Home विचार ‘जस्टिस फॉर जोसेफ’ की ‘तख्ती’ लटका कर घूम रही कांग्रेस

‘जस्टिस फॉर जोसेफ’ की ‘तख्ती’ लटका कर घूम रही कांग्रेस

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चुनाव दर चुनाव मिल रही हार से कांग्रेस पार्टी ने एक खास सबक लिया है। मुद्दा कोई भी हो लेकिन वह उसका विरोध अवश्य करेगी। इसी राह पर चलते हुए कांग्रेस ने इस बार ‘जस्टिस ऑफ जोसेफ’ की तख्ती गले में लटका ली है। ठीक उसी तरह जैसे बॉलिवुड अदाकाराओं ने एक ‘फेक’ रेप कांड पर हिंदुस्तानी होने पर शर्म जताया था और गले में लंबी-चौड़ी तख्तियां लगा ली थीं। इसी अंदाज में कांग्रेस ने पहले केंद्र पर आरोप लगाया कि वह जस्टिस के एम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट आने से रोक रही है, जब यह बात झूठ साबित हुई और वे सुप्रीम कोर्ट आ गए तो उनकी वरिष्ठता को मुद्दा बना दिया। आखिर कांग्रेस यह तो बताए कि उनका जस्टिस जोसेफ से जज महादेव प्रवीण थिप्से वाला नाता तो नहीं है, जिन्होंने रिटायर होने के बाद कांग्रेस ज्वाइन कर ली।

बहरहाल कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यदि कोई जज उनके पक्ष में निर्णय नहीं देता तो वह उसके साथ ऐसा ही बर्ताव करती है। हालांकि कांग्रेस ऐसा कहकर अपने अहंकार की तुष्टि मात्र कर रही है क्योंकि उनके तथ्यों में कोई दम नहीं है। पार्टी अगर ‘आईना’ देखकर बात करती तो शायद ऐसे सवाल उठाने का साहस भी नहीं करती।

दरअसल कांग्रेस ने कई ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जब उसके अनुसार नहीं चलने पर उसने संवैधानिक संस्थाओं को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।

निर्णय देने से पहले नहीं ली कांग्रेस से सलाह तो सुप्रीम कोर्ट पर उठा दिए सवाल 
19 अप्रैल, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और निर्णय सुनाते हुए सख्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”ऐसे मामलों में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करना आदर्श होगा, जहां न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अदालत में लाई जाती है।”   जाहिर है देश की सुप्रीम अदालत इस बात से आहत थी कि उसे राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी रास नहीं आई और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव तक लाने की कोशिश की। 

मक्का ब्लास्ट मामले में अदालत के निर्णय पर कांग्रेस ने उठाए सवाल
16 अप्रैल, 2018 को हैदराबाद हाईकोर्ट में एनआइए की विशेष अदालत ने मक्का ब्लास्ट के 5 आरोपियों को रिहा कर दिया, लेकिन कांग्रेस ने कोर्ट के निर्णय पर सवाल उठा दिया। दरअसल कोर्ट ने कांग्रेस की उस साजिश का पर्दाफाश कर दिया जिसके तहत पार्टी ने इस तथ्य को छिपाने की कोशिश की कि उसके द्वारा ‘क्रिएटेड’ गवाह ही अपने बयानों से मुकर गए।

कांग्रेस के कहने पर चार जजों ने किया था प्रेस कान्फ्रेंस!
जनवरी, 2018 में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों चेलमेश्वर, मदन लोकुर, रंजन गोगोई और कुरियन जोसेफ ने मीडिया के सामने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर प्रश्न खड़े किए। केंद्र सरकार ने इसे कोर्ट का अंदरूनी मामला बताया, लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे को राजनीतिक पार्टियों के बीच की लड़ाई बनाने की कोशिश की। चारों जजों के प्रेस कांफ्रेंस के आयोजक 10 जनपथ से करीबी ताल्लुक रखने वाले पत्रकार शेखर गुप्ता थे। जाहिर है कि इसके पीछे कांग्रेस की मिलीभगत थी।

हार हुई तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल, जीत पर साधी चुप्पी
कांग्रेस ने हर हार के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लगाए, लेकिन जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को साबित करने की चुनौती दी तो राहुल गांधी समेत कोई भी कांग्रेसी नेता पहुंचा ही नहीं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त अचल कुमार ज्योति के कार्यकाल में भी कांग्रेस ने पक्षपात के आरोप लगाए, हालांकि वह साबित नहीं कर पाई। पिछले चार साल में कई वाकये ऐसे आए जब कांग्रेस ने हारने के बाद चुनाव आयोग पर ठीकरा फोड़ दिया,लेकिन जीत पर चुप्पी साध ली।

रिजर्व बैंक की साख पर उठाए सवाल, दबाव डाला कि बढ़े राजन का कार्यकाल
वर्ष 2016 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय के तालमेल से देश में डिमोनिटाइजेशन का निर्णय लिया गया। देश में भ्रष्टाचार पर प्रहार के लिए लिया गया निर्णय कांग्रेस को रास नहीं आया और इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया, जबकि ये एक संवैधानिक संस्था है, जो स्वायत्त है। आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल खत्म हुआ तो भी कांग्रेस ने उनकी सेवा को बरकरार रखने के लिए सरकार पर अनैतिक दबाव बनाने का भी काम किया।

सीएजी की जांच पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, फंस गए तो मचाया बवाल
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला का जब से खुलासा हुआ तब से ही कांग्रेस ने संवैधानिक संस्था सीएजी पर ही हमला करना शुरू कर दिया। हालांकि जब जांच के दायरे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस के कई सांसद और मंत्री आ गए तो कांग्रेस की बोलती बंद हो गई। दरअसल कांग्रेस ने सीएजी पर तब ये आरोप लगाए थे, जब केंद्र की सत्ता में खुद कांग्रेस की सरकार थी।

भारत की सेना को कांग्रेस ने कहा ‘गुंडा’, उठाए आर्मी की नीयत  पर सवाल
कांग्रेस ने एक ओर जहां आर्मी चीफ बिपिन रावत को ‘सड़क का गुंडा’ कहा तो वहीं दूसरी ओर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाकर सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश की। इसी तरह जब सेना के मेजर गोगोई ने पत्थरबाज को जीप पर बांधकर सेना के दर्जनों जवानों की जान बचाई तो कांग्रेस ने इस पर भी राजनीति की। कांग्रेस ने अपनी ही सरकार के दौरान तत्कालीन आर्मी चीफ वीके सिंह की उम्र को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की। यहां तक कि उनपर देश में आर्मी रूल लगाए जाने की साजिश रचने तक के आरोप लगा दिए

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