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एक और झूठ का पर्दाफाश, स्विस बैंक में जमा भारतीयों की रकम में हुई 80 प्रतिशत की कमी

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पिछले दिनों स्विस बैंक में जमा भारतीयों की रकम को लेकर कांग्रेस पार्टी समेत समूचे विपक्ष ने खूब बयानबाजी की। विपक्ष की तरफ से कहा गया कि पिछले एक वर्ष में स्विस बैंक में जमा भारतीयों का धन 50 फीसदी बढ़ गया है। मोदी सरकार की तरफ से इसका लगातार खंडन किया गया लेकिन झूठ बोलने को अपना धर्म समझने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ा। अब स्विस बैंक की तरफ से बताया गया है कि पिछले एक वर्ष में भारतीयों की जमा रकम में 34.5 फीसदी की कमी आई है, जबकि पिछले चार वर्षों में इस रकम में 80 फीसदी की कमी आई है।

एक वर्ष में 34.5 फीसदी रकम कम हुई
राज्यसभा में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने एक सवाल के जवाब में बताया कि स्विस बैंक के मुताबिक भारतीयों के लोन और डिपॉजिट में पिछले साल की तुलना में 34.5 फीसदी कमी आई है। उन्होंने ये भी बताया कि मोदी सरकार के शासनकाल 2013 से लेकर 2017 तक स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 80 फीसदी घटा है।

श्री गोयल ने बताया कि पहले जो 50 फीसदी रकम बढ़ने की बात की जा रही थी वो बेबुनियाद थी और स्विस बैंक के आंकड़ों को ठीक से नहीं समझा गया था। उन्होंने बताया कि स्विस बैंक ने बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट के साथ मिलकर डेटा तैयार किया है।

अब स्विस बैंक साझा कर रहा है खातेदारों की जानकारी
आपको बता दें कि पहले स्विस बैंक में जमा रकम की जानकारी को गोपनीय माना जाता था और बैंक प्रबंधन उसे सार्वजनिक नहीं करता था। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद स्विस बैंक से सरकार ने 4,000 से अधिक जानकारियां मांगी हैं और बैंक द्वारा अब जानकारी मुहैया कराई जा रही है। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कार्रवाई की जा रही है।

जाहिर है कि 21 दिसंबर, 2017 को भारत सरकार ने स्विस बैंक के साथ एक और समझौता किया है। इस एग्रीमेंट के मुताबिक एक जनवरी 2018 से दोनों देश ग्लोबल स्टैंडर्ड्स के हिसाब से आंकड़े इकट्ठा करेंगे। सितंबर 2019 से वार्षिक आधार पर इस डेटा का आदान-प्रदान शुरू किया जाएगा।

स्विस बैंक में जमा रकम में कमी मोदी सरकार की नीतियों का नतीजा है। मोदी सरकार ने बीते चार वर्षों में भ्रष्टाचार और सरकारी धन की लूट-खसोट रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। एक नजर डालते हैं उन कदमों पर-

कालेधन के खात्मे में जुटी मोदी सरकार, अब डिमांड ड्राफ्ट पर होगा खरीदारों का नाम
भ्रष्टाचार और कालेधन पर रोक लगाने के लिए मोदी सरकार एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रही है। इसके लिए ही सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी जैसे साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय लिए। अब मोदी सरकार ने कालेधन और मनी लांड्रिंग पर लगाम लगाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फैसला किया है कि अब सभी बैंकों के डिमांड ड्राफ्ट, पे ऑर्डर, बैंकर्स चेक पर खरीदारों के नाम होंगे। आरबीआई ने निर्देश जारी किया है कि 15 सितंबर से जो भी डिमांड ड्राफ्ट, पे ऑर्डर, बैंकर्स चेक आदि जारी किए जाएं उस पर जारी करवाने वाले व्‍यक्ति का नाम जरूर होना चाहिए। इससे पहले डिमांड ड्राफ्ट, पे ऑर्डर, बैंकर्स चेक आदि पर सिर्फ उसे पाने वाले का नाम होता था।

देश में कालाधन रखने वालों की जानकारी को एकत्रित किया कांग्रेस सरकार में 2004-14 के दौरान, देश में भ्रष्टाचार चरम पर था। 2009 में सर्वोच्च न्यायालय में कालेधन पर एक लोकहित याचिका दायर की गई। याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई गई कि देश में पैदा हो रहे कालेधन को जिसे विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है, उसकी छानबीन की जाए और उस पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। इस याचिका पर, 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने तब की केन्द्र की कांग्रेस सरकार को कालेधन के बारे में पता लगाने के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुछ विशेष लोगों के दबाव में एसआईटी का गठन नहीं किया। 26 मई 2014 को नई सरकार बनने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने पहली कैबिनेट बैठक मे ही न्यायाधीश एम बी शाह की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन कर दिया। एसआईटी अबतक सरकार और सर्वोच्च न्यायालय को कई रिपोर्ट्स के साथ कालेधन के मालिकों की लिस्ट दे चुकी है। इन जानकारियों के ही आधार पर सरकार ने कालेधन पर नकेल कसने के लिए कई सारे कदम उठाये ।

चार साल में डीबीटी से बचाए 90 हजार करोड़ रुपये
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मई 2014 में जब देश की बागडोर संभाली थी, तभी उन्होंने ऐलान कर दिया था कि उनकी सरकार की नीति भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की है। चार वर्षों में मोदी सरकार भ्रष्टाचार को लेकर अपनी इस पॉलिसी को लेकर टस से मस नहीं हुई है। इस सरकार ने एक-एक कर भ्रष्टाचार के सभी रास्तों को बंद कर दिया है। सरकारी पैसे की लूट अब नहीं हो पाती है। पहले जहां सरकारी मदद और सब्सिडी, पेंशन आदि का पैसा अपात्रों के हाथों में चला जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। डायरेक्ट बैलेंस ट्रांसफर यानि डीबीटी योजना के बाद से केंद्र सरकार द्वारा भेजा गया पैसा सीधे जरूरतमंद के हाथों में पहुंचने लगा है। आधार से जुड़ी इस योजना के जरिए मार्च, 2018 तक केंद्र सरकार को 90 हजार करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है।

यह वो रकम है, जो पहले जरूरतमंदों के हाथों में न पहुंच कर अपात्रों के हाथों में जाता था और भ्रष्टाचार की भेंच चढ़ जाता था। डीबीटी प्रकोष्ठ ने आरटीआई के तहत पिछले चार वर्षों की मांगी गई सूचना में यह जानकारी दी है। केंद्र सरकार एलपीजी, खाद्यान्न, खाद, कई समाजिक पेंशन समेत 400 से अधिक योजनाओं का पैसा डीबीटी के जरिए सीधे लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर करता है।

मार्च, 2018 तक केंद्र सरकार को डीबीटी से बचत (करोड़ रुपये में)
एलपीजी सब्सिडी 42,275
खाद्यान्न सब्सिडी 29,708
मनरेगा 16,073
एनएसएपी 438.60
अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति 238.27
अन्य मंत्रालयों की योजानाएं 1120.69
कुल बचत 90,012.71

जानकारी के अनुसार मार्च, 2018 तक गैस सब्सिडी में 42,275 करोड़ रुपये, पीडीएस के जरिए दी जाने वाली खाद्यान्न सब्सिडी में 29,708 करोड़ रुपये, मनरेगा में 16,073 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम यानि एनएसएपी में 438.6 करोड़ रुपये, अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति में 238.27 करोड़ रुपये, अन्य मंत्रालयों की योजनाओं में 1120.69 करोड़ रुपये की बचत की है। मार्च, 2018 तक देश में कुल 90,012.71 करोड़ रुपये की बचत हुई है। इन योजना को डीबीटी से जोड़ने से करीब पौने चार करोड़ फर्जी और निष्क्रिय एलपीजी कनेक्शन हटा दिए गए। 2.75 करोड़ फर्जी राशन कार्ड रद्द किए गए, छात्रवृत्ति और सामाजिक पेंशन पाने वाले लाखों फर्जी लोगों को भी हटाने में सफलता मिली। वित्त वर्ष 2017-18 में केंद्र सरकार को डीबीटी से 32,984 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है।

कालेधन में लेनदेन खत्म करने के लिए जन धन योजना – बैंकिंग व्यवस्था के माध्यम से लेनदेन होने से, पूरी अर्थव्यवस्था में रुपये का प्रवाह पारदर्शी होता है, लेकिन 2014 तक देश में बहुत ही कम लोगों का बैंकों में खाता होता था, जिसकी वजह से व्यवस्था में पूरा लेनदेन पूरी नगद राशि में ही होता। नगद में लेन देन होने से कालाधन आसानी से पैदा हो रहा था और आर्थिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार चरम पर था लेकिन कांग्रेस की मनमोहन सरकार के पास इसे नियंत्रित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना का शुभारंभ करके, नगद में लेनदेन की स्थिति को बदल दिया। आज पूरे देश में लगभग 32 करोड़ वयस्कों के पास बैंक खाता हैं।

कालाधन पैदा करने वाले स्रोतों को बंद करने के लिए कानून बनायाप्रधानमंत्री मोदी ने एसआईटी के गठन के साथ -साथ देश में उन स्रोतों को जहां से कालाधन पैदा हो रहा था और नगद में लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए नये कानूनों को संसद से पारित करवाया। इनमें से कुछ प्रमुख कानून इस तरह से हैं-

• स्विस बैंकों में रखे गए काले धन के बारे में सूचना साझा करने के मकसद से भारत और स्विट्जरलैंड के बीच संशोधित दोहरा कर बचाव संधि (डीटीएए) किया। डीटीएए के तहत कई देशों के साथ समझौते किए गए। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के देश, साल 2017 से काला धन जमा करने वालों के नाम की लिस्ट देने के लिए सहमत हो गए हैं।

• विदेशो में भारतीयों के काले धन पर लगाम लगाने के लिए कालाधन और इम्‍पोजिशन ऑफ टैक्‍स एक्ट, 2015 को संसद में पारित करवाया। इस कालाधन कानून के तहत विदेश से होने वाली आय और संपत्ति के मू्ल्यांकन के नियमों को लागू कर दिया। इसमें विदेशी संपत्तियों और आय का खुलासा नहीं करने पर सख्‍त सजा का प्रावधान किया गया । इसके जरिए विदेशी संपत्तियों से होने वाली आय को छुपाने और कर चोरी पर 10 साल की सजा निश्चित कर दी गई। इसके अलावा 300 प्रतिशत जुर्माने का प्रावधान भी किया।

 काले धन पर लगाम लगाने के लिए आईडीएस इनकम डिक्लेरेशन स्कीम 1 जून 2016 से लागू किया। यह स्कीम 30 सितंबर 2016 तक जारी रही। इस योजना के माध्यम से ही देश में लोगों ने हजारों करोड़ रुपये  का कालाधन घोषित किया।

• रियल एस्टेट में कालेधन पर लगाम लगाने के लिए इनकम टैक्स एक्ट में  बदलाव किया गया। इस बदलाव ने रियल एस्टेट में 20 हजार से ज्यादा के नगद लेनदेन पर रोक लगा दी। 20 हजार से अधिक नगद लेनदेन  करने पर 20 फीसदी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया। 1 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति की खरीददारी या बिक्री पर पैन देना अनिवार्य हो चुका है।

• काले धन पर अंकुश लगाने के लिए बेनामी लेनदेन (प्रतिबंध) संशोधन विधेयक को संसद में पास किया गया। 1 नवंबर 2016 को इस कानून को लागू कर दिया गया। इससे रियल एस्टेट और सोने की  बेनामी खरीदारी पर लगाम लगी। कानून ने  विदेशों में काला धन छिपाने वालों को दस साल  की सजा और नब्बे फीसदी का जुर्माना कर दिया। अब इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने में संपत्ति की जानकारी छिपाने पर सात साल की सजा दी जाती है।

नोटबंदी के ऐतिहासिक कदम से तीन लाख फर्जी कंपनियों का कालेधन का धंधा बंद
08 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करने का निर्णय लिया। कालेधन पर, प्रधानमंत्री मोदी का यह सबसे घातक सर्जिकल स्ट्राइक था। इसने देश में जाली नोटों के कारोबार को पूरी तरह से बंद कर दिया। कालेधन और जाली नोटों से चलने वाले उग्रवादी और आतंकवादी संगठनों की कमर टूट गई। नोटबंदी ने देश की तीन लाख फर्जी कंपनियों को बेनकाब कर दिया। इन कंपनियों का पता चलते ही सरकार ने इन्हें खत्म कर दिया और कंपनियों के निदेशकों को आजीवन ब्लैकलिस्ट कर दिया। नोटबंदी ने देश में  टैक्स देने वालों की संख्या को दोगुना कर दिया। आज देश में  सात करोड़ लोग टैक्स देते हैं, जबकि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार के दौरान मात्र तीन करोड़ लोग टैक्स देते थे।

डिजिटल पेमेंट ने कालेधन के स्रोत को खत्म किया-प्रधानमंत्री मोदी ने देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए भीम एप लॉन्च किया। इस एप से 89 बैंकों में लेनदेन करने के लिए डिजिटल सुविधा जनता के हाथों में पहुंच गई, बैंकिंग के काम सरल और देश में हर जगह सुलभ हो गए।  मार्च 2018 तक देश में 2.64 करोड़ लोग भीम एप का इस्तेमाल कर रहे थे। एप के जरिए लेनदेन देश में तेजी से बढ़ रहा है। 18 मार्च 2018 तक 4972.69 करोड़ रुपये का लेन देन लोग कर चुके थे। इसी तरह से क्रेडिट, डेबिट कार्ड और चेक के जरिए होने वाले लेनदेन ने आर्थिक व्यवस्था को पारदर्शी बना दिया है, जो 2014 के पहले एकदम से ही नहीं थी।

सरकारी खरीद और नीलामी में ऑनलाइन व्यवस्था ने भ्रष्टाचार खत्म कियाकांग्रेस सरकार ने कोयला, स्पेक्ट्रम, जमीन और अयस्कों की नीलामी में जिस तरह से लाखों करोड़ रुपये का घोटाला किया था उसकी पुनरावृत्ति को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी को ऑनलाइन कर दिया। व्यवस्था पारदर्शी बन चुकी है। अब सरकार के विभिन्न विभागों में सामानों की खरीदारी के लिए ऑनलाइन मार्केट GeM बना चुका है, जिस पर लाखों करोड़ की खरीददारी होती है और सरकारी कामों में बिचौलियों के राज का अंत हो चुका है।

सरकारी विभागों में कार्य करने का तरीका बदला2014 तक देश के केन्द्रीय मंत्रालयों के कार्यालय और अधिकारियों में जनता के प्रति संवेदनहीनता चरम पर थी। सरकारी कार्यालयों में अस्वच्छता और अनुशासनहीनता का आलम था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्थिति में जबरदस्त परिवर्तन ला दिया है। बायोमेट्रिक प्रणाली ने समय पर कार्यालय पहुंचने का अनुशासन पैदा किया है। काम में अनुशासन को बनाने के लिए  प्रधानमंत्री स्वयं हर महीने PRAGATI – Pro-Active Governance and Timely Implementation की बैठकों के जरिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों की समीक्षा करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने एक तरफ जहां सरकारी कार्यालयों में कामकाज करने का ढंग बदला है वहीं जनता को सरकार से जुड़ने और हर समस्या के समाधान पर सुझाव देने के लिए MyGov का प्लेटफॉर्म भी दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले चार सालों में आर्थिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता और संवेदनहीनता को खत्म करके एक सुशासन की व्यवस्था दी है, जो पिछली कांग्रेसी सरकारें करने में अक्षम थी।

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