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मोदी राज में DBT से कस रहा भ्रष्टाचार पर नकेल

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज सरकारी धन सीधे गरीबों के घरों तक पहुंच रहा है। एक जमाना था जब सब्सिडी का पैसा लाभार्थियों तक पहुंचता ही नहीं था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो एक बाद खुद कहा था, कि केंद्र सरकार जितने पैसे देती है उसका केवल 15 प्रतिशत ही सही जगह तक पहुंचता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्थिति को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। अब पैसा बिचौलिए की जगह सीधे गरीबों के खाते में पहुंचता है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 1.5 लाख करोड़ रुपये की रकम को सीधे जनता के खातों तक पहुंचाया है। जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में दोगुनी है। 2018-19 में केंद्र सरकार के कल्याणकारी बजट का तीन-चौथाई डीबीटी के जरिए लाभार्थियों के खातों तक पहुंचाया जाएगा। 2013-14 में यूपीए के कार्यकाल के दौरान 7,367 करोड़ रुपये का डीबीटी हुआ था, लेकिन JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) के कारण डीबीटी के जरिए भुगतान में काफी मदद मिली, जो 2014-15 में बढ़कर 38,926 करोड़ रुपये और 2015-16 में 61, 942 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।

सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का पैसा सीधे खातों में भेजकर (डीबीटी से) सरकार ने 2014 से लेकर अबतक 75 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत की है।

जब‘गरीबी हटाओ’ का केवल नारा ही था 
आजादी से लेकर साल 2014 तक के 67 सालों में से करीब 60 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस ने गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनायीं, यहां तक कि ‘गरीबी हटाओ’ का बहुचर्चित नारा दे डाला, लेकिन गरीबों के घर के दुःख-दर्द कम नहीं हुए। क्योंकि इस दौरान गरीबों की योजनाओं के धन को जनता के ही प्रतिनिधि, सरकारी अफसरों की मिलीभगत से डकार लेते थे। इस दुष्चक्र की कमर को DBT ने पूरी तरह से तोड़ दिया। एक तरह से देखें तो DBT, बैंक खाता, आधार संख्या और मोबाइल नंबर का एक ‘त्रिदेव’ है। इस ‘त्रिदेव’ में प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को जन धन योजना से की। इस योजना ने सभी गरीब परिवारों को एक बैंक खाता दिया और इन बैक खातों को आधार संख्या और मोबाइल नंबर से जोड़ दिया गया। एक साल के अंदर ही देश के लगभग सभी गरीब बैंकों से सीधे जुड़ गये। गरीबों के बैंको से जुड़ते ही सरकार ने उनके खातों में धन देना शुरू कर दिया। देखते ही देखते, गरीबों के घर की दुनिया बदल गयी।

आज गरीबों के पास खाते हैं– आज देश में गरीबों के पास 31.14 करोड़ जन धन खाते हैं और 120 करोड़ लोगों के पास आधार संख्या है। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसके अतिरिक्त इनके पास 142 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं। 

गरीबों के खातों में सरकारी धन सीधे पहुंचता है– सरकार की तरफ से गरीबों को रोजगार, पेंशन, स्कॉलरशिप, गैस सब्सिडी और अन्य कामों के लिए अलग-अलग योजनाओं के जरिए धन दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की DBT योजना आने से पहले इन योजनाओं से पैसा सरकारी विभाग के कर्मचारी, गरीबों में बांटते थे। इस बंटवारे में कुछ ही हिस्सा गरीबों के हाथ लगता था, बाकी का सारा हिस्सा सरकारी तंत्र हड़प जाता था। इससे गरीबों का हक तो मारा ही जाता था, भ्रष्टाचार भी बेहिसाब बढ़ रहा था।

DBT से जुड़ी गरीबों की सरकारी योजनाएं -आज स्थिति बदल चुकी है। सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों का धन गरीबों के खातों में सीधे पहुंच रहा है। साल दर साल इन योजनाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 2014 में जहां मात्र 28 योजनाओं का धन सीधे खातों में जाता था, आज डीबीटी के तहत करीब 412 योजनाएं है और इसी वित्तीय वर्ष में 20 अन्य योजनाओं को भी आधार से लिंक किया जा सकेगा। सरकार सभी सरकारी योजनाओं (करीब 450) को डीबीटी के तहत लाने जा रही है। इनमें रोजगार, पेंशन, छात्रवृत्ति, गैस सब्सिडी और अन्य तमाम तरह की सरकारी योजनाएं शामिल हैं। 2014 से 2017-18 के बीच योजनाओं की संख्या में 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह अपने आप में इस योजना की सफलता की कहानी कहती है।

अर्थव्यवस्था की सफाई हो रही लगातार
नोटबंदी के बाद करीब 18 लाख संदिग्ध खातों की पहचान हो चुकी है। 2.89 लाख करोड़ रुपए जांच के दायरे में हैं और एडवांस्ड डेटा ऐनालिटिक्स के जरिए 5.56 लाख नए केसों की जांच की जा रही है। साथ ही साढ़े चार लाख से ज्यादा संदिग्ध ट्रांजेक्शन पकड़े गए हैं। नोटबंदी के बाद करेंसी सर्कुलेशन में 21 फीसदी तक की कमी आई है। नोटबंदी के बाद 23.22 लाख बैंक खातों में लगभग 3.68 लाख करोड़ रुपये के संदिग्ध कैश जमा हुए, जिसका पता सरकार को लग गया। नोटबंदी के बाद तीन लाख करोड़ से अधिक रकम बैंकों में जमा कराई गई। 1833 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति की भी जब्ती और कुर्की की गई।

आधार से योजनाओं को जोड़ना
यूआईडीएआई यानि यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथारिटी ऑफ इंडिया अब तक देश के 98 फीसदी व्यस्कों को आधार से जोड़ चुकी है। बाकी बचे लोगों को भी आधार से जल्दी ही जोड़ लिया जाएगा। भ्रष्टाचार मिटाने की ओर इसे एक अहम कदम माना जा रहा है। अब तक 78 प्रतिशत एलपीजी कनेक्शन, 61 प्रतिशत राशन कार्ड, 69 प्रतिशत मनरेगा कार्ड और 31 करोड़ बैंक खाते आधार नंबर से जोड़े जा चुके हैं। आधार के कारण तमाम सरकारी विभागों और मंत्रालयों से लाभ लेने वाले लोगों के फर्जीवाड़े का पता चल रहा है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है, बल्कि सरकार का हजारों करोड़ रुपया भी बच रहा है।

डिजिटलाइजेशन पर जोर
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की दिशा में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री के प्रयास से ही आज भारत डिजिटल लेनदेन में सुपर पावर बनने की राह पर है। नोटबंदी के बाद खुदरा डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि हुई है और डिजिटल भुगतान के माध्यम आईएमपीएस से लेनदेन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। 

 

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