केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर नया आदेश जारी किया है, इसके मुताबिक देश की 10 सुरक्षा एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किए गए किसी दस्तावेज को देख सकती है। इस पर विपक्ष एक बार फिर अपनी आदत के मुताबिक मोदी सरकार को बदनाम करने में जुट गया है।
विपक्ष को ये भी पता नहीं है कि 2009 में सोनिया-मनमोहन की यूपीए सरकार इससे कहीं ज्यादा कड़ा कानून ला चुकी है। विपक्ष जनता तक ये जानकारी नहीं पहुंचने देना चाहता कि इससे आम नागरिकों की प्राइवेसी ज्यादा सुरक्षित हो सकेगी और देश-समाज के दुश्मनों पर केवल अधिकृत एजेंसी ही नजर रख सकेगी।
दरअसल जब से सोशल मीडिया का दायरा बढ़ा है तभी से समाज में हिंसा भड़काने वाली, अपराध को बढ़ावा देने वाली या गैर कानूनी पोस्ट डालने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। और तो और भारत के मुख्य न्यायाधीश जैसे वरिष्ठ पद और संवैधानिक संस्थाएं को भी निशाना बनाया जाता रहा है। सरकार के पास अक्सर ऐसे लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने और देश विरोधी ताकतों के मैसेज पढ़ने के आवेदन आते रहते हैं।
ऐसे में कुछ साधारण सवालो से जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर देश के लिए ये निगरानी कितनी जरूरी है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निगरानी रखा जरूरी है कि नहीं? हां
इस निगरानी से आम आदमी को डरने की जरूरत है? नहीं
मोदी सरकार ने इतिहास में पहली बार निगरानी रखना शुरू किया? नहीं
क्या ये निगरानी देश को अलग-अलग खतरों से बचाएगी? हां
क्या मोदी सरकार ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये कर रही है?
हां
खास बात ये है कि यूपीए सरकार में 10 साल तक लगातार लोगों के मैसेज और कंप्यूटरों पर गैरकानूनी और अवैध तरीके से निगरानी की गई, फोन रिकॉर्ड किये गए। उनका गलत इस्तेमाल किया गया। नीरा राडिया टेप के खुलासे से पूरी दुनिया को पता लग गया था कि किस तरह सरकार सबकी निगरानी कर रही है।
दरअसल इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 की धारा 69 केंद्र, राज्य सरकार या इसके किसी भी अधिकारी को ये अधिकार देती है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा के खातिर किसी भी एजेंसी को किसी भी सूचना को हासिल करने या उसे रोकने (intercept or decrypt) के लिए निर्देश दे सके।
यूपीए सरकार इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (सूचना की निगरानी, इंटरसेप्ट या डिक्रिप्ट की प्रक्रिया और सुरक्षा विधि) अधिनियम, 2009 लाई थी, ताकि ऐसे इंटरसेप्ट की प्रक्रिया और उसमें बरती जाने वाली सावधानियों को स्पष्ट किया जा सके। इसमें ये भी कहा गया था कि ‘किसी सक्षम अथॉरिटी के आदेश के बिना कोई भी व्यक्ति ना तो किसी सूचना को इंटरसेप्ट कर सकेगा और ना ही उसे डिक्रिप्ट (decryption) कर सकेगा।’
इसमें में ये भी लिखा है कि ‘सक्षम अथॉरिटी किसी शासकीय एजेंसी को सूचना इंटरसेप्ट करने या डिक्रिप्ट करने के लिए अधिकृत कर सकेगी।’
2009 में यूपीए सरकार ने ये तो अनिवार्य कर दिया कि केवल अधिकृत एजेंसियां ही निगरानी रख सकती है लेकिन उसने इन अधिकृत एजेंसियों के नाम तय नहीं किये। इस तरह उसने अवैध और गैरकानूनी रूप से निगरानी करने का रास्ता खुला छोड़ दिया। कानून की इस खामी का यूपीए सरकार ने मनमाना इस्तेमाल किया।
अब केंद्र सरकार ने जो आदेश निकाला है उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की खातिर केवल 10 एजेंसियों को ही निगरानी करने की शक्ति दी गई है। ये आदेश ये भी सुनिश्चित करता है कि इन 10 एजेंसियों के अलावा कोई और एजेंसी सूचनाओं को इंटरसेप्ट, जांच या डिक्रिप्ट नहीं कर सकती।
ये एजेंसियां है
- इंटेलीजेंस ब्यूरो
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
- प्रवर्तन निदेशालय
- सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज
- डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस
- सीबीआई
- एनआईए
- कैबिनेट सचिवालय (रॉ)
- डायरेक्टोरेट ऑफ सिग्नल इंटेलीजेंस (केवल J&K, असम और पूर्वोत्तर में)
- दिल्ली पुलिस कमिश्नर
गृह मंत्रालय ने अपने इस आदेश से यही सुनिश्चित किया है कि अगर देश की सुरक्षा के लिए किसी कम्यूटर में दर्ज, संग्रहित, या भेजी गई सूचना की जानकारी हासिल करना जरूरी है तो वो केवल किसी सक्षम एजेंसी के तहत और कानूनी रूप से ही हो।
अब ये समझते हैं कि ये आदेश किस तरह सरकार और आम लोगों के लिए मददगार है।
- अब किसी भी कम्प्यूटर से कोई सूचना या जानकारी केवल कानूनी तरीके से ही इंटरसेप्ट, जांच या डिक्रिप्ट की जा सकेगी।
- निगरानी या जानकारी हासिल करने की शक्तियों का गैर कानूनी इस्तेमाल नहीं हो सकेगा।
- नियम कानूनों के मौजूदा प्रावधानों का बेहतर पालन सुनिश्चित होगा।
दरअसल जब मोदी सरकार ने लोगों को सीधे फायदा देने के लिए आधार का इस्तेमाल जरूरी किया था, तब भी विपक्ष ने ऐसे ही शोर मचाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे लोगों को करारा झटका देते हुए सरकार के रुख का समर्थन किया। विपक्ष एक बार फिर यही हरकत कर रहा है। लेकिन मोदी सरकार पर लोगो का ये भरोसा अब भी कायम है कि ये सरकार देशविरोधी ताकतों के खिलाफ ही सख्त है, आम नागरिकों के लिए तो प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के दिल में प्यार ही प्यार भरा है।