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डोकलाम पर आलोचकों को भी करना पड़ रहा है पीएम मोदी की कूटनीति को सलाम  

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत ने उस चीन को बिना लड़े घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया जिसने 1962 में सीमा विवाद की आड़ में भारत पर हमला बोला था। चीन ने छल-प्रपंच के सहारे ये हमला तब किया था जब भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था। हमारा तत्कालीन नेतृत्व भी तब चीन की चाल को भांपने में नाकाम रहा था। महीने भर चले युद्ध में भारत को तब बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था।

चीन की धमकी के बहकावे में नहीं आया भारत

ढाई महीने पहले डोकलाम में शुरू हुए गतिरोध को लेकर भारतीय नेतृत्व ने जब चीन को ये समझाना शुरू किया कि वो ये भूल जाए कि ये 55 साल पहले वाला इंडिया है, तो चीन इस बात को लेकर जानकर भी अनजान बना रहा। भारत ने पहले दिन से चीन को अपना ये रुख एक लाइन में साफ कर दिया था कि डोकलाम गतिरोध का हल निकलेगा तो कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के जरिये लेकिन चीन इस बात पर अड़ा रहा था कि कोई भी बात तभी होगी जब भारत बिना शर्त डोकलाम से अपने सैनिकों को वापस बुलाये। वो आये दिन भारत को अलग-अलग तरीके आजमाकर धमकाने में लगा रहा। लेकिन भारत चीन की ऐसी किसी भी धमकी के बहकावे में आकर उत्तेजित नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में इस पूरे मामले में भारत परिपक्वता का परिचय देता रहा।

विरोधी भी हुए पीएम मोदी की कूटनीति के मुरीद

आज जब चीन को अपनी ही बात से पीछे हटना पड़ा है तो इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय मामलों के बड़े-बड़े जानकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक समझ का लोहा माना है। भारत की ये उपलब्धि ही कुछ ऐसी रही है जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले दिन से आलोचक रहे लोगों को भी डोकलाम मामले में पूरी दक्षता और सफलतापूर्वक निपटने के लिए पीएम मोदी को सलाम करने को मजबूर होना पड़ा है।

Tweet के जरिये बधाई संदेश:  

भारत की इस कूटनीतिक कामयाबी के लिए हर तरफ से बधाई संदेशों का तांता लग गया।  इनमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी विरोधी पार्टियों के नेताओं के साथ ही कुछ पत्रकार भी शामिल हैं जो पीएम मोदी के किसी भी कदम की आलोचना से चूकते नहीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर पीएम मोदी और उनकी टीम को बधाई देते हुए लिखा कि ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने बिना किसी गरज और धमक के चीन पर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी।

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी विदेश मंत्रालय और पीएमओ को अपनी बधाई दी है।

अपने रुख पर डटा रहा भारत 

दरअसल भारत डोकलाम में चीन की किसी भी हिमाकत की हवा निकालने के लिए अपने सैनिकों को मुस्तैद करने के साथ ही चीन की हर चाल को पढ़ता रहा। सूत्रों के मुताबिक मामले में भारत का पक्ष यही रहा कि डोकलाम निश्चित रूप से चीन और भूटान के बीच का मामला है। चीनी सैनिक वहां पहले भी गश्त पर रहे हैं इससे भारत को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन भारत को इस क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क निर्माण पर सख्त ऐतराज है क्योंकि इससे भारत के सुरक्षा हितों को खतरा है। भारत का साफ-साफ मानना था कि अगर चीन वहां पर निर्माण कार्य नहीं करता है तो इससे क्षेत्र में शांति और स्थिरता की गारंटी बनी रहेगी।

चीन को महसूस हो गई भारत की ताकत  

भारत ने जिस साफगोई से अपना पक्ष रखा उसके बाद चीन को ये लग गया कि भारत पर किसी भी तरह का दबाव अब काम नहीं आने वाला। ऊपर से अमेरिका और जापान ने भी कूटनीति से गतिरोध का हल निकालने के भारत के रुख को अपना समर्थन दे दिया जिसके बाद अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में भी चीन की गर्दन फंस चुकी थी। चीन को ये महसूस हो गया कि ये सचमुच 1962 का भारत नहीं है। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में नई शान के साथ बढ़ता न्यू इंडिया है जो किसी भी गीदड़भभकी से घबराने वाला नहीं है।

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