Home केजरीवाल विशेष भ्रष्टाचार छिपाने के लिए केजरीवाल कब तक अपनाएंगे नए-नए हथकंडे ?

भ्रष्टाचार छिपाने के लिए केजरीवाल कब तक अपनाएंगे नए-नए हथकंडे ?

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अनशन पर बैठे अपनी ही सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के सवालों का जवाब देने के बजाय दिल्ली के मुख्यमंत्री हर दिन कोई न कोई नया हथकंडा अपना रहे हैं। दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री ने पहले कपिल के सवालों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए विधानसभा में ईवीएम पर ड्रामा करवाया। अब अपनी पार्टी के एक विधायक संजीव झा को जवाबी अनशन के नाम पर नई नौटंकी करने के काम पर लगाने की चाल चली है। लेकिन पूरी दुनिया इस बात से हैरान है कि दूसरों पर बेवजह के आरोप लगाकर मुख्यमंत्री बन बैठे केजरीवाल की बोलती 2 करोड़ रुपये की रिश्वत वाले आरोप पर बंद क्यों हो गई है। केजरीवाल चाहे लाख जतन कर लें, लेकिन अबकी बार लगता नहीं कि वो अपने झूठे हथकंडों से आसानी से बच पाएंगे। हिंदी समाचार पोर्टल आजतक के अनुसार कपिल मिश्रा ने उनका एक और भांडाफोड़ करने का ऐलान कर दिया है।

कपिल मिश्रा से डर गए हैं केजरीवाल ?

लगता है कि कपिल मिश्रा के अनशन ने शातिर केजरीवाल को अंदर से हिलाकर रख दिया है। शायद यही वजह है कि वो अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए तरह-तरह की कोशिशें कर रहे हैं। पहले एक कथित आम आदमी कार्यकर्ता ने उनपर हमला किया। अब एक विधायक संजीव झा से कपिल मिश्रा के अनशन पर सवाल उठाते हुए कुछ प्रश्न पूछवाए गए, फिर काउंटर अनशन स्ट्रैटजी के तहत उनसे भी अनशन शुरू करवा दिया गया। इतना ही नहीं लगता है कि मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए संजीव झा ने कपिल मिश्रा के घर पर जाकर ही अनशन पर बैठने का ऐलान कर दिया था। लेकिन माहौल को भांपते हुए पुलिस ने उन्हें कपिल मिश्रा के घर पर पहुंचने से पहले ही रोक लिया।

संजीव झा तो बहाना है, ‘आप’का भ्रष्टाचार छिपाना है ?

दरअसल संजीव झा का कहना है कि कपिल पहले केजरीवाल के 2 करोड़ रुपये घूस लेने के आरोपों का सबूत दें और जबतक वो सबूत नहीं देंगे तबतक वो भी अनशन पर रहेंगे। लेकिन कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी विधायक संजीव झा की ओर से उनपर उठाए गए सवालों का जवाब बहुत ही सधे हुए तरीके से दिया है। उन्हें अनशन पर सावधानियां रखने की भी सलाह दी है। कपिल मिश्रा ने लिखा है-

“प्रिय संजीव भाई
मीडिया के माध्यम से तुम्हारा पत्र मिला.
तुम अनशन करोगे ये सुनकर दुःख हुआ.
पर मैं समझ सकता हूं, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो. जैसे तुम अरविंद केजरीवाल जी को लेकर मुग्ध हो ऐसे ही मैं भी मुग्ध था.
मेरी आंखें खुल गई और भगवान ने चाहा तो कल तुम्हारी भी आंखे खुल जाएंगी.
मैंने CBI में अरविंद जी और सत्येंद्र जी पर तीन मामले लिखवाए हैं.

पहला, जिसकी तुम बात कर रहे हो. 2 करोड़ रुपये के लेन-देन का. इस मामले में मैं खुद गवाह हूं. जो भी जानकारियां व details मेरे पास हैं बस वो ही मेरी ताकत हैं. अरविंद केजरीवाल जी चाहते हैं कि सारे details मैं सार्वजनिक करके अपनी सारी ताकत खत्म कर दूं. वो मुख्यमंत्री हैं, सारी व्यवस्था और तामझाम उनका अपना है. उनके साथ सत्येंद्र जैन जी जैसे अरबपति लोग हैं. कैसे मैं अपने हाथ काटकर उनको दे दूं. जांच होने दो, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

दूसरा जो मामला मैंने बताया, अरविंद जी के रिश्तेदारों के बारे में उसके सारे details देश के सामने हैं. कैसे गलत तरीकों से अरविंद केजरीवाल जी के रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाया गया वो भी अब खुल चुका है. तीसरा मामला विदेश यात्राओं से संबंधित है. अपने दिल पर हाथ रखकर बताओ, इन विदेश यात्राओं की जानकारी सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए. इनमें आखिर छिपाने के लिए क्या है?

मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि इन विदेश यात्राओं के details में बहुत कुछ काला छिपा है जिससे बचने के लिए आपको व सबको मोहरा बनाया जा रहा है. कल कुछ तथ्य मैं देश के सामने दस्तावेजों के साथ रखूंगा. शायद उससे सत्य को समझने में तुम्हें सहायता मिले. तुम्हें मेरे कारण अनशन करना पड़ रहा है उसके लिए माफ करना. एक दिन सच सबके सामने आएगा.

पानी खूब पीना. अपना ध्यान रखना.

तुम्हारा
कपिल मिश्रा”

Sanjiv Jha’ s letter and my response pic.twitter.com/1AKV1AIw1r

संवैधानिक मर्यादाएं तोड़ रहे हैं केजरीवाल ?

कपिल मिश्रा के अनशन के चार दिन बीत चुके हैं। डॉक्टर लगातार उनकी बिगड़ती सेहत पर चिंता जता रहे हैं, लेकिन कपिल अपना व्रत तोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। उधर अरविंद केजरीवाल अपने और अपनी चौकड़ी के कारनामों पर चुप्पी साधे हुए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि अपने भ्रष्टाचार को दबाने के लिए वो लोकतंत्र और संविधान की भी खिल्ली उड़ाने में जुटे हुए हैं। कभी विधानसभा में सारे नियमों को ताक पर रखकर जनता के पैसों को लुटाकर ईवीएम पर अपनी लिखी हुई स्क्रिप्ट के आधार ईवीएम का शो दिखाते हैं। बाद में उसी ईवीएम के साथ चुनाव आयोग जैसे निष्पक्ष संवैधानिक संस्था को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए बदनाम करने की चालें चलते हैं।

केजरीवाल को अपनी करनी से चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है, तो वो अपना गुस्सा चुनाव आयोग पर उतारने में जुटे हुए हैं। जनता ने उन्हीं की करतूतों के चलते उनसे मुंह फेर लिया है, लेकिन वो खिसायानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर कभी लोकतंत्र पर हमला करते हैं और कभी संविधान पर। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में अगर कोई राजनेता इस तरह का बर्ताव करने लगे तो क्या हमारा संविधान और उसके रक्षक सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने को मजबूर हैं ? ऐसे लोगों को संविधान के दायरे में रहकर ही कोई संवैधानिक सबक सिखाने का उपाय नहीं होना चाहिए?

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