Home गुजरात विशेष मोदी विरोध के लिए कांग्रेस ने तैयार की गुजरात की ‘तिकड़ी’ !

मोदी विरोध के लिए कांग्रेस ने तैयार की गुजरात की ‘तिकड़ी’ !

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”हमारा आंदोलन ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण के बारे में था। यह बीजेपी को उखाड़कर उसकी जगह कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिये नहीं था। कांग्रेस सिर्फ पटेलों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है। हम इस तरह की दुर्भावनापूर्ण साजिश का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं।” पाटीदार आंदोलन की प्रमुख चेहरा रही रेशमा पटेल के इस बयान से साफ हो गया है कि मोदी विरोध के नाम पर किस तरह की राजनीतिक साजिश रची गई है।

कैसे गुजरात में दलित, ओबीसी और पाटीदारों की तिकड़ी तैयार की गई है। कैसे गुजरात के स्वाभिमान को वर्ग-समुदाय-जाति में बांटने की कोशिश हुई है। कैसे गुजरात के विकास को झूठ बताकर राज्य की अस्मिता पर आघात किया गया है। कैसे छह करोड़ गुजरातियों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई गई है। कैसे विकसित होते राज्य को जाति और जमात की लड़ाई में फंसाकर इसे पिछड़ा गुजरात बनाने की कोशिश की गई है। 

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हर हाल में गुजरात में पीएम मोदी को हराना चाहती है कांग्रेस
दरअसल भ्रष्टाचार और कुशासन की प्रतीक रही कांग्रेस हर हाल में केंद्र की सत्ता पाना चाहती है और इसके लिए ये सारा तिकड़म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में कमजोर करने की कुत्सित कोशिश के तहत की गई है। प्रधानमंत्री मोदी को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने अपनी कार्ययोजना 2014 में ही तैयार कर ली थी। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी को सबसे पहले उनके गृहराज्य में ही घेरने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश वानी जैसे युवाओं को बरगलाया और पैसे के दम पर उनके संगठन खड़े किए। ऊना में दलित पिटाई कांड के पीछे कांग्रेसी माइंड की पोल तो पहले ही खुल चुकी है। अब इस तिकड़ी के सहारे गुजरात फतह की तैयारी में कांग्रेस करोड़ों रुपये फूंक रही है। बहरहाल आइये हम जानते हैं कि कैसे कांग्रेस ने गुजरात को बांटने के लिए तिकड़ी तैयार की और कैसे गुजरात को बदनाम करने की साजिश रची-

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कांग्रेस के ‘हाथ’ का खिलौना बन गए हैं हार्दिक पटेल
गुजरात में बीते दो दशक से कांग्रेस की दाल नहीं गल रही है। चालीस साल तक राज करने वाली कांग्रेस की गत ये है कि वो स्थानीय चुनाव तक जीतने में भी सफल नहीं हो रही है। ऐसे में ‘फूट डालो और राज करो’ की राजनीति को कांग्रेस ने फिर से अपनी जीत का आधार बनाने की ठानी है। पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय बीजेपी का परम्परागत वोटर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह समुदाय अपने स्वाभिमान से जोड़कर देखता है। लेकिन कांग्रेस की राजनीति के कारण ही गुजरात में मजबूत पाटीदार समुदाय को कमजोर करते हुए आरक्षण जैसी मांग के आसरे कुत्सित राजनीति की आग में धकेल दिया गया है। वहीं हार्दिक पटेल कांग्रेस की हाथ का खिलौना बन गए हैं। कभी कांग्रेस का विरोध करने वाले हार्दिक पटेल अब भाजपा विरोध के नाम पर कांग्रेस से हाथ मिलाने जा रहे हैं। इतना ही नहीं हार्दिक पटेल ने 22 अक्‍टूबर को गोधरा में मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। यानी स्पष्ट है कि वह किस समीकरण के तहत कांग्रेस के गेम प्लान का हिस्सा हैं। दरअसल हार्दिक पटेल ने जब आरक्षण आंदोलन शुरू किया था तो उन्होंने कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखने की बात कही थी। हार्दिक द्वारा कांग्रेस का समर्थन किए जाने और मुसलमानों से गलबहियां किए जाने से गुजरात का पाटीदार समाज भी ठगा हुआ महसूस कर रहा है।

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अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस ने खड़ा किया
गुजरात में ओबीसी समाज की 146 जातियां हैं, जो 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखती हैं और पिछले कई चुनाव से ओबीसी मतदाता पूरी प्रतिबद्धता के साथ बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं। कांग्रेस ने इसी प्रतिबद्धता को तोड़ने के लिए अल्पेश को चुना। अल्पेश के नेतृत्व में तीन साल पहले ठाकोर सेना बनाई और ड्राइ स्टेट होने के बावजूद हर जगह आसानी से मिलने वाली देसी शराब को बड़ा मुद्दा बनाया। अल्पेश की अगुआई में ठाकोर सेना ने मध्य और उत्तर गुजरात में देसी शराब के ठिकानों पर ‘जनता रेड’ करना शुरू किया और इसे राजनीति से जोड़ दिया। अल्पेश ने नशा मुक्ति अभियान के साथ गुजरात में बड़ी संख्या में युवकों के बेरोजगार होने के मुद्दे को भी साथ ले लिया। ठाकोर सेना का दायरा बढ़ाते हुए पूरे ओबीसी समाज को भी इसमें जोड़ दिया। अल्पेश ने पहले तो कांग्रेस के साथ गुप चुप तरीके से डील की और गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया। अब उन्होंने कांग्रेस के साथ जाने का भी निर्णय कर यह साबित कर दिया कि मोदी विरोध के नाम पर कांग्रेस की राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं अल्पेश ठाकोर !

कांग्रेस-AAP के इशारे पर काम कर रहे हैं जिग्नेश
11 जुलाई, 2016 को चार दलित युवकों की गुजरात के उना में पिटाई कर दी। इस घटना के बाद 34 गिरफ्तारियां हुईं और न्यायिक प्रक्रियाएं भी शुरू कर दी गईं। लेकिन कांग्रेस की ‘फूट डालो-राज करो’ की राजनीति को एक नयी जमीन मिल गई। एक चेहरा भी सामने लाया गया जिग्नेश मेवानी का। पेशे से वकील जिग्नेश मेवानी का जन्म संभ्रांत घर में हुआ है। इनके पिता अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में क्लर्क थे। लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिलीभगत से उन्हें दलितों का चेहरा प्रोजेक्ट किया जाने लगा। गुजराती मैगजीन और एक गुजराती अखबार के लिए लगभग चार वर्ष तक काम कर चुके जिग्नेश ने ‘लड़त समिति’ का गठन किया था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच का गठन किया है। फिर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बन गए।

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राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए जिग्नेश का इस्तेमाल
जिग्नेश की पोल तभी खुल गई जब उना में जिन दलितों की पिटाई हुई थी उन परिवारों ने ही जिग्नेश मेवानी पर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगा दिया। जिग्नेश पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया। दरअसल गुजरात सरकार ने उन परिवारों को तत्काल राहत मुहैया करवाई थी, लेकिन जिग्नेश मेवानी की राजनीति के कारण उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। ऐसे में दलित परिवारों ने ही जिग्नेश मेवानी की मंशा पर सवाल उठा दिए। ‘आजादी कूच आंदोलन ‘ से जिस तरह दलितों के अलावा मुस्लिम समुदाय एकजुट हुआ इससे साफ हो गया कि कांग्रेस ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नया कार्ड खेला। सामाजिक आंदोलन के नाम पर जब जिग्नेश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उजागर हुई तो उनकी पोल खुल गई है। वामपंथी संगठनों की गोद में खेलने वाले जिग्नेश की राजनीति लोगों के समझ में आने लगी है। अब वे कांग्रेस के हाथों का खिलौना बन गए हैं और गुजराती स्वाभिमान पर आघात करने के लिए काम कर रहे हैं।

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कांग्रेस की साजिश थी उना दलित पिटाई कांड
उना कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया था। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट उना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। अब तक की जांच में यह साफ हो चुका है कि सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। इस साजिश का बदला समधियाल के दलितों ने प्रफुल्ल कोराट को पंचायत चुनाव में हराकर ले लिया। ऊना कांड की सीआइडी जांच अभी चल रही है। लेकिन इस जांच की जो जानकारी सूत्रों के हवाले से सामने आई है वो कांग्रेस की खतरनाक साजिश की ओर इशारा करती है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल के इशारे पर कांग्रेस के वंश भाई भीम ने ये सारी साजिश रची थी।

क्या कांग्रेस की साजिश को सफल होने देंगे गुजरात के लोग?
दरअसल कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को नारा दिया है कि ‘गुजरात जीते तो सब जीते’। यानी गुजरात चुनाव कांग्रेस किसी भी ‘छल-कपट’ से जीतना चाहती है। गुजराती मान का अपमान करने और राज्य के विकास को डिरेल करने के लिए कांग्रेस ने पूरी भूमिका तैयार कर दी है। लेकिन बड़ा सवाल यह कि क्या गुजरात की जनता कांग्रेस की इस साजिश को सफल होने देगी? जाहिर तौर पर यह नहीं होने वाला है, क्योंकि गुजरात की जनता जानती है कि कैसे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक स्तर पर चुनौतियों से जूझते राज्य को उनके मोदी ने गढ़ा है। आज उनकी अथक मेहनत और संकल्प शक्ति के कारण ही देश-दुनिया में ‘गुजराती मान-सम्मान’ को नया आयाम मिला है। ‘केम छो’ को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है, और ‘गुजरात का गौरव’ शब्द राज्य की छह करोड़ जनता की आन-बान-शान बन गई है।

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बीते 70 वर्षों के इतिहास पर गौर करें तो ऐसे कुत्सित कृत्यों की जड़ में कोई है तो वो कांग्रेस ही है। दरअसल अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी सरपरस्ती में पले-बढ़े कांग्रेसी नेताओं ने उनकी नीतियां जरूर अपना लीं। सालों साल तक सत्ता पर काबिज रहने की कवायद में वंशवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद की आग में देश को जलाने की साजिश पर कांग्रेस पार्टी अमल करती रही है। समाज में विभाजन और बंटवारे की राजनीति के आसरे कांग्रेस तो बढ़ती रही लेकिन देशहित को बहुत नुकसान पहुंचाती रही। बहरहाल देश की जनता अब कांग्रेस की असलियत जान चुकी है। फिर भी कांग्रेस है कि मानती नहीं। आज भी कांग्रेस ‘फूट डालो और राज करो’ के आसरे बढ़ना चाह रही है।

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