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राजनीतिक रंग में रंगी राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता

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देश की राजनीति में कई रंग हैं, लेकिन जब जनता और तंत्र के बीच संवाद स्थापित करने वाला एक तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार किसी विशेष रंग में रंग जाता है, तो ऐसा पत्रकार जनता को भ्रमित करने का काम करता है। आज, देश की पत्रकारिता में अपना एक मुकाम रखने वाले पत्रकार राजदीप सरदेसाई विपक्ष के प्रवक्ता के बतौर पत्रकारिता करते हैं, और हर मौके पर प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाना अपनी पत्रकारिता का धर्म समझते हैं। इनकी नजर में हर समस्या की जड़ प्रधानमंत्री मोदी हैं।

राजदीप सरदेसाई ने विपक्ष के धर्म को अपने कर्म की तरह अपना लिया है, और जनता को सत्य के रुप में ऐसी खबरें और विश्लेषण देते हैं जो पक्षपातपूर्ण होती हैं। ऐसी पत्रकारिता से जनता सत्य जानने के बजाय और कन्फ्यूज होती है। जनता वास्तविकता में देखती है कि देश का प्रधानमंत्री दशकों से जंग खा चुके शासकीय तंत्र को बदलने का प्रयास कर रहा है, और दूसरी ओर राजदीप जैसे पत्रकार इसे कुछ अलग ही रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। राजदीप सरदेसाई की राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता को परखना जरुरी है, आइये आपको इस पत्रकारिता के रंग दिखाते हैं-

राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-1 राजदीप Twitter पर घटनाओं को लेकर जो प्रतिक्रिया देते हैं, उससे साफ पता चलता है कि उनकी सोच में मुद्दे से होने वाले फायदे -नुकसान से अधिक, राजनीतिक नफे नुकसान की सोच अधिक हावी रहती है। राज्यसभा में पेश किए गये तीन तलाक विधेयक के मुद्दे पर 3 जनवरी को Twitter पर अपनी प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री मोदी पर टिप्पणी करते हुए लिखा-

राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-2 राजदीप सरदेसाई अपनी प्रतिक्रियाओं में सधे हुए अंदाज में विपक्ष की आवाज उठाते हैं, और प्रधानमंत्री मोदी को घेरने की कोशिश करते हैं। 16 जनवरी को मोदी सरकार के निर्णय पर कि मुसलमानों को दी जाने वाली हज सब्सिडी खत्म की जा रही है, पर अपनी प्रतिक्रिया में राजदीप ने आधे-अधूरे सच का सहारा लेकर Twitter पर टिप्पणी कर डाली। मोदी सरकार ने हज सब्सिडी को खत्म करने के साथ यह भी निर्णय लिया था कि हज सब्सिडी का सारा धन, गरीब मुस्लिम बालिकाओं की शिक्षा पर खर्च किया जाऐगा, लेकिन राजदीप ने सरकार के इस निर्णय को अनदेखा करते हुए, Twitter पर लिखा-

राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-3
5 जनवरी को राजदीप ने आधार संख्या को लेकर जो Tweet किया, उससे साफ हो जाता है कि वो आधार संख्या के जरिए प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के लिए एक नया मुद्दा गढ़ रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मूल अधिकार पहले ही मान लिया है, और आधार संख्या से किसी तरह से निजता के अधिकार का हनन न हो, इसके लिए विचारों को सुन रहा है। सरकार ने पहले ही आधार संख्या के कानून में निजता के अधिकार को सुरक्षित कर रखा है, फिर भी राजदीप विरोध को हवा देने के लिए Twitter पर लिखते हैं-


राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-4
राजदीप सरदेसाई ने अपनी पत्रकारिता को कैसे राजनीतिक रंग देते हैं, इसका अंदाजा उनके हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखे लेख और 5 जनवरी को किए गये Tweet से लग जाता है। हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर और गुजरात में विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनते हैं तो लेख में लिखते हैं कि देश के उच्च पदों पर सवर्णों का दबदबा है, लेकिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद को अपवाद मानकर दरकिनार कर देते हैं और इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देने के बजाय, उन पर निशाना साध देते हैं। और इसे अपने Twitter पर शेयर करते हुए लिखते हैं-


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सीबीआई कोर्ट ने 2G पर जब फैसला सुनाया तो राजदीप की प्रतिक्रिया में जो राजनीतिक रंग दिखा, उससे किसी को यह समझना कठिन नहीं रहा कि आखिर रजदीप प्रधानमंत्री मोदी का विरोध क्यों करते हैं। 21 दिसंबर को Twitter पर लिखा कि 2G घोटाला लाइसेंस घोटाला था, स्पेक्ट्रम घोटाला नहीं था। इसका क्या मतलब निकाला जाए, जबकि सर्वोच्च न्यायलय पहले ही कह चुका है कि जिस तरह से स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दिया गया उससे देश को नुकसान हुआ, इसलिए सर्वोच्च न्यायलय ने 122 स्पेक्ट्रम के लाइसेंस को रद्द कर दिया था। यही बात CAG विनोद राय ने भी अपनी रिपोर्ट में कही थी, लेकिन एजेंडा पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने निचली अदालत के निर्णय को अंतिम निर्णय मानते हुए पूर्व CAG विनोद राय पर निशाना साधते हुए मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए twitter पर लिखा-


राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-6
राजदीप सरदेसाई ने गुजरात चुनाव के दौरान जो Tweets किए उससे साफ हो जाता है कि राजदीप चुनाव कवर करने के बहाने प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में  प्रचार करते रहे। उस दौरान किए गये कुछ Tweets पढ़कर कोई इसे आसानी से समझ सकता है-


राजनीतिक रंग देती पत्रकारिता-7
अब देखिए राजदीप किस तरह ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग पर निशान साध रहे हैं। चुनाव आयोग तो मात्र एक बहाना है, राजदीप का असली निशाना तो प्रधानमंत्री मोदी पर था। चुनाव के दौरान ईवीएम के मुद्दे को खूब उछाला, लेकिन चुनाव खत्म होते ही ईवीएम पर भरोसा वापस लौट आया। राजदीप के 9 दिसंबर के Tweet को पढ़कर यही समझ में आता है कि पत्रकारिता की आढ़ में विपक्ष की राजनीति करना ही इनकी मंशा है-


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राजदीप की दोमुंही पत्रकारिता का एक रुप और देखिए, 29 नवंबर को मीडिया सम्मेलन के भाषण में राजदीप कहते हैं कि मीडिया ही देश में ध्रुवीकरण का काम कर रहा है।

तो दूसरी तरफ 17 जनवरी को शशि थरुर की पुस्तक-Why I am Hindu पर एक इंटरव्यू करते हैं और उसी पुस्तक के साथ एक अपनी तस्वीर भी शेयर करते हैं। इन दोनों अवसरों पर राजदीप की बातों और व्यवहार से यही लगता है कि वे दोमुंहे है, एक तरफ तो दूसरों को समाज में ध्रुवीकरण करने का दोषी बताते हैं, और दूसरी तरफ खुद ध्रुवीकरण का काम करते हैं, क्योंकि इससे कांग्रेस की छवि बदलने का उनको मौका मिल रहा है।

माना कि राजदीप सरदेसाई का पत्रकारिता में एक अपना स्थान है, लेकिन उनकी पत्रकारिता में जो राजनीतिक रंग दिखाई देता है, उससे पत्रकारिता व्यापार नजर आती है, और जनता को सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि  निष्पक्ष पत्रकारिता के नाम पर क्यों राजनीति परोसी जा रही है?

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