्लिम उसके एजेंडे में नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस धारणा को बदल दिया है। इसका सबसे ताजा उदाहरण है कि मुस्लिम महिलाओं को सदियों से चली आ रही तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाना। प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आने के बाद से ही इस कुप्रथा को खत्म करने की मुहिम में लगे हुए थे और उन्होंने लालकिले की प्रचीर से दिए अपने भाषण में भी इसका जिक्र किया था। मोदी सरकार ने जिस तरह से तीन तलाक के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में रखा, कैबिनेट में विधेयक पास किया और फिर लोकसभा में इसे बगैर किसी संशोधन के पास कराया, उसने विरोधियों के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है।

अल्पसंख्यकों की हिमायती है मोदी सरकार
यह कोई पहला वाकया नहीं है, इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए तमाम ऐसी योजनाएं ला चुके हैं, जिन्हें अभी तक किसी भी सरकार ने लागू नहीं किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार सबका साथ, सबका विकास के मंत्र पर काम कर रही है। इसी सोच के साथ मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के विकास और बेहतर जीवन के लिए डेडिकेटेड अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय बनाया हुआ है। मोदी सरकार की योजनाओं का ही असर है कि बिना तुष्टिकरण के अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति बेहतर हो रही है। केंद्र सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के रोजगार के लिए  ‘सीखो और कमाओ’ योजना लेकर आई। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं की योग्यता, बाजार में संभावना को देखते हुए उनकी कौशल क्षमता को और बढ़ाना है। साल 2016 को हरियाणा के मेवात जिले से ‘प्रोग्रेस पंचायत’ की शुरुआत हुई। प्रोग्रेस पंचायत के माध्यम से केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी पंचायत के लोगों तक पहुंचाई जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अल्पसंख्यकों की पारंपरिक कला और समुदाय से संबंधित हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास तथा प्रशिक्षण योजना ‘उस्ताद’ शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक कामगारों को बड़े बाजार नेटवर्क का हिस्सा बनाना है।

मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक युवाओं को लाभ पहुंचाने के लिए 8 अगस्त, 2015 को नई मंजिल योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य उन अल्पसंख्यक युवाओं को लाभ पहुंचाना है जिनके पास औपचारिक स्कूल प्रमाणपत्र नहीं है, बीच में स्कूल छोड़ दिये या फिर मदरसों जैसे सामुदायिक शिक्षा संस्थानों में पढ़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम लड़कियों के लिए ‘शादी शगुन’ योजना शुरू की है। अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों को उच्च शिक्षा के मकसद से प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार उन अल्पसंख्यक लड़कियों को 51,000 रुपये की राशि बतौर ‘शादी शगुन’ देगी जो स्नातक की पढ़ाई पूरी करेंगी। 

हिंदुओं और मुसलमानों सभी के सर्वप्रिय नेता बने पीएम मोदी
इन्हीं योजनाओं और प्रयासों का नतीजा है कि अल्पसंख्यक समुदाय का भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार बढ़ता जा रहा है। जिस तरह से मोदी सरकार सभी धर्म और समुदाय के लोगों के लिए निष्पक्षता के साथ काम कर रही है उससे हिंदुओं में लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही मुस्लिम समुदाय के बीच भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की पहुंच लगातार बढ़ती जा रही है। बस इसी ने विरोधियों को परेशानी में डाल दिया है और वह मुस्लिम वोटबैंक की चिंता छोड़कर हिंदुओं को आकर्षित करने में लग गए हैं। कांग्रेस, वामपंथी, टीएमसी के जो नेता पहले खुल कर मुसलमानों का समर्थन और हिंदुओं को गालियां देते थे, अब अपना धार्मिक चोला बदल रहे हैं।

तीन तलाक बिल पर विपक्षी दलों ने साधी चुप्पी
तीन तलाक के मुद्दे पर जिस तरह से मोदी सरकार ने पहल की और इसे लोकसभा में पारित कराया, उसने सभी विपक्षियों को सकते में डाल दिया है। लोकसभा में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी सभी इस मुद्दे पर असमंजस की स्थिति में थे। वजह साफ थी, पूरे देश में मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक से जुड़े बिल का समर्थन कर रही हैं, और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ कर रही हैं। ऐसे में अगर यह विपक्षी पार्टियां इसका विरोध करती तो मुस्लिमों की आधी आबादी के बीच गलत संदेश जाता और उनके वोट बैंक पर भी असर पड़ता। हालांकि संसद में तीन तलाक के खिलाफ विधेयक आया तो अल्पसंख्यक मुद्दों पर सबसे ज्यादा मुखर रहने वाली तृणमूल कांग्रेस ने चुप्पी साध ली। इनता ही नहीं कांग्रेस ने संसद में अपने एक सदस्य को विधेयक पेश करने पर जताए जाने वाले प्रक्रियात्मक एतराज से रोक लिया। यानी सभी दलों ने संसद में चुप रहना ही बेहतर समझा और लोकसभा में यह बिल पास हो गया। फिलहाल इतना जरूर कहा जा सकता है कि तेजी से बढ़ रही भाजपा का डर अब हर किसी को सताने लगा है। और आने वाले कुछ वर्षो तक शायद ही कोई अहम दल अल्पसंख्यक वोटों की खुलेआम राजनीति करने की सोचेगा।

गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने लगाए मंदिरों के चक्कर
हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पंडित राहुल गांधी बन गए। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने राज्यभर में 27 मंदिरों में मत्था टेका। उन्होंने चुनाव प्रचार की शुरुआत भी मंदिर से की और अंत भी मंदिर में दर्शन के साथ किया। कांग्रेस पार्टी को हिंदुओं के बीच अपनी पैठ बनाने की इतनी फिक्र थी, सोमनाथ मंदिर में गैर हिंदू रजिस्टर पर एंट्री को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद कांग्रेस नेताओं को कहना पड़ा कि राहुल गांधी हिंदू हैं, वो भी जनेऊधारी हिंदू। अहमदाबाद में राहुल गांधी ने जगन्नाथ मंदिर में दर्शन किए, तब राहुल ने गले में रुद्राक्ष की माला भी डाल रखी थी। गुजरात में एक महीने से ज्यादा चले चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने कहीं भी मुसलमानों की बात नहीं की, उनका पूरा फोकस हिंदू वोटरों को आकर्षित करने में लगा रहा। बताया जा रहा है कि राहुल गांधी आगे भी इसी तरह सॉफ्ट हिंदुत्व का चोला पहने रहेंगे। राहुल गांधी मकर संक्राति के बाद संगम में डुबकी लगाने भी जा सकते हैं। इसके अलावा ऐन लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2019 में अर्द्ध कुंभ में राहुल गांधी को ले जाने की तैयारी भी चल रही है।

कांग्रेस नेताओं का सॉफ्ट हिंदुत्व 
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव और तमाम राज्यों के विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद कांग्रेस पार्टी को समझ में आ गया है कि सिर्फ मुसलमानों की बात करना और हिंदुओं को दुत्कारना अब नहीं चलेगा। कांग्रेस के कई बड़े नेता अपने बयानों से इस बात के संकेत भी दे रहे हैं। अभी हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं के बारे में गलत धारणा बना दी गई है कि वो मंदिरों में जाने से परहेज करते हैं। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद पूर्व रक्षामंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटनी ने एक रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने हार का मुख्य कारण पार्टी का अल्पसंख्यक, खासकर मुस्लिम समुदाय के प्रति जरूरत से ज्यादा झुकने का जनता के बीच में गलत संदेश जाना बताया था। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी यूपीए सरकार के दौरान कहते रहे कि पार्टी राष्ट्रीयता संदेश देने में थोड़ा भटक रही है। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा के हिन्दुत्व की काट के लिए कांग्रेस द्वारा हुई गलती को सुधारने की राह पर हैं।

ममता बनर्जी भी सुर बदलने पर हुईं मजबूर
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी खुलकल कर मुसलमानों के मुद्दे उठाती रही हैं। जाहिर है कि पश्चिम बंगाल में लगभग 28 फीसदी मुस्लिम आबादी है और ममता बनर्जी की राजनीति इसी पर केंद्रित रही है। यही वजह है कि वह अल्पसंख्यक मुद्दों पर सबसे ज्यादा मुखर होती हैं, लेकिन जिस तरह से भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी पैठ बढ़ा रही है, और जिस प्रकार राज्य की जनता का उसे समर्थन मिल रहा है, उसने ममता बनर्जी के माथे पर बल ला दिया है। आपको बता दें कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में हुए निकाय चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, भाजपा प्रत्याशियों ने कांग्रेस और वामदलों को पीछे छोड़कर कई स्थानों पर नंबर दो का स्थान हासिल किया था। भाजपा की राजनीति और रणनीति में सांस्कृतिक धरोहर व परंपरा का स्थान होता है। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ने रामनवमी आयोजन और जुलूस को बढ़ावा दिया तो तृणमूल परेशान दिखी थी। एक वक्त में तो हालत कुछ ऐसे हुए थे कि ममता को खुद को हिंदू धर्मावलंबी कहना पड़ा था। ऐसे में जब तीन तलाक का मुद्दा आया और माना जा रहा है कि मुस्लिम महिलाओं में भाजपा के लिए रुचि बढ़ी है तो ममता के लिए यह दोधारी तलवार हो गया। खिलाफ बोलना तुष्टीकरण भी माना जाता और महिला विरोधी भी। समर्थन करने का अर्थ था कट्टर मुस्लिमों का विरोध। ऐसे में तीन तलाक के मुद्दे पर तृणमूल के सांसदों ने चुप्पी साधे रखी।

ब्राह्मण सम्मेलन में शिरकत करेंगी ममता बनर्जी
ममता बनर्जी मजबूरी में ही अब पश्चिम बंगाल में सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड चलने को मजबूर हो रही हैं। एक कार्यक्रम के दौरान ममता ने खुद को ”सहिष्णु” हिंदू बताया। बता दें कि हाल ही में गंगासागर दौरे पर गई ममता ने कपिलमुनि आश्रम में मुख्य पुजारी के साथ एक घंटे तक समय बिताया। माना जा रहा है कि ये कदम ममता ने खुद को अल्पसंख्यकों के समर्थक की छवि से उभारने के लिए उठाया है, ताकि आने वाले चुनावों में बंगाल में बीजेपी के हिंदू कार्ड पर सेंध लगाई जा सके। इतना ही नहीं ममता बनर्जी बीरभूम में अगले महीने ब्राह्मण सम्मेलन को संबोधित कर सकती हैं। बताया जा रहा है कि जिस तरह भारतीय जनता पार्टी का जनाधार लगातार राज्य में बढ़ रहा है, उसकी काट निकालते हुए ममता बनर्जी ने ये फैसला लिया है। ब्राह्मण सम्मेलन में करीब 15,000 ब्राह्मण हिस्सा लेंगे, और पूजा-पाठ करेंगे। आपको बता दें कि अप्रैल महीने में बीरभूम में ही हिंदू जागरण मंच के द्वारा हनुमान जयंती पर जुलूस निकाला था। जिसमें लाठीचार्ज हुआ था, और बवाल हुआ था। हिंदू जागरण मंच के सैकड़ों कार्यकर्ता ‘जय श्री राम’ के नारों के साथ सड़कों पर उतर आए। हालांकि पुलिस ने उन्हें जुलूस की इजाजत नहीं दी थी। तब ममता बनर्जी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी, माना जा रहा है कि इससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए वो ब्राह्मण सम्मेलन में शिरकत करने की रणनीति बना रही है।

वामपंथियों को भी सताने लगी हिंदुओं की चिंता

भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक ने वामपंथियों की भी नींद उड़ा दी है। त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में वहां राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है। भाजपा ने उत्तर पूर्व राज्यों में अपना प्रभुत्व बढ़ाने की रणनीति के तहत त्रिपुरा पर ध्यान केंद्रित किया है। राज्य में भाजपा के बढ़ते जनाधार ने वामदलों को चिंता में डाल दिया है। हाल ही में त्रिपुरा के वामपंथी मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने अगरतला में हिंदू संप्रदाय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। चार बार से राज्य के मुख्यमंत्री माणिक सरकार अस्ताबोल स्टेडियम गए जहां प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। वामपंथी मुख्यमंत्री की इस यात्रा का जहां धार्मिक महत्व है, वहीं पार्टी की विचारधारा को मानने वाले कार्यकर्ताओं के लिए इसे स्वीकार कर पाना मुश्किल हो रहा है। मुख्यमंत्री माणिक सरकार के इस कदम को सीपीएम का सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ता रुझान बताया जा रहा है। हालांकि सीपीएम ने मणिक सरकार के इस फैसले का बचाव किया है, वहीं त्रिपुरा के बीजेपी के चुनाव प्रभारी और असम के वित्त मंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने कहा है कि “इसने सीपीएम के दोहरे मानदंडों को उजागर कर दिया है। जब भाषण की बात आती है तो वामपंथी कहेंगे कि वे नास्तिक हैं। जब वोट लेने की बात आती है तो वे मंदिर, मस्जिद कहीं भी जा सकते हैं।”

 

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