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कर्नाटक में हार तय देख अधूरी परियोजनाओं का उद्घाटन करने में जुटे सीएम सिद्धारमैया!

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लगता है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी हार निश्चित दिख रही है। यह इसलिए लग रहा है क्योंकि पांच वर्षों तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे सीएम सिद्धारमैया ने राज्य में विकास के नाम पर कुछ नहीं किया। अब सिद्धारमैया अधूरे प्रोजेक्टों का उद्घाटन कर जनता को गुमराह करने की कोशिश में जुटे हैं। जाहिर है कि जल्द ही कर्नाटक में चुनाव की घोषणा हो सकती है, और फिर मुख्यमंत्री उद्घाटन नहीं कर पाएंगे, इसलिए वर्षों से अटकी पड़ी परियोजनाओं में अपने नाम का पत्थर लगवाकर उद्घाटन की रस्म निभाई जा रही है।

सिद्धारमैया ने किया दो अधूरे प्रोजेक्ट का उद्घाटन
हाल के दिनों में दो बार ऐसा हो चुका है जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अधूरी सड़क परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। एक मार्च 2018 को सिद्धारमैया ने ओकलीपुरम-यशवंतपुर सिग्नल फ्री कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। बताया जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट अभी सिर्फ 65 प्रतिशत ही पूरा हुआ है और जल्दबाजी में अपना गुडवर्क दिखाने की नीयत से मुख्यमंत्री ने इसका उद्घाटन कर दिया। इसी प्रकार 4 मार्च, 2018 को भी सिद्धारमैया ने करीब एक किलोमीटर लंबे Hennur flyover का उद्घाटन किया था। 920 मीटर लंबे इस फ्लाईओवर का काम अभी पूरा नहीं हुआ है और 9 सालों से लटका हुआ है। पिछले पांच वर्ष के शासन में सिद्धारमैया सरकार ने महत्वपूर्ण फ्लाईओवर को जल्द पूरा कराने के लिए कुछ नहीं किया और अब जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए इसका उद्घाटन कर दिया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2009 में इस फ्लाईओवर का काम शुरु हुआ था और 15 डेडलाइन गुजर जाने के बाद भी यह अधूरा पड़ा है। स्थानीय लोगों ने आशंका जताई है कि जिस तरह अधूरी पड़ी परियोजनाओं को जल्दबाजी में पूरा करने की कोशिश हो रही है, जरूर इसमें गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा होगा।

सिर्फ अधूरी परियोजनाओं के उद्घाटन के जरिए ही नहीं, सिद्धारमैया चुनाव जीतने के लिए कई और हथकंडे भी अपना रहे हैं। एक तरफ वह जहां वो हिंसा का सहारा लेकर लोगों की भावनाएं भड़का रहे हैं, वहीं मुस्लिम वोटबैंक को लुभाने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण में भी लगे हैं।

तुष्टिकरण की राजनीति में लगी राज्य सरकार
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पास विकास के नाम पर तो कुछ दिखाने के लिए है नहीं, ऐसे में वो चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी के पुराने हथकंडे, मुस्लिम तुष्टिकरण को हवा देने में लगे हैं। कर्नाटक में एक तरफ टीपू सुल्तान को लेकर राज्य सरकार लोगों की भावनाएं भड़का कर मुस्लिमों को अपने पाले में करने के खेल में लगी है, वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस लिया जा रहा है। जनवरी, 2018 में कर्नाटक सरकार ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश दिया गया। साफ है कि यह ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ की वजह से किया जा रहा है।

कर्नाटक के लिए अलग झंडे की सियासत
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पता है कि विकास और जनहित का कोई काम दिखाकर तो चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसलिए वह ऐसी बातों को हवा देने में लगे हैं, जिनमें राज्य के निवासियों की भावनाओं पर असर हो और वे कांग्रेस के पक्ष में झुक जाएं। अब सीएम सिद्धारमैया ने कर्नाटक के लिए अलग झंडे का शिगूफा छोड़ा है। देश में सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य हैं जिसका अपना अलग झंडा है। देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है, लेकिन सिद्धारमैया ने प्रदेश के लिए अलग झंडे को मंजूरी देकर विवाद खड़ा कर दिया है। वह कर रहे हैं कि कन्नड़ भाषी लोगों की अस्मिता के प्रतीक के लिए अलग झंडा बनाने का फैसला किया है। मतलब साफ है कि सिद्धारमैया  किसी भी प्रकार से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाना चाहते हैं।

कांग्रेस सरकार के दौरान बढ़ी हिंसा और अपराध
सिद्धारमैया सरकार ने विकास तो नहीं किया, कानून व्यवस्था के मामले में भी फेल साबित हुई है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के दौरान अब तक 7,748 हत्याएं, 7,238 बलात्कार और 11, 000 अपहरण की घटनाएं हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त दंगों के भी कई मामले सामने आ चुके हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवकों की हत्याओं का दौर भी लगातार जारी है। मतलब साफ है कि हिंसा और अपराध का सहारा लेकर कर्नाटक सरकार चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती है।

राज्य में किसानों के लिए कुछ नहीं किया
कर्नाटक में किसानों की हालत दयनीय हो चुकी है। हैरानी बात यह है कि एक तरफ बड़ी संख्या में किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया किसान सम्मेलन में चांदी के बरतनों में खाना खाने में मस्त हैं। पांच वर्षों के दौरान कांग्रेस सरकार ने किसानों की हालत सुधारने पर कोई ध्यान नहीं दिया। आंकड़ों के मुताबिक अबतक 3, 781 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। केंद्र सरकार ने किसानों को लिए जो 1685 करोड़ की रकम किसानों के लिए भेजी थी उसकी आधी रकम ही सिद्धारमैया सरकार ने किसानों पर खर्च की है।

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