Home विपक्ष विशेष राहुल को रिजिजू का करारा जवाब, कहा- आपके परिवार और पार्टी ने...

राहुल को रिजिजू का करारा जवाब, कहा- आपके परिवार और पार्टी ने किया कश्मीर को बर्बाद

SHARE

जम्मू-कश्मीर को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान पर केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने करारा पलटवार किया है। कश्मीर समस्या को नेहरू की देन बताते हुए किरन रिजिजू ने कहा है कि सरदार पटेल ने सभी रियासतों का हल किया, लेकिन नेहरू ने कश्मीर का चार्ज लिया और उसे और जटिल बना दिया। वहां हजारों लोगों की हत्या कर दी गई, कश्मीरी पंडितों को काट डाला गया, एक लाख 60 हजार से ज्यादा बेघर हो गए। इन सबके लिए आपकी पार्टी और परिवार जिम्मेदार हैं और आप बीजेपी पर अंगुली उठा रहे हैं।

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि बीजेपी-पीडीपी के अवसरवादी गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर को आग में झोंक दिया है। राज्य में हमारे बहादुर सैनिकों के अलावा कई लोगों की जान गई। राहुल गांधी ने कहा कि यूपीए शासन के दौरान की गई बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है। राज्यपाल शासन के जरिए इस नुकसान को जारी रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अक्षमता, अहंकार और घृणा हमेशा विफल होते हैं।

कांग्रेस- नेहरू की देन है कश्मीर समस्या
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की स्पष्ट नीति है जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करना। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले वर्ष लाल किले से साफ लफ्जों में कहा था कि गोली से नहीं, गले लगाने से कश्मीर समस्या हल होगी। इसके लिए मोदी सरकार विशेष रणनीति बनाकर काम कर रही है और रमजान के दौरान संघर्ष विराम की घोषणा भी की गई, लेकिन जब राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला आया तो बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इसमें भी सियासत सूझने लगी, लेकिन क्या राहुल को यह नहीं पता कि कश्मीर समस्या किसकी देन है? क्या कांग्रेस अपनी नाकामियों से मुंह छिपा पाएगी?

दरअसल कश्मीर समस्या का निपटारा 1947 में ही हो गया होता जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को रौंदते हुए अपनी बढ़त बना ली थी, लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ढुलमुल नीति और अदूरदर्शिता के कारण कश्मीर का एक बड़ा भू-भाग भारत के हाथ से निकल गया। कांग्रेस की गलतियों के कारण ही कश्मीर आज भी एक मुद्दा बना हुआ है। 

नेहरू इंदिरा और कश्मीर के लिए चित्र परिणाम

जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गांधी ने की बड़ी गलती
आज जो कश्मीर समस्या है वो सिर्फ कांग्रेस की देन है। भारत के विभाजन के समय इसका हल निकाल पाने में जवाहरलाल नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है। तब न तो दिल्ली में नेहरू सरकार और न ही श्रीनगर में शेख अब्दुल्ला सरकार कभी इस बात को मान सका कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह एकीकरण करने की जरूरत है। इस मामले में नेहरू में न तो साहस था न ही दूरदर्शिता थी। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है जिसे अब तक क्यों कायम रखा गया है यह भी एक सवाल है। 1971 में भी भारत ने कश्मीर मुद्दे को हल करने का मौका गंवा दिया था। 1990 में हिंदुओं के नरसंहार के बाद की चुप्पी ने तो कट्टरपंथियों के हौसले को नये उत्साह से भर दिया था।

कांग्रेस के नाकाम नेतृत्व के कारण मुद्दा बना रहा कश्मीर
भले ही कांग्रेस और इसके साथी दलों के नेता धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहें लेकिन कश्मीर में इन्हीं के शासन काल में धर्मनिरपेक्षता की बलि चढ़ाई जा चुकी है। दरअसल बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से ही 1990 में कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया था और हिंदू औरतों के साथ बलात्कार किया गया था। धर्मनिरपेक्ष भारत के एक हिस्से में धर्म को लेकर ही अधर्म का नंगा नाच हो रहा था, लेकिन कांग्रेस की सरकार तब तमाशा देख रही थी। कश्मीर अगर आज सुलग रहा है तो कांग्रेस की अदूरदर्शिता और नाकाम नेतृत्व इसका कारण है।

नेहरू की छवि के लिए चित्र परिणाम

नेहरू को अपनी छवि की चिंता थी देश की नहीं
कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस की भूल की फेहरिस्त लंबी है। कश्मीर में जब भारतीय फौज कबाइली हमलावारों को खदेड़ रहे थे तो नेहरू ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। ऐसा माना जाता है कि ऐसा न किया गया होता तो आज कश्मीर का मुद्दा नहीं होता। जानकारों के अनुसार नेहरू ने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि की चिंता की जिसके कारण यह फैसला लिया।

nehru and pok के लिए चित्र परिणाम

नेहरू के कारण पाक अधिकृत कश्मीर बना
1947 के 21 और 22 अक्टूबर को जब पांच हजार पठान आदिवासियों (पाकिस्तान आर्मी की तरफ से) ने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया तो महाराजा हरि सिंह ने IQA (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेसन) पर साइन कर दिया था। इसके बाद इंडियन आर्मी बड़े ऑपरेशन के लिए तैयार थी और बारामुला के हिस्सों को वापस भी ले लिया था। इससे श्रीनगर सुरक्षित हो गया, लेकिन इससे आगे बढ़ने के लिए नेहरू जी के आदेश चाहिए थे, जो उन्होंने नहीं दी। 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के दस्तखत वाला Instrument of accession यानि विलय पत्र स्वीकार करने के साथ ही जनमत संग्रह के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में भेज दिया।

शेख अब्दुल्ला-नेहरू की दोस्ती से उलझा कश्मीर
शेख अब्दुल्ला से दोस्ती के कारण ही उन्होंने अपनी सेना को आदेश नहीं दिया। जब जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का प्रभाव था तो वह पाकिस्तान की मदद को खड़ा हो गया। इसी कारण नेहरू के कार्यकाल में ही 1953 में शेख अब्दुल्ला को पाकिस्तान की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार भी करना पड़ा, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और नेहरू की गलती के कारण कश्मीर का मुद्दा उलझ गया।

नेहरू धारा 370 के लिए चित्र परिणाम

संविधान में अनुच्छेद 370 का किया प्रावधान
देश के प्रथम गृहमंत्री और भारत के एकीकरण के नायक सरदार वल्लभ भाई पटेल दूरदर्शी थे, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी बातें नहीं मानी। परिणामस्वरूप देश में आज भी कई समस्याएं विद्यमान हैं। कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधान इन्हीं में से एक हैं। इसके प्रावधानों को शेख अब्दुला ने तैयार किया था, जिन्हें उस वक्त हरि सिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। सरदार पटेल को अंधेरे में रखकर नेहरूजी ने धारा-370 का मसौदा पहले से ही तैयार करवा लिया था। पं. नेहरू के समर्थन में और शेख अब्दुला के मंत्रिमंडल से विचार-विमर्श के बाद गोपाल स्वामी अय्यंगार ने गुपचुप तरीके से अनुच्छेद 370 की योजना बनवाई, जो भारत के साथ कश्मीर राज्य के संबंध की व्याख्या करता है। जब इस अनुच्छेद को संविधान सभा में रखा गया तब नेहरू जी अमेरिका चले गए थे, लेकिन फार्मूले के मसौदे पर उन्होंने पहले ही स्वीकृति दे दी थी। सरदार पटेल के पत्र बताते हैं कि इस संबंध में उनसे कोई परामर्श नहीं किया गया था।

धारा 370 पर नेहरू ने की गलती
महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर के साथ ही कश्मीर का भारत में विलय हो गया, लेकिन नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की खुशी के लिए धारा 370 का प्रावधान स्वीकार कर लिया। दरअसल शेख अब्दुल्ला को कश्मीर में नेहरू का आदमी माना जाता था। नेहरू ने कश्मीर को लेकर सभी नीतियां शेख अब्दुल्ला को ध्यान में रखकर बनाईं। शायद इसी वजह से महाराजा हरि सिंह को कश्मीर की बागडोर शेख अब्दुल्ला को सौंपनी पड़ी।

नेहरू और कश्मीर के लिए चित्र परिणाम

सरदार पटेल के हाथ बांध दिये गए
धारा 370 को स्वीकार तो कर लिया गया, लेकिन जम्मू और लद्दाख में हिंदू आबादी ज्यादा थी। जम्मू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रजा परिषद ने 370 का विरोध शुरू किया। बाद में पंडित नेहरू की कैबिनेट छोड़कर 1951 में जनसंघ की स्थापना करने वाले डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के विरोध की मुहिम को और तेज किया। सरदार पटेल ने भी इस मसले को गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में लाकर सुलझाने की योजना बनाई, लेकिन बाद में नेहरू के दखल के चलते मामला एक बार फिर लटक गया। जिसका नतीजा आज पूरे देश के अलावा पूरी दुनिया भी देख रही है।

नेहरू और महाराजा हरि सिंह के लिए चित्र परिणाम

पटेल के विरोध के बावजूद नेहरू ने की युद्ध विराम की घोषणा
कश्मीर में जब 1948 में कबाइलियों ने हमला किया तो आपात बैठक बुलाई गई। लॉर्ड माउंटबेटन ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह, जनरल बुकर, कमांडर-इन-चीफ जनरल रसेल, आर्मी कमांडर और शेख अब्दुल्ला के प्रमुख सहायक रहे बख्‍शी गुलाम मोहम्मद मौजूद थे। राज्य में सैन्य स्थिति तथा सहायता को तुरंत पहुंचाने की संभावना पर ही विचार हो रहा था। जनरल बुकर ने सैनिक सहायता पर इनकार कर दिया। लॉर्ड माउंटबेटन और नेहरू भी निरुत्तर और निरुत्साहित थे, लेकिन, सरदार पटेल ने कहा, ”जनरल हर कीमत पर कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा, देखा जाएगा। संसाधन हैं या नहीं, आपको यह तुरंत करना चाहिए। सरकार आपकी हर प्रकार की सहायता करेगी। यह अवश्य होना और होना ही चाहिए। कैसे और किसी भी प्रकार करो, किंतु इसे करो।” इस प्रकार कश्मीर की रक्षा सरदार पटेल के त्वरित निर्णय, दृढ़ इच्छाशक्ति और विषम-से-विषम परिस्थिति में भी निर्णय के कार्यान्वयन की दृढ़ इच्छा का ही परिणाम थी, लेकिन जब भारत ने वर्तमान कश्मीर से हमलावरों को खदेड़ दिया तो अचानक ही जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी, फलस्वरूप पाक अधिकृत कश्मीर हमारे साथ नहीं है।

यूएन में मुद्दा ले जाने का पटेल के विरोध को किया दरकिनार
सरदार पटेल मानते थे कि कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वह हैदराबाद की तर्ज पर बिना किसी शर्त कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने लगभग रियासत के महाराज हरि सिंह को तैयार भी कर लिया था, लेकिन शेख अब्दुल्ला से महाराजा के मतभेद और नेहरू से शेख की नजदीकियों ने सारा मामला बिगाड़ दिया। खास बात ये है कि कश्मीर में आज भी जो भारत का नियंत्रण है उसके पीछे भी पटेल का ही दिमाग माना जाता है।

1954 में अध्यादेश जारी कर 35A जोड़ा
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया। यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है। दरअसल अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके। यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था। भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है। जाहिर है संविधान के इस अदृश्य हिस्से ने कश्मीर को लाखों लोगों के लिए नर्क बना दिया है, लेकिन यहां की राजनीति इसे खत्म नहीं होने दे रही है।

Image result for article 35a

1956 में कश्मीर के लिए अलग संविधान बनाया
कश्मीर के लिए अलग संविधान के प्रावधान के विरुद्ध थे सरदार पटेल, लेकिन 15 दिसंबर 1950 को उनके मरणोपरांत जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दे दी। मौलाना मसूदी की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन हुआ और उस संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को राज्य के भारत में विलय की पुष्टि की थी। नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। उस संविधान के अस्थाई अनुच्छेद 370 के तहत धारा 3 साफ-साफ कहती है कि जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। यानी जो लोग जम्मू कश्मीर की सवैंधानिक स्थिति को लेकर सवाल खड़ा करते हैं उन्हें उस संविधान का ही ज्ञान नहीं है, लेकिन इस अस्थाई प्रावधान 370 को जब भी हटाने की बात आती है तो कांग्रेसी इसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग होने से रोक देते हैं।

Image result for constitution of kashmir

Leave a Reply