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आम आदमी के लिए एक और ‘कलंक कथा’ लिखने को तैयार हैं अरविंद केजरीवाल!

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आज देश में कांग्रेस की ऐसी हालत हो गई है कि अगर गली-मोहल्ले के क्लब में कुछ वोट नजर आ जाए और वो राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने का वादा कर दे, तो कांग्रेस वहां भी समझौता करने पहुंच जाएगी। दूसरी ओर लगातार जनाधार खो रही आम आदमी पार्टी अपना अस्तित्व बचाने को बेचैन है। खबरें हैं कि अब वह कांग्रेस के साथ दिल्ली का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। जाहिर है यह दिल्ली ही नहीं देश की जनता को धोखा देने की तैयारी है। 

कांग्रेस के साथ चुनावी जुगलबंदी की कर रही तैयारी
दरअसल जिस कांग्रेस विरोध के नाम पर दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को अपना नेता माना, वे उसी जनता को धोखा देने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस और आप में गठबंधन की बातचीत अंतिम दौर में चल रहा है। अगर ऐसा है तो इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं।दरअसल कांग्रेस को लग रहा है कि उसका वोटर उसके पास लौटकर आ रहा है, तो बीजेपी के वोटों में सेंध लगाने के लिए आप और कांग्रेस एक हो रहे हैं। दिल्ली में हुए चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में आप के नेताओं की चिंता समझी जा सकती है। दरअसल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग 25 था, जो साल 2015 के दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में घटकर करीब 9 प्रतिशत रह गया। लेकिन पिछले साल हुए नगर निगमों के चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 9 से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया।

जमीन बढ़ाने की जद्दोजह में लगातार गिरती जा रही आप
गोवा, गुजरात, पंजाब और कर्नाटक में अपनी जमानत तक गंवा बैठने वाली आप को अब यह समझ आ गया है कि राष्ट्रीय राजनीति में उसकी दाल नहीं गलने वाली नहीं है। हाल में ही कर्नाटक में आप के सभी 29 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इससे पहले गोवा के 39 में से 38 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके थे, जबकि गुजरात में उनके 33 उम्मीदवार भी अपनी जमानत गंवा बैठे थे। पंजाब में सरकार बनाने का सपना देख रही आप को महज 20 सीटें ही मिली थी।

राजौरी गार्डन-एमसीडी चुनाव में लगा था आप को झटका
अप्रैल, 2017 में दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा-अकाली गठबंधन के उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने जीत दर्ज की। इस सीट पर कांग्रेस दूसरे और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। गौरतलब है कि पहले यह सीट आम आदमी पार्टी के पास थी। इसी तरह 2017 में एमसीडी के 270 सीटों में से 40 सीटों पर आप के त्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे।

बीजेपी के बढ़ते वोट प्रतिशत से आप में खलबली
आम आदमी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव 54 प्रतिशत मत मिला था, जिसके चलते पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थी। लेकिन पिछले साल निगम चुनाव में उसका यह मत प्रतिशत लुढ़ककर 26 प्रतिशत पर आ गया। वहीं साल 2013 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 31 था, जो 2015 के विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत बढ़ गया। पिछले साल हुए निगम चुनाव में बीजेपी का यही वोट प्रतिशत एक बार फिर से बढ़कर 38 प्रतिशत तक जा पहुंचा। जाहिर है बीजेपी के बढ़ते जनाधार से परेशान आम आदमी पार्टी घबराई हुई है और कांग्रेस के करीब जा रही है।

अरविंद केजरीवाल को मनमोहन अच्छे लगने लगे
आम आदमी पार्टी कांग्रेस से निकटता चाहती है इस बात के संकेत को कर्नाटक के उस सियासी मंच से ही दिख गया था जब विरोधी दलों के नेता एक जगह इकट्ठे हुए थे। हालांकि उस मंच पर अरविंद केजरीवाल का कोई वजूद नहीं था, लेकिन दो दिन पहले उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चापलूसी करते हुए ट्वीट किया तो स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस से करीबी बढ़ाना चाहते हैं केजरीवाल। उन्होंने लिखा, “पीएम तो पढ़ा-लिखा ही होना चाहिए। लोग पढ़े-लिखे डॉ.मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री को मिस कर रहे हैं।”

दरअसल ये वही केजरीवाल हैं जिन्होंने वर्ष 2011 से 2013 तक कई बार मनमोहन सिंह को कोसते रहे थे। उन्होंने मनमोहन सिंह को ‘अयोग्य’ पीएम और ‘मौनी बाबा’ तक कहा था। जाहिर है कि एक बार फिर यह साबित हो गया है कि अरविंद केजरीवाल आदतन झूठे ही नहीं, फरेबी और कायर भी हैं। दरअसल ये भारतीय राजनीति के ‘कलंक’ हैं और जल्द ही एक और ‘कलंक कथा’ लिखने वाले हैं। 

कांग्रेस और आप में एक दूसरे के पैरों पर गिरने की लगी होड़…!

लोकसभा चुनाव के दौरान आप और कांग्रेस को आपस में समझौते के लिए तैयार हैं और जल्दी ही इसकी घोषणा हो सकती  है। कहा जा रहा है कि आप चार और कांग्रेस 3 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने को राजी है। ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने और आप नेता दिलीप पांडे के बीच बातचीत भी हुई है।  कांग्रेस और आप के बड़े नेता नेता इस गठबंधन को आगे बढ़ाने की बात भी कर रहे हैं। जाहिर है अगर ऐसा होता है तो यह अरविंद केजरीवाल का एक और यू टर्न साबित होने वाला है। 

दरअसल झूठे आरोप लगाना, गलत आंकड़ेबाजी से विरोधियों पर निशाना साधना, हर चीज के लिए दूसरों पर दोष मढ़ना और जब कानूनी दांवपेंच में फंस जाओ तो बेशर्मों की तरह माफी मांग लेना… यू टर्न  ले लेना ही अरविंद केजरीवाल की फितरत है। कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने की कोशिश भी उनके असल चरित्र को ही बताता है।

‘क्रांतिकारी केजरीवाल’ बन गए यू-टर्न के उस्ताद
केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि सरकार बनाने के लिए वो कांग्रेस को ना समर्थन देंगे ना कांग्रेस से समर्थन लेंगे। लेकिन सत्ता के लोभ में दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई। केजरीवाल कहा करते थे कि वो सरकारी बंगला, गाड़ी और लालबत्ती नहीं लेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री बनने पर न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने तमाम मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए भी सरकारी एश-ओ-आराम हासिल किए। इसी तरह शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पन्नों का सबूत का दावा करने वाले केजरीवाल ने उनके भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। जन लोकपाल, जाति-धर्म की राजनीति न करने और भ्रष्टाचार का साथ नहीं देने जैसे कई मामलों पर केजरीवाल लगातार यू-टर्न लेते रहे।

‘मफलर मैन’ से ‘माफी मैन’ बन गए केजरीवाल
एक वक्त अरविंद केजरीवाल देश में ईमानदारी के उदाहरण के तौर पर स्थापित हो गए थे। अपनी हर बात में सबूतों का पिटारा साथ रखने का दावा करते थे। इसी क्रम में उन्होंने अपने विरोधी नेताओं पर तरह-तरह के आरोप भी लगाए। हालांकि उनकी कलई तब खुल गई, जब उनपर मानहानि करने वाले सभी नेताओं से उन्होंने एक-एक कर माफी मांगनी शुरू कर दी। सबसे पहले पंजाब के विक्रम सिंह मजीठिया के से माफी मांगी। इसके बाद तो कपिल सिब्बल, नितिन गडकरी और अरविंद केजरीवाल से भी माफी मांग ली। हालांकि यहां भी उन्होंने झूठ का ही सहारा लिया और कहा कि जनता का काम करने के लिए कोर्ट के चक्कर से बचना चाहते हैं। दरअसल जब यह साबित हो गया कि उनके पास किसी के विरुद्ध सबूत नहीं है, और उन्हें झूठे आरोप लगाने के चक्कर में जेल भी हो सकती है, तो उन्होंने यू टर्न ले लिया।

अपने ही साथियों को दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया
अरविंद केजरीवाल बेहद की स्वार्थी प्रवृत्ति के नेता हैं। तानाशाही में यकीन रखने वाले केजरीवाल का एक ही दर्शन है व्यक्तियों का इस्तेमाल करो और फिर फेंक दो। केजरीवाल की यूज एंड थ्रो की राजनीति का शिकार कई नेता हो चुके हैं। अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, शांति भूषण, अरुणा राय, योगेंद्र यादव, किरण बेदी, प्रो. आनंद कुमार, मेधा पाटकर, जस्टिस हेगड़े, कुमार विश्वास जैसे कई लोगों को वे धोखा दे चुके हैं।

राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे को केजरीवाल ने दिया धोखा
वर्ष 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आंदोलन में आगे रहने वाले अरविंद केजरीवाल के जेहन में शुरू से ही अपनी अलग पार्टी बनाने की बात थी। अन्ना आंदोलन के दौरान केजरीवाल ने कई बार कहा कि वह राजनीति करने नहीं आए हैं, उन्हें ना सीएम-पीएम बनना है और न ही संसद में जाना है। अन्ना भी राजनीति में जाने के विरोधी थे। बाद में केजरीवाल की महात्वाकांक्षा ने जोर पकड़ा और अन्ना का इस्तेमाल कर अपना असली मकसद पूरा करने के लिए 26 नवंबर 2016 को आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया। अरविंद केजरीवाल ने अपने गुरु को अकेला छोड़ दिया।

भ्रष्टाचारियों का साथ देने में गौरव महसूस कर रहे केजरीवाल
झूठ और मक्कारी केजरीवाल की रग-रग में बसी हुई है। भ्रष्टाचारियों का साथ नहीं देने का वादा भी वह नहीं निभा पाए। 2015 में चारा घोटाला के सजायाफ्ता लालू यादव से गलबहियां करते दिखे। वहीं अपने कई भ्रष्ट मंत्रियों को बचाने की वे पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। अब कांग्रेस की शरण में जाने की जुगत लगा रहे हैं। कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर मौजूद तमाम भ्रष्टाचारी नेताओं के बीच खड़े होकर उन्हें गौरव का अनुभव हो रहा था। जहिर है राजनीति बदलने का वादा कर आए केजरीवाल राजनीति के लिए खुद एक ‘कलंक कथा’ साबित हुए हैं।

करप्शन में आकंठ डूब गई केजरीवाल की सरकार
सत्ता मिलते ही केजरीवाल ने ना सिर्फ जनता से किए अपने वादे को तोड़ा बल्कि खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूब गए। उन्होंने अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार से भी आंखें फेर लीं। पहले तो अपने रिश्तेदार सुरेन्द्र कुमार बंसल को अनैतिक रास्ते से भ्रष्टाचार में मदद पहुंचाई। इसके बाद सत्येंद्र कुमार जैन को भी बचाने की कोशिश की। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर भी विज्ञापन घोटाले के आरोप हैं, वहीं दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव रहे राजेंद्र कुमार भी भ्रष्टाचार के मामले में जांच के दायरे में हैं। इसी तरह दिल्ली में स्ट्रीट लाइट घोटाले की भी जांच चल रही है। इन सब मामलों में अरविंद केजरीवाल की भूमिका भी संदिग्ध रही है और आरोपियों को बचाने की उनकी कोशिश तो नैतिक गिरावट की पराकाष्ठा है।

 

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