Home विचार प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों से उद्यमिता के क्षेत्र में सशक्त होता भारत

प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों से उद्यमिता के क्षेत्र में सशक्त होता भारत

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अर्थजगत के जानकारों के अनुसार यह बात बड़े महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आ रही है कि आने वाले समय में उद्यमिता ही भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी शक्ति सिद्ध होगा। इसके पीछे कारण यह बताए गए हैं कि चाहे केंद्र हो या राज्य, दोनों ही स्तरों पर नौकरियों के अवसर बहुत सीमित होते जा रहे हैं। हालांकि निजी संगठित क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं, लेकिन उनकी भी एक सीमा है। यही स्थिति केंद्र तथा राज्य सरकारों की भी है। वहां भी नौकरी के अवसर बहुत कम हैं।

मोदी सरकार की दूरदर्शितापूर्ण नीतियां   
इन स्थितियों को मोदी सरकार ने समय रहते ही पहचान लिया था, इसीलिए उसका जोर इस बात पर रहा कि भारतीय युवा काम मांगने के लिए कहीं भी हाथ न फैलाए, बल्कि स्वयं कई हाथों को काम देने वाला बने। जहां विकसित देशों में आबादी या तो स्थिर है या फिर तेजी से गिर रही है, वहीं भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी युवा है, जो तेजी से बढ़ रही है। यह संख्या देश के लिए बहुत बड़ी आशा है और विश्व के लिए बहुत बड़ी संभावना। इस वर्ग के पास शिक्षा, यानी ज्ञान तो है, लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए काम के पर्याप्त अवसर जुटाना केंद्र एवं राज्य, दोनों के लिए ही एक बहुत बड़ी चुनौती है। हमें अपनी इस युवा आबादी का प्रयोग आर्थिक क्षेत्रों के लाभ के रूप में करना चाहिए, न कि रोजगार के संकट से जूझ रहे वर्ग के रूप में। ऐसे में साफ है कि स्वरोजगार को बढ़ावा देकर ही स्थिति को बदला जा सकता है। इसके लिए शिक्षा में ऐसी पहल को प्रोत्साहित करना होगा, जिससे शैक्षणिक डिग्रियां सीधे रोजगारोन्मुखी हो सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस समय कई ऐसी योजनाएं कार्यान्वित हैं, जिनका लक्ष्य यही है।

स्किल इंडिया से मिले हुनर को पहचान
मोदी सरकार की यह एक अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका लक्ष्य है कि वर्ष 2022 तक इस योजना से 40.2 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके। इस योजना को शिक्षा से जोड़कर युवाओं को उनकी ही रुचि के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। इससे बड़ी संख्या में कुशल कामगार तैयार किए जा सकेंगे। कुछ समय पहले नेशनल सैंपल सर्वे के अंतर्गत यह बात कही गई थी कि वर्ष 2019 तक देश को 12 करोड़ प्रशिक्षित कामगारों की आवश्यकता होगी, जबकि इसकी तत्कालीन संख्या बहुत ही कम है। 5,040 करोड़ की लागत वाली इस योजना का लाभ मेक इन इंडिया योजना को भी सीधे तौर पर मिलेगा।  स्थानीय स्तर पर ही प्रशिक्षण प्रदान होने से रोजगार की खोज में युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी रुकेगा। कौशल विकास के तौर पर भारत की स्थिति दुनिया के बाकी देशों से अभी भी काफी पीछे है। इस मामले में चीन, जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया आदि देशों में स्थिति काफी सुखद है। इस अंतर को समाप्त करना एक बड़ी चुनौती है। प्रशिक्षण के लिए अधिकाधिक क्षेत्रों का विस्तार हो सके, इस दृष्टि से रेल मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, इस्पात मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, नवीण एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को इस योजना के अंतर्गत शामिल किया गया।

मेक इन इंडिया से उपलब्ध होंगे अंतर्राष्ट्रीय बाजार
वस्तु उत्पादन के क्षेत्र में भारत को अधिकाधिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना इस योजना का मुख्य लक्ष्य है। चाहे उपग्रह से लेकर पनडुब्बी हो, कार से लेकर सॉफ्टवेयर तक, औषधि से लेकर ऊर्जा तक तथा कागज से लेकर किसी भी अन्य वस्तु तक, प्रत्येक क्षेत्र में दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए विविध क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी निवेश को आकर्षित करना भी इसके उद्देश्यों में से एक है। राष्ट्रीय स्तर पर डिजाइन किए गए इस कार्यक्रम में स्थानीय तथा विदेशी निवेश को प्रेरित करने लायक बहुत से प्रस्ताव हैं, जिनमें निवेशक व देश के सभी हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। भारत में निर्मित ऐसी अनेक वस्तुएं हैं, जो पहले से ही विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। आवश्यकता केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इनके लिए बाजार उत्पन्न कराने की है। मेक इन इंडिया द्वारा इस दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं।

मुद्रा योजना प्रदान करेगी आर्थिक सुदृढ़ता
सामान्य स्थिति में किसी भी बैंक से लोन मिलना एक पेचीदा प्रक्रिया होती है। इसके लिए किसी ऐसे गारंटर की आवश्यकता होती है, जो लोन लेने वाले व्यक्ति द्वारा लोन न चुका पाने की स्थिति में स्वयं लोन का भुगतान कर सके। ऐसा हो पाना अपने-आम में ही बड़ा कठिन कार्य है। इसके चलते किसी भी व्यक्ति के लिए स्वरोजगार आरंभ कर पाना दुष्कर होता है, चाहे वह कितना भी प्रशिक्षित क्यों न हो। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना इस दिशा में बड़ी राहत प्रदान करती है। इसके अंतर्गत आवेदक की कुशलता, उद्योग के प्रकार, संसाधनों की आवश्यकता आदि कुछ ऐसे बिंदू हैं, जिनके आधार लोन के लिए आवेदन किया जा सकता है। 10 लाख तक की ऋण सहायता का इसमें प्रावधान है। मुद्रा योजना का उद्देश्य ही यही है कि इसके द्वारा छोटे व्यवसायों के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा सके।

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