Home विचार अपराधियों-आतंकियों की शरणस्थली कांग्रेस पार्टी

अपराधियों-आतंकियों की शरणस्थली कांग्रेस पार्टी

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इस समय एक बार फिर से कांग्रेस के चर्चे हर जबान पर हैं। वजह है, टाइम्स नाउ चैनल के हाथ लगा वह पत्र, जिसमें कांग्रेस द्वारा अपने शासनकाल में सत्ता के निरंतर दुरुपयोग का एक और मामला सामने आया है। वर्ष 2004 में सोनिया गांधी द्वारा तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को यह निर्देश दिए गए थे कि वे तहलका न्यूज पोर्टल की फाइनेंशियल प्राइवेट फर्म ‘फर्स्ट ग्लोबल’ के विरूद्ध चल रही सभी प्रकार की जांच को रुकवा दें।

तहलका-जांच मामले में सत्ता का दुरुपयोग

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2004 में सत्ता में आने के बाद सोनिया गांधी ने तहलका के विरूद्ध चल रहे सभी मामले खारिज करवाने में अहम भूमिका अदा की थी। सोनिया गांधी द्वारा इस पत्र के लिखे जाने के छह दिन बाद ही तहलका को उन सभी मामलों में राहत मिल गई। यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि उस समय तहलका की सारी ‘पत्रकारिता’ का केंद्र-बिंदु केवल एक ही था। वह था, भाजपा के नेताओं के पीछे पड़कर स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर झूठे मामलों में उन्हें फंसाना और देश की जनता को गुमराह करना। सोनिया गांधी द्वारा लिखे इस पत्र के सामने आने से किसी को भी यह समझने में जरा भी परेशानी नहीं होगी कि भाजपा पार्टी और उससे जुड़े लोगों को, पूरे योजनाबद्ध रूप से किस के इशारों पर फंसाया जा रहा था। सत्ता और पत्रकारिता के षड्यंत्र भरे गठबंधन का इससे बढ़कर उदाहरण किसी को ढूंढ़े नहीं मिलेगा।

अपराधियों-आतंकियों की शरणस्थली

देश में ‘ईमानदार पत्रकारिता’ का शोर मचाने वाले तहलका प्रमुख तरुण तेजपाल इस समय अपनी ही सहयोगी के बलात्कार की कोशिश के मामले में जेल की हवा खा रहे हैं। कांग्रेस के पहले की इन हरकतों से यह स्पष्ट हो गया है कि उसके केवल सत्ता में वापस लौटने की देर है, तरुण और तरुण जैसे न जाने कितनों की ‘राहत की व्यवस्था’ वह पलक झपकते ही कर देगी।

बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की शरणस्थली कांग्रेस का यह चेहरा देश के लिए बिल्कुल नया नहीं है। हो भी कैसे? क्या देश भुला सकता है कि इसी कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हजारों सिक्खों के नरसंहार पर यह बयान दिया था, ‘जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती ही है।‘ जिस पार्टी का अस्तित्व ही अपनी राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के लिए लाखों लोगों की बलि चढ़ाकर पनपा हो, जिस पार्टी में अपनी सत्ता कायम रखने के लिए पूरे देश से उसकी अभिव्यक्ति की आजादी ‘आपातकाल’ के नाम पर छीन ली गई हो, जिसमें स्वतंत्र भारत में वंशवाद के नाम पर फलने-फूलने का सबसे लंबा इतिहास रहा हो, जो पार्टी आज तक उस गांधी के नाम को भुना रही है, जिन्होंने बंटवारे के बाद ही उससे संबंध तोड़ लिए थे, कोई आश्चर्य नहीं कि वह पार्टी लगातार ऐसे कारनामे करती रही है और करती रहेगी, जो उसी की तानाशाही का इतिहास बार-बार दोहराते रहे हैं।

घटिया पार्टी की घोटालेबाजियां

कांग्रेस का इतिहास घोटाले करने-करवाने का रहा है और वर्तमान उसके परिणामों पर पर्दा डालने का। 80 के दशक का बहुचर्चित बोफोर्स घोटाला देशवासी अभी भूले नहीं हैं, जिसके छींटें कांग्रेस के ‘मिस्टर क्लीन’ तक पड़े थे। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और हिंदुजा सहित कई बड़े नाम सामने आए थे। भारत में घोटालों और भ्रष्टाचार का ट्रेडमार्क कहा जाने वाला यह घोटाला देश की सुरक्षा से संबंधित था, इसलिए इसने पूरे देश के विश्वास को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला, जिसमें दूरसंचार क्षेत्र में अनुभनहीन कंपनियों को रेवड़ियों की तरह लाइसेंस बांटे गए। कांग्रेस के शासनकाल में और कई घोटाले हुए, जिनमें सत्यम घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोयला घोटाला, हेलीकॉप्टर घोटाला, टाटा ट्रक घोटाला, आदर्श घोटाला जैसे बड़े घोटालों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें ‘छोटे-छोटे’ घोटालों को तो अभी शामिल ही नहीं किया गया। क्या इन घोटालों की सरगना कांग्रेस को ऐसा करते हुए याद रहा कि इनका असर उन देशवासियों की सुरक्षा और विश्वास का मखौल उड़ाना है, जिसने दशकों तक इस देश की बागडोर इस पार्टी को सौंपे रखी।

मौकापरस्त कांग्रेस की गैर जिम्मेदार बयानबाजियां

कांग्रेस की राजनीति हमेशा से देश की जनता की भावनाओं को गलत रूप से भड़काने या उन्हें भुनाने की राजनीति रही है। स्वाभाविक है, जैसी पार्टी, वैसे उसके पालनहार। अगर आज राहुल गांधी अपने भाषणों में यही अंतर नहीं कर पाते कि ‘भ्रष्टाचार’ और ‘बलात्कार’ दो अलग शब्द हैं, ‘सवालों’ के जवाब मांगे जाते हैं, ‘जवाबों’ के सवाल नहीं तो इसमें उनका दोष नहीं है। उनकी तो शिक्षा-दीक्षा ही उन लोगों के बीच हुई है, जिनके द्वारा कही गई किसी बात का कोई अर्थ नहीं होता। समय-समय पर कांग्रेस के मुखिया, कांग्रेसी नेताओं और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की ऐसी-ऐसी बयानबाजियां सामने आती रही हैं, जिससे साफ पता चलता है कि वह समय पड़ने पर सत्ता के लिए देश को जख्म दे भी सकती है और फिर स्वार्थ की राजनीति करते हुए उन्हीं जख्मों पर मरहम लगाने का नाटक भी कर सकता है।

बटला हाउस कांड पर किया गया दोगलापन

बटला हाउस कांड पर दिया गया कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद का बयान देश की जनता अभी भूली नहीं होगी, जिसमें उन्होंने कहा था कि बटला हाउस कांड की तस्वीरें देख कर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। यह वही सोनिया गांधी हैं न, जिनकी जबान से एक भी शब्द उन जवानों के लिए नहीं निकला, जो उसी कांड में वीरगति को प्राप्त हुए थे। निकलता भी तो कैसे?  वहां तो सवाल मुस्लिम वोट-बैंक को भुनाने के सुनहरे मौके को हथियाने का था। शायद ऐसा करते हुए कांग्रेस भूल गई कि बटला हाउस कांड में मारे जाने वाले लोग तो आतंकी थे, मगर क्या उसे यह बात भी याद नहीं रही कि वह एक-दो नहीं, लाखों मुसलमान और हिंदुओं के नरसंहार की दोषी है, क्योंकि इस देश का बंटवारा हुआ ही उसकी स्वार्थपूर्ण राजनीति के चलते था। क्या उन पीड़ित परिवारों के लिए या सिक्ख दंगों में प्रभावित पीड़ित परिवारों के लिए आज भी दो शब्द हैं कांग्रेस की जबान पर? क्या कांग्रेस के आंसू केवल देशघातियों के प्रति सहानुभूति दर्शाने के लिए निकलते हैं?

संवेदनहीन कांग्रेसी नेताओं की करतूतें

इसी कांग्रेस के संदीप दीक्षित कभी सेना प्रमुख को ‘गुंडा’ बता देते हैं तो कभी दिग्विजय सिंह देश के लोकतांत्रिक ढंग से चुनकर आए प्रधानमंत्री के लिए घोर आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं। इतिहास केवल वही लिखवाता है, जो जीतकर जिंदा रह जाता है और जीती-जागती कांग्रेस दशकों से इस देश का वह इतिहास लिखवाती आई है, जो उसने चाहा; और उसके द्वारा लिखी गई इतिहास की किताब में उसी के द्वारा किए गए अपराधों-अन्यायों के लिए कोई पन्ना नहीं है। उसमें केवल विरोध के लिए देशहित में किए गए कार्यों तक का विरोध ही है, जैसा कि इस समय वह मोदी सरकार के प्रत्येक कार्य पर आए दिन करती रहती है।

 

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