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मोदी विरोध के नाम पर अंतर्विरोधी कुनबे की एकता पर ममता का हथौड़ा

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”सीपीएम बीजेपी के चरणों में गिर गई है और डूबने से बचने के लिए उनके तिनकों का सहारा ले रही है। कांग्रेस भाजपा का दिल्ली में विरोध कर रही है और यहां उनसे हाथ मिला रही है। सीपीएम, कांग्रेस, माओवादी और भाजपा ये सभी समाज के कलंक हैं।”

टीएमसी  द्वारा आयोजित बैठक में दिए गए ममता बनर्जी के इस एक बयान ने विपक्षी एकता की कलई खोल दी है। ममता का यह बयान यह बताने को भी काफी है कि विपक्षी खेमे में काफी अंतर्विरोध है और महागठबंधन को जमीनी हकीकत बनाने का रास्ता फिलहाल आसान नजर नहीं आ रहा।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ममता ने कहा था, “कांग्रेस भाजपा के खिलाफ प्रस्तावित फेडरल फ्रंट में एक साझेदार के तौर पर हिस्सा बन सकती है मगर फ्रंट के नेता के तौर पर नहीं। कांग्रेस को फ्रंट के लिए यह बलिदान देना पड़ेगा। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो खुद अपने रास्ते पर चल सकती है।”

जाहिर है ममता के रुख से साफ है कि विपक्षी खेमे में दो तरह के खेमे हैं। पहली राय ये है कि केंद्र में कांग्रेस की ओर से गठबंधन बनाया जाए। दूसरी राय में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों से ही अलग रहने की पक्षधर पार्टियों का तीसरा मोर्चा खड़ा करने पर जोर दिया जा रहा है।

इसके एक संकेत तब भी मिले जब राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में समाजवादी पार्टी की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं आया था। जबकि अखिलेश यादव ने जमियत-ए-उलेमा हिंद चीफ अरशद मदनी के ईद मिलन समारोह में हिस्सा लिया और वहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मौजूद रहे।

कुछ दिन पहले राम गोपाल यादव ने अस्पताल में मनीष सिसोदिया से जाकर मुलाकात भी की थी। इतना ही नहीं ममता बनर्जी, कुमारस्वामी, चंद्रबाबू नायडू और पी विजयन ने भी अरविंद केजरीवाल के धरने के समर्थन देकर सियासत की एक नई लाइन खींचने कोशिश की है।

दिग्गज नेताओं की गैर मौजूदगी ने कांग्रेस को दिखाया आईना
विपक्षी एकता की राह में कितने रोड़े इस बात का अंदाजा राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में भी दिख गया था। राहुल गांधी के इफ्तार के लिए विपक्ष की टॉप लीडरशिप को न्योता भेजा गया था। कांग्रेस के सहयोगी दल इफ्तार में पहुंचे, लेकिन पार्टी की फर्स्ट लाइन लीडरशिप की बजाए सेकंड लाइन के नेताओं को भेजा गया। बड़ी बात ये रही कि इफ्तार पार्टी में कांग्रेस ने 18 राजनीतिक दलों को न्योता दिया। हालांकि, सिर्फ 10  दलों के नेताओं ने ही शिरकत की।  जाहिर है विपक्षी एकता के फ्रंट पर यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है क्योंकि विपक्ष के दिग्गज नेताओं ने राहुल के इफ्तार से दूरी बनाए रखी।

सीपीएम के सीताराम येचुरी और जेएमएम के हेमंत सोरेन को छोड़ दिया जाए तो दूसरे दलों के पार्टी चीफ राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में नहीं पहुंचे। समाजवादी पार्टी की तरफ से कोई भी राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में शामिल नहीं हुआ। वहीं, बीएसपी चीफ मायावती खुद नहीं गई बल्कि राज्य सभा सांसद सतीश मिश्रा ने पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी और आरजेडी के तेजस्वी यादव और एनसीपी के शरद पवार भी नहीं गई। जबकि हाल में कांग्रेस के साथ रिश्ता जोड़ने वाली जेडीएस की तरफ से दानिश अली आए तो आरएलडी की ओर से न अजित सिंह आए न जयंत चौधरी बल्कि पार्टी ने मेराजुद्दीन अहमद को भेजा।

चंद्रबाबू नायडू-अखिलेश यादव को कांग्रेस का नेतृत्व मंजूर नहीं
राहुल गांधी की इफ्तार में शामिल नहीं होने वालों में चंद्रबाबू नायडू और अखिलेश यादव हैं। जाहिर है इससे सियासी मायने साफ हैं। दरअसल राहुल गांधी को अपना नेता मानने को कोई दल अभी तैयार नहीं है। 21 मई को जब कर्नाटक में कुमारस्वामी ने सीएम पद की शपथ ली थी, तब भी अखिलेश यादव और चंद्रबाबू नायडू ने इसका श्रेय कर्नाटक की जनता को दिया था, न कि कांग्रेस को। चंद्रबाबू नायडू ने तो पहले ही ये साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस के नेतृत्व में किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे।

13 जून को बयान अखिलेश यादव ने कहा,,” देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसमें हमारी पार्टी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। सपा कार्यकर्ता मिलकर देश का नया प्रधानमंत्री बनाएंगे।” जाहिर है अखिलेश का इस बयान के बड़े सियासी मायने हैं।

मायावती की चुप्पी ने सबके उड़ाए होश 
इस इफ्तार की दावत में यूपीए का दम दिखेगा, वैसा कुछ नहीं हो पाया है। विशेषकर मायावती और अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी यह बताने को काफी है कि अंदरखाने में काफी हलचल है। दरअसल  गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनावों में मिली जीत ने प्रस्‍तावित महागठबंधन में तोलमोल का दौर शुरू हो गया है। बसपा सुप्रीमो मायावती की सुनियोजित चुप्‍पी ने कांग्रेस और सपा की नींद उड़ा रखी है।

दरअसल मायावती भी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं, ऐसे में वह अधिक से अधिक सीटें चाह रही हैं। समाजवादी पार्टी में भी मायावती के सामने छोटा दल बनने को लेकर बागी स्वर उठने लगे हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी का भी पेंच फंसा हुआ है जो कम से कम 21 सीटों पर दावा ठोक रही है। जाहिर है विपक्षी एकता की दलील कागजों पर तो मजबूत दिख रही है, लेकिन जमीन पर इसमें बहुत पेंच फंसे हुए हैं।

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