Home विपक्ष विशेष राहुल को विदेशी धरती से देसी नेता बनाने की कोशिश कितनी कारगर?

राहुल को विदेशी धरती से देसी नेता बनाने की कोशिश कितनी कारगर?

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी फिलहाल अमेरिकी प्रवास पर हैं और कुछ दिन अभी वहीं रहेंगे। बीते कई सालों में यह पहला मौका है जब कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के विदेश दौरे का विस्तृत ब्योरा दिया। 12 सितंबर को राहुल गांधी ने अमेरिका के बर्कले में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी सहित घरेलू राजनीति, कूटनीति, आर्थिक, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात रखी। यह भी स्वीकार किया कि 2012 के आसपास सत्ता में रही उनकी पार्टी कांग्रेस के अंदर अहंकार आ गया था। इतना ही नहीं भारत के संदर्भ में परिवारवाद और वंशवाद को भी सही ठहरा गए।

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बहरहाल इसे राहुल गांधी की ईमानदार स्वीकारोक्ति बताकर प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह सब अमेरिका से क्यों किया गया? दरअसल इस पूरी कवायद को समझें तो स्पष्ट है कि यह राहुल को भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बनाने और पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास था।

अमेरिका से इलेक्शन कैंपेन का आगाज
बर्कले में राहुल गांधी के भाषण के स्तर पर गौर करें तो यह एक चुनाव प्रचार जैसा था। भाषण के एक एक पहलू पर गौर करें तो साफ जाहिर होता है कि पूर्व नियोजित था और देश के लोगों को प्रभावित करने को ध्यान में रखकर पूरी स्क्रिप्ट तैयार की गई थी। राहुल की स्पीच में गलती की स्वीकारोक्ति थी तो भारत की जनता से संवाद स्थापित करने एक कोशिश भी थी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस राहुल गांधी को देश में जनता सुनना नहीं चाहती उन्हें अमेरिका से भला क्यों सुनेगी?

राहुल को इंटेलिजेंट बताने की कोशिश
बहरहाल बड़ा सवाल उठता है कि आखिर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी भारत के चुनाव के लिए क्यों इस्तेमाल किया गया? दरअसल यह सिर्फ राहुल गांधी को नये तरीके से पेश करने का एक अवसर बनाया गया और राहुल गांधी के छवि को मजबूत करने की कोशिश थी। दरअसल कांग्रेस चाहती है कि उनकी छवि एक इंटेलेक्चुअल की बने और इंटेलिजेंट भी दिखें।

राहुल को री-लॉन्च करने की कवायद
दरअसल राहुल गांधी का अमेरिका जाना यूं ही नहीं हुआ है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यह 2019 में कांग्रेस की तरफ से उनके पीएम उम्मीदवारी से पहले की सारा क्रियाकलाप है। राहुल के अमेरिका में दिए बयान और सवालों के जवाब इशारा कर रहे हैं कि, उनकी राजनीति भविष्य में किस दिशा में जाने वाली है।

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पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश करने का प्रयास
राहुल ने यह संवाद तब किया जब यह तय है कि, कांग्रेस पार्टी के संगठन चुनावों के बाद वह सोनिया गांधी की जगह ले लेंगे। माना जा रहा है कि, अक्टूबर में कांग्रेस की कमान आधिकारिक तौर पर राहुल के हाथों में होगी। राहुल गांधी का अमेरिका जाना, वहां संवाद करना, टीम राहुल की भविष्य की रणनीति का हिस्सा है। राहुल ने अपने संवाद में पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी हो या फिर प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी दोनों की ही तरफ संकेत दे दिया कि, वह तैयार हैं।

अमेरिका के ‘अमीरों’ का आशीर्वाद चाहिए!
राहुल गांधी के अमेरिका में कार्यक्रम तय करने का एक दूसरा एजेंडा भी है। दरअसल कांग्रेस चाहती है कि उसे अमेरिका में रहने वाले कांग्रेस समर्थक व्यापारियों, उद्योगपतियों का आशीर्वाद मिले। सब जानते हैं कि चुनाव में करोड़ों डॉलर खर्च होते हैं और यह कांग्रेस पार्टी को चाहिए। ऐसा माना जा रहा है कि स्विस बैंक के रूख और बेनामी एक्ट के बन जाने के बाद से गांधी परिवार ‘गरीब’ हो गया है और उन्हें बाहर से मदद चाहिए।

इनके दिमाग से चल रहे हैं राहुल गांधी

  • सैम पित्रोदा- राजीव गांधी के तकनीकी सलाहकार थे
  • मिलिंद देवड़ा- भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे हैं
  • शशि थरूर- सुनंद पुष्कर के पति और कांग्रेस के सांसद
  • विनोद खोसला-अरबति और सन माइक्रोसिस्टम के सह संस्थापक हैं

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे अमेरिका

टेस्ला मोटर्स तो बेमतलब गए राहुल!
टेस्ला मोटर्स में राहुल गांधी के विजिट के क्या मायने हैं। दरअसल टेस्ला को भारत में अपनी दुकान लगाने में मुश्किलें हो रही हैं। टेस्ला के संस्थापक और सीईओ एलन मस्क ने एक बार ट्वीट कर कहा था कि वह टेस्ला को इस गर्मी में लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन इसके भारत में प्रवेश को लेकर संशय है।

जिस टेस्ला को बीजेपी भी भारत में नहीं ला पाई, क्या राहुल गांधी टेस्ला को भारत लाने का वादा कर एलन मस्क का आशीर्वाद प्राप्त कर पाएंगे? सवाल यह भी कि क्या ये भारत के मध्यम वर्ग के लोगों के लिए क्या लाभप्रद होगा? संशय यह कि राहुल गांधी का टेस्ला का दौरा बेकाम का साबित न हो जाए।

बहरहाल राहुल गांधी ने अपनी इस लॉन्चिंग के दौरान जहां पीएम मोदी की नीतियों पर हमला बोला वहीं ये भी स्वीकार किया कि 2012 के आसपास सत्ता में रही उनकी पार्टी कांग्रेस के अंदर अहंकार आ गया, संवाद कम हो गया, जिससे 2014 के लोकसभा चुनाव में वे हार गये। ऐसा माना जा रहा है कि ये स्वीकारोक्ति भी प्री-प्लांट थी।

इसके बाद राहुल गांधी ने जो कहा वो राहुल के इस अमेरिकी लॉन्चिंग की पूरी कहानी कहती है। राहुल गांधी ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए वे प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए तैयार हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि राहुल को आखिर इस बात की जरूरत क्यों पड़ी कि देश के शीर्ष पद के लिए वे अपनी धरती से दूर सात समंदर पार अमेरिका में ही जाकर दावेदारी जतायें? 

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