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कर्नाटक के जनादेश को कांग्रेस ने अपने ‘लोभतंत्र’ की कीमत पर कैद कर लिया, देखिये सबूत

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सदन में बहुमत सिद्ध कर पाने के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं होने के कारण कर्नाटक में येदियुरप्पा सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि कर्नाटक के पूरे प्रकरण के दौरान कांग्रेस के रुख ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल ये कि कांग्रेस ने लोकतंत्र को कैद करने का क्या ठेका ले रखा है? आखिर 38 सीटों वाले जेडीएस को वह किस नैतिकता से सीएम की कुर्सी सौंप रही है?  क्या कर्नाटक की जनता ने कुमारस्वामी को सीएम बनाने का जनादेश दिया था? 122 सीटों से 78 सीटों पर आने वाली कांग्रेस आखिर किस मुंह से सत्ता में बैठना चाहती है? क्या यह कर्नाटक की जनता के जनादेश का अपमान नहीं है?

यह तय मानक है कि जिस दल या गठबंधन के पास विधायकों की संख्या अधिक होती है, मुख्यमंत्री उसी का होता है। कर्नाटक में कांग्रेस की बेबसी इस बात से समझी जा सकती है कि जेडीएस में पास कांग्रेस के मुकाबले आधे से भी कम विधायक हैं, फिर भी कांग्रेस को कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद का ऑफर करना पड़ा। ऐसे में एक बात सामने निकलकर आती है कि कांग्रेस किसी भी स्थिति में बीजेपी को सरकार बनाने से रोकना चाहती थी।

दरअसल कांग्रेस हार कर भी हार नहीं मान रही है, क्योंकि उसे राहुल गांधी के नेतृत्व में मिली एक और हार का दाग मिटाना है। सबसे अधिक सीटें पाने वाली पार्टी को कांग्रेस अपने तमाम तिकड़मों से रोक दिया है। जाहिर वह न सिर्फ जनादेश का अपमान कर रही है, बल्कि लोकतंत्र की मर्यादा को भी जबरदस्त नुकसान पहुंचा रही है।

122 से घटकर 78 सीटों पर पहुंची कांग्रेस
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में 122 सीट जीतने वाली कांग्रेस घटकर 78 सीटों पर रह गई है। जाहिर है कांग्रेस यहां अपनी सत्ता नैतिक रूप से गंवा चुकी है। क्योंकि राहुल गांधी की रैलियों वाली जगह पर कांग्रेस ने करीब 75 प्रतिशत सीटें गंवा दीं। सोनिया गांधी द्वारा प्रचार किया गया बीजापुर सिटी भी कांग्रेस हार गई।

40 सीटों से बढ़कर 104 पर पहुंची भाजपा
वर्ष 2013 के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी की सीटों की संख्या में ढाई गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इस बार बीजेपी ने 36.2 प्रतिशत वोटों के साथ 104 सीटें जीती हैं, जबकि 2013 के चुनाव में उसे सिर्फ 20 प्रतिशत वोट मिले थे और सीटों की संख्या 40 थी।

40 सीटों से 38 पर आई जेडीएस, वोट प्रतिशत भी घटा
जेडीएस का भी तीन प्रतिशत वोट गिरा है और वह चालीस सीटों से घटकर 37 पर आ गई है। इस बार जेडीएस को 18.5 प्रतिशत वोटों के साथ 37 सीटें मिली हैं। 2013 में उसे करीब 20 प्रतिशत वोटों के साथ 40 सीटें मिली थीं।

अपनी सीट से भी जीत नहीं सके सिद्धारमैया
कांग्रेस के खिलाफ लोगों का गुस्सा किस कदर था इसका अंदाजा इस बाद से लगता है कि खुद सिद्दरमैया को मुख्यमंत्री रहते हुए भी हार का सामना करना पड़ा। दो सीटों पर वे चुनाव लड़े तो जरूर पर उनमें से एक, बादामी पर ही जीत हासिल कर सके वह भी महज 1600 मतों से। चामुंडेश्वरी सीट पर उन्हें 36 हजार वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा।

कर्नाटक के 20 मंत्रियों की हार का संदेश समझिये
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जनता की उपेक्षा झेलने वाली कांग्रेस को यह हार अर्से तक सालती रहेगी। पार्टी के कई नेताओं को जनता ने साफ तौर पर नकार दिया। सिद्धारमैया कैबिनेट के 20 मंत्रियों को भी इस चुनाव में अपनी सीट गंवानी पड़ी। जाहिर है सीएम समेत उनकी कैबिनेट के आधे से ज्यादा मंत्रियों की यह चुनावी हार, कांग्रेस की लोकप्रियता कम होने का ही प्रमाण है।

 

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