क्या गुजरात के पाटीदार समुदाय को हार्दिक पटेल धोखा दे रहे हैं? दरअसल ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि वे राहुल गांधी से अपनी मुलाकात को छिपा रहे हैं। लेकिन क्यों? राजनीति में नेताओं का एक दूसरे से मिलना-समझना तो चलता रहता है, पर हार्दिक पटेल यह बात लोगों के छिपा क्यों रहे हैं इस बात को समझना जरूरी है।
राहुल गांधी से चोरी छिपे इसलिए मिले हार्दिक
स्थानीय मीडिया, दिल्ली की मीडिया और कई राष्ट्रीय अखबार यह रिपोर्ट कर चुके हैं कि हार्दिक पटेल और राहुल गांधी की मुलाकात हुई है। स्थानीय उम्मेद होटल के सीसीटीवी फुटेज में भी साफ दिख रहा है कि हार्दिक पटेल उस होटल में गए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार उस वक्त राहुल गांधी होटल में मौजूद थे। स्थानीय मीडिया के अनुसार दोनों नेताओं के बीच मुलाकात भी हुई है लेकिन हार्दिक पटेल इस मुलाकात को मानने तो तैयार नहीं हैं।
हालांकि अशोक गहलोत ने ये बात सबके सामने कबूल किया है कि हार्दिक से उनकी मुलाकात हुई है। जाहिर है अशोक गहलोत से उसी होटल में हार्दिक पटेल मिलते हैं और उसी होटल में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से वे नहीं मिले होंगे, ये बात किसी के गले नहीं उतर रही है।
The rooms which hv been booked in my name are being checked.
We are openly saying, we have met them n will keep meeting them in future too.— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) October 23, 2017
क्या कांग्रेस के हाथों बिक गए हार्दिक पटेल?
दरअसल पाटीदार समुदाय किसी भी हाल में कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहता है, लेकिन हार्दिक पटेल अपने राजनीतिक स्वार्थ के तहत कांग्रेस से राजनीतिक सौदा करने पर लगे हैं। ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस से सौदा होने तक वे यह बात जाहिर नहीं करना चाहते कि राहुल गांधी के हाथों का खिलौना बन गए हैं! हर हाल में भाजपा को हराने का दावा करने वाले हार्दिक पटेल आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं? ये तो उनका साथ छोड़ चुके रेशमा पटेल की बातों से साफ है। उन्होंने कहा है कि हमारा निर्णय भाजपा से अपनी बात मनवाने का था, ये नहीं कि भाजपा का विरोध कर कांग्रेस को जितवाने में मदद की जाए। जाहिर है हार्दिक की हरकत से पाटीदार समुदाय को ठेस पहुंची है।
मुलाकात से इनकार करने का क्या है कारण?
हार्दिक द्वारा मुलाकात से इनकार करने के पीछे एक बड़ा कारण है पाटीदार समुदाय के बीच दो राय उभरकर आना। पाटीदार समुदाय के बुजुर्ग चाहते हैं कि भाजपा के साथ रहा जाए और युवा वर्ग है जो यह चाहता है कि भाजपा से अपनी मांग मनवाई जाए। यानी दोनों ही परिस्थितियों में पाटीदार समुदाय भाजपा के साथ ही रहना चाहता है। हालांकि पाटीदार समुदाय में ही एक ऐसी भी आवाज है जो न तो भाजपा और न ही कांग्रेस के साथ जाना चाहता है। हार्दिक पटेल के साथ ऐसा ही तबका जुड़ा हुआ है, लेकिन हार्दिक पटेल ने अपनी राजनीति को साधने के लिए कांग्रेस से भीतर ही भीतर बड़ी डील कर ली है। जाहिर है अगर पाटीदार समुदाय को यह बात पता लगेगी कि हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से डील कर ली है तो हार्दिक की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो जाएगा और हार्दिक पटेल से नाराज कार्यकर्ता टूटकर उनसे अलग हो सकते हैं।
गुजराती हिंदू समाज को कमजोर करने की कोशिश
कांग्रेस सरकार गुजराती हिंदू समाज को बांटने पर तुली हुई है। पहले तो जिग्नेश मेवानी को दलितों का नेता बनाकर, हार्दिक पटेल को पाटीदारों का और अल्पेश ठाकोर को पिछड़ों का नेता बनाकर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन विरोधाभास देखिये, जिग्नेश मेवानी ने पाटीदारों से परेशान होने की बात कहकर अपना संगठन खड़ा किया। अल्पेश ने पटेलों को गाली देकर खुद को प्रोजेक्ट किया और ओबीसी का नेता बनने का दावा किया। वहीं हार्दिक पटेल ने ओबीसी समुदाय के कोटे में आरक्षण की मांग की जिससे वे पाटीदार का नेता होने का दावा करने लगे, लेकिन गुजरात की इस त्रिवेणी का मिलन कांग्रेस में हो रहा है। जाहिर है यह सब सिर्फ हिंदू समाज को बांटकर चुनाव जीतने की तैयारी भर है।
गोधरा के मुस्लिमों से मिलकर हार्दिक ने गद्दारी की !
हार्दिक पटेल ने 22 अक्टूबर को गोधरा में मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। वहां उन्होंने पटेलों और मुस्लिमों को एक साथ आने का न्योता दिया। ये वही गोधरा है जहां 59 कार सेवकों को जिंदा जला दिया गया था और पूरा गुजरात जल उठा था, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि हार्दिक पटेल ने उसी गोधरा में जाकर मुस्लिमों से मुलाकात क्यों की? बाला साहब ठाकरे को अपना रोल मॉडल माने वाले हार्दिक पटेल का कोई स्टैंड भी है क्या? दरअसल हार्दिक पटेल चुनावी समीकरण के तहत कांग्रेस के गेम प्लान का हिस्सा हैं। क्योंकि हार्दिक पटेल ने जब आरक्षण आंदोलन शुरू किया था तो उन्होंने कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखने की बात कही थी। यह भी कहा था कि वे गुजराती स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगे, लेकिन हार्दिक द्वारा कांग्रेस का समर्थन किए जाने और मुसलमानों से गलबहियां किए जाने से गुजरात का पाटीदार समाज भी ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
जाति-जमात के नाम पर गुजराती स्वाभिमान पर चोट
देश-दुनिया में गुजरात का सम्मान इसलिए भी बढ़ा है कि यहां के लोग गुजराती स्वाभिमान को सबसे आगे रखते हैं। गुजरात की अस्मिता पर आघात करने वालों को वे बख्शते नहीं, लेकिन बीते डेढ़ दो वर्षों में गुजरात को जाति-जमात में बांट दिया गया है। कांग्रेस ने पूरे देश में जिस तरह से जातीय विद्वेष फैलाया है उसने गुजरात को भी अपने निशाने पर ले लिया है। यूं कहें कि गुजरात को फूट डालो राज करो की प्रयोगशाला बनाने की पूरी कोशिश की है। दलित, ओबीसी और पटेलों में बांट कर कांग्रेस ने अपना उल्लू सीधा करने की कुत्सित कोशिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबको जोड़ने की बात कहते हैं और कांग्रेस पार्टी तोड़ो और राज करो की नीति पर चलती है। बड़ा सवाल यही है कि क्या गुजराती अस्मिता पर आघात करने वालों और गुजराती स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले लोगों को प्रदेश के लोग अपना समर्थन देंगे?
पाटीदारों के मान-सम्मान पर हार्दिक का हथौड़ा
हार्दिक पटेल अपने लोगों यानी पाटीदारों के लिए न्याय चाहता है। उनका मानना है कि अनुचित आरक्षण नीति के कारण उनके समुदाय के लोगों के साथ अन्याय और उपेक्षा किया गया है। दरअसल हार्दिक एक औसत छात्र थे जिन्होंने दो असफल प्रयासों के बाद किसी तरह से अपने स्नातक को सहजानंद कॉलेज से पूरा किया। पढ़ाई में असफल होकर राजनीति में आ गए। उन्होंने उस सशक्त समुदाय को निशाना बनाया जो कभी भी कुछ देने की प्रवृति रखता है मांगने की नहीं, लेकिन हार्दिक पटेल ने अपनी राजनीति के लिए पाटीदारों को कमजोर दिखाया और आरक्षण की मांग की। कहां देश में आरक्षण खत्म करने की बात होती तो हार्दिक पटेल ने इसे राजनीति के पेंच में फंसा दिया। पाटीदार के अधिकारों का एकमात्र संरक्षक होने का हार्दिक पटेल का दावा सिर्फ समुदाय में लोकप्रिय बने रहने के लिए और अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए है।