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#NotInMyName कैंपेन के नाम पर देश को बदनाम करने वालों को पहचानिए

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दिल्ली के पास हरियाणा के बल्लभगढ़ में ट्रेन की सीट को लेकर हुए झगड़े में एक किशोर की हत्या के विरोध में 28 जून को देश के कई हिस्सों में एक कैंपेन चलाया गया। कहने के लिए तो इस कैंपेन का उद्देश्य जुनैद नाम के उस किशोर के माध्यम से देश में हुई कुछ बर्बर हत्याओं के प्रति विरोध दर्ज करना था। लेकिन, जिन लोगों ने ‘लिंचिंग’ के बहाने #NotInMyName के नाम वाले इस कैंपेन की अगुवाई की उससे स्पष्ट हो जाता है कि इसका एकमात्र उद्देश्य मोदी सरकार को दुनिया भर में बदनाम करना था। ये वही लोगों हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध की सुपारी लेने का धंधा करते हैं और इसी बहाने अपने निहित एजेंडे का प्रचार करते हैं। बड़ी बात ये है कि जिस साजिशपूर्ण तरीके से ये अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं, उससे लगता है कि कहीं किसी लालच में ये लोग देशविरोधी ताकतों के हाथों में न खेल रहे हों।

सबा दीवान, फिल्मकार
पेशे से डॉक्युमेंट्री फिल्म मेकर सबा दीवान की अधिकतर फिल्में sexuality और communalism पर आधारित होती हैं। वामपंथ का कीड़ा इन्हें खानदानी विरासत में मिला है। कहने के लिए बल्लभगढ़ के जुनैद की हत्या ने इन्हें इतना आहत किया कि ये देशभर में #NotInMyName नाम के कैंपेन की अगुवा बन गईं । इन्हें दादरी के अखलाक से लेकर वो तमाम ऐसी वारदातें हिलाती हैं, जिसमें पीड़ित कोई मुस्लिम होता है। लेकिन श्रीनगर में मस्जिद के बाहर नमाजियों द्वारा बेरहमी से मार डाले गए डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित के लिए इनके मन में जरा भी पीड़ा नहीं है। दिल्ली का होने का दम भरती हैं, लेकिन पंकज नारंग को उन्हीं के घर में पत्नी और मासूम बेटे के मॉब लिंचिंग की वारदात से इन्हें कोई परेशानी नहीं।

शबनम हाशमी, सामाजिक कार्यकर्ता
शबनम हाशमी बल्लभगढ़ की घटना के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार अवॉर्ड लौटा चुकी हैं। गौर करने वाली बात है कि ये अवॉर्ड उन्हें 2008 में कांग्रेसी सरकार के दौरान मिला था। इनकी मानसिकता देखिए कि तीन साल बाद भी ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस पद पर पचा नहीं पा रही हैं। इनके अनुसार पीएम मोदी इनके प्रतिनिधि नहीं हैं। अब अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि जिस लोकतांत्रिक देश के चुने हुए प्रधानमंत्री के बारे में ये ऐसी सोच रखती हैं उस देश के प्रति इनकी भावना कितनी गहरी होगी? दरअसल कांग्रेसी शासन में पाले गए ऐसे बुद्धिजीवी दुनिया भर में देश का नाम खराब करने में लगे हैं।

उमर खालिद, JNU का विवादित छात्र
जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी की घटना से कुख्यात हुए उमर खालिद पर कैंपस में हिंदू-देवी देवताओं के आपत्तिजनक चित्र लगाकर नफरत फैलाने के आरोप लग चुके हैं। आरोप ये भी है कि देशविरोधी वामपंथी विचारधारा का समर्थक होने के चलते ही इसे नियमों को ताक पर रखकर जेएनयू में होस्टल में जगह मिल गई। इसकी खतरनाक विचारधारा के चलते देशविरोधी मानसिकता के लोग इसे अब ब्रांड एंबेस्डर की तरह पेश करते हैं। लेकिन देश की दुर्दशा देखिए कि जब भी कार्रवाई की बात उठती है फ्री स्पीच गैंग ऐसे लोगों के बचाव में कूद पड़ते हैं।

आम आदमी पार्टी के सभी बड़े नेता
राजनीतिक नौटंकीबाजी के चलते पिछले दो साल से अधिक समय से दिल्ली की जनता को परेशान करने वाले आम आदमी पार्टी के लगभग सभी बड़े नेता मोदी विरोधी इस कैंपेन के हिस्सा बने। कई चुनावों में चपत लगने के बाद इन्होंने कसम खाई थी, कि अब बेवजह पीएम मोदी को निशाना बनाने की गंदी आदत छोड़ देंगे। लेकिन पैदाइशी दुम किसी की भी सीधी नहीं हो सकती। यही कारण है कि दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत केजरीवाल के तमाम अराजक सहयोगी इसमें शामिल हुए। नौटंकीबाजों की इस लिस्ट में आशुतोष, आतिशी मरलेना और दिलीप पांडे जैसे कुख्यात लोग शामिल हैं।

राजदीप सारदेसाई, पत्रकार
टीवी पत्रकार राजदीप सारदेसाई की मजबूरी यही है कि उन्हें अपना करियर बचाए रखने के लिए मोदी विरोध का सहारा लेना पड़ता है। मोदी विरोध के नाम पर पत्रकार को कलंकित करने के लिए ये व्यक्ति दुनिया भर में कुख्यात है। अपनी इसी बेहूदी आदतों के चलते एक बार इनकी न्यूयॉर्क में अमेरिकी नागरिकों ने भी जमकर धुनाई की थी।

तीस्ता शीतलवाड़, उगाही स्पेश्लिस्ट
तीस्ता शीतलवाड़ और पीएम मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार पिछले डेढ़ दशकों से एक-दूसरे के पर्याय बने हुए हैं। इनका पेशा है मुस्लिमों को पीड़ित बताकर दुनिया भर से चंदा करना और उस रकम से अय्याशी करना। कई बार हिंसा पीड़ितों ने भी इनपर सीधा आरोप लगाया है कि ये पैसे तो उनके नाम पर जमा करती हैं लेकिन अपने पति के साथ मिलकर दुनिया भर में घूम-घूम कर गुलछर्रे उड़ाती हैं।

राणा अयूब, पत्रकार
इनकी धूर्त पत्रकारिता पीएम मोदी और बीजेपी विरोध पर टिकी हुई है। यौन शौषण के आरोपी तहलका के पत्रकार तरुण तेजपाल के साथ काम कर चुकी हैं। पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए ये किताब भी लिख चुकी हैं। सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणियां करना इनकी दिनचर्या है।

शेहला रशीद, जेएनयूएसयू की पूर्व उपाध्यक्ष
पढ़ाई के नाम पर जेएनयू में रहकर राष्ट्रविरोधी अभियानों को हवा दे चुकी हैं। मानसिकता से वामपंथी होने के चलते पीएम मोदी का विरोध करना इनके नीच संस्कारों में है। मौका मिल जाय तो विरोध के लिए अभद्र भाषा के इस्तेमाल में भी परहेज नहीं। छात्रों में देशविरोधी भावनाएं भड़काना इनका पेशा रहा है। आतंकवादियों और नक्सलवादियों को ये नैतिक समर्थन देती हैं।

स्वामी अग्निवेष, सामाजिक कार्यकर्ता
दिल्ली के सत्ता के गलियारों से लेकर दंडकारण्य के जंगलों तक इनपर नाम कांग्रेस के कुख्यात दलाल होने के आरोप लग चुके हैं। आरोपों के अनुसार इनका धंधा बहुत अच्छी तरह चल रहा था। लेकिन कांग्रेसी भ्रष्टाचार के विरोध में चल रहे अन्ना आंदोलन के दौरान एक टेप ने इनकी पोल खोल दी। आरोप है कि इन्होंने कांग्रेस के मंत्रियों से आंदोलन को भंग करने की सुपारी ले रखी थी। आरोपों के अनुसार जहां भी देश को अस्थिर करने का अवसर मिलता है स्वामी अग्निवेष वहां सबसे पहुंचने वालों में से होते हैं। इनपर नक्सलियों और माओवादियों से साठगांठ करने के भी आरोप लग चुके हैं।

रामचंद्र गुहा, इतिहासकार
ये शुद्ध रूप से पिट चुके वामपंथी विचारधारा के पालक हैं। इनपर आरोप लगते रहे हैं कि इन्होंने जानबूझकर अपनी किताबों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को कलंकित करने का काम किया है। इनपर ये भी आरोप हैं कि इन्होंने हिंदुओं की छवि खराब करने के लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। इन्हें अपनी कुत्सित वैचारिक दुकान बंद होने का अंदेशा है, इसीलिए मोदी विरोध का कोई भी मौका नहीं चूकना चाहते।

शबाना आजमी, अभिनेत्री
शबाना आजमी वामपंथी विचारधारा से जुड़ी रही हैं। कहने के लिए स्वयं को एक मुस्लिम के रूप में पहचाने जाने का विरोध करती हैं। लेकिन पीएम मोदी के विरोध के लिए उन्होंने जिस कैंपेन का सहारा लिया वो देश के मुस्लिमों की भावनाएं भड़काने के लिए ही आयोजित की गई थी। वैसे तो ये खुद को धर्मनिरपेक्ष ठहराते नहीं अघाती हैं। लेकिन जब भी मौका मिलता है अपनी धार्मिकता दिखाने में पीछे नहीं रहती हैं।

नंदिता दास, अभिनेत्री
इनके कुछ फिल्मों को देखने से पता चलता है कि इनकी मानसिकता ही हिंदुओं की छवि धूमिल करने की रहती है। शबाना आजमी के साथ इनकी फिल्म फायर काफी विवादों में रही थी। फिल्म में जानबूझकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश की गई थी। नंदिता दास जैसी अभिनेत्रियों के दिमाग में ये बात घुसी हुई है कि अपने ही धर्म को या अपनी ही सरकार को बदनाम करेंगी तो लोग इन्हें बुद्धिजीवी समझने लगेंगे।

बिनायक सेन, लेफ्ट एक्टिविस्ट
छत्तीसगढ़ की एक अदालत इन्हें देशद्रोह का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुना चुकी है। कहने के लिए ये डॉक्टर हैं लेकिन इनका पेशा नक्सलियों-माओवादियों की मदद करना है। लेकिन कोर्ट से दोषी ठहराए जाने के बाद भी इनकी आदत नहीं गई है और देश की छवि खराब करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।

कविता कृष्णन, सामाजिक कार्यकर्ता
सोशल मीडिया पर फ्री सेक्स का समर्थन करती हैं। इनका कहना है- हां, मेरी मां ने किया फ्री सेक्स। ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमन एसोसिएशन की सचिव और सीपीएम (ML) पोलित ब्यूरो की सदस्य हैं। महिला अधिकारों के नाम पर सिर्फ सेक्स की चर्चा करना इनका धंधा है और इसीलिए ये खुद को बुद्धजीवी कहलाना पसंद करती हैं।

संकर्षण ठाकुर, पत्रकार
हाल के दिनों में पीएम मोदी के विरोध में सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। यौन उत्पीड़न के आरोपी तरुण तेजपाल के तहलका लिए भी काम कर चुके हैं। बल्लभगढ़ की आपराधिक घटना को इन्होंने भी सांप्रदायिक ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। खुद को वामपंथी बुद्धिजीवियों के साथ दिखाने के लिए मौके का पूरा फायदा उठा लेना चाहते हैं।

गिरीश कर्नाड, फिल्मकार
हाल के वर्षों में कई विवादों के साथ नाम जुड़ा है। रवींद्रनाथ टैगोर की नाटकों को घटिया बता कर विवादों में आ चुके हैं। खुद को बहुत बड़ा मुस्लिम हितैष साबित करने के लिए ये बेंगलुरू एयरपोर्ट का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने का सुझाव तक दे चुके हैं।

एजेंडा कैंपेन के बाकी किरदार
मोदी विरोध के लिए #NotInMyName से चले इस कैंपेन में ऊपर दिए गए नाम के अलावा गायक रब्बी शेरगिल, चिन्ना दुआ, अभिनेता माया राव, अभिनेत्री कल्कि कोएच्लिन, कोंकणा सेन, अपर्णा सेन, रेणुका सहाने, अभिनेता रजत कपूर, रणवीर श्रोय और फिल्मकार राकेश शर्मा भी शामिल थे। ये तमाम लोग बॉलीवुड से जुड़े वैसे बुद्धिजीवी हैं जो मानते हैं कि अपने देश को बदनाम करने से ही इन्हें वैचारिक आजादी मिलेगी। इनके अलावा इस अभियान में बॉम्बे कैथोलिक सभा के पूर्व अध्यक्ष गॉर्डन डीसूजा, हिंदू की पूर्व संपादक मालिनी पार्थसारथी, एक्टिविस्ट अर्पिता चटर्जी के अलावा जेडीयू नेता के सी त्यागी वो चर्चित नाम हैं, जिन्होंने इस कैंपेन का हिस्सा बनकर ये साबित करने की कोशिश की, कि उनसे बड़ा मोदी विरोधी कोई नहीं हो सकता। तथ्यों की गहराई में जाए बिना ये भी बल्लभगढ़ की आपराधिक घटना को मॉब लिंचिंग से जोड़ने की हुई साजिश में हिस्सेदार बन गए।

#NotInMyName के अलावा इनके हाथों में “No Place for Islamophobia” और “Break the Silence” जैसे प्ले कार्ड भी थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनकी मंशा क्या थी? इन्हें तो भारत, प्रधानमंत्री मोदी, उनकी सरकार, गैर-मुस्लिम समुदायों विशेषकर हिंदुओं को बदनाम करना था। ताकि विश्व में ये संदेश जाय कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं। जबकि ऐतिहासिक सच्चाई ये है कि देश के बंटवारे का जख्म झेलने के बाद भी भारत में बहुसंख्यकों ने बाकी धर्मों के प्रति जो सहिष्णुता दिखाई है उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती, मुस्लिम बहुल राष्ट्रों की बात तो बहुत दूर है।

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