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बोफोर्स सौदे में ‘दलाली’ के जरिये गांधी परिवार ने देशहित से खिलवाड़ किया !

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30 साल हो गए लेकिन अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि बोफोर्स तोप सौदे में किसने दलाली खाई और किसने रिश्वत ली? कई तरह की जांच हुई, लेकिन सच्चाई अब तक सामने क्यों नहीं आ पाई? निजी जासूस माइकल हर्शमैन के अनुसार इस मामले से जुड़े अभी कई तथ्य सामने नहीं आए हैं। यानी इसकी जांच सही से नहीं हुई है और तथ्यों को छिपाया गया है। माइकल हर्शमैन के खुलासे के बाद अब ये बात सामने आ रही है कि बोफोर्स तोप दलाली की जांच में कांग्रेस ने अड़चनें पैदा की थीं। दरअसल बोफोर्स तोप दलाली में किस तरफ फाइलों को गायब किया गया इस बात का अंदाजा पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह की उस स्वीकारोक्ति से भी लगता है जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने स्वयं बोफोर्स दलाली से संबंधित फाइलें गायब करवा दी थीं। बहरहाल माइकल हर्शमैन के नये खुलासे के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस ने बोफोर्स दलाली से से जुड़े तथ्यों को जानबूझकर सामने नहीं आने दिया?

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दरअसल मुलायम सिंह की स्वीकारोक्ति यह साबित करती है कि देश में बड़े घोटालों का सच छिपाया जाता रहा है। रक्षा मंंत्री ही अगर फाइलें गायब करा देते हैं, तब जांच में क्या खाक साबित होगा? लेकिन इस तथ्य से पर्दा हटने की उम्मीदें एक बार फिर जग गई हैं। सीबीआई ने बोफोर्स तोप सौदे की जांच फिर शुरू करने के लिए केंद्र सरकार से इजाजत मांगी है। सीबीआई ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग (DoPT) को पत्र लिखकर कहा है कि 2005 में यूपीए सरकार के दौरान लिए गए उस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए जिसके तहत सीबीआई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की इजाजत नहीं दी गई थी।

माइकल हर्शमैन ने कहा कि तथ्यों को छिपाया गया
अमेरिका के निजी जासूसी एजेंसी ‘फेयरफैक्स’ के अध्यक्ष माइकल हर्शमैन ने हाल में ही टीवी चैनलों को दिए इंटरव्यू में दावा किया कि दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बोफोर्स जांच में रोड़े अटकाए थे। हर्शमैन ने कहा कि राजीव गांधी को जब स्विस बैंक खाते ‘मोंट ब्लैंक’ के बारे में पता चला था तो वह काफी गुस्से में थे। हर्शमैन ने यह आरोप भी लगाया था कि बोफोर्स तोप स्कैंडल के रिश्वत का पैसा स्विस खाते में रखा गया था। गौरतलब है कि स्वीडन के मुख्य जांच अधिकारी स्टेन लिंडस्ट्राम ने हाल में ही कहा था कि इस मामले में शीर्ष स्तर पर रिश्वत दी गई थी। दरअसल 1986 में 1437 करोड़ के बोफोर्स तोप सौदे में 64 करोड़ रुपये रिश्वत दिए जाने के आरोप हैं।

हिंदुजा बंधुओं को कांग्रेस ने दिलवाई क्लीन चिट
दरअसल सीबीआई ने बोफोर्स मामले में सरकार से 2005 के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। इसके साथ उसे कथित घोटाले में प्राथमिकी निरस्त करने को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की मंजूरी देने की भी अनुमति मांगी है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को पत्र लिखकर सीबीआई ने कहा कि वह दिल्ली हाई कोर्ट के 31 मई, 2005 के उस फैसले को चुनौती देने के लिए एसएलपी दायर करना चाहती है जिसमें बोफोर्स मामले में यूरोप स्थित हिंदूजा भाइयों के खिलाफ सभी आरोप निरस्त करने का आदेश दिया गया था। दरअसल सीबीआई 2005 में ही एसएलपी दायर करना चाहती थी, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने उसे इसकी मंजूरी नहीं दी।

जांच के लिए खर्च हुए 250 करोड़ बेकार हो गए
सीबीआई को 12 साल से ज्यादा समय तक इस बात की अनदेखी करने के लिए काफी स्पष्टीकरण देना होगा। इतना ही नहीं इस जांच में 250 करोड़ से अधिक रुपये खर्च हो गए इसका परिणाम कुछ भी नहीं निकला। दरअसल 31 मई, 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस आर.एस सोढी ने इस केस में हिंदुजा भाइयों (श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाशचंद) और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया था। हालांकि सीबीआई का कहना है कि वह इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहती थी, लेकिन तत्कालीन UPA सरकार ने उसे इसकी इजाजत नहीं दी।

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बोफोर्स सौदे में ऐसे ली गई थी दलाली की रकम
1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डॉलर की दलाली चुकायी थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता है। आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताये जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोक्की ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डॉलर का था। आरोप है कि भारत के साथ सौदे के लिए बोफोर्स कंपनी ने 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत बांटी थी।

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गांधी परिवार ने खत्म खत्म करवाया मामला
मुलायम सिंह यादव वर्ष 1996 से 98 के दौरान जब रक्षामंत्री थे, तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में स्वीडन की एबी बोफोर्स कंपनी से 400 हॉविट्जर तोपों की खरीद में कथित घोटाले का मुकदमा अदालत में चल रहा था। केंद्रीय जांच ब्यूरो वर्ष 1990 से ही इस मामले की जांच कर रहा था, लेकिन ब्यूरो कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सका। भला सबूत मिलते भी कैसे? स्वयं रक्षामंत्री ने ही फाइलें गायब करा दी थीं। तब उन्होंने कहा था कि तोपें अच्छा काम कर रही थीं इसलिए फाइलें गायब करा दी थीं। सवाल उठते हैं कि अगर सौदा अच्छा हो तो घोटाला किया जा सकता है? दरअसल घोटाले में बड़े नामों की संलिप्तता थी इसीलिए उन्होंने फाइल गायब की। यही बात माइकल हर्शमैन भी आज दोहरा रहे हैं कि इस मामले में कहीं कुछ छिपाया गया है।

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सीबीआई करेगी मामले की दोबारा जांच
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हिंदुजा बंधुओं को आरोप मुक्त करने के हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में 2005 से लंबित है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए अब तैयार हो गया है। इसके साथ ही सीबीआई ने माइकल हर्शमैन द्वारा उजागर किए गए रहस्यों पर भी ध्यान देने की बात कही है। सीबीआई ने कहा है कि वह तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करेगी। दरअसल माइकल हर्शमेन ने बताया था कि साल 1987 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री वी पी सिंह ने उन्हें इस मामले की जांच में अपनी सेवायें देने के लिये बुलाया था। उन्होंने दावा किया कि मेरी जांच के मुताबिक इस घोटाले में दर्जन भर बड़े उद्योगपति और एक वरिष्ठ राजनेता शामिल थे।

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दरअसल हमारा देश-समाज स्वतंत्रता के पश्चात छह दशकों तक कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित रहा है। राजनीति पर भी कांग्रेस के कल्चर की ही छाया रही है। यही कारण है कि आज भी देश-समाज की सुरक्षा से लेकर शुचिता तक सवालों के घेरे में है। भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़ा, लूट, घोटाला, अराजकता, तुष्टिकरण, दंगा, युद्ध, आतंकवाद, कश्मीर मुद्दा, पंजाब मुद्दा, घुसपैठ, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद… अनगिनत समस्याएं हैं जो कांग्रेस सरकारों की देन है। आइये हम पड़ताल करते हैं कांग्रेस के ऐसे ही कुछ कुकृत्यों की-

कांग्रेसियों ने जमकर लूटा देश को
कांग्रेस ने 60 सालों तक देश को खूब जमकर लूटा है। कांग्रेस की सरकारों के तहत घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि कभी खत्म नहीं होती। आत्महित और घोटाले कांग्रेस का हिस्सा बन गए थे। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार 2004-2014 के कार्यकाल के दौरान तो हमेशा किसी न किसी घोटाले की खबरों में रही है। इस दौरान साल दर साल घोटालों की संख्या बढ़ती ही चली गई। एक आंकलन के अनुसार अगर सिर्फ ये घोटाले न हुए होते तो भारत आज विश्व महाशक्ति होता। देखिये प्रमुख घोटालों की सूचि और उसकी रकम-

कोयला घोटाला  1.86 लाख करोड़ रुपये
2जी घोटाला  1.76 लाख करोड़ रुपये
महाराष्ट्र सिंचाई घोटाला 70,000करोड़ रुपये
कामनवेल्थ घोटाला 35,000 करोड़ रुपये
स्कार्पियन पनडुब्बी घोटाला  1,100 करोड़ रुपये
अगस्ता वेस्ट लैंड घोटाला 3,600 करोड़ रुपये
टाट्रा ट्रक घोटाला 14 करोड़ रुपये

भ्रष्टाचार में फंसे हैं कांग्रेस के शीर्ष नेता
अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम, बोफोर्स घोटाला, नेशनल हेराल्ड घोटाला, जमीन घोटाला… न जाने कितने ऐसे स्कैम हैं जो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े हैं। ये सारे मामले वे हैं जिनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, दिवंगत राजीव गांधी, रॉबर्ट वाड्रा जैसे नामों से जुड़े हैं। यानी कांग्रेस पार्टी ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार के जद में है। क्या देश को इस कांग्रेस का नेतृत्व फिर से स्वीकार्य होगा?गांधी परिवार के लिए चित्र परिणाम

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला
2013 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और  उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इटली की चॉपर कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से कमीशन लेने के आरोप लगे। दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड से भारत को 36 अरब रुपये के सौदे के तहत 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे, जिसमें 360 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी की बात सामने आई।

बोफोर्स घोटाला
बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपये के हवित्जर तोप का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। आरोप है कि इसमें दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं को को स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपये दिये थे।

नेशनल हेराल्ड स्कैंडल
कांग्रेस के पैसे से एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी 1938 में बनी और तीन अखबार चलाती थी– नेशनल हेरल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज। एक अप्रैल 2008 को ये अखबार बंद हो गए। इसके बाद मार्च 2011 में सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी ने यंग इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी खोली, जिसमें दोनों की 38-38 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। इस मामले में सोनिया और राहुल के विरुद्ध संपत्ति के बेजा इस्तेमाल का केस दर्ज कराया गया।

वाड्रा-डीएलएफ़ घोटाला
2012 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ़ से 65 करोड़ का ब्याजमुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना उद्देश्य था। यह भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई हिस्सों में बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं।

मारुति घोटाला
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था। 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज़ प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए जरूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। बताया जा रहा है कि कंपनी को इंदिरा सरकार की ओर से टैक्स, फ़ंड और ज़मीन को लेकर कई छूटें मिलीं।

मूंदड़ा स्कैंडल
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे घोटाले के बतौर याद किया जाता है। इसके छींटे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी पड़े। दरअसल 1957 में मूंदड़ा ने एलआईसी के माध्यम से अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपये का निवेश कराया। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इन्वेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। तब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुक़सान हो चुका था। इस केस को फिरोज गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे। उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी कीं, लेकिन उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

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