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केजरीवाल के वादे और जमीनी हकीकत में कहीं कोई मेल नहीं

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दिल्ली वालों को बड़े-बड़े सपने दिखाकर और वादों की घुट्टी पिलाकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे। अब जब लोकसभा चुनावों का समय आ गया है तो वे इस दावे पर भी उतर आ गए हैं कि उन्होंने दिल्लीवासियों से किए अपने वादों को निभाकर दिखाया है। ऐसे में Perform India ने केजरीवाल के कुछ बड़े पुराने वादों के साथ ही इन दावों की हकीकत की पड़ताल की ठानी, जिसका नतीजा शून्य बट्टा सन्नाटा निकला। देखिए केजरीवाल के कुछ बड़े वादे, दावे और उनकी हकीकत-

सत्ता के नशे में भूले जनलोकपाल
जिस सबसे बड़े वादे के साथ केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में आए थे, वह वादा था जनलोकपाल कानून लाने का। जनलोकपाल पर समाजसेवी अन्ना हजारे की मुहिम में वे बढ़-चढ़कर आगे रहे थे। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में चार साल होने के बावजूद उन्होंने जनलोकपाल को नहीं लाया। यानि उन्होंने ये साबित कर दिया कि जनलोकपाल उनके लिए सत्ता प्राप्ति का साधन भर था जिसमें उन्होंने अन्ना का यूज किया। आज केजरीवाल जनलोकपाल की चर्चा भी नहीं करते, जिसको लेकर वे हर किसी के निशाने पर हैं।

वादा– जनलोकपाल लाकर रहूंगा
हकीकत– अब जनलोकपाल की चर्चा भी नहीं करते

दिल्लीवालों को पूर्ण राज्य के नाम पर भरमाया
केजरीवाल की राजनीति का सबसे विचित्र पहलू ये है कि वे एक वादे को तो निभा नहीं पाते और दूसरे की ओर बढ़ जाते हैं। खासकर चुनावों के मौके पर उनका यही खेल रहा है। जैसे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए चार साल तक उन्होंने कुछ भी नहीं किया, लेकिन अब लोकसभा चुनाव सामने देखकर कह रहे हैं कि वे पूर्ण राज्य के मुद्दे पर ही ये चुनाव लड़ेंगे। गौर करने वाली बात है कि उन्होंने पूर्ण राज्य के नाम पर भरमाकर भी दिल्लीवालों से वोट ले लिया था। यानि जब काम करने का समय होता है, तो केजरीवाल मुद्दे को ठंडे बस्ते में रखते हैं और चुनाव आते ही उसकी चर्चा में लग जाते हैं।

वादा– दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाऊंगा
हकीकत– चार साल मुद्दा ठंडे बस्ते में, चुनावों में आया याद   

मोहल्ला क्लिनिक में कहीं दवा नहीं, कहीं डॉक्टर नहीं
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के अपने चुनावी घोषणापत्र में बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं वाली 1000 मोहल्‍ला क्‍लीनिकों के निर्माण का वादा किया था। लेकिन चार वर्षों में इनकी संख्या 200 तक भी नहीं पहुंच पाई। जितनी बनी हैं उनमें से भी सब दुरुस्त तरीके से काम नहीं कर रहीं। कहीं दवाओं की कमी है तो कहीं डॉक्टरों की। इतना ही नहीं इनके रखरखाव का आलम ये है कि जानवरों ने भी यहां अपना बसेरा बनाना शुरू कर दिया है। यानि केजरीवाल सच्चाई पर पर्दा डलकर अपने मोहल्ला क्लिनिक दिखाने विदेशी मेहमानों को ले जाते हैं।

वादा और दावा– मोहल्ला क्लिनिक से घर-घर हेल्थ फैसिलिटी देने का
हकीकत– मोहल्ला क्लिनिक खुद बीमार, बीमारों का इलाज क्या होगा

प्रदूषण नियंत्रण में पूरे नाकाम
केजरीवाल सरकार ने राजधानी में प्रदूषण पर लगाम लगाने का वादा किया था। लेकिन स्थिति ये ये रही कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में जब ना तब गिरावट दर्ज होती रही है जिससे लोगों का सांस लेना भी मुहाल हो जाता है। केजरीवाल ने इस दिशा में अब तक सिर्फ यही किया कि ऑड-इवेन फॉर्मूला को दो बार प्रयोग में लाया लेकिन बिना तैयारी के ये योजना भी विफल साबित हुई। प्रदूषण रोकने के लिए जो नियम हैं, उनका पालन करवाने में भी केजरीवाल की सरकार नाकाम रही है।

वादा– दिल्ली के प्रदूषण को दूर करूंगा
हकीकत– प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कोई गंभीरता नहीं

पब्लिक टॉयलेट का वादा भी नहीं निभा सके
2015 के घोषणापत्र में आम आदमी पार्टी ने दो लाख पब्लिक टॉयलेट के निर्माण का वादा किया गया था, लेकिन चार सालों में इसके 15 प्रतिशत का भी निर्माण नहीं हो पाया है। केजरीवाल सरकार में टॉयलेट बनने की रफ्तार को देखें तो पांच साल में 35 हजार सामुदायिक शौचालय भी बन जाएं तो बड़ी बात होगी। ही बन पाएंगे। इस मामले में केजरीवाल सरकार को केंद्र की मोदी सरकार से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए था, जिस सरकार ने साढ़े चार वर्षों में ही देश में उससे कहीं ज्यादा टॉयलेट का निर्माण कर दिखा दिया, जितना निर्माण 2014 तक इस सरकार के आने तक हुआ था।

वादा– दो लाख पब्लिक टॉयलेट के निर्माण का
हकीकत– चार वर्ष में 15 प्रतिशत से भी कम निर्माण

केजरीवाल के वादे, दावे और उनकी हकीकत से दरअसल उनकी राजनीति की पोल खुल जाती है। उनकी राजनीति सिर्फ और सिर्फ झूठ की बिसात पर चलती है, जहां जनता से किए वादों की कोई अहमियत नहीं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि वे बेटे की कसम खाकर जो कहते हैं, उस पर भी अमल नहीं करते हैं।

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