Home विपक्ष विशेष कांग्रेस की नफरत भरी मानसिकता का परिचायक जीएसटी विरोध

कांग्रेस की नफरत भरी मानसिकता का परिचायक जीएसटी विरोध

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आजादी के 70 साल बाद, 30 जून 2017 की मध्यरात्रि को देश को ‘एक टैक्स’ व्यवस्था मिलेगी। संसद के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल मे GST के लागू होने की घोषणा होने के साथ ही ‘वन नेशन, वन टैक्स’ का कानून लागू हो जाएगा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा लोकसभा-राज्यसभा के सभी सांसद, लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और देश की नामचीन हस्तियां इस ऐतिहासिक समारोह के गवाह बनेंगें, लेकिन कांग्रेस ने अन्य दलों के साथ मिलकर इस समारोह के बायकॉट करने का फैसला किया है। यह कांग्रेस की नफरत भरी मानसिकता का परिचायक ही है।

परिवार से बाहर नहीं निकलना चाहती कांग्रेस
कांग्रेस का कहना है कि वह प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के स्वतंत्रता के समय दिए गये ‘नियति से किये गये वादे’ वाले ऐतिहासिक अवसर का महत्व कम नहीं करना चाहती। पार्टी ने इस समारोह को तमाशा बताते हुए कहा कि यह देश के स्वतंत्रता आंदोलन और उसमें दिये गये बलिदानों का अपमान है। कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद का कहना है कि इससे पहले मात्र तीन बार संसद के केन्द्रीय कक्ष में मध्यरात्रि के समय समारोह किया गया। 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्रता के समय तथा 1972 एवं 1997 को स्वतंत्रता की क्रमश: रजत एवं स्वर्ण जयंती के अवसर पर। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा ने देश की आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं दिया और वह महज अपने प्रचार के लिए यह आयोजन कर रही है।

मोदी ने वह कर दिया, जो नेहरु-गांधी परिवार नहीं कर सका
कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अपने दस साल के शासनकाल में जीएसटी लागू नहीं करवा सकी, क्योंकि सहमति बनाने की कला कांग्रेस को आती ही नहीं थी। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन साल में ही जीएसटी पर आमसहमति बनाकर और सभी राज्यों की विधानसभाओं से पारित करवा कर इसे लागू कर दिया। कांग्रेस इस बात का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को नहीं देना चाहती।

कांग्रेस इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं कि नेहरु-गांधी परिवार के अतिरिक्त कोई और भी इस देश का विकास कर सकता है। और यदि कोई करता है तो उसका श्रेय पार्टी उसे देना नहीं चाहती है। इंदिरा गांधी के समय से ही कांग्रेस का डीएनए ऐसा हो गया है। कांग्रेस ने देश की आजादी के तमाम नायकों-सरदार बल्लभ भाई पटेल, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल बहादुर शास्त्री, पीवी नरसिंहराव आदि के विकास में किये गये योगदान को भूला दिया, उसे सिर्फ और सिर्फ नेहरु परिवार का ही योगदान याद रहता है।

कांग्रेस का मोदी विरोध सवाल खड़े करता है
ऐसे में संसद भवन में जीएसटी लागू करने के लिए मध्यरात्रि में होने वाले समारोह का बायकॉट करके कांग्रेस ने अपने ऊपर कई सवालों को खड़ा कर दिया है
• क्या जीएसटी समारोह का इसलिए बायकॉट किया जाना उचित है कि इससे प्रधानमंत्री मोदी का कद बढ़ेगा और जवाहर लाल नेहरू लोगों की यादाश्त से गुम हो जाएंगे?
•क्या देश का विकास केवल नेहरु-गांधी परिवार ही कर सकता है?
•क्या उन प्रधानमंत्रियों और नायकों को भूला देना चाहिए जिन्होंने इस देश के विकास में अपनी आहुति दी है, और सिर्फ गांधी परिवार के योगदानों को ही याद किया जाना चाहिए?
•क्या प्रधानमंत्री मोदी का विरोध, दुश्मनी के हद तक किया जाना चाहिए क्योंकि वह देश का विकास कर रहे हैं?

मोदी विरोध या देश विरोध

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश का सिरमौर बन जाना कांग्रेस को अब भी पच नहीं रहा है। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कई जीत हासिल की है। जाहिर तौर पर कांग्रेस इससे बौखलाई हुई है। उसे सत्ता दूर की कौड़ी नजर आने लगी है। ऐसे में सत्ता से दूर खड़ी कांग्रेस सत्ता पाने की जल्दी में है… इस चक्कर में कांग्रेस देशविरोध की राजनीति की राह पर चल पड़ी है। जातीय हिंसा, किसानों को भड़काना, मुसलमानों के मन में भय पैदा करने जैसी साजिशों पर चल रही कांग्रेस अब संसद, प्रधानमंत्री, चुनाव आयोग, आर्मी, राज्यपाल सब पर सवाल उठा रही है।

आर्मी चीफ पर कांग्रेस का हमला
कांग्रेस के बड़े नेता हों या छोटे नेता सब के सब जाने किस बौखलाहट में हैं। कभी देशद्रोही ताकतों के साथ हो लेते हैं तो कभी देश का नक्शे से खिलवाड़ करते हैं तो कभी अपनी ही आर्मी, जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ होती है उसके प्रमुख को ही ‘सड़क का गुंडा’ कह देती है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने तो आर्मी चीफ को ‘सड़क का गुंडा’ तक कह डाला।

बीते दिनों देश के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कश्मीर में सेना की कार्रवाई पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। अब चिदंबरम साहब से ज्यादा कश्मीर के हालत के बारे में किसे पता हो सकता है? लेकिन कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण सेना पर ही सवाल खड़े करने लगी है। आखिर कांग्रेस ऐसी बातें क्यों करती है जो देश की संप्रभुता और शांति पर ही खतरा उत्पन्न कर दे।

सर्जिकल स्ट्राइक पर भी उठाए थे सवाल
28 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना ने सीमा पार जाकर पीओके में आतंकियों के आठ कैंपों को नष्ट कर दिया… 38 से ज्यादा आतंकियों को ढेर कर दिया। देश वाहवाही कर रहा था, जीत के जश्न मना रहा था। लेकिन कांग्रेस सवाल खड़े कर रही थी। दिल्ली के विवादित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सुर में सुर मिलाकर सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रही थी।

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का बयान आया कि ”सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय ले लिया, लेकिन अब सबूतों की मांग के जवाब का इंतजार है।”

कांग्रेस के एक और नेता संजय निरुपम ने एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े किए और भारत सरकार से इसका सबूत मांगे।

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना था, ”कांग्रेस पार्टी का आधिकारिक रूख यही है कि हम भारतीय सेना के साथ हैं और सर्जिकल स्ट्राइक्स का समर्थन करते हैं लेकिन पाकिस्तान इसे लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार कर रहा है उसका जवाब देने की जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार की है।”

सेना अध्यक्ष पर कांग्रेस ने उठाए थे सवाल
केंद्र सरकार ने जब 17 दिसबंर 2016 को लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत के नाम की घोषणा नये सेना प्रमुख नाम के रूप में की, तो कांग्रेस ने इस नियुक्ति पर सवाल खड़े कर दिए । कांग्रेस नेता मंत्री मनीष तिवारी ने सवाल उठाते हुए सरकार से पूछा – ”आर्मी चीफ की नियुक्ति में वरिष्ठता का ख्याल क्यों नहीं रखा गया? क्यों लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अली हारीज की जगह बिपिन रावत को प्राथमिकता दी गई। पूर्वी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह के बाद सबसे वरिष्ठ है।”

मनीष तिवारी के मुताबिक हर संस्था का एक अपना चरित्र होता है और फौज का चरित्र पूरी दुनिया में है कि यहां वरिष्ठता की कदर की जाती है। सवाल यह है कि जनरल बख्शी को और अन्य लोगों को सुपरसीड क्यों किया गया है? इस सवाल का जवाब सरकार को देना चाहिए। मनीष तिवारी का ये बयान जाहिर तौर पर सेना को राजनीति में घसीटने के लिए था।

मनीष तिवारी ने इस मामले में कई विवादित ट्वीट भी किए थे जो सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़े थे। उन्होंने पहले ट्वीट में पीएम से पूछा था कि थलसेना प्रमुख की नियुक्ति पर वरिष्ठता का सम्मान क्यों नहीं किया जाता? लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अली हारीज को सैन्य प्रमुख क्यों नहीं बनाया गया?

मानव ढाल पर भी कांग्रेस का ‘डर्टी वॉर’
कांग्रेस ने सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम और वामपंथी लेखर पार्थ चटर्जी के सेना प्रमुख को जनरल डायर कहने के सुर में सुर मिलाया और कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। पूर्व सांसद ने सेना प्रमुख को ‘सड़क का गुंडा’ कह डाला।

आतंकी एनकाउंटर पर संसद में बवाल
इसी साल 8 मार्च को लखनऊ के बाहरी इलाके ठाकुरगंज में एक घर में लगभग 13 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद पुलिस ने आतंकवादी सैफुल्ला को मार गिराया। सैफल्ला के पिता ने भी उसे आतंकी माना और लाश लेने से इनकार कर दिया। लेकिन कांग्रेस कहां मानने वाली थी। उसने संसद में सवाल उठा दिया। बजट सत्र के दूसरे सेशन में संसद शुरू होने पर कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने मामला उठाते हुए कहा कि जब संदिग्ध सैफुल्लाह के आतंकी संगठन आईएस से जुड़े होने के सबूत नहीं थे तो उसे मारा क्यों गया? जाहिर है खुद जिसके पिता ने आतंकी माना, कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण उसे आतंकी मानने को तैयार नहीं थी।

कश्मीर की ‘आजादी’ के साथ राहुल गांधी !
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में ‘भारत तेरे टुकड़ें होंगे…’ और देश विरोध के कई नारे लगे थे। पुलिस जांच कर रही थी। इसी क्रम में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी की गई थी। गिरफ्तारी के एक दिन के बाद 14 फरवरी 2016 को प्रदर्शन कर रहे छात्रों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय माकन और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा के साथ जेएनयू पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने परोक्ष रूप से हिटलर के शासन से इसकी तुलना कर दी। आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस ने किस तरह ‘देशविरोधी’ नीति को अपनी राजनीति का हिस्सा बना लिया है।

चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा किया
उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे क्या आए कांग्रेस पार्टी की उम्मीदें धरी की धरी रह गईं… राहुल और अखिलेश की जोड़ी नाकाम रही तो संवैधानिक संस्था पर ही सवाल उठा दिया। बजाय अपनी गिरेबां में झांकने के ईवीएम मशीन पर ही सवाल उठा दिया। लेकिन जब चुनाव आयोग ने ईवीएम जांच की बात कही तो सवाल उठाने वाली कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग की चुनौती का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पार्टी इसलिए ज्यादा दोषी रही है क्योंकि कांग्रेस के शासन काल में ही भारत में ईवीएम लाई गई थी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस ईवीएम की बदौलत भारत की निष्पक्ष चुनाव प्रणाली की पूरी दुनिया में तारीफ मिल रही है उस प्रणाली को बदनाम कर आखिर कांग्रेस क्या हासिल कर लेगी? बार-बार के आरोपों से तंग आकर चुनाव आयोग ने भी कानून मंत्रालय से अवमानना के अधिकार के कानून का उपयोग करने की इजाजत मांगी है।

CAG पर कांग्रेस का हमला
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला का जब से खुलासा हुआ है तब से ही कांग्रेस के निशाने पर सीएजी भी आ गई है। कांग्रेस ने सीएजी के भाजपा से सांठ-गांठ का आरोप लगा दिया तो कभी कांग्रेस को बदनाम करने की साजिश करार दिया। लेकिन जांच के दायरे में जब कांग्रेस के कई सांसद और मंत्री आ गए… यहां तक कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी जब इस दायरे में आ गए तो कांग्रेस की बोलती बंद हो गई। दरअसल कांग्रेस ने सीएजी पर तब ये आरोप लगाए थे जब केंद्र की सत्ता में खुद कांग्रेस ही थी। लेकिन कांग्रेस की कुत्सित सोच यहां भी दिखी और सीएजी को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी। जाहिर है जो पूरे देश के मुख्य विभागों के आय और व्यय का लेखा जोखा रखती है और सरकार को उसका रिपोर्ट देती है उसपर सवाल उठाना आखिर कांग्रेस की किस तरह की सोच की निशानी है?

RBI को भी कांग्रेस ने नहीं छोड़ा
कांग्रेस ने देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक को भी नहीं छोड़ा। दरअसल जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली है तब से ही कांग्रेस ने रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। नोटबंदी के समय तो जैसे कांग्रेस ने रिजर्व बैंक को ‘चोर’ ही साबित करने की ठान रखी थी। आरबीआई के गवर्नर और बैंकों को निशाने पर तो रखा ही साथ ही सरकार के इस फैसले को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। लेकिन सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस क्यों विरोध कर रही थी? क्या देश में गहरे तक पैठ कर चुकी भ्रष्टाचार को कायम रखना चाहती है? क्या भ्रष्टाचारियों को छूट देना चाहती है कांग्रेस? जाहिर है अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रस न तो आरबीआई की नीतियों को कठघरे में खड़ा करती और न ही नोटबंदी के फैसले को।

कांग्रेस के निशाने पर अब जांच एजेंसियां भी
9 मई, 2013… ये वो तारीख है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की शासन में CBI जैसी संस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया था। कोर्ट ने कोयला घोटाले में जांच की जानकारी लीक मामले में टिप्पणी कि – ”सीबीआई पिंजड़े में बंद तोते की तरह है जो मालिक की बोली बोलता है। वो ऐसा तोता है जिसके कई मालिक हैं।” जाहिर है सुप्रीम कोर्ट का निशाने पर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ही थी। लेकिन वही कांग्रेस अब सीबीआई, एनआईए और ईडी जैसी संस्थाओं पर सवाल खड़े करती है। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा, उनकी बेटी प्रियंका गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कई फर्जीवाड़े में जांच के दायरे में हैं। पूर्व गृहमंत्री और वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के खिलाफ भी मनी लाउंड्रिंग और फर्जीवाड़ा मामले में जांच चल रही है। जाहिर है भ्रष्टाचार की पोषक रही कांग्रेस के नेता फंस रहे हैं तो ऐसी संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

संसद में काम नहीं बवाल करती है कांग्रेस!
कांग्रेस की कुत्सित राजनीति आप देश की संसद में देख सकते हैं। पूर्ण बहुमत की चुनी हुई सरकार को भी अपना काम करने में बाधा डालती है। ये सही है संसद में ही देशहित के तमाम मुद्दों की चर्चा होनी है… लेकिन कांग्रेस चर्चा नहीं करती … हंगामा करती है। यानि जिस संसद की कार्यवाही में जनता के करोड़ों रुपये खर्च होते हैं उस संसद की कार्यवाही बेमतलब के मुद्दों को लेकर ठप कर देती है कांग्रेस। बीते वर्ष शीतकालीन सत्र में 15 सालों में कामकाज के लिहाज से सबसे खराब प्रदर्शन वाला सत्र बनकर रह गया। लोकसभा में लगभग 85 फीसदी समय बर्बाद हुआ, वहीं राज्यसभा में 80 फीसदी वक्त जाया हुआ। सत्र में सदन की 21 बैठकों में जहां लोकसभा में 19 घंटे काम हुआ, वहीं राज्य सभा में 22 घंटे काम हुआ। लोकसभा में व्यवधान के चलते 91 घंटे 59 मिनट का समय बर्बाद हुआ, तो वहीं राज्यसभा में 86 घंटों का वक्त खराब हुआ। जाहिर है इसकी एक मात्र जिम्मेदार पार्टी कांग्रेस रही।

प्रधानमंत्री पर हमले के पीछे मकसद
सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को मौत का सौदागर कहा तो राहुल गांधी ने उन्हें खून की दलाली करने वाला कहा। जिस ‘मौन’ मनमोहन सिंह के कार्यकाल का ढिंढोरा पीटती है कांग्रेस उन्होंने अपनी सरकार के अंतिम प्रेस कांफ्रेंस में साफ कहा था कि – नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री देश के लिए विनाशकारी होगा। इन सब बयानों से जाहिर है कि कांग्रेस के नेताओं की सोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में क्या है। हमने सिर्फ कांग्रेस के ट्रैक-वन के नेताओं की बात की है। ट्रैक-टू के नेताओं की बात ही मत पूछिये… चाय बेचने वाला, बोट-बोटी काट दूंगा जैसी बातें पीएम मोदी के लिए कही गई हैं। उस घटना को भी शायद आप नहीं भूले होंगे जब कांग्रेस और वामपंथियों ने मिलकर पीएम मोदी के खिलाफ असहिष्णुता का अभियान चला दिया था। जाहिर है ‘असहिष्णुता’ के नाम पर सम्मान लौटाने का आंदोलन भी कांग्रेस की उसी दिवालिया सोच की धरातल पर खड़ा किया गया था।

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