कांग्रेस पार्टी का एक ही मकसद है किसी भी तरह सत्ता को हासिल करना, चाहे इसके लिए लोगों को जाति-धर्म के नाम पर बांटने पड़े, हिंसा भड़काना पड़े या फिर चाहे झूठ बोलना पड़े। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी केंद्र सरकार औ बीजेपी पर दलित विरोधी होने का आरोप मढ़ रहे हैं। राहुल गांधी का कहना है कि बीजेपी को दलितों की कोई परवाह नही हैं। इस लेख में हम कांग्रेस पार्टी के इसी झूठ का पर्दाफाश करेंगे।
दलितों की सच्ची हितैषी है बीजेपी
देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है, इतना ही नहीं देश के अधिकतर राज्यों में बीजेपी की या फिर एनडीए की सरकार है। जाहिर है कि बीजेपी को सभी धर्म और जाति के लोगों का समर्थन मिला हुआ है। बीजेपी दलितों की कितनी हिमायती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी के 79 सांसद दलित हैं, वहीं देशभर में बीजेपी के 549 विधायक भी दलित समुदाय से आते हैं। यह बीजेपी ही है जिसने रामनाथ कोविंद के रूप में देश को दलित राष्ट्रपति दिया है। यह आंकड़े खुद गवाही देते हैं कि बीजेपी दलित विरोधी नहीं है, बल्कि दलितों की सच्ची हितैषी है।
इतना ही नहीं 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने दलितों के लिए ऐसी योजनाएं बनाई हैं, जिनके बारे में पहले की सरकारों ने सोचा तक नहीं था। चाहे उज्ज्वला योजना हो, आदर्श ग्राम, प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना, चिकित्सा बीमा योजना सभी में मोदी सरकार ने दलित और गरीबों के हितों को प्राथमिकता दी है। एक नजर डालते हैं मोदी सरकार की दलितो के हित वाली योजनाओं पर। –
मोदी सरकार ‘दिल से’ दलितों के लिए
प्रधानमंत्री मोदी ने सबका साथ सबका विकास के मूलमंत्र को अपने चार सालों के शासन के दौरान हकीकत में बदला है। समाज के सभी वर्गों के विकास और कल्याण की चिंता करते हुए सभी के लिए विकास योजनाओं को लागू किया। ये योजनाएं केवल लागू ही नहीं हुईं, बल्कि इन्हें समय पर पूरा किया जा रहा है। पूर्ववर्ती सरकारों के 60 सालों की तुलना में प्रधानमंत्री मोदी के चार साल भारी पड़ते हैं। इन चार सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने दलितों के कल्याण के लिए दिल से काम किया है, जिसका परिणाम है दलितों का कल्याण और विकास।
बजट में दलितों के लिए अधिक धन– प्रधानमंत्री मोदी ने दलितों के उत्थान के लिए बजट से अधिक धन के लिए 2017-18 से क्रांतिकारी बदलाव किया। पूर्व की सरकारें, दलितों की आबादी के प्रतिशत के अनुपात में बजट से धन नहीं देती थी। लेकिन 2017 -18 से केन्द्र में मोदी सरकार ने जाधव समीति की सिफारिशों को लागू कर दिया। अब दलितों की 2001 की जनगणना की जनसंख्या के अनुपातिक प्रतिशत के अनुसार बजट में धन की व्यवस्था की गई है। 2018-19 में दलित योजनाओं के लिए मोदी सरकार ने बजट में 8, 63, 944 करोड़ रुपये दिए हैं, जो अब तक का सबसे अधिक आवंटन है।
प्री-मैट्रिक दलित विद्यार्थियों की आर्थिक मदद को बढ़या- 19 सिंतबर 2017 से प्रधानमंत्री मोदी ने दलित परिवारों के बच्चों को मिलने वाली आर्थिक मदद का दायरा बढ़ा दिया। पहले यह मदद उन्हीं परिवारों के बच्चों को मिलती थी, जिनकी आमदनी सालाना 2 लाख रुपये थी। इसे बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये कर दिया गया। इसके साथ हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को मिलने वाले 350 रुपये को बढ़ाकर 525 रुपये कर दिया और घर पर रहकर पढ़ने वाले बच्चों को 150 रुपये बढ़ाकर 250 रुपये कर दिया। आंकड़े बताते हैं कि कैसे प्रतिवर्ष अधिक से अधिक दलित छात्रों को आर्थिक मदद की गई। आंकड़ें ये भी बताते हैं कि खातों में सीधे धन देने की डीबीटी योजना से कम बजट में अधिक दलित छात्रों को मदद पहुंचायी जा रही है।
वर्ष | रुपये (लाख में) | मदद पाने वालों की संख्या |
2014-15 | 51403.34 | 2513972 |
2015-16 | 52470.31 | 2444760 |
2016-17 | 50614.76 | 3660202 |
पोस्ट मैट्रिक दलित विद्यार्थियों को आर्थिक लाभ- मैट्रिक से आगे पढ़ाई को पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा चलायी जा रही इस योजना के लिए सौ प्रतिशत धन दिया जाता है। इस पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के माध्यम से पुस्तकों से लेकर पढने आदि का खर्चा केन्द्र सरकार वहन करती है। तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि इस योजना का लाभ दलित विद्यार्थियों को हर साल अधिक से अधिक संख्या में मिल रहा है-
साल | रुपये (लाख में) | मदद पाने वालों की संख्या |
2014-15 | 196337.63 | 5318123 |
2015-16 | 221388.00 | 5651355 |
2016-17 | 279876.65 | 5862121 |
दलित छात्रों के लिए यूजीसी की फेलोशिप- दलित छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए 2000 जूनियर फेलोशिप और सिनियर फेलोशिप प्रतिवर्ष यूजीसी से दिया जाता है। जूनियर फेलोशिप के लिए हर माह 25,000 रुपये और सिनियर फेलोशिप के लिए हर माह 28,000 रुपये दिया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के चार सालों के दौरान हर साल 2000 फेलोशिप दलित छात्रों को दिया जा रहा है-
साल | रुपये (करोड़) | छात्र | छात्राएं | कुल विद्यार्थी |
2014-15 | 148.84 | 1064 | 966 | 2000 |
2015-16 | 200.55 | 1090 | 910 | 2000 |
2016-17 | 196.00 | 1340 | 660 | 2000 |
2017-18 | 200.00 | 1065 | 935 | 2000 |
दलितों के अन्तरजातीय विवाह करने पर आर्थिक सहायता-मोदी सरकार ने दलितों के अन्तरजातीय विवाह के लिए पूरे देश में एक समान आर्थिक सहायता 2.5 लाख रुपयों की कर दी। इससे पहले राज्यों द्वारा दलितों को अन्तरजातीय विवाह के लिए अलग-अलग राशि दी जाती थी। मोदी सरकार के हर साल इसके लिए आवंटन धन बढ़ा है। 2015-16 में जहां 120 करोड़ रुपये दिये, वहीं 2016-17 में 228.49 करोड़ रुपये और 2017-18 में 31 दिसबंर 2017 तक 300 करोड़ रुपये दिये गये। इसका लाभ लेने वाले दलित युवकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
साल | रुपया(करोड़ में) | मदद पाने वालों की संख्या |
2015-16 | 119.07 | 17065 |
2016-17 | 222.56 | 17218 |
2017-18 | 294.38 | 21079 |
दलितों के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना-प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत उन गांवों को आदर्शों गांवों में विकसित किया गया, जिनकी आबादी में 50 प्रतिशत जनसंख्या दलितों की है। इन दलित बाहुल्य गांवों में दलित परिवारों के लिए आवास, सड़कें, बिजली, रोजगार और सुरक्षा के लिए मोदी सरकार ने पूरा धन दिया है। देश के 25,000 गांवों में इस केन्द्रीय योजना से दलितों का कल्याण हो रहा है। राज्यों के Scheduled Castes Sub Plan के लिए Special Central Assistance के रूप में केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों द्वारा दलितों के लिए बनाये गये Sub Plan में 100 प्रतिशत का अंशदान करती है। पिछले चार सालों में मोदी सरकार ने का अंशदान कुछ इस प्रकार रहा, जो लगातार बढ़ता रहा है-
साल | रुपये (करोड़ में) | सहायता पाने वालों की संख्या (लाख में) |
2014-15 | 700 | 10.08 |
2015-16 | 800 | 68.33 |
2016-17 | 800 | NA |
2017-18 | 800 | 100.5 |
दलित युवाओं के उद्यम और रोजगार की व्यवस्था की गई-दलित युवाओं को स्वालंबी बनाने के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से कई योजनाएं प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के प्रथम वर्ष से ही चलायी जा रही हैं। केन्द्र सरकार State Scheduled Castes Development Corporations (SCDCs) को धन देती है जो दलित परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कई योजनाओं के तहत लोन देती है। इस समय 23 राज्यों और 4 केन्द्र शासित क्षेत्रों में यह योजना चल रही है, जहां दलित आबादी की उपस्थिति अच्छी खासी है।
साल | रुपये(करोड़ में) | लाभ लेने वालों की संख्या |
2014-15 | 20 | 182039 |
2015-16 | 20 | 138803 |
2016-17 | 20 | NR |
2017-18 | 20 | NR |
देश में दलित युवाओं के लिए पहली बार वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत हुई– प्रधानमंत्री मोदी ने दलित युवाओं को स्टार्ट अप शुरू करने के लिए देश में पहली बार वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत की। Venture Capital Fund for Scheduled Castes को मोदी सरकार ने 16 जनवरी 2015 को शुरू किया। इस योजना को IFCI Venture Capital Fund Ltd. नियंत्रित करता है। य़ह कोष दलित युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देता है। यह उन दलित उद्यमियों की सहायता करता है जो नवाचार के जरिए समाज में कुछ नया करना चाहते हैं। इसमें उन कंपनियों को 20 लाख से 15 करोड़ का लोन दिया जाता जिसमें 50 प्रतिशत या उससे अधिक दलित स्वामित्व होता है। 2017 में 31 दिसबंर तक के आंकड़े सरकार के प्रयासों का ठोस सबूत है-
कोष के लिए दिया गया धन | 265.61 करोड़ रुपये |
लोन लेने वाली कंपनियों की संख्या | 71 |
कंपनियों को दिया गया धन | 151.87 करोड़ रुपये |
दलित उद्यमियों के उद्यम को कर्ज लेने के लिए 5 करोड़ रुपये तक की गांरटी देने के लिए भी देश में पहली बार “Credit Enhancement Guarantee Scheme for Scheduled Castes” की शुरुआत हुई। जुलाई , 2014 के अपने पहले बजट में मोदी सरकार ने 200 करोड़ रुपये का कोष इस योजना के लिए दिए। इसके तहत विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के जरिए स्टार्ट अप को ऋण उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया। इस योजना को 6 मई 2015 को लागू किया गया। यह योजना IFCI के माध्यम से चल रही है। IFCI, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को धन देता है जो उन दलित उद्यमियों को 5 करोड़ की गारंटी देते हैं जिन्हें 15 लाख लोन पाने का हक है।
दलितों को उद्योग-धंधे लगाने के लिए सहायता– प्रधानमंत्री मोदी ने दलित समाज को आर्थिक रुप से मजबूत करने के लिए कई योजनाओं की तरह मुद्रा योजना की भी शुरुआत की। 31 मार्च 2017 तक दलितों के लिए 2, 25 00, 194 मुद्रा खाते खुले, जो कुल मुद्रा खातों का 57 प्रतिशत है। इस माध्यम से समुदाय के लोगों को 67,943.39 करोड़ का लोन आवंटित किया गया। साथ में ही उद्यमियों को हर संभव मदद देने के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति हब की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी नीति बनाई है कि सार्नजनिक उपक्रम अपनी खरीदारी का 4 प्रतिशत सामान अनुसूचित जाति/जनजाति उद्यमियों से खरीदें।
दलित युवाओं के कौशल विकास के लिए धन की व्यवस्था- दलित परिवारों के बच्चों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए National Scheduled Castes Finance And Development Corporation के द्वारा कौशल विकास का पूरा खर्च वहन किया जाता है। यह खर्च गांवों में उन परिवारों को जिनकी सालाना आमदनी 98,000 रुपये और शहरों में उन परिवारों को जिनकी आय 1,20,000 रुपये सालाना है।
साल | रुपये (करोड़ में) | लाभ लेने वाले युवाओं की संख्या |
2015-16 | 378.94 | 71,915 |
2016-17 | 478.98 | 82,105 |
दलित उत्पीड़न कानून को संशोधित करके सख्त बनाया- देश में पहले से चले आ रहे दलित उत्पीड़न कानून 1989 को प्रधानमंत्री मोदी ने संशोधित करके और अधिक सख्त बनाया। इस सख्त कानून को 26 जनवरी 2016 को लागू भी कर दिया गया। इस संशोधन से दलितों को त्वरित न्याय दिलाने की मोदी सरकार की मुहिम को बल मिला। कानून में दलित उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई करने के लिए विशेष अदालतों के गठन और सरकारी वकीलों की उपलब्धता को सुनिश्चित कर दिया गया। नये कानून में यह भी सुनिश्चचित कर दिया गया कि आरोपपत्र दाखिल होने के दो महीने के अंदर न्याय दे दिया जाए। नये कानून के तहत दलितों को मिलने वाली सहायता राशि को स्थिति के अनुसार 85,000 रुपये से 8,25,000 रुपये तक कर दिया गया। NCRB 2016 की रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने दलितों को सुरक्षा देने में पूर्ववर्ती सरकारों से काफी अच्छा काम किया है। दलितों के विरुद्ध अपराध करने वालों को सजा दिलाने में भाजपा शासित राज्य, कांग्रेस शासित राज्यों से कहीं आगे है-
कांग्रेस शासित और अन्य दलों द्वारा शासित राज्य इस मामले में काफी पीछे हैं-
यूपीए के शासनकाल में दलितों के विरुद्ध अपराध लगातार बढ़ रहे थे और अपराधियों को सजा नहीं मिल रही थी-
3.5 करोड़ गरीब-दलित परिवारों को गैस का कन्केशन दिया गया- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत मोदी सरकार ने जो काम किया है, उसने गरीबों के घर में रौनक ला दी है। 10 अप्रैल 2018 तक देश के 712 जिलों में 3 करोड़ 57 लाख 10 हजार 876 गैस कन्केशन गरीब-दलित परिवारों का दिया जा चुका है।
तीन लाख से अधिक गांवों को खुले में शौच से मुक्ति मिली- तेजी से लागू किये जा रहे स्वच्छता मिशन का परिणाम है कि हर रोज हजारों की संख्या में दलित परिवारों के लिए शौचालयोंं का निर्माण हो रहा है। 10 अप्रैल 2018 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में तीन लाख से अधिक गांवों में 6.5 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है, और आशा है कि इस साल के अंत तक देश के अधिकांश राज्य खुले में शौच से मुक्त हो जायेगें।
देश के सभी दलित गांवों में बिजली पहुंची- दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत देश के लगभग सभी गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। देश में 597,464 गांवों में से 597,265 गांवों बिजली रिकार्ड समय में पहुंच चुकी है।
डा. अंबेडकर फाउंडेशन से दलितों का कल्याण- प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन के माध्यम से देश के दलितों में पुर्नजागरण की चेतना को जगाने का भरपूर काम किया और इसके तहत कई काम किये गये-
- बाबा साहेब की 125 वीं जयंती का भव्य आयोजन
- डा. अंबेडकर अंतराष्ट्रीय केन्द्र की स्थापना रिकार्ड दो सालों में 195 करोड़ की लागत से की गयी।
- वर्ष 2015 से 14 अप्रैल को समरसता दिवस के रुप में मनाने का निर्णय ।
- 30 सितंबर 2015 को 125 वीं जयंती के अवसर पर डाक टिकट जारी किया ।
- 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में हर वर्ष 26 जनवरी को संविधान दिवस मनाने का निश्चय किया ।
- महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने लंदन 10, किंग हेनरी रोड पर स्थित उस भवन को खरीद लिया जहां अंबेडकर ने रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
- 06 दिसंबर 2015 को 125 वीं जयंती के अवसर पर दस रुपये और 125 रुपये के सिक्के जारी किए गये।
- डां अंबेडकर चिकित्सा सहायता योजना के तहत 2.5 लाख रुपये सालाना की आमदनी वाले परिवारों को मुफ्त मेडिकल सुविधा देने की योजना है जिनकी आय 2.5 लाख रुपये सालाना है।
दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी का हाल देखिए। हमेशा दलितों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने वाली कांग्रेस पार्टी ने कभी भी दलितों के उत्थान की नहीं सोची। आज अगर देश में दलितों की आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक हालत खराब है तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही जिम्मेदार है, क्योंकि देश में सबसे अधिक वक्त तक कांग्रेस पार्टी का ही शासन रहा है। देखिए दलितों को लेकर कांग्रेस पार्टी की कैसी सोच रही है।-
2 अप्रैल को ट्वीट कर आंदोलनकारियों को भड़काया
कांग्रेस पार्टी ने हमेशा दलितों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। जब जरूरत पड़ी कांग्रेस पार्टी ने दलितों को मोहरा बनाकर अपनी राजनीति चमकाई और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। इसी पॉलिसी के तहत कांग्रेस पार्टी आज भी दलितों का इस्तेमाल कर रही है। 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने अपनी मांग को लेकर भारत बंद बुलाया था। इस भारत बंद के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भड़काऊ ट्वीट ने आग में घी का काम किया और देश के कई राज्यों में दलितों ने हिंसक प्रदर्शन किया। इस हिंसक प्रदर्श में अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ और 12 लोग मारे गए।
दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना RSS/BJP के DNA में है। जो इस सोच को चुनौती देता है उसे वे हिंसा से दबाते हैं।
हजारों दलित भाई-बहन आज सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की माँग कर रहे हैं।
हम उनको सलाम करते हैं।#BharatBandh
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) 2 April 2018
महाराष्ट्र में दलित-मराठा हिंसा को भड़काया
इसी वर्ष जनवरी के महीने में महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेताओं दलितों और मराठाओं के बीच हिंसा को भड़काया था। महाराष्ट्र के पुणे में कई दशकों से दलित कोरेगांव युद्ध का जश्न मनाते आए हैं, मगर इससे पहले हिंसा कभी नहीं हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरेगांव युद्ध के 200 वर्ष पूरे होने पर आयोजित जश्न के मौके को हिंसा में तब्दील करने के पीछे कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों का हाथ था।
कांग्रेस के समर्थकों ने भड़काई हिंसा
आपको बता दें कि 31 दिसंबर को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। जिसमें दलितों के 50 संगठन शामिल हुए थे। इसमें कुछ मुस्लिम संगठन भी शामिल थे, लेकिन जब आप मंच पर बैठे हुए लोगों को देखेंगे तो आपको हैरानी होगी क्योंकि, इस मंच पर गुजरात से विधायक और कांग्रेस पार्टी के समर्थक जिग्नेश मेवाणी मौजूद थे। इसके अलावा इस मंच पर उमर खालिद भी मौजूद था, उमर खालिद JNU का वही छात्र नेता है, जिसने भारत तेरे टुकड़े होंगे.. जैसे देशविरोधी नारे लगाए थे। मंच पर रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला भी मौजूद थीं। ये सब वो लोग हैं, जिनका समर्थन कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कांग्रेस के इन्हीं समर्थकों ने एक जनवरी को कार्यक्रम के दौरान, हिंदू एकता को तोड़ने के लिए अपने समर्थकों और असामाजिक तत्वों को दलितों की भीड़ में शामिल कर दिया। इन्हीं लोगों ने मराठा लोगों पर भद्दी टिप्पणियां कर उन्हें उकसाना शुरू कर दिया। पूरी साजिश दलित और मराठा समुदाय के लोगों के बीच फूट डालने के लिए रची गई थी। मौके पर मौजूद लोगों ने यहां तक बताया कि कई कट्टरपंथी मुस्लिम टोपी उतार कर इसमें शामिल हो गए और तोड़फोड़ शुरू कर दी। फिर देखते ही देखते हिंसा की आग फैल गई। पुणे के पुलिस स्टेशन में जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के खिलाफ भड़काऊ बयान देने की शिकाय की गई है। शिकायत में कहा गया कि इनके बयानों के बाद दो समुदायों में हिंसा भड़की।
Jignesh Mewani, Omar Khalid, Prakash Ambedkar and Radhika Vemula in Pune at an event marking the 200th anniversary of the Battle of Bhima Koregaon (31.12.17) pic.twitter.com/s4ngA9T8hc
— ANI (@ANI) 2 January 2018
JUST IN: Khalid – Mevani role under lens #MaharashtraCasteClash
— TIMES NOW (@TimesNow) 2 January 2018
A central pillar of the RSS/BJP’s fascist vision for India is that Dalits should remain at the bottom of Indian society. Una, Rohith Vemula and now Bhima-Koregaon are potent symbols of the resistance.
— Office of RG (@OfficeOfRG) 2 January 2018
मोदीजी २०० साल पहले युद्ध के मैदान में वो ५०० थे तो भी जीते थे, २०१९ में चुनाव के मैदान में हम २५ करोड़ लोग आपको करारा जवाब देंगे।
— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) 2 January 2018
मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की हकीकत आई थी सामने
इससे पहले मध्य प्रदेश में शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे किसान आंदोलन के बीच भी कांग्रेसी नेताओं ने हिंसा फैलाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी की थी। उस दौरान कई वीडियों सामने आए थे, जिसमें कांग्रेस नेता दंगा और आगजनी करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे।
यूपी हो या उत्तराखंड, गुजरात हो या हिमाचल, इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी हिंदू एकता के कारण बुरी तरह से हारी है। मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले राहुल गांधी ने गुजरात में जनेऊ धारण कर मंदिरों के चक्कर तक लगाए, मगर जनता की आंखों में धूल झोंकने में विफल रहे। लिहाजा कांग्रेस पार्टी अब फूट डालो, राज करो की नीति के तहत समाज में फूट डालने की साजिश रच रही है।
यूपी में भीम आर्मी के नाम से ऐसा ही किया गया था
ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी हुआ था। वहां कट्टरपंथी मुस्लिमों ने दलित प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर हिंसा फैला दी थी, मगर सीएम योगी की सख्त कार्रवाई के कारण सभी दंगाई जेल में डाल दिए गए और कईयों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी। मोदी लहर का सामना करने में विफल रही कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल घटिया और घिनौनी राजनीति पर उतर आए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौका देखते ही दलितों के नाम पर राजनीति शुरू कर दी है।
वर्गों में विभाजित करके, समाज को देखने की सोच
कांग्रेस भारतीय समाज की विभिन्नता के स्वरूप को संजोने के बजाय, उसे विभक्त करने का काम करती रही है। नेहरू की परंपरा ने देश के सूक्ष्म सांस्कृतिक ताने-बाने को आत्मसात किये बगैर समाज को विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और जातियों के गुच्छे की तरह से देखने की सोच को कांग्रेस में पल्लवित किया। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस ने सत्ता पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए देश की इस विभिन्नता को वोट बैंक में बदल दिया। जिस वर्ग के वोट मिलने से सत्ता बची रह सकती है, उस वर्ग का तुष्टिकरण इन्होंने अपना धर्म समझ लिया। इतिहास में कांग्रेस की इस सोच के अनेकों उदाहरण है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कांग्रेस उसी रास्ते पर चल रही है।गुजरात के समाज को पाटीदार, दलित और पिछड़ों में बांट दिया
पिछले वर्ष दिसंबर में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने के लालच में अंधी कांग्रेस ने गुजरात के समाज को वर्गों में बांट दिया। हार्दिक पटेल को पाटीदार पटेल के नेता के रूप में, तो जिग्नेश मेवाणी को दलित समाज के नेता के रूप में, और अल्पेश ठाकोर को अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा को बरगलाया, फिर इनकी तुष्टिकरण के लिए चुनाव साथ में लड़ने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश के समाज को धर्म और जाति में बांट दिया
गुजरात चुनाव से पहले, वर्ष 2017 की शुरुआत में राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत कर सत्ता में आने के लिए समाज को बांटने की कोशिश की। प्रदेश को धर्म के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम में तो बांटा ही, हिन्दुओं को भी जातियों के आधार पर बांट कर अधिक से अधिक वोट हासिल करने के लिए गठबंधन बनाये। इन गठबंधनों का आधार मात्र यही था कि कौन सी पार्टी किस वर्ग का अधिक से अधिक वोट लेकर आ सकती है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन इसलिए किया कि उसके मुस्लिम और यादव वोट से चुनावों में जीत पक्की हो जायेगी। कांग्रेस ने सभी के विकास या समृद्धि के रास्ते पर न चल कर चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले वर्गों के तुष्टिकरण का काम किया, जो आसान और सुगम था।
महाराष्ट्र को बांटने का काम
गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विभिन्नता का अनुचित लाभ उठाते हुए, वोटबैंक में न बदला हो। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम किया। इस तरह से महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने का कुत्सित खेल खेला।
देश को धर्म के नाम पर बांट दिया
देश की विविधता को वोटबैंक के रूप में देखने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का भरपूर लाभ उठाया। इन नेताओं को तुष्ट करके मुस्लिम समाज का वोट बटोरने का फॉर्मूला कांग्रेस ने निकाला, और देश को धर्म के आधार पर बांट दिया। इसका कई चुनावों में कांग्रेस फायदा उठाती रही। कांग्रेस के इसी फॉर्मूले को कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने। आज भी धर्म को कांग्रेस वोटबैंक के रूप में ही देखती है।
देश में ‘भगवा आतंकवाद’ का जहर बोया
देश को वोट के लिए धर्म और जाति के वर्गों में बांटकर चुनाव जीतने की रणनीति में माहिर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज के तुष्टिकरण के लिए, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद के स्वरुप को जन्म दिया, ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके, जिससे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ ही बना रहे।
देश में दलितों के दिलों में जहर बोने का काम
ऊना में दलितों की पिटाई का कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट ऊना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। कांग्रेस ने यह जहर देश में सिर्फ इसलिए पैदा किया ताकि चुनावों में दलित वोटों का फायदा लिया जा सके। यही नहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित युवक की आत्महत्या जो एक कानून व्यवस्था की समस्या थी उसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करने के पीछे भी यही मकसद था कि दलितों के वोटबैंक पर कब्जा किया जाए। कांग्रेस का नेतृत्व आज राहुल गांधी के हाथ में है, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली मध्ययुगीन सभ्यता की है, जिसमें राष्ट्र से बड़ा स्वार्थ होता है। राहुल गांधी की पूरी कवायद यही है कि किस तरह से कांग्रेस को वापस सत्ता पर काबिज किया जाए, उनका यह मकसद नहीं है कि देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोते हुए विकास की ऊंचाईयों पर ले जाने का काम किया जाए।
दलित हितैषी नहीं दलित विरोधी है कांग्रेस!
आज राहुल गांधी खुद को दलितों का हितैषी साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि दलितों को कभी भी आगे बढ़ते नहीं देख सकते हैं। कुछ महीनों पहले संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में राहुल गांधी ने दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनने में तमाम अड़चने पैदा की थीं। उनके सामने दलित वर्ग से आने वाली मीरा कुमार को खड़ा कर दिया, ताकि दलितों में आपस में ही टकराव बढ़ जाए।