राजनीति के लिए कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी इतने गिर गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत तरीके से व्याख्या कर दलितों को केंद्र सरकार के खिलाफ भड़काने में लगे हैं। वोट बैंक की राजनीति करने के लिए राहुल गांधी देशभर में दलितों को गुमराह कर रहे हैं और उन्हें मोदी सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं। आजादी के बाद देश में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी की सरकार रही है और इस पार्टी ने दलितों को सिर्फ वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया और उनके विकास और उत्थान के लिए कुछ नहीं किया।
राहुल गांधी का उपवास का नाटक
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दलितों को न्याय दिलाने के नाम पर दिल्ली में राजघाट पर दलितों को न्याय दिलाने के नाम पर उपवास की नौटंकी कर रहे हैं। इतना ही नहीं देशभर में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता इसी तरह की कवायद में जुटे हैं। हम इसे राहुल गांधी की नौटंकी इसलिए कह रहे हैं कि दलितों की हितैषी होने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी ही दलितों की सबसे बड़ी शोषक है।
2 अप्रैल को ट्वीट कर आंदोलनकारियों को भड़काया
कांग्रेस पार्टी ने हमेशा दलितों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। जब जरूरत पड़ी कांग्रेस पार्टी ने दलितों को मोहरा बनाकर अपनी राजनीति चमकाई और फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। इसी पॉलिसी के तहत कांग्रेस पार्टी आज भी दलितों का इस्तेमाल कर रही है। 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने अपनी मांग को लेकर भारत बंद बुलाया था। इस भारत बंद के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भड़काऊ ट्वीट ने आग में घी का काम किया और देश के कई राज्यों में दलितों ने हिंसक प्रदर्शन किया। इस हिंसक प्रदर्श में अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ और 12 लोग मारे गए।
दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना RSS/BJP के DNA में है। जो इस सोच को चुनौती देता है उसे वे हिंसा से दबाते हैं।
हजारों दलित भाई-बहन आज सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की माँग कर रहे हैं।
हम उनको सलाम करते हैं।#BharatBandh
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) 2 April 2018
यह कोई पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस पार्टी ने दलितों को भड़का कर अपनी राजनीति आगे बढ़ाया है। इससे पहले भी कांग्रेस ऐसा कर चुकी है।
महाराष्ट्र में दलित-मराठा हिंसा को भड़काया
इसी वर्ष जनवरी के महीने में महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेताओं दलितों और मराठाओं के बीच हिंसा को भड़काया था। महाराष्ट्र के पुणे में कई दशकों से दलित कोरेगांव युद्ध का जश्न मनाते आए हैं, मगर इससे पहले हिंसा कभी नहीं हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरेगांव युद्ध के 200 वर्ष पूरे होने पर आयोजित जश्न के मौके को हिंसा में तब्दील करने के पीछे कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों का हाथ था।
कांग्रेस के समर्थकों ने भड़काई हिंसा
आपको बता दें कि 31 दिसंबर को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। जिसमें दलितों के 50 संगठन शामिल हुए थे। इसमें कुछ मुस्लिम संगठन भी शामिल थे, लेकिन जब आप मंच पर बैठे हुए लोगों को देखेंगे तो आपको हैरानी होगी क्योंकि, इस मंच पर गुजरात से विधायक और कांग्रेस पार्टी के समर्थक जिग्नेश मेवाणी मौजूद थे। इसके अलावा इस मंच पर उमर खालिद भी मौजूद था, उमर खालिद JNU का वही छात्र नेता है, जिसने भारत तेरे टुकड़े होंगे.. जैसे देशविरोधी नारे लगाए थे। मंच पर रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला भी मौजूद थीं। ये सब वो लोग हैं, जिनका समर्थन कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कांग्रेस के इन्हीं समर्थकों ने एक जनवरी को कार्यक्रम के दौरान, हिंदू एकता को तोड़ने के लिए अपने समर्थकों और असामाजिक तत्वों को दलितों की भीड़ में शामिल कर दिया। इन्हीं लोगों ने मराठा लोगों पर भद्दी टिप्पणियां कर उन्हें उकसाना शुरू कर दिया। पूरी साजिश दलित और मराठा समुदाय के लोगों के बीच फूट डालने के लिए रची गई थी। मौके पर मौजूद लोगों ने यहां तक बताया कि कई कट्टरपंथी मुस्लिम टोपी उतार कर इसमें शामिल हो गए और तोड़फोड़ शुरू कर दी। फिर देखते ही देखते हिंसा की आग फैल गई। पुणे के पुलिस स्टेशन में जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के खिलाफ भड़काऊ बयान देने की शिकाय की गई है। शिकायत में कहा गया कि इनके बयानों के बाद दो समुदायों में हिंसा भड़की।
Jignesh Mewani, Omar Khalid, Prakash Ambedkar and Radhika Vemula in Pune at an event marking the 200th anniversary of the Battle of Bhima Koregaon (31.12.17) pic.twitter.com/s4ngA9T8hc
— ANI (@ANI) 2 January 2018
JUST IN: Khalid – Mevani role under lens #MaharashtraCasteClash
— TIMES NOW (@TimesNow) 2 January 2018
A central pillar of the RSS/BJP’s fascist vision for India is that Dalits should remain at the bottom of Indian society. Una, Rohith Vemula and now Bhima-Koregaon are potent symbols of the resistance.
— Office of RG (@OfficeOfRG) 2 January 2018
मोदीजी २०० साल पहले युद्ध के मैदान में वो ५०० थे तो भी जीते थे, २०१९ में चुनाव के मैदान में हम २५ करोड़ लोग आपको करारा जवाब देंगे।
— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) 2 January 2018
मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की हकीकत आई थी सामने
इससे पहले मध्य प्रदेश में शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे किसान आंदोलन के बीच भी कांग्रेसी नेताओं ने हिंसा फैलाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी की थी। उस दौरान कई वीडियों सामने आए थे, जिसमें कांग्रेस नेता दंगा और आगजनी करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे।
यूपी हो या उत्तराखंड, गुजरात हो या हिमाचल, इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी हिंदू एकता के कारण बुरी तरह से हारी है। मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले राहुल गांधी ने गुजरात में जनेऊ धारण कर मंदिरों के चक्कर तक लगाए, मगर जनता की आंखों में धूल झोंकने में विफल रहे। लिहाजा कांग्रेस पार्टी अब फूट डालो, राज करो की नीति के तहत समाज में फूट डालने की साजिश रच रही है।
यूपी में भीम आर्मी के नाम से ऐसा ही किया गया था
ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी हुआ था। वहां कट्टरपंथी मुस्लिमों ने दलित प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर हिंसा फैला दी थी, मगर सीएम योगी की सख्त कार्रवाई के कारण सभी दंगाई जेल में डाल दिए गए और कईयों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी। मोदी लहर का सामना करने में विफल रही कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल घटिया और घिनौनी राजनीति पर उतर आए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौका देखते ही दलितों के नाम पर राजनीति शुरू कर दी है।
वर्गों में विभाजित करके, समाज को देखने की सोच
कांग्रेस भारतीय समाज की विभिन्नता के स्वरूप को संजोने के बजाय, उसे विभक्त करने का काम करती रही है। नेहरू की परंपरा ने देश के सूक्ष्म सांस्कृतिक ताने-बाने को आत्मसात किये बगैर समाज को विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और जातियों के गुच्छे की तरह से देखने की सोच को कांग्रेस में पल्लवित किया। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस ने सत्ता पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए देश की इस विभिन्नता को वोट बैंक में बदल दिया। जिस वर्ग के वोट मिलने से सत्ता बची रह सकती है, उस वर्ग का तुष्टिकरण इन्होंने अपना धर्म समझ लिया। इतिहास में कांग्रेस की इस सोच के अनेकों उदाहरण है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कांग्रेस उसी रास्ते पर चल रही है।गुजरात के समाज को पाटीदार, दलित और पिछड़ों में बांट दिया
पिछले वर्ष दिसंबर में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने के लालच में अंधी कांग्रेस ने गुजरात के समाज को वर्गों में बांट दिया। हार्दिक पटेल को पाटीदार पटेल के नेता के रूप में, तो जिग्नेश मेवाणी को दलित समाज के नेता के रूप में, और अल्पेश ठाकोर को अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा को बरगलाया, फिर इनकी तुष्टिकरण के लिए चुनाव साथ में लड़ने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश के समाज को धर्म और जाति में बांट दिया
गुजरात चुनाव से पहले, वर्ष 2017 की शुरुआत में राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत कर सत्ता में आने के लिए समाज को बांटने की कोशिश की। प्रदेश को धर्म के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम में तो बांटा ही, हिन्दुओं को भी जातियों के आधार पर बांट कर अधिक से अधिक वोट हासिल करने के लिए गठबंधन बनाये। इन गठबंधनों का आधार मात्र यही था कि कौन सी पार्टी किस वर्ग का अधिक से अधिक वोट लेकर आ सकती है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन इसलिए किया कि उसके मुस्लिम और यादव वोट से चुनावों में जीत पक्की हो जायेगी। कांग्रेस ने सभी के विकास या समृद्धि के रास्ते पर न चल कर चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले वर्गों के तुष्टिकरण का काम किया, जो आसान और सुगम था।
महाराष्ट्र को बांटने का काम
गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां कांग्रेस ने समाज की विभिन्नता का अनुचित लाभ उठाते हुए, वोटबैंक में न बदला हो। महाराष्ट्र में मराठों को नौकरियों में आरक्षण के लिए बरगला कर राज्य में तूफान खड़ा करने का काम किया। इस तरह से महाराष्ट्र के समाज को मराठी और गैर-मराठियों में बांटने का कुत्सित खेल खेला।
देश को धर्म के नाम पर बांट दिया
देश की विविधता को वोटबैंक के रूप में देखने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का भरपूर लाभ उठाया। इन नेताओं को तुष्ट करके मुस्लिम समाज का वोट बटोरने का फॉर्मूला कांग्रेस ने निकाला, और देश को धर्म के आधार पर बांट दिया। इसका कई चुनावों में कांग्रेस फायदा उठाती रही। कांग्रेस के इसी फॉर्मूले को कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने। आज भी धर्म को कांग्रेस वोटबैंक के रूप में ही देखती है।
देश में ‘भगवा आतंकवाद’ का जहर बोया
देश को वोट के लिए धर्म और जाति के वर्गों में बांटकर चुनाव जीतने की रणनीति में माहिर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज के तुष्टिकरण के लिए, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद के स्वरुप को जन्म दिया, ताकि मुस्लिम आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम किया जा सके, जिससे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ ही बना रहे।
देश में दलितों के दिलों में जहर बोने का काम
ऊना में दलितों की पिटाई का कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट ऊना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। कांग्रेस ने यह जहर देश में सिर्फ इसलिए पैदा किया ताकि चुनावों में दलित वोटों का फायदा लिया जा सके। यही नहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित युवक की आत्महत्या जो एक कानून व्यवस्था की समस्या थी उसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करने के पीछे भी यही मकसद था कि दलितों के वोटबैंक पर कब्जा किया जाए। कांग्रेस का नेतृत्व आज राहुल गांधी के हाथ में है, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली मध्ययुगीन सभ्यता की है, जिसमें राष्ट्र से बड़ा स्वार्थ होता है। राहुल गांधी की पूरी कवायद यही है कि किस तरह से कांग्रेस को वापस सत्ता पर काबिज किया जाए, उनका यह मकसद नहीं है कि देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोते हुए विकास की ऊंचाईयों पर ले जाने का काम किया जाए।
दलित हितैषी नहीं दलित विरोधी है कांग्रेस!
आज राहुल गांधी खुद को दलितों का हितैषी साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि दलितों को कभी भी आगे बढ़ते नहीं देख सकते हैं। कुछ महीनों पहले संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में राहुल गांधी ने दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनने में तमाम अड़चने पैदा की थीं। उनके सामने दलित वर्ग से आने वाली मीरा कुमार को खड़ा कर दिया, ताकि दलितों में आपस में ही टकराव बढ़ जाए।
बहरहाल जिस एससी/एसटी एक्ट को लेकर कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार को बदनाम करने पर तुली हुई है, उसकी इस हकीकत को NCRB -2016 की रिपोर्ट के आईने में देखेंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि इनकी कथनी और करनी में कितना अंतर है।
दलितों के विरूद्ध अपराध पर सजा दिलाने में भाजपा शासित राज्य सबसे आगे –
राज्य | प्रतिशत |
उत्तराखंड | 57 |
राजस्थान | 44.5 |
छत्तीसगढ़ | 40.9 |
उत्तर प्रदेश | 55 |
झारखंड | 40.8 |
SC/ST के विरूद्ध सजा दिलाने में कांग्रेस शासित राज्य काफी पीछे
राज्य | प्रतिशत |
कर्नाटक | 2.8 |
आंध्र प्रदेश | 3.2 |
ओडिशा | 3.3 |
तमिलनाडु | 7.7 |
दूसरा आंकड़ा भी आप देख सकते हैं कि किस तरह से यूपीए सरकार में दलितों पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़े हैं –
वर्ष | आंकड़े | प्रतिशत |
2010 | 32, 712 | 16.2 |
2011 | 33, 719 | 16.7 |
2012 | 33,655 | 16.7 |
2013 | 39,408 | 19.6 |
यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यूपीए सरकार के दौरान के ये वे आंकड़े हैं जिनकी रिपोर्टिंग थानों तक पहुंची है। हालांकि ऐसे हजारों मामले हैं जो यूपीए सरकार के दौरान दर्ज भी नहीं किए जाते थे। वहीं जब से केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी ने कमान संभाली है, उन्होंने सुनिश्चित किया कि हर मामले की एफआईआर दर्ज की जाए। अगर आंकड़ों के आईने में देखें तो दलितों के विरूद्ध अपराध में लगातार गिरावट आ रही है। 2014 – 47064 मामले दर्ज किए गए तो 2015 में 45,003 और 2016 में 40, 801 मामले दर्ज किए गए।
2014 में जब देश के सभी वर्गों के साथ दलित वर्ग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में अपना भरपूर भरोसा जताया था। संसद के सेंट्रल हॉल में 20 मई, 2014 को उन्होंने खुलेआम कहा था कि उनकी सरकार देश के दलितों-गरीबों को समर्पित सरकार होगी। उन्होंने तब कहा था-
”इस चुनाव में सबसे बड़ा काम यह हुआ है कि भारत का सामान्य से सामान्य नागरिक की भी लोकतंत्र के प्रति आस्था बढ़ी है। सरकार वह हो जो गरीबों के लिए सोचे, सरकार गरीबों को सुने, गरीबों के लिए जिए, इसलिए नई सरकारदेश के गरीबों को समर्पित है। देश के युवाओं, मां-बहनों को समर्पित है। यह सरकार गरीब, शोषित, वंचितों के लिए है। उनकी आशाएं पूरी हो, यही हमारा प्रयास रहेगा।”
गरीब, दलित, वंचित वर्ग से आने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 46 महीनों में ‘सबका साथ-सबका विकास’ की नीति पर चलते हुए दलितों और गरीब वर्ग के हितों पर विशेष ध्यान दिया है। जिस एससी/एसटी एक्ट को आधार बनाकर इतना बवाल किया जा रहा है उसकी हकीकत ये है कि मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम 2015 के माध्यम से और सशक्त कर दिया है-
• संशोधन के बाद एससी-एसटी पर अत्याचार की 15 श्रेणियों का इजाफा हुआ है। पहले अत्याचार की व्याख्या 22 श्रेणियों में की गई थी।
• इसमें सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक आधार पर बहिष्कार को जोड़ा गया है।
• अब ट्रायल प्रोसिडिंग, नोटिस जैसी हर प्रक्रिया की जानकारी पीड़ित पक्षकार ले सकता है। यह कोर्ट की जिम्मेदारी होगी कि जानकारी मुहैया की जाए।
• पीड़ित पक्षकार हर स्टेज पर विरोध कर सकता है और जरूरत समझे जाने पर गवाहों को गुप्त भी रखा जायेगा।
• हर पुलिस प्रक्रिया की वीडियो रिकार्डिग अनिवार्य होगी। अन्वेषण अधिकारी और एसएचओ की जिम्मेदारी निश्चित की गई है।
• जानबूझ कर अधिकारी लापरवाही करता है, तो प्रशासनिक अधिकारी की जांच के बाद एक साल अधिकतम सजा का प्रावधान भी जोड़ा गया है।
• चार्टशीट पहले 30 दिन में लगाई जाती थी, संशोधन में इसकी अवधि बढ़ाकर अब 60 दिन की गई है।
• अब दो महीने में अन्वेषण पूरा करना जरूरी होगा। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो बताना होगा कि ऐसा किन परिस्थितियों में हुआ है।
• अब हर जिले में विशेष कोर्ट बनेंगी, जिनमें सिर्फ एससी-एसटी से जुड़े मामलों की सुनवाई होगी।
• एससी/एसटी के सदस्य को आहत करने, उन्हें दुखद रूप से आहत करने, धमकाने और उपहरण करने जैसे अपराधों को, जिनमें 10 वर्ष के कम की सजा का प्रावधान है।
एससी/एसटी कानून को मजबूत करने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने हर स्तर पर एससी/एसटी को सशक्त बनाने की नीति बनाई है।
आइये हम ऐसे ही कुछ खास तथ्यों पर नजर डालते हैं-
- 31 मार्च 2017 तक दलितों (SC/ST/OBC) के लिए 2, 25 00, 194 मुद्रा खाते खुले, जो कुल मुद्रा खातों का 57 प्रतिशत है।
• मुद्रा योजना के तहत SC/ST समुदाय के लोगों को 67,943.39 करोड़ का लोन आवंटित किया गया।
• मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति/जनजाति हब की स्थापना की है, जो अनुसूचित जाति/जनजाति के उद्यमियों को हर संभव मदद करती है।
• सरकार ने एक नीति बनाई है कि मंत्रालयों या PSUs में जो भी वस्तुएं खरीदी जाएं उनका कम से कम 4 प्रतिशत खरीददारी अनुसूचित जाति/जनजाति इकाइयों से हो।
• प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत एक करोड़ गरीबों को पक्के मकान देने की तैयारी है।
• स्टैंडअप योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपये से 100 लाख रुपये तक की सीमा में ऋणों के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति और महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
• हर बैंक को कहा गया है कि वह स्टैंडअप योजना के तहत यह सुनिश्चित करे कि दलित, पिछड़े और महिलाओं को खोज कर इस स्कीम से उन्हें जोड़ें।
• 163 प्राथमिकता वाले जिलों (जनजातीय बहुल) में से प्रत्येिक में एक बहु-कौशल संस्था3न की स्थाकपना की योजना बनाई गई है।
• वर्ष 2017-18 के बजट में जनजातीय मंत्रालय के बजट में 10 फीसदी की बढ़ोतरी की थी।
• अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए देशभर में 1205 आश्रम स्कूलों के निर्माण के लिए धनराशि उपलब्ध कराई है। इन स्कूलों में करीब 1,15,500 सीटों की व्यवस्था की गई है।
• पिछले साढ़े तीन वर्षों में 51 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय शुरू हो चुके हैं।
• नौंवी और दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले एसटी के लगभग 10 लाख छात्रों को प्रति वर्ष प्री- मैट्रिक छात्रवृत्तियों के रूप में लगभग 200 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
• एसटी के लगभग 20 लाख छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रति वर्ष पोस्ट – मैट्रिक छात्रवृत्तियों के रूप में लगभग 750 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
• 30.69 करोड़ से ज्यादा गरीबों और आदिवासियों प्रधानमंत्री जन धन खातों के माध्यम के जरिये बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने बाबा साहेब को दी सच्ची श्रद्धांजलि
- 14 अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर उनके जन्म स्थान मध्य प्रदेश के महू में उन्हें श्रद्धांजलि दी। ऐसा करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने जो उनके जन्म स्थान पर गए।
• प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर नवंबर, 2015 में भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का लंदन स्थित वह तीन मंजिला बंगला खरीद लिया गया जिसमें वे 1920 के दशक में एक छात्र के तौर पर रहे थे।
• 30 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी के बाद देश बदलने की जो शुरुआत भीम ऐप से की, उसे भी बाबा साहेब के नाम पर ही समर्पित किया।
• प्रधानमंत्री मोदी की पहल से 14 अप्रैल 2016 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती मनाई गई।
• 11 अक्टूबर, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने आंबेडकर स्मारक की आधारशिला रखी। मुंबई के इंदु मिल के साढ़े 12 एकड़ में बनने वाले इस स्मारक पर 4 अरब रुपये से अधिक खर्च होंगे।
• 7 दिसंबर, 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नयी दिल्ली में बी आर अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केन्द्र का उद्घाटन किया।
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 125वीं जयन्ती वर्ष समारोह के तहत 125 रूपए और 10 रूपए के स्मारक सिक्के जारी किए।
• आंबेडकर की जन्मस्थली महू, मुंबई में इन्दु मिल चैतन्य भूमि पर स्मारक, नागपुर में दीक्षास्थल, दिल्ली में बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण स्थल और 15 जनपथ पर स्मारक को ‘पंचतीर्थ’ में योजना में रखकर विकास किया जा रहा है।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी नीतियों में अंत्योदय को प्राथमिक स्थान देते हैं और दलित वर्ग के उत्थान के साथ उन्हें सशक्त बनाने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस हमेशा छोटी-मोटी घटनाओं पर भी राजनीतिक लाभ लेने के लिए गिद्धों की तरह टूट पड़ती है।
पिछले चार वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने देश के बहुसंख्यक समुदाय में विभाजन के लिए तमाम चालें चली हैं। रोहित वेमुला प्रकरण हो या फिर पशु वध क्रूरता अधिनियम, कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुआई में हमेशा समाज में विभाजन की रेखा खींची है। हालांकि देश के दलित वर्ग ने कांग्रेस के इस खेल को अच्छी तरह से पहचान लिया है और 2014 के बाद हर चुनाव में उन्हें लगातार खारिज किया है।