Home विचार स्वतंत्रता संग्राम को लेकर झूठ फैलाना बंद करे कांग्रेस

स्वतंत्रता संग्राम को लेकर झूठ फैलाना बंद करे कांग्रेस

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कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक साल बाद फिर अपनी शर्मनाक टिप्पणी दोहरा दी जिसके लिए पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें झिड़की लगाई थी। सत्ता से दूर रहने के मलाल से पगे मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि- “आरएसएस और भाजपा नेताओं के घर का एक कुत्ता भी देश की आजादी के लिए शहीद नहीं हुआ था।” महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता अपनी जुबान पर नियंत्रण खो बैठे। कहा कि- “हमने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी है और त्याग किया है। इंदिरा गांधी ने देश की एकता के लिए अपनी जान दी। राजीव गांधी ने भी देश के लिए जान दी। बताएं क्या भाजपा, आरएसएस के किसी नेता के घर से एक कुत्ता भी देश की आजादी के लिए मरने निकला था? बताएं कि आपका कौन सा आदमी देश की आजादी के लिए जेल गया।”

आजाद हिंद फौज के 26 हजार शहीद सैनिक कौन थे?
खड़गे की बदजुबानी पर तो क्या कहा जाए लेकिन एक बात तय है कि उन्हें न तो देश के स्वतंत्रता संघर्ष का सम्यक ज्ञान है और ना ही स्वतंत्रता के बाद देश की एकता अखंडता के लिए दी गई शहादत का। कांग्रेस नेताओं की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वो स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले उन अमर बलिदानियों को शहीद मानते ही नहीं जिनका कांग्रेस से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था। क्या खड़गे को पता है कि 1943 से 1945 के बीच फिरंगी हुकूमत से लोहा लेते हुए आजाद हिंद फौज के 26 हजार जांबाज सैनिक शहीद हुए थे। क्या खड़गे को ये बताने की आवश्यकता है कि आजाद हिंद फौज से कांग्रेस का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। उनके मन में तो एक ही भाव था राष्ट्रवाद। मां भारती को फिरंगियों के चंगुल से मुक्त कराना ही उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य था।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर के लिए शहीद हुए
यूं तो आजादी की लड़ाई में प्राणों की आहूति देने वाले दक्षिणपंथी विचारधारा के बलिदानियों की सूची काफी लंबी है। लेकिन यहां उनका जिक्र भी जरूरी हो जाता है जिन्होंने आजादी के बाद देश की अखंडता और एकता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। ये जानते हुए भी कि अखंड भारत की उनकी मुहिम सत्ताधारी राजनेताओं को रास नहीं आ रही और इस मुहिम को जारी रखने की वजह से उनकी हत्या की जा सकती है वे पीछे नहीं हटे और आखिर में शहीद हुए। ऐसे अमर बलिदानियों में पहला नाम है जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का। आरएसएस और भाजपा नेताओं के घर का एक कुत्ता भी देश की आजादी के लिए शहीद नहीं हुआ था, कहने वाले खड़गे आज ये बताएं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या किसने और क्यों की?

श्यामा प्रसाद मुखर्जी के खून से किसके हाथ रंगे हैं?
श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर के आधे-अधूरे विलय से खुश नहीं थे और धारा 370 हटाकर उसे भारत का अखंड भू-भाग बनाने का आंदोलन चला रहे थे। बात अप्रैल 1953 की है। तब मुखर्जी धारा 370 हटाने के मकसद से कश्मीर कूच के लिए दिल्ली के दरियागंज में सत्याग्रहियों को इकट्ठा कर रहे थे। उनके आह्वान पर देश भर के सत्याग्रही दिल्ली में जुटने लगे। मई में हजारों सत्याग्रहियों के साथ वो कश्मीर के लिए रवाना हो गए। लेकिन 11 मई 1953 को बिना परमिट जम्मू-कश्मीर आने के नाम पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया और 23 जून 1953 को हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थियों में उनकी मौत हो गई। कश्मीर कूच करने से पहले सत्याग्रहियों को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा था कि उनकी हत्या कराई जा सकती है और उनकी आशंका निर्मूल नहीं थी। ये जानते हुए भी देश की अखंडता के लिए उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। खड़गे साहब क्या आप श्याम प्रसाद मुखर्जी को शहीद नहीं मानेंगे। आप क्यों मानेंगे? तब की नेहरू सरकार ने तो उनकी मौत कैसे हुई इसकी जांच तक नहीं करवाई। श्याम प्रसाद की माता जी योगमाया के एक पत्र के जवाब में नेहरू ने कहा था कि मैं इसी निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं है।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय देश के सुनहरे भविष्य के लिए शहीद हुए
ऐसे अमर बलिदानियों में दूसरा नाम है पंडित दीन दयाल उपाध्याय का। खड़गे ये बताएं कि क्या पंडित जी हत्या उस वक्त नहीं की गई जब वो राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर राष्ट्रवाद और समाजवाद का राजनीतिक फॉर्मूला तैयार कर रहे थे। ये फॉर्मूला कांग्रेस के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा था। 10-11 फरवरी की रात में उनकी लाश मुगलसराय स्टेशन(तत्कालीन नाम) के यार्ड में मिली थी। जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष की मौत के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ सका। सीबीआई ने अपनी जांच में दो चोरों को उनकी हत्या का गुनहगार ठहराया था जिसे कोर्ट ने भी मानने से इंकार कर दिया था। सीबीआई ने दो सप्ताह के भीतर ही केस को सुलझाने का दावा किया था। बाद में 70 सांसदों के आग्रह पर जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ का एक सदस्यीय आयोग बनाया गया। इस आयोग ने भी अपनी जांच में सीबीआई के नतीजों को सही ठहरा दिया।

अगर पंडित जी की हत्या नहीं होती और समाजवाद और राष्ट्रवाद का फॉर्मूला उस वक्त जमीन पर उतर जाता तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। कहने की जरूरत नहीं कि सुनहरे भारत के सपने की वजह से ही दीन दयाल उपाध्याय को अपनी जान गंवानी पड़ी। ऐसे में कांग्रेस नेताओं को ये झूठ फैलाना अब बंद कर देना चाहिए कि देश के लिए सिर्फ उन्हीं की पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शहादत दी।

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