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हिंदुओं की एकता से डरे वामपंथी, ‘लालगढ़’ बचाने के लिए याद आए भगवान श्री राम

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते चार वर्षों में देश की राजनीति का मिजाज बदलकर रख दिया है। कल तक जो नेता और राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय का तुष्टिकरण करते हुए अपनी राजनीति परवान चढ़ाते थे, वो आज हिंदुओं की हितैषी दिखने-बनने की होड़ कर रहे हैं। 

क्या वामपंथियों को भी सद्बुद्धि आ गई है या फिर खिसकते जनाधार के कारण वे भी हिंदुओं का हितैषी दिखने भर की कोशिश कर रहे हैं? ये सवाल इसलिए कि केरल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुरुआत के बाद अब सत्ताधारी वामपंथी दल भगवान राम की ‘शरण’ में आ गया है। सीपीआई (एम) इस साल से रामायण महीना की शुरुआत करने जा रही है। 

गौरतलब है कि केरल में 17 जुलाई से पारंपरिक रूप से मलयालम महीना कारकीडकम मनाया जाता है। इस दौरान अधिकतर हिंदू समुदाय के घरों में भगवान राम की पौराणिक कथाएं सुनाई जाती हैं। राम और रामायण के अस्तित्व को नकारने वाले सत्ताधारी दल ने पूरे महीने रामायण की व्याख्या और पाठ की योजना बनाई है। जाहिर है इस आयोजन के जरिये सीपीएम हिंदू विरोधी होने की छवि को बदलने की कोशिश कर रही है।

हिंदुओं को रिझाने के लिए किया था ‘संस्कृत संगम’ का गठन
संस्कृत और भारतीय संस्कृति से घृणा करने वाले वामपंथियों ने खिसकते जनाधार को देखते हुए पिछले वर्ष संस्कृत संगम का गठन किया था। इसमें संस्कृत भाषा के लिए लगाव को देखते हुए शिक्षाविद और इतिहासविदों को शामिल किया गया है। अब इसी संस्था के तत्वावधान में केरल के सभी 14 जिलों में संस्कृत संगम संस्था के सदस्य रामायण पर लेक्चर आयोजित किए जा रहे हैं। पार्टी से जुड़े लोगों, विद्वानों और अध्यापकों को संस्कृत और स्थानीय भाषा में रामायण दी जा रही है। जाहिर है यह हिंदुओं में आई एकजुटता का नतीजा है कि अब नास्तिक वामपंथियों को भी भगवान श्री राम के आगे झुकना पड़ा है। 

खिसकते जनाधार और भाजपा के डर से वामपंथियों में जागा हिंदू प्रेम
वर्ष 2014 के बाद से भाजपा के शासन का पूरे देश में विस्तार हुआ है। 28 में से 20 राज्यों में पार्टी का शासन है। केरल में भी भाजपा ने अपना विस्तार किया है और हिंदुओं में चेतना जगाई है। उपचुनाव में भाजपा बड़ी संख्या में वोट हासिल करने में सफल रही है। इतना ही नहीं भाजपा समर्थक अब कम्युनिस्ट पार्टी को उसी की भाषा में जवाब भी दे रहे हैं। इन सबसे पार्टी के जनाधार का लगातार विस्तार हुआ है। स्पष्ट है कि हिंदुओं की एकता ने इन हिंदू विरोधी पार्टियों की पैरों तले की जमीन खिसका दी है। 

बहरहाल इन पार्टियों के नेता स्वयं को हिंदू साबित करने के लिए तमाम ‘कलाबाजियां’ भी करने लगे हैं। इन ‘मुस्लिमवादी’ पार्टियों और नेताओं का हृदय परिवर्तन होता जा रहा है, भले ही अल्पकालिक ही सही।आइये देखते हैं कि कौन-कौन से नेता स्वयं को हिंदू होने और हिंदुओं का हितैषी साबित करने के लिए तिकड़म कर रहे हैं।

ममता की TMC करेगी पूजा-पाठ
सबसे बड़ा हृदय परिवर्तन हुआ है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कल तक हिंदुओं को हिकारत की नजर से देखने वाली ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इस वर्ष रामनवमी मनाने की घोषणा की है। इसी वर्ष 9 जनवरी, 2018 को उनकी पार्टी ने ब्राह्मण सम्मेलन कर प्रदेश के लोगों को संदेश देने का प्रयास किया कि वे हिंदुओं की हितैषी हैं।

राहुल को चाहिए हिन्दुओं का साथ
गुजरात चुनाव के दौरान जिस तरह से राहुल गांधी का हृदय परिवर्तन हुआ ये किसी से छिपा नहीं है। एक के बाद एक उन्होंने 25 मंदिरों में जाकर शीश झुकाया। पूजा-अर्चना की और चढ़ावा भी चढ़ाया। गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी इन मंदिरों में गए थे- 

श्री रणछोड़जी मंदिर, मोगलधाम-बावला मंदिर, द्वारकाधीश, कागवड में खोडलधाम, नाडियाड के संतराम मंदिर, पावागढ़ महाकाली, नवसारी में ऊनाई मां के मंदिर, अक्षरधाम मंदिर, बहुचराजी के मंदिर, कबीर मंदिर, चोटिला देवी मंदिर, दासी जीवन मंदिर, राजकोट के जलाराम मंदिर, वलसाड के कृष्णा मंदिर, शंंकेश्वर जैन मंदिर, वीर मेघमाया, बादीनाथ मंदिर। इसके अलावा, वे कांग्रेस की नवसर्जन यात्रा के दौरान 5 और छोटे-बड़े मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचे थे। 

राहुल गांधी का हिंदू दिखने का ये तिकड़म 2017 के शुरुआती महीनों से ही तब शुरू हो गया था जब उन्होंने उत्तराखंड में केदारनाथ धाम की यात्रा की। हालांकि प्रश्न यह है कि राहुल गांधी का यह वास्तविक हृदय परिवर्तन है या चुनावी तिकड़म?

सोनिया गांधी भी खाने लगीं प्रसाद
भारत ने सोनिया गांधी का एक अलग रूप तब देखा जब वर्ष 2016 में 31 मई को वे अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में दो योजनाओं का उद्घाटन करने पहुंचीं। मीडिया में छपी खबरों के अनुसार उन्होंने सिर पर पल्लू बांधा, कलेवा बांधा, मंत्रोच्चार किया, नारियल भी फोड़ा और गरी का प्रसाद भी लिया।

इसी तरह वर्ष 2017 में शिवरात्रि को उन्होंने बेटी प्रियंका के साथ पाकिस्तान के कटासराज शिव मंदिर में महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर पूजा सामग्री भेजी थी।

केजरीवाल करने लगे हिंदू-हिंदू का जाप
दिल्ली के मुख्यमंत्री अक्सर मुस्लिम टोपी धारण करते हुए दिखते हैं। ये परिवर्तन उनका दिल्ली में बंपर जीत के बाद हुआ था, लेकिन जैसे ही एमसीडी चुनावों में हार हुई और हर सर्वे में उनकी लोकप्रियता कम आंकी जाने लगी, वे भी हिंदू होने की रट लगाने लगे हैं। वे कहते हैं – ”मैं हिंदू हूं, भगवान राम का भक्त हूं।” जाहिर है किसी की मौत पर भी हिंदू-मुस्लिम में भेद करने वाले केजरीवाल का हृदय परिवर्तन यूं ही तो नहीं हुआ है।

अखिलेश मांग रहे देवताओं का आशीर्वाद
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी आज कल बार-बार स्वयं को हिंदू साबित करने पर तुले हैं। पहले सैफई में 50 फीट की भगवान कृष्ण की प्रतिमा बनवाकर खुद को कृष्ण भक्त साबित करने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर हमेशा दोहरा रहे हैं कि- ”मैं हिंदू हूं लेकिन बैकवर्ड हिंदू हूं और इसका मुझे गर्व है।” जाहिर है 1990 में राम भक्त कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह ने तब ‘बैकवर्ड हिंदुओं’ को नहीं देखा था, क्योंकि उस घटना में अपनी जान गंवाने वालों में अधिकतर अखिलेश के शब्दों में ‘बैकवर्ड हिंदू’ ही थे। उसी पिता की संतान अखिलेश हैं और गोल टोपी पहनकर गर्व भी करते हैं। स्पष्ट है कि उनका ये हृदय परिवर्तन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दिखाने के साथ हिंदुओं को बांटकर सियासत करने की उनकी कुत्सित सोच भी प्रदर्शित करता है।

मायावती भी खेलती रही हैं हिंदू कार्ड
बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती ने 24 अक्टूबर, 2017 को कहा कि वे हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना सकती हैं। दरअसल उनका ये बयान उनके मुस्लिम परस्त होने की पीड़ा को दर्शाता है। गौरतलब है कि 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की बुरी हार हुई थी। उनके समाज लोग उनकी मुस्लिम परस्ती पर नाराज हो गए थे, परन्तु अपने आपको एक बार फिर हिंदू साबित करने के लिए उन्होंने ये बयान दिया था। लेकिन सच्चाई इससे इतर भी है, क्योंकि मयावती ने अपना पैंतरा कई बार बदला है। खुद को सच्चा हिंदू बताते हुए उन्होंने मुस्लिम कट्टरपंथ पर कुछ यूं निशाना साधा था। 

अयोध्या में राम मंदिर बनवाएंगे तेज प्रताप
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के पुत्र तेज प्रताप ने 10 मार्च, 2018 को बयान दिया कि “केन्द्र में हमारी सरकार बनी तो अयोध्या में राम मन्दिर बनाएंगे. बीजेपी तो नहीं बना पाई, हम बना के रहेंगे राम मंदिर।’’ हालांकि खुद को सच्चा हिंदू साबित करने का उनका तिकड़म तब जाहिर हो गया जब उन्होंने पलटी मार ली और नया बयान जारी कर दिया।

इंसानियत वाले हिंदू हैं सिद्धारमैया
11 जनवरी, 2018 को कर्नाटक की एक सभा में प्रदेश के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि ”मैं भी हिंदू हूं, पर मेरे में इंसानियत है।” वे इस बात को कहकर स्वयं को भाजपा और आरएसएस से अधिक हिंदू साबित करने की कोशिश कर रहे थे। परन्तु उनकी हिंदू दिखने और हिंदू हित के काम करने में बड़ा अंतर है। उनकी सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें साफ है कि उनकी सरकार के कार्यकाल के दौरान जिस मुस्लिम या अल्पसंख्यक पर सांप्रदायिक दंगा करने का केस है वह वापस लिया जाएगा। यानि सांप्रदायिक दंगे के लिए वे सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं को ही जिम्मेदार मानते हैं ‘हिंदू सिद्धारमैया’!

बहरहाल देश में आज नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के बीच ही हिंदू दिखने की होड़ मची हुई है। चार साल पहले तक जिन्हें स्वयं को हिंदू कहने भर से भी परहेज था उनका ये हृदय परिवर्तन क्यों हुआ है, इसपर जरूर सोचना चाहिए। क्या आपको ये नहीं लगता कि ये ‘मोदी लहर के असर’ के साथ इसमें ‘मोदी का डर’ की बड़ी भूमिका है?

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