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मायावती के आदेश से पहले केसरिया, फिर नीला हुआ बाबा साहेब का रंग!

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उत्तर प्रदेश के बदायूं में डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की प्रतिमा विखंडित कर दी गई। इस मुद्दे को लेकर खूब राजनीति की गई। इसे भारतीय जनता पार्टी की साजिश करार दिया गया और बाबा साहेब का अपमान कहा गया। हालांकि प्रशासन ने त्वरित एक्शन लेते हुए मूर्ति दोबारा बनवा दी और मामले को खत्म करने का प्रयास किया। लेकिन राजनीति यहीं नहीं रुकी और मूर्ति के केसरिया रंग को लेकर पॉलिटिक्स शुरू हो गई। कहा जाने लगा कि बाबा साहेब तो नीले रंग का सूट पहनते थे, फिर केसरिया रंग कैसे? दरअसल यह पूरा प्रकरण रंगों के आधार पर पॉलिटिक्स करने वाले उन लोगों की पोल खोलता है, जो हरे रंग को मुस्लिमों से, नीले रंग को दलितों से और केसरिया रंग को हिंदुओं से जोड़कर देखता है।

बीएसपी ने भगवे रंग से पेंट करवाई थी डॉ. आंबेडकर की मूर्ति
ऐसी खबरें हैं कि मयावती के कहने पर इसकी एक सुनियोजित साजिश रची गई! गौरतलब है कि इस पूरे प्रकरण का मास्टरमाइंड बदायूं जिला बहुजन समाज पार्टी का जिलाध्यक्ष हिमेंद्र गौतम है। हिमेंद्र गौतम ने ही आगरा से आंबेडकर की केसरिया रंग की मूर्ति बनवाई और गांव में लगवा भी दिया। इसके बाद ये हल्ला भी मचा दिया कि योगी राज में डॉ. आंबेडकर को भगवा कर दिया गया। इसे बाबा साहेब का अपमान करार देकर विपक्ष ने बवाल मचाया। फिर इसी नेता ने आकर आंबेडकर की मूर्ति को नीला भी कर दिया। हालांकि इस मामले की पूरी सच्चाई सामने आ गई है और बाबा साहेब के नाम पर प्रतिपक्ष की ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ का पर्दाफाश भी हो गया है।

पोल खुली तो भाग खड़े हुए बीएसपी जिलाध्यक्ष हिमेंद्र गौतम
हिमेंद्र गौतम ने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख भी किया है कि ग्रामीणों के सहयोग और सहमति से मूर्ति और रंग पसंद की गई। गौरतलब है कि मूर्ति को आगरा से बनावकर लाया गया और गांव के लोगं के सामने ही मूर्ति को माला भी पहनाई गई। हिमेंद्र गौतम भी वहां पर मौजूद थे और उन्होंने भी माला पहनाई थी। बड़ी बात ये कि हिमेंद्र गौतम ने ही डॉ. आंबेडकर की मूर्ति को नीले रंग से पेंट करवाया। लेकिन पेंट करवाते समय इस बसपा नेता को लोगों ने पहचान लिया और पूछना शुरू कर दिया कि- भैया भगवा भी तुमने किया और नीला भी तुमने ही किया, आखिर क्यों? जाहिर है जवाब न देकर जनाब वहां से भाग खड़े हुए।

भाजपा पर दोष मढ़कर परवान चढ़ाई विभाजनकारी राजनीति
सिर्फ और सिर्फ सत्ता पाने के लिए घटिया और गंदी राजनीति का इससे घिनौना उदाहरण नहीं हो सकता। जिस बाबा साहेब के नाम पर ये दल राजनीति कर रहे हैं, वही पहले मूर्ति तोड़ते हैं, और फिर उसके रंगों पर राजनीति करते हैं। वास्तविकता ये है कि देश में किसी भी तरह से नफरत की आग लगाने की साजिश रची गई है। विशेषकर विभिन्न समाज के प्रतीकों-महापुरुषों का अपमान कर विभाजनकारी राजनीति की जा रही है।

देश-समाज को टुकड़ों में बांटने की सुनियोजित साजिश
बाबा साहेब की मूर्ति तोड़ने के इस प्रकरण में भी असामाजिक तत्वों ने समाज में नफरत के बीज बोने शुरू कर दिए थे। सोशल मीडिया से सामाजिक विद्वेष फैलाने की कोशिशें होने लगीं। कांग्रेस ने अपने मीडिया सेल को अलर्ट कर दिया और मायावती ने धमकियां तक देनी शुरू कर दीं। हमेशा बाबा साहेब का अपमान करने वाली समाजवादी पार्टी भी सियासत में कूद गई और कहा कि बाबा साहेब के भगवाकरण की साजिश है।

बाबा साहेब के नाम पर बवाल खड़ा करना चाहता है विपक्ष
दरअसल कभी सांप्रदायिक आधार पर तो कभी जाति के आधार पर देश के टुकड़े करने की चाहत रखने वाली जमात एक बार फिर सक्रिय है। ये असामाजिक तत्व हर राज्य में माहौल खराब करने की कोशिश में लगे हैं। हालांकि सच्चाई ये है कि अपने आपको दलितों का हिमायती कहने वाले राजनीतिक दलों ने हमेशा दलितों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। जब जरूरत पड़ी दलितों को मोहरा बनाकर अपनी राजनीति चमकाई और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। जाहिर है एक बार फिर बाबा साहेब के अपमान के नाम पर बवाल खड़ा करने की कोशिश हो रही है।

‘मूर्ति तोड़ो पॉलिटिक्स’ के आसरे समाज को गुमराह करने की साजिश
दरअसल इस ‘मूर्ति संग्राम’ के पीछे सिर्फ और सिर्फ सियासत है। जाति आधारित राजनीति को हवा देने की पुरजोर कोशिश लगातार जारी है। एक बार फिर 1990 के दशक का वही दृश्य दोहराने की कोशिश हो रही है जिसने हिंदू समाज में दरार पैदा कर दिया था। बहरहाल इस पूरे मामले से अब पर्दा उठ चुका है और जो खुलासा हुआ है वह हैरान करने वाला है और समाज की आंखें खोलने वाला भी।

महापुरुषों के प्रति विशेष सम्मान का भाव रखते हैं प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर, 2015 को मन की बात में लोगों से देश के महापुरुषों और शहीदों के प्रति भावनात्मक लगाव को व्यवाहारिक रूप से प्रकट करने का आह्वान किया था। इसके बाद तो पूरे देश में महापुरुषों की मूर्तियों की सफाई का एक अभियान सा चल पड़ा। हर राज्य, हर जिले, हर शहर से लेकर गांव तक में स्थापित महापुरुषों की मूर्तियों, स्मारकों के परिसर को साफ करने के बाद, उन फोटो को #StatueCleaning के साथ सोशल मीडिया शेयर भी किया। हजारों ऐसे फोटो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुए।

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