Home विचार महात्मा गांधी के सपने को पूरा कर रहे हैं राहुल गांधी

महात्मा गांधी के सपने को पूरा कर रहे हैं राहुल गांधी

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यानी कांग्रेस पार्टी आज 28 दिसंबर को अपना 132वां स्‍थापना दिवस मना रही है। लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि पार्टी के आज के कार्यक्रम को क्या कहेंगे… जश्न या मातम। दरअसल आजादी से पहले जो पार्टी भारतीय आम जनमानस की आत्मा में बसी थी। आज उसका क्या हाल हो गया। क्या आज की पीढ़ी ये यकीन कर पाएगी कि ये वही पार्टी है जिससे कभी महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, बाल गंगा धर तिलक जैसी शख्सियतें जुड़ी हुईं थीं। 1947 से पहले जो पार्टी देश की आजादी की लड़ाई का हथियार बनी हुई थी, तो आजादी के बाद पार्टी का सफर भारत के विकास का आइना बना रहा। इसके बाद भी आजादी के बाद करीब 70 साल का हासिल ये है कि कांग्रेस 543 सीटों से घटकर महज 44 पर सिमट गई है। 

जाहिर तौर पर आज कांग्रेस पार्टी का मूल्यांकन करना जरूरी है। ऐसे मौके पर महात्मा गांधी का वो बयान जरूर याद आता है जब उन्होंने आजादी के बाद कहा था कि अब कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। सच मायने में आम जनता के रग-रग में बसे कांग्रेस को खत्म करना किसी के बूते में नहीं था। लेकिन आज ये अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि जो सपना महात्मा गांधी ने देखा और कोई नहीं कर पाया, आज राहुल गांधी उसे अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। दरअसल कांग्रेस के भीतर नेहरू-गांधी परिवार के प्रति अंधभक्ति ने पार्टी की लुटिया डूबो दी।

परिवार को प्राथमिकता मिलने से पार्टी पीछे छूट गई। पार्टी के काबिल नेता किनारे किए जाने लगे। परिवार से बाहर के लोगों को आगे बढ़ने से रोका गया। जनाधार वाले नेताओं की जगह जी-हुजूरी करने वालों को प्रोत्साहन दिया जाता रहा। इससे कांग्रेस आम लोगों से दूर होती गई।

इस कारण आजादी के बाद पार्टी को कई बार अपनी नीतियों का विरोध भी झेलना पड़ा। राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस की नीतियों का विरोध करते हुए सत्ता से हटाने के लिए संघर्ष किया। आइए नजर डालते हैं कि पार्टी का बुरा हाल कैसे हुआ-

  • कांग्रेस हटाओ आन्दोलन
    आजादी दिलाने के नाम पर कांग्रेसी नेताओं के सत्ता से चिपकने पर राम मनोहर लोहिया काफी नाराज हो गए। उनका कहना था कि देश की हालत सुधारने में पार्टी नाकाम रही है। इसलिए उन्होंने नारा दिया- कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ। इस आंदोलन के कारण 1967 के आम चुनावों में नौ राज्यों- पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पराजय हुई, हालांकि कांग्रेस जैसे-तैसे केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हो गई। लेकिन इसके बाद गैर कांग्रेसवाद की विचारधारा के जोर पकड़ने की वजह से ही 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकारी बनी। लोहिया मानते थे कि सत्ता में रहकर कांग्रेस अधिनायकवादी हो गयी है।
  • सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन
    कांग्रेसी सरकार की जनविरोधी नीति के विरोध में इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए 1974 में पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। इस संपूर्ण क्रांति आन्दोलन को भारी जनसमर्थन मिला। इससे निपटने के लिए इंदिरा गांधी ने देश में इमर्जेंसी लगा दी। सभी विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसका आमलोगों ने जमकर विरोध किया। 1977 में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह पराजित हुई। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, लेकिन चौधरी चरण सिंह की महत्वाकांक्षा के कारण यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी।
  • बोफोर्स घोटाला
    बोफोर्स हथियार खरीद दलाली को लेकर कांग्रेस की काफी किरकिरी हुई। 1987 में खुलासा हुआ कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिए 80 लाख डॉलर की दलाली चुकाई थी। उस समय केन्द्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी के नजदीकी इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोक्की ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। इस खुलासे के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन चलाया जिसके बाद वे प्रधानमंत्री बने।
  • घोटालो के खिलाफ कांग्रेस मुक्त भारत अभियान
    देश में 2004 से लेकर 2014 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। इस दौरान सैकड़ों घोटाले हुए। टूजी, कोयला, आदर्श, कॉमनवेल्थ गेम जैसे घोटालों की भरमार से लोगों का कांग्रेस से मोहभंग होने लगा। इसी समय भारतीय जनता पार्टी की ओर से नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया। नरेंद्र मोदी को लोगों का अपार समर्थन मिला और 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस सिर्फ 44 पर आकर सिमट गई। यह कांग्रेस की अब तक की सबसे बुरी हार थी। इस हार के बाद लोक सभा में कांग्रेस को विपक्षी दल का भी दर्जा नहीं मिल सका। उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े गए इस चुनाव के बाद पार्टी हाशिए पर आ गई है।

अब लोग राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ चलाए जा रहे नोटबंदी अभियान का विरोध करने से भी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। लोग राहुल को भ्रष्टाचार और कालेधन का समर्थक मानने लगे हैं। लोग अब कहने लगे है कि इस कांग्रेस से कब आजादी मिलेगी।

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