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क्या उपराष्ट्रपति पद की मर्यादा के अनुरूप है गोपाल कृष्ण गांधी का आचरण?

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विपक्ष ने गोपाल कृष्ण गांधी को अपना उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया है। लेकिन सवाल यह कि क्या वे इस पद के लिए सही हैं? दरअसल उनका एकपक्षीय आचरण देश के लोकतांत्रिक मिजाज से मेल नहीं खाता है। संविधान के प्रति दायित्वों के निष्पक्ष निर्वहन को लेकर भी सवाल हैं। कांग्रेस के प्रति उनकी आसक्ति कहीं से भी उपराष्ट्रपति पद की मर्यादा के अनुरूप नहीं है। कांग्रेस के प्रति वफादारी और पीएम मोदी के विरोध की उनकी नीति जगजाहिर है। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, तब भी गोपाल गांधी ने लोकतंत्र का अपमान कर उनका विरोध किया। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को वे ‘बहुसंख्यकवाद’ की उपज करार देकर देश की जनता का अपमान करते रहे हैं। 2014 में जब से पीएम मोदी ने देश की कमान संभाली है, गोपाल गांधी का एक मात्र एजेंडा है पीएम मोदी का खुला विरोध। कभी वे पीएम मोदी के नाम से अखबारों में खुला खत लिखते हैं तो कभी उनके विचारों को अनुचित ठहराते हैं। आइये हम सबूत के तौर पर आपको दिखाते हैं उनके लिखे कुछ आलेख, जो कहीं से भी उपराष्ट्रपति जैसे सम्माननीय पद पर बैठने वाले का तो नहीं हो सकता।

11, जुलाई2017 को THE WIRE में लिखे अपने लेख Modi Was Ill-Advised to Visit Israel. Worse, to Make It a Love Fest में गोपाल कृष्ण गांधी ने पीएम मोदी के इजरायल दौरे को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, ”पीएम मोदी का इजरायल दौरा अगर आपत्तिजनक नहीं है तो क्या फिलीस्तीन एक मिथक है।” गोपाल कृष्ण गांधी को शायद यह नहीं पता कि पीएम मोदी के दौरे से कुछ दिन पहले ही फिलीस्तीन के राष्ट्राध्यक्ष भारत आए, और पीएम मोदी से मिले थे। पीएम मोदी ने इजरायल से आने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में ही फिलीस्तीन के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के MoU को मंजूरी दे दी। जाहिर है पीएम मोदी के लिए फिलीस्तीन का भी उतना ही महत्व है जितना कि इजरायल का।

4, मार्च, 2017 को THE WIRE में लिखे अपने लेख ”Yes, Prime Minister, It Does Take Hard Work” में गोपाल कृष्ण गांधी ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बीच विचारों के टकराव को अपनी लेखनी का आधार बनाया। लेकिन गोपाल गांधी यह भूल गए कि वे लोकतांत्रिक देश-समाज में रहते हैं, जहां विचारों का टकराव आम है। लेकिन गोपाल गांधी को यह क्यों नहीं दिखता कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पीएम मोदी के बारे में कितना कुछ अच्छा कहा है। राष्ट्रपति इस बात को साफ-साफ मानने से गुरेज नहीं करते कि पीएम मोदी अब तक के सफल प्रधानमंत्रियों में से एक है।

30 जनवरी, 2017 को THE HINDU अखबार के एक आलेख में गोपाल कृष्ण गांधी के एक वक्तव्य, ”Fear rules India”, को कोट करते हुए एक आर्टिकल छपा। National Campaign for People’s Right to Information (NCPRI)के एक व्याख्यान में गांधी ने कहा, ”भारत में वर्तमान में भय, अविश्वास और धन की शक्तियों का शासन किया जा रहा है।” उन्होंने इसके लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान गाये जाने की बाध्यता पर सवाल उठाते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधा था। लेकिन गोपाल कृष्ण गांधी को यह नहीं पता था कि राष्ट्रगान का आदेश माननीय न्यायालय का है, न कि पीएम मोदी की सरकार का। यही नहीं राष्ट्रगान का विरोध कर गोपाल गांधी क्या अपना देशद्रोही मानसिकता का प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं?

26 जनवरी, 2017 को गोपाल कृष्ण गांधी ने THE HINDU अखबार के एक आलेख के जरिये पीएम मोदी के नाम एक खुला खत लिखा, नाम दिया ”Heed this 67-year-old tryst”। इस आलेख में गोपाल कृष्ण गांधी ने देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री को शर्मनाक तरीके से तानाशाह साबित करने की कोशिश की है।

10 जनवरी, 2017 को इंडिया टुडे कन्क्लेव में गोपाल कृष्ण गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ”PM Modi reduced Gandhi to his spectacles; Kejriwal, Kanhaiya hope for new politics.” राजदीप सरदेसाई के साथ बातचीत को आधार बनाते हुए India today.in में उनके वक्तव्य के साथ पूरी बातचीत का सार छापा गया। गोपाल गांधी की बातों से साफ है कि उन्हें केजरीवाल और कन्हैया में उम्मीद दिखती है, लेकिन पीएम मोदी के प्रति उनका कितना दुराग्रह है यह भी दिखता है।

16 जून, 2016 को THE HINDU अखबार में गोपाल कृष्ण गांधी का आलेख ”The general drift of society” छपी है। इसमें उन्होंने पीएम मोदी के शासन काल में ‘असहिष्णुता’ का मुद्दा उठाया है। उन्होंने लिखा है कि भारत में बौद्धिक जमात परेशान है, उन्हें अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार नहीं है।

19 मई, 2016 को THE WIRE में गोपाल कृष्ण गांधी का आलेख ”Re-Naming Akbar Road Is About Politics and Hindutva” छपा है। इसमें उन्होंने पीएम मोदी को यह कहकर कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है कि वे हिंदुत्ववादी राजनीति के आसरे देश की सत्ता पर काबिज रहना चाहते हैं। इस आलेख में उन्होंने डॉ. भीम राव अंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा है कि वे हिंदू राष्ट्र के खिलाफ थे।

7 अक्टूबर, 2013 को THE HINDU अखबार में अपने आलेख में गोपाल कृष्ण गांधी ने  ”the president speaks” राष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए इसे रबर स्टांप कहा। 

13 फरवरी, 2016 को THE HINDU में छपे गोपाल कृष्ण गांधी के आलेख ”The presidential prerogative” में राज्यों में राज्यपाल शासन लगाने के राष्ट्रपति के विशेषाधिकार को आधार बनाते हुए जनता पार्टी के दौरान राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग और पीएम मोदी के कार्यकाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं।

07 अप्रैल 2016 को THE HINDU में छपे आर्टिकल ”Mastering the drill of democracy” में गोपाल कृष्ण गांधी ने आपातकाल को दूर की स्मृति बताया है, लेकिन जन-जन के नेता पीएम मोदी पर देश में बहुसंख्यकवाद थोपने का आरोप लगाया है। 

21 अक्टूबर, 2015 को Scroll.in में गोपाल कृष्ण गांधी का एक इंटरव्यू ”The government’s response to rising intolerance is most worrisome” छपा है जिसमें उन्होंने अपने कुतर्कों के जरिए देश में असहिष्णुता के मुद्दे के लिए पीएम मोदी की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। 

18 अगस्त, 2014 को THE HINDU में गोपाल कृष्ण गांधी का एक आलेख ”Struck off in one blow” छपा है, जिसमें उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने के पीएम मोदी के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे अनुचित, दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक करार दिया है।

मई 2014 में गोपाल कृष्ण गांधी ने लिखे अपने ‘ओपेन लेटर’ को अपडेट कर THE HINDU अखबार में 13 अक्टूबर, 2016 को ”An open letter to Narendra Modi” नाम से दोबारा प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने उनकी सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों में भय व्याप्त होने की बात लिखी।

जाहिर है जो शख्स इतने दुराग्रहों से भरा है, राष्ट्रगान का विरोध करने से भी नहीं चूकता, अगर वो उपराष्ट्रपति भी बन जाए तो देश की नीयति क्या होगी?