Home बिहार विशेष अब कौन सी नैतिकता बाकी है नीतीशजी?

अब कौन सी नैतिकता बाकी है नीतीशजी?

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नीतीश कुमार से बिहार की जनता पूछ रही है कि उनकी नैतिकता कहां है आज? क्यों नहीं वो छोड़ रहे लालू का साथ? तब उन्होंने दिखाया था अवसरवाद जब नैतिकता का ओढ़ लिया था लबादा… या आज दिखा रहे हैं अवसरवाद, जब नैतिकता का उन्होंने छोड़ दिया है लबादा?

17 साल हमसफर रहने के बाद नीतीश कुमार ने 2012 में एनडीए का साथ छोड़ दिया था। ऊंची नैतिकता और तथाकथित नैतिकता का जो आवरण उन्होंने ओढ़ा था, वह था अल्पसंख्यकों के लिए उनकी कथित चिन्ता। इससे पहले वो बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी के लिए ओछी मानसिकता दिखा चुके थे। एक मुख्यमंत्री रहते हुए दूसरे मुख्यमंत्री को बतौर मेहमान बुलाकर बीजेपी नेताओं के साथ उन्होंने अपने घर पर आयोजित भोज रद्द कर दिया था। दुनिया जानती है कि यह सब तुष्टिकरण की नीति का नतीजा था। आगे भी एनडीए का साथ छोड़ने की कोई बड़ी वजह, कोई बड़ी नैतिकता वाली बात नीतीश कुमार नहीं बता सके।

माना यही गया कि सीएम नीतीश ने समीकरणों को साधने की सियासत की है। लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें सबक सिखाया। महज दो सीटें बिहार में मिलीं, तब उन्होंने नैतिकता की बात कहते हुए जीतन राम मांझी के लिए मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया। पर, जिस तरीके से सरकार की रिमोट को वे अपने हाथ में रखने की कोशिश करते रहे, जीतन राम मांझी का स्वाभिमान भी जवाब दे गया। उन्होंने विरोध किया। बाद में जीतन राम को हटाकर नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बन बैठे। अपनी कथित नैतिकता का जनाजा उन्होंने खुद निकाल दिया।

नैतिकता का लबादा ओढ़ने और छोड़ने की इन घटनाओं के बीच आज नीतीश से सबसे बड़ा सवाल यही है कि लालू और उनकी राजनीति की एक-एक सच्चाई लगातार सामने आ रही है, फिर भी वे क्यों गठबंधन से चिपके हुए हैं? सत्ता का ये कैसा लोभ है जो उन्हें लालू और उनकी पार्टी आरजेडी से गठबंधन तोड़ने नहीं दे रहा है।

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद पर दो हफ्ते के भीतर तीन बड़े आरोप लगे हैं
1. जमीन की रजिस्ट्री अपने या परिवार के सदस्यों के नाम कराकर टिकट बांटना।
2.शहाबुद्दीन के डिक्टेट करने पर नीतीश सरकार में दखलंदाजी देने से जुड़ी बातचीत का सामने आना।
3. आरजेडी के मंत्रियों का सरकारी बंगले किराए पर देने की खबरों का सामने आना।

इससे पहले लालू, उनके बेटे, उनकी पार्टी और सरकार पर आरोप लगते रहे हैं। मिट्टी घोटाला, जमीन घोटाला, संपत्ति घोटाला, मॉल घोटाला, आवास घोटाला, सुरा घोटाला- तमाम ऐसे नये घोटाले सामने आ रहे हैं जिनमें कुछ में लालू एंड फैमिली का प्रत्यक्ष हाथ है और कुछ में अप्रत्यक्ष। लेकिन नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद इन घोटालों को लेकर किसी तरह की कार्रवाई नहीं होने पर सवाल उठ रहे हैं। क्या कुर्सी के मोह में नीतीश अपनी छवि की भी परवाह नहीं कर रहे हैं?

पेट्रोल पंप घोटाला
लालू प्रसाद के बेटे और स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप ने पटना के न्यू बाइपास पर बेऊर के पास गलत कागजों के आधार पर अधिकारियों की मिलीभगत से 2011 में भारत पेट्रोलियम का एक पेट्रोल पंप अपने नाम आवंटित करा लिया था। जिस समय तेजप्रताप ने पेट्रोल पंप के लिए आवेदन किया और इंटरव्यू दिया, उस समय नेशनल हाईवे-30 पर न्यू बाइपास की 43 डिसमिल जमीन उनके पास नहीं थी। पटना के बिहटा में बीयर फैक्ट्री लगाने वाले अमित कत्याल ने 9 जनवरी, 2012 को एके इंफोसिस्टम कंपनी के निदेशक के नाते तेजस्वी यादव को पेट्रोल पंप लगाने के लिए 136 डिसमिल जमीन लीज पर दी। पेट्रोल पंप के लिए आवेदन तेजप्रताप ने किया, लेकिन पेट्रोल पंप की जमीन लीज तेजस्वी के नाम थी। जब तेजप्रताप की न तो अपनी जमीन थी और न ही लीज उनके नाम से था, तब यह पेट्रोल पंप उन्हें कैसे आवंटित किया गया।

मिट्टी घोटाला
लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर अस्सी लाख रुपए के जिस मिट्टी घोटाले का आरोप लगा था उसके बारे में कहा जा रहा है कि मिट्टी वहां से खरीदी ही नहीं गई। लेकिन जिस चिड़िया घर को ये मिट्टी दी गई उसके पास पूरे दस्तावेज हैं, बावजूद पूरा प्रशासन लालू प्रसाद के परिवार को बचाने में लग गया है।

शेयर की जानकारी छिपाई
लालू यादव के बड़े बेटे और अब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव पर शेयर की जानकारी छिपाने का आरोप है। 2010 में लारा डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से 45 डेसि‍मल जमीन, 53.34 लाख रुपये में खरीदी और इस जमीन पर एक मोटरसाइकिल कंपनी का शोरूम भी शुरू किया गया। इस शोरूम को शुरू करने के लिए 2.29 करोड़ रुपये कर्ज लिए गए, तब तेजप्रताप इस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे। हालांकि 2015 में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद तेजप्रताप यादव ने इस कंपनी के प्रबंध निदेशक के पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन चुनाव आयोग को दिए गए ब्योरे में तेजप्रताप यादव ने न अपने शेयर की जानकारी दी और न कर्ज का कोई उल्लेख किया।

जमीन के बदले नौकरी
लालू प्रसाद यादव जब रेल मंत्री थे तब उनपर लोगों से जमीन के बदले नौकरी देने का आरोप लगा था। ग्रुप सी और डी की कई नौकरियां रेवड़ियों की तरह बांटी गई थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने आंखें मूंद रखीं थी। लालू एंड परिवार पर इसके साथ ही कई जमीन गलत कागजात के आधार पर खरीदने का आरोप है। करोड़ों रुपये की इन जमीनों की खरीद की जांच करवाने से बिहार सरकार बच रही है।

दिल्ली में 115 करोड़ की संपत्ति
लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर दिल्ली में अवैध तरीके से 115 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। दरअसल लालू का परिवार डिलाइट मार्केटिंग, ए़ क़े इंफोसिस्टम की तर्ज पर ए़ बी एक्सपोर्ट्स कंपनी के भी मालिक हैं। इस कंपनी के सभी शेयरधारक और निदेशक पद पर लालू के परिवार के लोगों का कब्जा है। इतना ही नहीं दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में जमीन खरीदने के लिए मुंबई के पांच बड़े ज्वेलर्स, सोने के व्यापारियों ने ए़ बी एक्सपोर्ट्स कंपनी को वर्ष 2007-2008 में एक-एक करोड़ के यानि पांच करोड़ रुपये बिना ब्याज के कर्ज दिए। इसी पांच करोड़ रुपये से उसी वर्ष नई दिल्ली के डी-1088, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में 800 वर्ग मीटर जमीन मकान सहित पांच करोड़ रुपये में खरीदा गया। आज इस जमीन की कीमत 55 करोड़ से ज्यादा है और इस जमीन पर लालू परिवार का चार मंजिला मकान बनकर लगभग तैयार है, जिसकी वर्तमान कीमत लगभग 60 करोड़ रुपये है।

पार्टी टिकट बेचकर खरीदा बंगला
गोपालगंज के एनएच 28 के किनारे हजियापुर वार्ड नम्बर 16 में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का यादव का वह बंगला है, जो कभी गोपालगंज के तत्कालीन सांसद रघुनाथ झा ने बड़े ही शौक से अपने लिए बनवाया था। लेकिन बाद में रघुनाथ झा लालू को यह घर गिफ्ट कर दिया था। कहा जा रहा था कि रघुनाथ झा ने राजद की सीट पर बेतिया से चुनाव लड़ने के एवज में यह बंगला गिफ्ट किया है। दस्तावेजों से भी साफ है कि रघुनाथ झा ने अपने बंगले को लालू परिवार के नाम किया है। गोपालगंज रजिस्ट्री कचहरी से प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक में 19 जून 2005 को सांसद रघुनाथ झा ने अपने 4 कट्ठे में बने बंगले को लालू प्रसाद के दोनों नाबालिग (उस वक्त) बेटों तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव को गिफ्ट किया था। रजिस्ट्री दस्तावेज के मुताबिक तब दोनों बेटे नाबालिग थे और और तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के नाम से यह बंगला रजिस्ट्री हुआ था।

लालू यादव खुद चारा घोटाले में सजा सुन चुके हैं। इन सबके बावजूद नीतीश कुमार की ऐसी क्या मजबूरी है कि वे उनका साथ नहीं छोड़ पा रहे हैं? जिस जंगलराज के खिलाफ आंदोलन कर नीतीश कुमार ने बिहार में लालू राज से जनता को मुक्ति दिलायी थी, उसी लालू के साथ नीतीश का दोबारा जुड़ना बड़ा सवाल था। फिर भी, नीतीश के शब्दों पर लोगों ने भरोसा किया था कि अब दोबारा ऐसा नहीं होगा। मगर, अब जबकि यह सच सामने आ चुका है कि एक और जंगलराज चल रहा है। शहाबुद्दीन जैसे अपराधी लालू को निर्देश देकर सरकार चला रहे हैं। अब कौन सी नैतिकता बाकी रह जाती है नीतीश कुमारजी। कहां चली गयी है आपकी नैतिकता?

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