Home विचार मोदी सरकार: 60 फीसदी वक्त में 600 फीसदी से ज्यादा काम

मोदी सरकार: 60 फीसदी वक्त में 600 फीसदी से ज्यादा काम

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23 जनवरी 2014…उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की विजय शंखनाद रैली… इस रैली में भी लाखों लोग शामिल थे। नरेंद्र मोदी ने लोगों के सामने अपनी बात कुछ इस तरह रखी… आपने शासकों को 60 साल दिए… आप मुझे सिर्फ 60 महीने दीजिए मैं आपको सुख-चैन की जिंदगी दूंगा। ये बात सुनकर लोगों में गजब का उत्साह भर गया था…और चुनाव नतीजों ने तीन दशक बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत देकर सत्ता पर बिठा दिया।

ये ऐतिहासिक नतीजे निराशा के बदले आशा, धोखे के बदले विश्वास, सुस्त शासन के बजाय चुस्त शासन और शासक नहीं बल्कि सेवक चुनने के लिए थे। नरेंद्र मोदी ने जब गोरखपुर रैली में कहा कि, आपने शासकों को 60 साल दिए है, अब सेवकों को 60 महीने दीजिए, तो वे सिर्फ एक चुनावी वादा नहीं कर रहे थे। उन्हें पता था कि बीते करीब 70 दशक में देश के लोग चुनावी वादों से उकता चुके हैं और उन्हें अब काम करने वाली सरकार चाहिए।

प्रधानमंत्री ने 60 महीने मांगे थे। इन 60 महीनों का करीब 60 फीसदी वक्त बीत गया है, लेकिन काम-काम पर नजर डालें तो ये 600 फीसदी से भी ज्यादा हुआ है। 2014 में जब मोदी सरकार ने कामकाज संभाला तो देश निर्विवाद रूप से बेहद विषम परिस्थितियों से गुजर रहा था। निवेशकों का भरोसा रसातल में था और अर्थव्यवस्था गिरावट की मार झेल रही थी। न केवल पूंजी निर्माण या राजकोषीय घाटा, बल्कि ऐसे तमाम अहम संकेतक लाल निशान यानी खतरे के स्तर पर थे। लेकिन मोदी सरकार ने ना सिर्फ अर्थव्यवस्था का कायाकल्प किया बल्कि उसे मजबूती प्रदान की। इसमें सरकारी खजाने की सेहत में सुधार के साथ-साथ सरकारी खर्च में आई बढ़ोतरी की मुख्य भूमिका रही है। पूरे सिस्टम में जगह-जगह ऐसे अवरोध थे जो अर्थव्यवस्था की तेज गति की राह में लगातार रोड़ा बने हुए थे। पूरा बैंकिंग सिस्टम एनपीए की मार से कराह रहा था और निजी निवेश का चक्र लकवाग्रसत नीतियों के चलते ठप हो गया था। दस वर्षों तक सत्ता पर काबिज रही यूपीए सरकार ने पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था को एक भंवर में फंसा दिया था जिससे देश की विकास गाथा पटरी से उतर चुकी थी।

मोदी सरकार ने सरकारी खर्च को बढ़ाना शुरु किया लेकिन इससे पहले की ये खर्च सरकारी खजाने की दीवारों को ध्वस्त करना शुरू करे, सरकार ने सकल पूंजी निर्माण और जीडीपी वृद्घि की गुत्थी को सुलझाने का काम शुरु कर दिया। निजी निवेश बढ़ाने के लिए सरकार ने अपने तरकश से स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को बाहर निकाला और नियमों और नीतियों में बदलाव कर ना सिर्फ एफडीआई को आकर्षित किया बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी उद्यमिता और उपभोक्ता ऊर्जा वाली जड़ों की तरफ वापस लौटाना शुरु कर दिया। नतीजा ये हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था देश के छोटे-बड़े करोड़ों युवा और अनुभवी उद्यमियों की ऊर्जा और उनके नए तौर तरीकों से संचालित होने लगी। निजी क्षेत्र के निवेशकों की जोखिम जैसी आशंकाओं के मद्देनजर पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) से निवेश चक्र को तेज करने का काम शुरु किया गया। यूपीए सरकार में यही पीपीपी उत्पीड़न और लूट का विकृत रूप ले चुकी थी।

नोटबंदी या विमुद्रीकरण के जरिये अब हमारी अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार का एक बड़ा कदम उठा है। बीते कुछ दशकों में जीडीपी के आंकड़ों को लेकर लगभग सनक सरीखी अवस्था ने ‘कुछ भी चलता है’ वाली संस्कृति को जन्म दिया था जिससे प्राय: गलत तस्वीर ही सामने आती थी। नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता के मुद्दे को साधा और यह छोटी और लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को कम से कम नकदी और डिजिटल स्वरूप की ओर ले जाने का काम कर रही है। मोदी सरकार लगातार पारदर्शी और डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रही है। बीते करीब 36 महीनों में डिजिटल ट्रांजैक्शन (लेनदेन) में तीन गुना वृद्धि हुई है। मोबाइल बैंकिंग में 40 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। रुपे कार्ड का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। यूपीआई का इस्तेमाल बढ़ रहा है। बीते करीब 6 महीने में दो गुना ज्यादा बैंक यूपीआई से जुड़े हैं।

नीति के मोर्चे पर ही सरकार ने अर्थव्यवस्था को पारदर्शी करने के लिए जीएसटी लागू करने की सारी बाधाएं पार कर ली हैं। दोनों सदनों से पास होने के बाद अब एक देश एक टैक्स का सपना साकार होने वाला है। जीएसटी से अलग-अलग राज्यों में उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को टैक्स के भंवर जाल से मुक्ति मिलेगी और दोनों को ही फायदा होगा और इससे जीडीपी में ठीक-ठाक बढ़ोत्तरी की उम्मीद है।

देश का रक्षा क्षेत्र कछुआ चाल से त्रस्त था। तय हो चुके रक्षा सौदों के बाद उपकरणों और हथियारों की डिलीवरी में बेशुमार समय लगता था, उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल का कोई सिस्टम नहीं था और कामकाज में पारदर्शिता तो दूर जवाबदेही तक के लिए कोई जिम्मेदार नहीं था। और इस सबसे कहीं ज़्यादा अहम और महत्वपूर्ण देश की रक्षा तैयारियों की कमियों को लगातार अनदेखा किया जा रहा था। मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए बीते दो-ढाई वर्षों में 60 फीसी से ज्यादा खरीद भारतीय कंपनियों से की। इन तीन वर्षों में एक लाख करोड़ से ज्यादा का पूंजी व्यय भारतीय वेंडरों के साथ किया। सरकारी खरीद के 96 मामले मंजूर किए गए जिसमें घरेलू कंपनियों की भागीदारी करीब ढाई लाख करोड़ की है। रक्षा क्षेत्र में काम करने की इच्छुक कंपनियों की सरकारी सिस्टम में एंट्री को आसान बनाते हुए औद्योगिक लाइसेंस की सीमा 3 साल से बढ़ाकर 15 साल कर दी गयी। रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन के लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत 116 औद्योगिक लाइसेंस जारी किए गए और ऑटोमैटिक रूट से एफडीआई की सीमा को 49 फीसदी कर दिया गया।

अर्थव्यवस्था की सुस्ती अब फुर्ती और चुस्ती बदल चुकी है। रक्षा क्षेत्र अपनी सोई हुई कछुआ चाल से जागकर द्रुत गति से चलायमान है। और सबसे महत्वपूर्ण देश की रक्षा तैयारियां अब चिंता का विषय नहीं रह गयी हैं। अगली कड़ी में दूसरे क्षेत्रों के विषय में विस्तृत जानकारी कि किस तरह मोदी सरकार देश को नीतिगत लकवे और भ्रष्टाचार के कलंक से निकालकर मजबूत और करप्शन फ्री इंडिया में बदल रही है…ऐसे इंडिया में जो होगा न्यू इंडिया

 

तसलीम खान

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