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अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बाद फ्रांस भी भारत के साथ

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फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों के साथ नरेंद्र मोदी

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सहयोग बढ़ाने के लिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बाद फ्रांस भी भारत के साथ आना चाहता है। भारत के सबसे पुराने रणनीतिक भागीदारों में एक फ्रांस ने कहा है कि हम भी भारत के साथ बहुपक्षीय गठबंधन से जुड़ने के लिए तैयार हैं। भारत में फ्रांस के राजदूत एलेक्जेन्डर जिगलर ने कहा है कि यह मुद्दा दोनों पक्षों के बीच होने वाली उच्च स्तरीय वार्ता में प्रमुखता से उठेगा। जिगलर की यह टिप्पणी भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अधिकारियों के बीच मनीला में चार पक्षीय बैठक की पृष्ठभूमि में आई है। इन चार देशों के अधिकारियों की यह बैठक मनीला में भारत-आसियान सम्मेलन के इतर हुई थी। चारों देशों ने हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपना साझा हित माना है।

फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां यीव ले द्रयां भारत की यात्रा पर आने वाले हैं और वह शुक्रवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात करेंगे। नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक वह फ्रांस के रक्षा मंत्री के रूप में पहले कई बार भारत आ चुके हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों की भी यात्रा अगले साल की शुरुआत में होने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक इन यात्राओं के दौरान आगे की ठोस रूपरेखा तय होगी। बताया गया कि फ्रांस के विदेश मंत्री की यात्रा में वन बेल्ट वन रोड समेत कनेक्टिविटी के सभी मुद्दों पर चर्चा होगी।

फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां यीव ले द्रयां

सूत्रों ने साफ कहा कि हम सभी तरह की कनेक्टिविटी के समर्थन में है लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय नियमों और संप्रभुता को सम्मान करने वाली होनी चाहिए। वन बेल्ट वन रोड को भारत अपनी संप्रभुता पर चोट मानता है, क्योंकि इसका एक हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान से गुजरता है जिसे भारत अपना मानता है।

चार देशों ने बनाया नया ‘फ्रंट’
भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और उसके भविष्य की स्थिति पर भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका एकसाथ आए हैं। चारों देशों ने रविवार (12 नवंबर) को मनीला में पहली बार चतुष्कोणीय वार्ता की। दरअसल चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत के बीच इन देशों ने माना है कि स्वतंत्र, खुला, खुशहाल और समावेशी इंडो-पसिफिक क्षेत्र से दीर्घकालिक वैश्विक हित जुड़े हैं।

चीन को जवाब है चार देशों का मोर्चा
दरअसल चीन अपने महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट वन वेल्ट वन रोड (OBOR) के जरिए पूरी दुनिया में दबदबा बढ़ाना चाहता है। दक्षिण चीन सागर के इलाके में उसका कई पड़ोसी देशों से विवाद है। हिंद महासागर के क्षेत्र में भी वह अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगा है। ऐसे में यह नया ‘मोर्चा’ काफी महत्व रखता है।

आतंकवाद पर भी चार देशों में मंथन
गौरतलब है कि इस नये मोर्चे के चारो देश लोकतांत्रिक हैं और इनके बीच एक साथ होने वाली यह पहली चतुष्कोणीय बैठक थी। इसमें आतंकवाद से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा की गई। इस दौरान इंडो-पसिफिक क्षेत्र में पारस्परिक हित के कई मसलों पर चर्चा की गई। ‘इंटरकनेक्टेड क्षेत्र में शांति, स्थिरता और खुशहाली को बढ़ावा देने के लिए सहयोग बढ़ाने पर फोकस था।

दीर्घकालिक हितों के लिए बड़ा मोर्चा
चारों देशों के बीच सहमति बनी कि वे मिलकर एक स्वतंत्र, खुला, समृद्ध और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र सभी देशों और बड़े पैमाने पर दुनिया के दीर्घकालिक हितों के लिए कार्य कर सकते हैं। फ्रांस के इसके साथ जुड़ने से इसमें और मजबूती आएगी।

मोदी

ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी पर आगे बढ़ता भारत
गौरतलब है कि आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलयेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) भारत की विदेश नीति के केन्द्र रहे हैं। 1992 में तत्कालीन पीएम पी. वी. नरसिम्हा राव ने लुक ईस्ट पॉलिसी लॉन्च किया था। क्षेत्रीय देशों के संगठनों से सहयोग बढ़ाने के लिए पीएम मोदी ने इसे एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बदल दिया।

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