पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हिंदू विरोध की मानसिकता से किस कदर ग्रसित हैं इस बात की बानगी एक फिर देखने को मिली है। 3 अक्टूबर को कोलकाता में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अनुमति नहीं दी गयी है। जाहिर तौर पर ममता सरकार का यह निर्णय लोकतांत्रित मूल्यों पर कुठाराघात है। लेकिन ममता की मनमानी पर तथाकथित बुद्धिजीवियों की चुप्पी उनकी मंशा पर सवाल उठाती है।
@sardesairajdeep,@ravishndtv,@Shehla_Rashid
बोलने की आजादी की जंग लडने वाली जमात इस पर मूकबधिर है, क्यो ?ये एेंजेडे के बहार है क्या, https://t.co/NnSMyRrwmx
— अनिल सोनी (@ASoni8652) September 5, 2017
सिस्टर निवेदिता के योगदान पर था व्याख्यान
ममता बनर्जी को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ऐसा खौफ है कि उसने अनैतिक आधार पर कार्यक्रम को अनुमति नहीं देने का फरमान भी जारी कर दिया है। दरअसल सिस्टर निवेदिता की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर कोलकाता के महाजाति सदन में एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाना था। सिस्टर निवेदिता मिशन ट्रस्ट के तत्वावधान में सिस्टर नवेदिता के भारतीय समाज में योगदान व अन्य विषयों पर चर्चा प्रस्तावित थी। लेकिन शुरू से ही टाल-मटोल किया जा रहा था और अंत में कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं दी गयी।
Mamata will prove to be the perfect dictator Media/Lutyens/Libtards were looking in Modihttps://t.co/BLAbWcdzSW
— Mihir Jha (@MihirkJha) September 5, 2017
@MamataOfficial falling to new low.
West Bengal is not your family property . https://t.co/6MQo8HKuhk— RAJ (@RKBB10) September 4, 2017
दशहरे के बाद था व्याख्यानमाला का आयोजन
03 अक्टूबर को होने वाले इस कार्यक्रम का न तो कोई सांप्रदायिक उद्देश्य था और न ही यह कोई धार्मिक आयोजन ही था। लेकिन अनुमति मांगे जाने पर महाजाति सदन के सचिव नुरूल हक ने पहले कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त से अनुमति लेने को कहा। आयोजकों ने कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त से सोमवार (04 सितंबर) को इस बाबत बात करने की बात कही थी, लेकिन इस बीच नुरूल हक ने फोन कर सूचना दी कि कार्यक्रम आयोजन की अनुमति देने में वे असमर्थ हैं। दरअसल देश के प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से सभा करने और संगोष्ठी करने का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका हनन किया जा रहा है।
ममता बनर्जी का ये तरीका ठीक नहीं..रोकना है तो बरकती जैसे कट्टरपंथी इमामों को रोको जो बेलगाम बयान देकर माहौल खराब करता है https://t.co/YxfSe32ZC9
— Ajit Anjum (@ajitanjum) September 5, 2017
केरल के बाद अब बंगाल में भी RSS प्रमुख मोहन भागवत का कार्यक्रम रद्द करवाया गया. लोकतंत्र है या अघोषित इमर्जेन्सी ? कोई पूछेगा इनसे ?
— Manak Gupta (@manakgupta) September 5, 2017
मकर संक्रांति की सभा में डाला था अड़ंगा
इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक रैली आयोजित की थी। लेकिन सारे नियमों और औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद भी राज्य की सरकार के दबाव में कोलकाता पुलिस इस रैली के लिए अनुमति नहीं दे रही थी। इस रैली को स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत को संबोधित करना था। लेकिन ममता सरकार को लग रहा था कि अगर रैली के लिए अनुमति दे दी तो उनका मुस्लिम वोट बैंक बिदक जाएगा। यही वजह है कि उसने सारी कानूनी और संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर रैली की अनुमति देने से साफ मना कर दिया। ममता बनर्जी सरकार के इस तानाशाही रवैए के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की गई और वहां से आदेश मिलने के बाद ही रैली संपन्न हो सकी।
पश्चिम बंगाल का इस्लामीकरण कर रही हैं ममता
मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं। लेकिन ये छद्म धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं पर थोपी जाती है। दरअसल भीतर ही भीतर पश्चिम बंगाल का इस्लामीकरण हो रहा है और इसकी नायिका ममता बनर्जी हैं। ममता के शासनकाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। हाल के दिनों में ममता ने हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगता है कि अपने ही देश के भीतर बहुसंख्यकों को अपनी पूजा-पद्धति और संस्कार बचाने के लाले पड़ गए हैं। आलम यह है कि मुस्लिम प्रेम में ममता ने हाईकोर्ट तक के आदेश को धता बता दिया।
दशहरे पर शस्त्र जुलूस निकालने की अनुमति नहीं
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है। लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने पर अमादा हैं। ममता बनर्जी के नये आदेश के तहत दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया है। सोमवार को राज्य सचिवालय में प्रशासनिक समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को साफ कहा कि शस्त्र जुलूस निकालने की अनुमति किसी भी हाल में नही दें।
She is saying Muharram procession with Blades will be allowed however…Those are peaceful https://t.co/d5iuhZ9tS3
— RAJ (@RKBB10) September 5, 2017
दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर भी ममता ने लगा दी है रोक
ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर 30 सितंबर की शाम 6 बजे से 1 अक्टूबर तक रोक का आदेश दिया है। इस फरमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के जुलूसों के दौरान दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहेगी। इस साल 1 अक्टूबर को मोहर्रम है। सिर्फ एक दिन विसर्जन नहीं किया जा सकेगा और वो दिन है 1 अक्टूबर, यानी एकादशी के दिन। ममता बनर्जी ने बुधवार (23 अगस्त) को कहा कि मोहर्रम के जुलूसों के चलते दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर यह रोक रहेगी। कलकत्ता हाईकोर्ट में पिछले साल दायर की गई तमाम जनहित याचिकाओं के बावजूद इस साल भी ऐसा किया जा रहा है।
ममता के राज में हिंदुओं के लिए ‘फतवा’
दरअसल पिछले साल भी ममता सरकार ने फतवा जारी किया था कि दुर्गा पंडाल वाले 11 अक्टूबर, 2016 को शाम 6 बजे से पहले-पहले विसर्जन कर लें। अगर वो ऐसा नहीं कर पाए तो उन्हें 13 तारीख के बाद ही इजाजत मिलेगी, क्योंकि 12 को मोहर्रम है। दरअसल मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए तय समय पर रोक लगाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पंचांग उलटने की कोशिश की। उन्होंने अपनी ओर से नयी समय-सीमा तय कर दी। विसर्जन की नयी समय-सीमा इसलिए तय की गयी ताकि उसके अगले दिन मोहर्रम का जुलूस निकालने में मुस्लिमों को कोई परेशानी न हो। ममता का रुख कुछ ऐसा रहा कि हिन्दुओं को अपना उत्सव मनाना छोड़ देना चाहिए ताकि मुस्लिम उत्सव मना सकें।
चार साल से कांगलापहाड़ी में दुर्गा पूजा नहीं
ममता बनर्जी की सरकार में मुसलमानों को तो दामाद की तरह रखा जा रहा है, लेकिन हिंदू अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं। 10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है। ममता बनर्जी के राज में बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया। गांव के लोग जगह-जगह फरियाद करके थक गए, लेकिन लगातार चौथे साल भी यहां दुर्गा पूजा नहीं हुई।
हाईकोर्ट के आदेश से हो सकी रामनवमी की पूजा
‘लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने इसी साल 22 मार्च को पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन एंटी हिन्दू एजेंडा चला रही राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी। लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जज न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।
हनुमान जयंती के जुलूस की अनुमति नहीं
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। लेकिन धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए।
हिंदुओं पर लगा दी आर्म्स एक्ट की धाराएं
ममता बनर्जी ने 6 अप्रैल, 2017 को बयान दिया – “भगवान राम ने दुर्गा की पूजा फूलों के साथ की थी, तलवारों के साथ नहीं। राम ने रावण को मारने के लिए दंगे नहीं किए। अगर कोई नेता या कार्यकर्ता हथियारों के साथ जुलूस में शामिल होता है तो कानून अपना काम करेगा। चाहे वह कोई भी क्यों ना हो। सभी बराबर हैं।” ममता हथियारों के साथ मुहर्रम के मौके पर जुलूस निकलने पर ऐसा कोई बयान नहीं देती और न ही पुलिस कभी किसी को गैर जमानती धारा में इस वजह से गिरफ्तार करती है। ममता सरकार का इशारा मिलते ही पुलिस ने एक्शन शुरू कर दिया। हनुमान जयंती जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।
धूलागढ़ दंगे में एंटी हिंदू एक्शन
धूलागढ़ दंगे में भी ममता सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में रही। इस दंगे में हिन्दू परिवारों पर आक्रमण हुए। उनके घर जलाए गये, उन्हें मारा-पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए। लेकिन ममता सरकार ने हिन्दुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया। धूलागढ़ हिंसा में 65 लोगों को गिरफ्तार करने पर मुसलमानों को खुश करने के लिए हावड़ा के एसपी (ग्रामीण) सब्यसाची रमन मिश्रा का तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं रिपोर्ट कवर करने गए जी न्यूज की रिपोर्टर, संपादक पर केस दर्ज कराया गया। उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की गयी। बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल प्रतिनिधिमंडल के दो सांसदों जगदम्बिका पाल और सतपाल सिंह तथा एक बीजेपी के राष्ट्रीय नेता राहुल सिन्हा को धूलागढ़ नहीं जाने दिया गया।
पुस्तकालयों में नबी दिवस-ईद मनाना अनिवार्य
11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस को सरकारी पुस्तकालयों में भी मनाया जाएगा। बंगाल सरकार के इस नये नियम के हिसाब से राज्य के सभी 2480 से ज्यादा सरकारी पुस्तकालयों में साल के दूसरे प्रस्तावित कार्यक्रम की तरह नबी दिवस मानने की भी बात कही गई। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई। इस आदेश में 51 इवेंट्स की सूची जारी की गई है। जिसमें ईद-उद-मिलाद-उन-नबी जो की मोहम्मद पैगंबर की जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, भी शामिल है।
NabiDibas & Eid made mandatory in 2480 Govt Libraries of WB•BUT NO Saraswati Pujo•Only cultural program allowed#Shame pic.twitter.com/eEgQEeNsWL
— Babul Supriyo (@SuPriyoBabul) February 18, 2017
ममता राज में ईद मनाइये, सरस्वती पूजा नहीं
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।
Pious TMC boycotts Budget to celebrate Saraswati Puja. In Bengal, Tehatta HS School shut down as Muslims won’t allow Saraswati Puja. pic.twitter.com/dvoYSh4e5V
— কাঞ্চন গুপ্ত (@KanchanGupta) February 1, 2017
ममता सरकार ने बदला ‘राम’ का नाम
‘रामधनु’ को ‘रंगधनु’ किया – तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल दिया गया है। उसे ‘रंगधनु’ कर दिया है। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। शिक्षाविद् मुखोपाध्याय का कहना है कि साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन अब एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया है।
बीफ खाने का समर्थन
ममता ने 21 जुलाई, 2016 को शहीद दिवस पर कोलकाता में कहा, ”अगर मैं बकरी खाती हूं तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग गाय खाते हैं तो यह समस्या है। मैं साड़ी पहनती हूं तो समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग सलवार कमीज पहनते हैं तो यह समस्या है। हम धोती पहनना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लुंगी पहनने को प्राथमिकता देते हैं। आप कौन हैं तय करने वाले कि लोग क्या पहनें और क्या खाएं?”18 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए बीफ खाने के प्रति अपना समर्थन दोहराया, ”यह पसंद का मामला है। मेरा अधिकार है मछली खाना। वैसे ही, आपका अधिकार है मांस खाना। आप जो कुछ भी खाएं – बीफ या चिकन, यह आपकी पसंद है।” ममता ने इस कानून को धार्मिक रंग देने की कोशिश की और मुसलमानों से जोड़ते हुए कहा कि यह रमजान से पहले जान बूझकर लगाया गया प्रतिबंध है।
ममता राज के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।
ममता राज में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।