मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोमवार को छह संस्थानों को Institute of Eminence का दर्जा देने की घोषणा की। इनमें से तीन संस्थान सरकारी क्षेत्र के हैं और तीन निजी क्षेत्र के। सरकारी क्षेत्र के संस्थान हैं IIT-दिल्ली, IIT-मुंबई और IISc-बेंगलुरु। निजी क्षेत्र के संस्थान हैं Manipal Academy of Higher Education, BITS-पिलानी और जियो इंस्टिट्यूट। निजी क्षेत्र के संस्थानों में से जियो इंस्टिट्यूट को लेकर सोशल मीडिया पर सवालों का दौर चलाने के लिए कई वैसे चेहरे तुरंत सामने आ गए जो अक्सर मोदी सरकार की बेबुनियाद आलोचनाओं में लगे रहते हैं।
Institutions of Eminence are higher ed inst w/ potential to become “world class teaching & research institutions”. They get near complete autonomy & Rs 1000 crore grant. Jio Institute w/o faculty, campus, even website & located in Karol Bagh (!) is one of only 6 selected by Modi
— Ruchi Gupta (@guptar) July 9, 2018
Dear Indians,
Before you laugh at the ‘Insitute of Eminence’ status to Jio Institute, remember that the joke is on you. ₹1000 crores of your money is being given to a non-existent institute. And all this while even our Primary Education is in complete shambles. Let that sink in.— Sanjiv Bhatt (IPS) (@sanjivbhatt) July 9, 2018
Perform India ने Institute of Eminence के मामले में सरकार पर उठाए गए सवालों और आलोचनाओं की पड़ताल सच्चाई की तह में जाकर की तो एक बार फिर वे झूठी साबित हुईं। इसके लिए हमने सोशल मीडिया पर उठाए कुछ खास सवालों को चुना और आधिकारिक दस्तावेजों के आधार पर उनके जवाब निकाले। इसके सहारे आपके लिए भी सच को समझना आसान होगा।
प्रश्न 1- जियो इंस्टिट्यूट को किस आधार पर Institute of Eminence के रूप में चुना गया? क्या इसके लिए कोई आवेदन प्रक्रिया अपनाई गई या फिर अपनी पसंद से दे दिया गया?
उत्तर – नहीं, इसमें अपनी पसंद से दर्जा देने जैसी कोई बात नहीं थी। सरकार ने इसके लिए एन गोपालस्वामी की अध्यक्षता में एक Empowered Expert Committee (EEC) बनाई थी जिसमें प्रो. तरुण खन्ना, प्रो. प्रीतम सिंह और रेणु खटोर जैसे चेहरे शामिल थे। इन सबने आवेदनों का मूल्यांकन किया।
Greenfield Category के तहत जो आवेदन थे उन्हें कुछ विशेष पैरामीटर पर जज किया गया। EEC ने जिन चार पैरामीटर्स के साथ आवेदनों पर गौर किया वे थे:
- संस्थान के निर्माण के लिए जमीन की उपलब्धता
- बेहद ऊंची योग्यता और व्यापक अनुभव रखने वालों की कोर टीम का होना
- संस्थान की स्थापना के लिए फंड जुटाने की क्षमता
- क्लीयर ऐक्शन प्लान के साथ एक स्ट्रैटेजिक विजन प्लान का होना
Greenfield Category के तहत आए 11 आवेदनों की पड़ताल इन चारों ही मापदंडों पर की गई जिन पर जियो इंस्टिट्यूट ही खरा उतरा।
यानि Greenfield Category में आए आवेदनों में कुछ विशेष पैरामीटर थे जिन्हें जियो इंस्टिट्यूट ही पूरा कर रहा था और यही वजह है कि इस कैटेगरी में उसे ही Institute of Eminence का दर्जा मिला।
प्रश्न 2- निजी संस्थान को 1000 करोड़ रुपये का सरकारी फंड क्यों?
उत्तर – ऐसे सवाल उठाने वाले वही होते हैं जिन्हें मौजूदा केंद्र सरकार के बारे में किसी भी ऐसी जानकारी में अपना स्वार्थ पूरा होता दिखता है जिसके सहारे वो हमलावर हो सकें। लेकिन इस जल्दबाजी में वे तथ्यों का आकलन किए बिना मैदान में उतर पड़ते हैं और फजीहत झेलते हैं। जैसे Institute of Eminence का दर्जा पाने वाले निजी संस्थानों को 1000 करोड़ रुपये का सरकारी फंड दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन मुद्दा उठाना था तो गलत जानकारी को ही आधार बना लिया गया।
सच ये है कि दिल्ली और मुंबई के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस को ही सरकार का 1000 करोड़ रुपये का फंड मिलेगा। निजी संस्थान जियो इंस्टिट्यूट, मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) और बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस-पिलानी (BITS-Pilani) को 1000 करोड़ रुपये का सरकारी अनुदान नहीं मिलने जा रहा।
यानि इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस की पहल के जरिए देश के करदाताओं की कोई रकम देश के सबसे अमीर आदमी को नहीं दी जा रही।
सवाल उठाने वालों ने अगर इस तथ्य को पहले ही समझ लिया होता तो माफी मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
Correction: only government institutions eligible for Rs 1,000 crore over five years not private institutions like Jio Institute. I apologise for getting it wrong. https://t.co/3jc8XhnNFW
— ParanjoyGuhaThakurta (@paranjoygt) July 9, 2018
प्रश्न 3- जियो इंस्टिट्यूट अभी बना भी नहीं है, इसकी कोई वेबसाइट भी नहीं है फिर इसे कैसे Institute of Eminence के रूप में चुना गया?
उत्तर – नए प्रोजेक्ट जिन्हें अभी तैयार होना है, उन्हें Greenfield Projects कहा जाता है। UGC के नियमों के मुताबिक Institute of Eminence की पहल के तहत विभिन्न स्पौंसरिंग ऑर्गेनाइजेशन्स की ओर से किसी संस्थान को खोले जाने के नए प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है।
इससे शिक्षा जगत में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा मिलेगा और भारत में वर्ल्ड क्लास के संस्थानों के खुलने का रास्ता बनेगा।
MAHE और BITS-Pilani Brownfield Category के अंतर्गत चुने गए हैं, ना कि Greenfield Category के तहत। IIT जैसे संस्थान सरकारी फंड से चलते हैं इसलिए Institute of Eminence की लिस्ट में जियो इंस्टिट्यूट से उनकी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी। सरकारी अनुदानों से चलने वाले संस्थानों के बीच अलग स्पर्धा थी जिसमें आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली और आईआईएससी बेंगलुरु ने बाजी मारी।
यानि जियो इंस्टिट्यूट को Institute of Eminence का स्टेटस ग्रीनफील्ड कैटेगरी में मिला। इस कैटेगरी में परिभाषाओं के अनुसार वे संस्थान आते हैं जो अभी खोले जाने हैं।
प्रश्न 4 – जियो इंस्टिट्यूट को दर्जा मिल गया लेकिन यह कब अस्तित्व में आएगा और अपना काम शुरू करेगा?
उत्तर – एचआरडी मंत्रालय जियो इंस्टिट्यूट को एक Letter of Intent जारी करेगा। जियो इंस्टिट्यूट के स्पौंसरिंग आर्गेनाइजेशन को संस्थान की स्थापना करना होगा और Letter of Intent जारी होने के तीन वर्ष के भीतर एकेडमिक ऑपरेशन्स शुरू करने की अपनी तैयारी को दिखाना होगा।
तैयारी पूरी होने के बाद EEC एक बार फिर संस्थान और इसके विकास के रोडमैप की बारीक पड़ताल करेगा। इन सबके बाद जाकर इसे Institute of Eminence बनाए जाने की अधिसूचना जारी की जाएगी।
यानि एक प्रकार से जियो इंस्टिट्यूट का Institute of Eminence का दर्जा अभी शर्तों के साथ या यूं कहें कि प्रॉविजनल ही है। तीन साल में तैयार होकर उसे शर्तों पर खरा उतरना होगा जिसके बाद ही Institute of Eminence का दर्जा जारी रहेगा।
प्रश्न 5 – अगर इन निजी संस्थानों को सरकारी फंड नहीं मिलेगा तो क्या मिलेगा? Institute of Eminence के टैग का क्या मतलब रहेगा?
उत्तर – HRD मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इन संस्थानों को अधिक ऑटोनोमी दी गई है। ये अपने यहां 30 प्रतिशत तक विदेशी स्टूडेंट्स को दाखिला दे सकते हैं। इन पर विदेशी छात्रों की फीस तय करने को लेकर किसी तरह की बंदिश नहीं होगी। फैकल्टी की अपनी कुल स्ट्रेंथ में से 25 प्रतिशत तक ये फॉरेन फैकल्टी को रिक्रूट कर सकते हैं। अपने प्रोग्राम्स में से 20 प्रतिशत तक ऑनलाइन कोर्सेस रख सकते हैं। UGC की अनुमति के बगैर विश्व के टॉप 500 रैंकिंग वाले संस्थानों के साथ मिलकर एकेडमिक कार्य कर सकेंगे। इसके साथ ही इन्हें अपने पाठ्यक्रम और कोर्स स्ट्रक्चर तय करने को लेकर भी कुछ प्रकार की छूट रहेगी।
यानि निजी क्षेत्र के संस्थानों को Institute of Eminence के तहत कोई सरकारी फंडिंग नहीं, बल्कि ज्यादातर प्रशासनिक स्वायत्तता हासिल होगी।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नियमों का हवाला देकर यह साबित कर दिया कि सोशल मीडिया पर गलत जानकारियों के आधार पर टिप्पणियां की जा रही हैं।
In response to some misinformation campaign in social media regarding “Institutes of Eminence”, please find herewith clarifications on commonly raised questions #InstituteofEminence pic.twitter.com/K6IB5ILpfb
— Ministry of HRD (@HRDMinistry) July 9, 2018