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मोदी राज में सशक्त हुआ किसान, इस साल हुआ खाद्यान्नों का रिकॉर्ड उत्पादन

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है। प्रधानमंत्री के इसी विजन को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रही है। पिछले तीन वर्षों में सरकार द्वारा उठाई गईं अनेक नीतिगत पहलों के कारण मौजूदा वर्ष में देश में खाद्यान्‍न का रिकॉर्ड उत्‍पादन हुआ है। वर्ष 2017-18 के लिए देश में कुल 275.68 मिलियन टन खाद्यान्‍न उत्‍पादन हुआ है जो कि वर्ष 2013-14 में हासिल 265.04 मिलियन टन खाद्यान्‍न उत्‍पादन की तुलना में 10.64 मिलियन टन (लगभग 4 प्रतिशत) ज्‍यादा है। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह के अनुसार बागवानी फसलें जिनका पोषणिक सुरक्षा में अहम योगदान है, का भी वर्ष 2016-17 में रिकॉर्ड 305 मिलियन टन उत्‍पादन हुआ है। फलों का उत्‍पादन 93 मिलियन टन और सब्‍जी उत्‍पादन 178 मिलियन टन के आंकडे को पार कर गया है।

साफ है सिंचाई योजनाओं को पूरा करना, किसानों को निर्बाध बिजली पहुंचाना, नीम कोटेड यूरिया से कालाबाजारी रोकना जैसे तमाम कदम हैं, जिनकी वजह से किसानों के लिए खेती करना पहले की तुलना में आसान हो गया है। एक नजर डालते हैं मोदी सरकार की किसान कल्याणकारी योजनाओं पर।

अब छोटे पैक में मिलेगा यूरिया
किसानों की सहूलियत का ख्याल रखते हुए सरकार यूरिया के छोटे बैग मुहैया कराने पर विचार कर रही है। वर्तमान में किसानों को यूरिया 50 किलो के बैग में मिलता है। सरकार का प्रयास बैग के आकार को छोटा कर 45 किलो करने का है। सरकार मानना है कि इससे यूरिया की बचत होगी। दरअसल किसान अपने फसल में यूरिया की मात्रा तौल कर नहीं डालते हैं। बैग में यूरिया की मात्रा कम करने से इसकी खपत कम होगी।

यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो रहा भारत
एक वक्त था जब यूरिया की कालाबाजारी से किसान परेशान रहते थे। लेकिन मोदी सरकार की नीतियों से इसपर रोक लग गई है। दूसरी ओर सरकार ने देश को यूरिया उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का निर्णय लिया है। इस प्रयास में पुराने कारखानों को शुरू करने के साथ नए कारखानों की भी शुरुआत हुई है। कई राज्यों में बन रहे यूरिया कारखानों के निर्माण में भी कार्य तेज गति से चल रहा है। भारत सरकार गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी, तालचर और रामागुण्डम स्थित पांच उर्वरक संयत्रों का पुनरूद्धार कर रही है। गोरखपुर में निर्माणाधीन फैक्ट्री में यूरिया का उत्पादन वर्ष 2022 से शुरू हो जाएगा। इन संयत्रों में 65 लाख टन यूरिया का उत्पादन होना है। गौरतलब है कि देश में सालाना लगभग 310 लाख टन उर्वरक की जरुरत होती है। करीब 55 लाख टन उवर्रक आयात करना पड़ता है। 

नीम कोटिंग यूरिया से खेती बढ़ी, खाद का उपयोग घटा
नीम कोटेड यूरिया की पहल जमीन पर रंग ला रही है। इससे यूरिया की खपत में तो कमी आई ही है साथ में किसानों को खेती की लागत में कमी आई है। नीम कोटेड यूरिया के चलते खाद की बिक्री में कमी देखने को मिली है लेकिन अनाज की पैदावार में बढ़ोत्‍तरी दर्ज की गई है। साल 2012-13 से 2015-16 के बीच यूरिया की बिक्री 30 से 30.6 मिलियन टन के बीच रही। लेकिन 2017 में यह आंकड़ा 28 मिलियन टन पर आ गया और 2018 में इसके और घटने की संभावना है। यूरिया के अलावा केंद्र सरकार ने कई ऐसी योजनाएं बनाईं हैं जो किसानों के हित के लिए हैं। आइये देखते हैं इन्हीं में से कुछ महत्वपूर्ण कदम।  

गोबर-धन योजना से गांवों का होगा विकास
सरकार ने ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के अपने प्रयासों के तहत बजट 2018-19  में गोबर-धन यानि गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायो-गैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित किया जाएगा। समावेशी समाज निर्माण के दृष्टिकोण के तहत सरकार ने विकास के लिए 115 जिलों की पहचान की है। इन जिलों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सिंचाई, ग्रामीण विद्युतीकरण, पेयजल, शौचालय जैसे क्षेत्रों में निवेश करके निश्चित समयावधि में विकास की गति को तेज किया जाएगा और ये 115 जिले विकास के मॉडल साबित होंगे।

किसानों को लागत का डेढ़ गुना MSP 
किसानों की सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। इसके लिए मोदी सरकार ने किसानों के लिए प्रतिबद्धता को दिखाते हुए किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का ऐलान किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसानों को डेढ़ गुना मूल्य देने के लिए बाजार मूल्य और एमएसपी में अंतर की रकम सरकार वहन करेगी। इसके साथ ही, मोदी सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए 11 लाख करोड़ का फंड बनाने का भी ऐलान किया है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी फसलों को एमएसपी के अंतर्गत लाया जाएगा।

गांवों में ही किसानों को मिलेगा उपज का बाजार
देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए सरकार इन्हें में ध्यान रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगी। इसके लिए सरकार 22 हजार ग्रामीण हॉट को ग्रामीण कृषि बाजार में बदलेगी। 2,000 करोड़ से कृषि बाजार और संरचना कोष का गठन होगा। ई-नैम को किसानों से जोड़ा गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके। 585 EMPC को ई-नैम के जरिए जोड़ा जाएगा। यह काम मार्च 2019 तक ही खत्म हो जाएगा।कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी सरकार ने रखा है। पीएम कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी उपलब्ध कराने की योजना चलाई जा रही है. इसके तहत सिंचाई के पानी की कमी से जूझ रहे 96 जिलों को चिन्हित कर 2,600 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 

देश भर में किसानों को मिलेगी निर्बाध बिजली
खेती-किसानी में बिजली का अहम योगदान होता है, क्योंकि खेतों में ट्यूबबेल चलाने, सिंचाई के लिए बिजली जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बाखूबी समझते हैं। हालांकि किसानों के लिए बिजली की अलग फीडर लाइन पर पिछले डेढ़ दशक से चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी के दखल के बाद इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू हो गई है। देश में “पीएम सहज बिजली हर घर योजना” लांच की गई है। इसका फायदा खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में होगा, लेकिन किसानों को बिजली का असली फायदा देने के लिए अब फीडर लाइन को अलग किया जाएगा। अलग बिजली फीडर होने से किसानों को बिजली सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने की व्यवस्था शुरू करने में भी काफी आसानी होगी। साथ ही किसानों को समय पर पर्याप्त बिजली आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी।

10 करोड़ किसानों को मिला सॉयल हेल्थ कार्ड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि उत्पदकता बढ़ाने और उत्पादन लागत कम करने के लिए केंद्र सरकार ने देश के सभी किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना चलायी है। सॉयल हेल्थ कार्ड में सॉयल हेल्थ सुधार और उसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्वों की उचित मात्रा की जानकारी के साथ खेतों की पोषण स्थिति पर किसानों को सूचना दी जाती है। इसके तहत अब तक 10 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। इससे 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में खाद के उपयोग में 8 से 10 प्रतिशत की कमी और उत्पादन में 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही मिट्टी के नमूनों की जांच में तेजी के लिए सरकार ने वर्ष 2011-14 (174 मृदा-परीक्षण प्रयोगशालाएं) की तुलना में वर्ष 2014-17 के दौरान 9,063 प्रयोगशालाओं को मंजूरी दी गई।

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