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सीएम रूपानी से सीखो राहुल, दुर्घटना देखकर आगे नहीं बढ़ गये, मदद को बढ़े, गाड़ी दे दी

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घटनाएं साबित कर देती हैं कि कौन क्या है। एक घटना सहारनपुर में घटी थी जिस बारे में चश्मदीद ने फेसबुक पर बताया था कि किस तरह राहुल गांधी दुर्घटना देखकर भी पीड़ित महिला से मिलने को गाड़ी से उतरे तक नहीं, उनकी मदद नहीं की। अब वैसी ही घटना  घटी है अहमदाबाद में, जहां गुजरात के मुख्यमंत्री रूपानी ने अपनी गाड़ी पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने के लिए दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस तरीके से एक बच्ची से मिलने कार से उतरते हैं, उसे गोद में लेते हैं आप देख ही चुके हैं। यही फर्क है देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी में। ये घटनाएं यह भी बताती हैं कि क्यों राहुल गांधी जनता के प्रिय नहीं हो पाए और क्यों नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी जनता की आंखों का तारा बन गयी।

कांग्रेस की ‘वीआईपी संस्कृति’

प्रजातंत्र में आम और खास के फर्क का पोषण करके, वीआईपी संस्कृति को बढावा देने वाली, देश की सबसे पुरानी और आजादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टी, कांग्रेस, जिम्मेदार है। इसके  विपरित, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी इस लाल बत्ती की वीआईपी संस्कृति की धुर विरोधी है, जो आम और खास के फर्क को स्वीकार नहीं करती है।

जनता के लिए राहुल में ‘अपनापन’ नहीं

हाल ही की घटनाएं राजनीतिक दलों की संस्कृति को स्पष्ट करती हैं। हाल ही में, जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहारनपुर दौरे पर जा रहे थे तो मार्ग की एक घटना है, जिसमें एक बड़ी गाड़ी से बुजुर्ग महिला को टक्कर लग जाती है, महिला सड़क पर गिर पड़ती है। उसके गिरते ही सड़क पर चल रही गाड़ियों को रोक कर लोग उस महिला की मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं। इसी वक्त राहुल गांधी,राजबब्बर और गुलाम नबी आजाद भी एक गाड़ी में सवार घटना स्थल के करीब पहुंचते हैं लेकिन राहुल गांधी अपने अन्य दो कांग्रेसी नेताओं के साथ उतरकर बुजुर्ग महिला के पास मदद के लिए नहीं पहुंचते हैं। इस घटना का विवरण एक पत्रकार ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा। एक अन्य दूसरी घटना 5 जून को गुजरात के अहमदाबाद की है, जिसमें सड़क हादसे में एक परिवार के सदस्य बुरी तरह से घायल हो जाते हैं और उसी समय मुख्यमंत्री रुपानी का काफिला गुजरता है। मुख्यमंत्री अपने काफिले को रोककर उस दुर्घटना स्थल पर ही नहीं पहुंचते हैं बल्कि तुरंत अपनी गाड़ी सभी घायलों को अस्पाताल पहुंचाने के लिए दे देते हैं।

राहुल की ‘राजशाही संस्कृति’

इन घटनाओं के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं की प्रतिक्रिया इनकी उस अलग -अलग संस्कृतियों की ओर ध्यान खींचता हैं जिनको ये जीते हैं। एक, राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की संस्कृति है जिसमें जनता और नेता के बीच फर्क रखा जाता है, दूरी बनाकर रखी जाती है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की संस्कृति है जिसमें नेता और जनता के बीच कोई फर्क नहीं है, कोई दूरी नहीं है।

पीएम मोदी ने खुद को मानवता का उदाहरण बनाया

नरेन्द्र मोदी ने कई अवसरों पर स्वंय ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं, जिसमें जनता को अपना समझने की संस्कृति पोषित और पल्लवित होती है। हाल ही में 23 मई को जब प्रधानमंत्री अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक के समारोह से गांधीनगर से अहमदाबाद अपने काफिले के साथ जा रहे थे, तो सड़क पर उसी दौरान एक एंबुलेंस भी आ गया। मोदी के पास अपने अगले कार्यक्रम के हिसाब से समय कम था, फिर भी उन्होंने अपने काफिले को सड़क के किनारे रुकावकर, एबुंलेस को आगे जाने के लिए सड़क खाली कर दिया। इससे पहले भी , 17 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी जब सूरत से वापस  रहे थे तो सड़क पर खड़ी भीड़ में से एक 4 साल की बच्ची नैंसी गोडेलिया अपने ‘दादा’  से मिलने के लिए दौड़ी, लेकिन एसपीजी वालों ने रोक दिया. जब प्रधानमंत्री ने देखा कि बच्ची उनसे मिलना चाहती है तो उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को उसे आने देने के लिए इशारा किया। जब नैंसी ‘दादा’ के पास पहुंची तो उसके ‘दादा’  ने प्यार से उससे बातचीत की ।

कांग्रेस को ‘अपनापन’ कभी समझ में ही नहीं आया

अपनेपन की यह भावना उसी संस्कृति में उत्पन्न हो सकती है जिसमें सभी को एक समझने का ‘बोध’ हो. इसी बोध की ही पहल थी कि देश में लालबत्ती को एक दिन में ही, एक निर्णय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खत्म कर दिया, जिसको खत्म करने के लिए कांग्रेस ने अपने लंबे सत्ता काल में कभी नहीं सोचा भी नहीं, खत्म करने की बात तो अलग है।

कांग्रेस का डीएनए ऐसा है कि इसके नेता अपने को जनता से अलग और खास समझते हैं. इस कांग्रेसी संस्कृति में पले बढे नेताओं के मन में अपने को ‘राजा’ और जनता को ‘प्रजा’ समझने का एक जबरदस्त अहंकार भाव है, जिससे वे जनता से एक विशेष दूरी बनाकर रखते हैं और जनता के सुख दुख में उससे संवाद करना तथाकथित ‘राजसत्ता की शक्ति’ को कम करना समझते हैं। इसी संस्कृति का नमूना यूपीए का दस सालों के सत्ता का काल रहा जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हो या कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी हों या भावी प्रधानमंत्री कहे जाने वाले राहुल गांधी हों, जिन्होंने कभी अपनेपन से जनता से संवाद नहीं किया। वे ‘राजा’  के समान प्रेसविज्ञप्ति के माध्यम से जनता से संवाद करना ही अपनी ‘राजशाही’ का धर्म मानते रहे थे।

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