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व्यंग्य: येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद विपक्ष ने राहुल को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार मान लिया!

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दक्षिण के राज्य कर्नाटक में बीते हफ्ते ऐसा नाटक चला, जिसने इस देश के जनमानस को जनादेश की परिभाषा समझने के लिए नई समझ विकसित की है। नैतिक-अनैतिक के बहस से परे 37 सीट वाले की सरकार बन रही है और थर्ड डिविजन (जेडीएस तीसरे नंबर की पार्टी है) वाले उसके मुखिया सीएम। 122 से 78 सीटों पर आने वाला उसे बैशाखी दे रहा है और मलाई खाने को जिह्वा लपलपा रहा है, जबकि 221 सीटों में 104 सीटें जीतने वाला विपक्ष में बैठकर लोकतंत्र जिंदाबाद के नारे सुन रहा है।

दरअसल इस सच्चे लोकतंत्र का नया दस्तूर बन गया है कि चुनावों में एक दूसरे के विरुद्ध लड़ो, जनता को बेवकूफ बनाओ और चुनाव परिणाम के बाद सत्ता की मलाई खाने के लिए साथ आ जाओ। इसे ही लोकतंत्र की जीत बताओ और जश्न में डूब जाओ।

बहरहाल कर्नाटक का ‘नाटक’ फिलहाल ‘ब्रेक’ पर है और सत्ता पर काबिज होने जा रहे ‘लोकतांत्रिक गठबंधन’ के विधायक अब भी होटलों और रिजॉर्ट में ‘कैद’ हैं। जाहिर है ये कवायद लोकतंत्र को ‘कैद’ कर उसे आक्षुण्ण बचाए रखने की कही जा रही, क्योंकि खुल्ला छोड़ने पर उनकी अंतरात्मा जागने का डर जो है! उससे भी बड़ा खतरा राहुल गांधी की पीएम पद की उम्मीदवारी पर भी है! बहरहाल आइये हम एक नजर डालते हैं कि इस लोकतंत्र बचाओ अभियान का फलाफल क्या रहा?

ईवीएम मशीन पर सवाल करने का तो सवाल ही नहीं रहा
गलती जनता करे और भुगते ईवीएम मशीन, भला ये भी कोई न्याय है?  हालांकि कर्नाटक प्रकरण से ईवीएम मशीन्स थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि विपक्ष ने कह दिया है कि लोकतंत्र जिंदा है?  चुनावों में एक दूसरे को गालियां देने वाले जेडीएस और कांग्रेस गलबहियां कर रहे हैं तो ईवीएम मशीन्स पर भला कैसा खतरा? कैसे सवाल?

राहुल गांधी के लिए सुप्रीम कोर्ट ईमानदार हो गया 
कर्नाटक कांड से पहले तक इस देश की न्यायपालिका भी लोकतंत्र की हत्या करने में लगी हुई थी, लेकिन भला हो उन न्यायाधीशों का जिन्होंने इसकी इज्जत बचा ली! दरअसल चार जजों का प्रेस कांफ्रेंस  और चीफ जस्टिस पर कांग्रेस द्वारा लाए गए महाभियोग से न्यायपालिका भी थर-थर कांपने लगी थी, तभी तो वह भी लोकतंत्र को जिंदा करने में लग गई। खैर विपक्ष ने भी अब कह दिया है कि न्यायपालिका ईमानदार बन गई है, जो राहुल गांधी के दबाव के कारण संभव हो पाया है! अब राहुल भैया ने कह दिया है तो भाई मान भी जाइये कि इस देश की न्यायपालिका ईमानदार है!

इमरजेंसी के हालात खत्म हो गए और लोकतंत्र लौट आया
कर्नाटक में जनादेश का सम्मान करते हुए येदियुरप्पा ने जब सीएम पद की शपथ ली थी, तब तक देश में इमरजेंसी जैसे हालात थे। लोकतंत्र भी खतरे में था, लेकिन जैसे ही इस्तीफा दिया कि इमरजेंसी खत्म और लोकतंत्र भी जीवित हो उठा। भाई ये चमत्कार भी विपक्ष ने ही किया है और इसके अगुवा भी राहुल गांधी ही हैं।

हार के बाद भाग जाने वाले महाराज कैमरे के सामने आ गए
चुनावों में लगातार हार के बाद हर बार राहुल गांधी छुट्टियां मनाने विदेश भाग जाते थे, लेकिन इस बार वे कैमरे के सामने नजर आए। दरअसल कांग्रेस के सिपहसलार नेताओं ने ऑपरेशन कर्नाटक को अंजाम तो दे दिया, लेकिन क्रेडिट तो उनके ‘महाराज’ को ही देना था। जाहिर है इस बार कर्नाटक में कांग्रेसियों ने जो ‘गेम’ किया वह राहुल को पुनर्स्थापित करने की एक कवायद है, ऐसे में कैमरे के सामने न आते तो सारा खेल ही बिगड़ जाता!

भ्रष्ट, दलाल और संघी कुमारस्वामी सेक्यूलरों के मसीहा बन गए
कर्नाटक चुनाव के दौरान कांग्रेस और सिद्धारमैया ने जेडीएस को संघी, भ्रष्ट और दलाल कहा था। कुमारस्वामी को पानी पी-पी कर कोसा था। इसी तरह कुमारस्वामी ने भी हासन की जनसभा में कहा था कि- सिद्धारमैया को कुत्ता बनाकर रखूंगा। हालांकि सत्ता की संभावना को देखते ही दोनों ही पलट गए और भाजपा को सत्ता से दूर रखने को एक साथ आ गए। जाहिर है दोनों ही दलों ने बेवकूफ बनाकर वोट लिया और चुनाव परिणाम के बाद फिर एक बार बेवकूफ बना दिया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान संघी कहे जाने वाले कुमारस्वामी कांग्रेस के लिए सेक्यूलरों के मसीहा बन गए। अब इसकी जिम्मेदार भी तो जनता ही है भाई, वो बेवकूफ है, तभी तो कोई उसे मूर्ख बना जाता है!

राहुल गांधी को विपक्ष ने अपना प्रधानमंत्री प्रत्याशी मान लिया
कर्नाटक कांड के बीच राहुल गांधी जिस विजेता अंदाज में प्रकट हुए इससे तो लगने लगा कि विपक्ष ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान लिया है। हालांकि इस बात की हवा अगले दो दिनों में ही निकल गई जब अखिलेश यादव ने कह दिया कि इस बात का फैसला समय आने पर होगा। बहरहाल कर्नाटक कांड के बाद इतना तो जरूर हुआ है कि विरोधाभासों के बीच भी राहुल गांधी खुद को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर प्रस्तुत करने लगे हैं।

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